*अमृतम गोल्ड माल्ट*
शरीर को शीघ्र शक्ति प्रदान
करता है ।एथेलीट, खिलाड़ी,
पर्वतारोही, गोताखोर,
फैक्टरियों के श्रमिकों,
मजदूरों, मेहनतकश लोगों,
किसान, कर्मचारियों,
कमजोरी से पीड़ित
कामकाजी ,घरेलू या गर्भवती
महिलाओं, बच्चों,विकलांगों,
रोग से असहाय रोगियों को
रोग होने अथवा नहीं
होने पर भी *अमृतम गोल्ड माल्ट*
बिना किसी सलाह के
जीवन भर लिया जा सकता है ।
जिन्हें तत्काल ऊर्जा पूर्ति की
आवश्यकता है ।
ऋतु परिवर्तन के समय
शरीर विकारों से घिर जाता है ।
सर्दी-खाँसी, जुक़ाम, सिरदर्द,
मन की अशांति आदि जैसे
सामान्य रोग भी जीवनीय शक्ति
व रोग प्रतिरोधक क्षमता
की कमी या क्षीणता के
कारण बहुत परेशान कर
असाध्य रोगों को जन्म देते हैं ।
हमारी नासमझ लापरवाही ओर अमृतम आयुर्वेद के प्रति अज्ञानता
अल्प आयु में ही तन को रोगों का
पिटारा बना देती है ।
एक कदम *अमृतम आयुर्वेद की ओर*
अमृतम आयुदाता पद्धति है ।
यह पीड़ा पर पर्दा न डालकर
अंदर से निकाल कर रोगों
को बाहर करती है ।
बुढ़ापा आने से रोकती है ।
अंतिम श्वांस तक शरीर मे
कम्पन्न नही होने देता ।
वात-पित्त,कफ
(त्रिदोष नाशक) ओषधि
के रुप में इसे बहुत पसंद
किया जा रहा है ।
अमृतम वृक्षों पर भी विचार करें–
*आयु व मृत्यु*
वृक्ष हो या व्यक्ति दोनों प्रकृति के
अनुरूप चले, शतायु होना संभव है ।
” गुणरत्न” ने लिखा कि
*’ दशसहस्त्त्राणयुत्कृष्टमायु’*
हरेक को जलवायु, प्राणवायु
के अनुसारअलग-अलग रहने का निर्देश
अमृतम आयुर्वेद के शास्त्रों में बताया है ।
मृत्यु के विषय में-:
*”इष्टानिष्ठहारादिप्राप्तामृत्यु:”*
में लिखा है अहित आहार से म्रत्यु
होती है ।
उदयनाचार्य ने किराणावली नामक
ग्रंथ में रोग-मृत्यु, ओषधि पर भी प्रकाश
डाला है ।पौधों के लिये जीवन-मरण,
स्वप्न-जागरण,रोग-भैषज्य का प्रयोग,
विवरण मनुष्यवत बतलाया है ।
उपस्कार ग्रंथ में भी इसी प्रकार का
वर्णन है ।
प्रथ्वि निरूपण नामक ग्रंथ में उदयनाचार्य
ने स्पष्ट लिखा है कि -पौधों के भीतर सुख-दुख
समझने की शक्ति व समझ बहुत ज्यादा होती है ।
मनुस्मृति में (मनु 1-49) वृक्षों को तमोगुण
प्रधान कहा है । फिर भी
*”अन्तः संज्ञा भवन्त्येतेसुख-दुःखसमन्विता’*
अर्थात अमृतम ओषधि,वृक्षों में भीतरी ज्ञान
होता है और यह सुख-दुख का अनुभव
करते हैं । भारत भूमि में वृक्षदेवता
मानने की परिपाटी, परम्परा भी इसीलिए है ।
बौध्द या अन्य धर्म भी इसे मानता है ।
बोधिसत्व ने 33 बार वृक्ष के रूप
में जन्म लिया ऐसा बुध्दजातकों में पाया
जाता है ।
अमृतम आयुर्वेद के महान महात्मा
*श्री श्री महिदास एवम ऐतरेय दोनों*
जड़ी-बूटियों, वृक्ष ओर पौधों को
भी प्राणी मानते हैं ।
*सत
*चित्त
ओर
*आत्मा
के प्रधान तीन गुण जो आत्मा में होते हैं
पेडों में भी मानते हैं ।
*उद्दालक अमृतम आयुर्वेद के वैज्ञानिक
का कथन है कि बीज में पेड़ की आत्मा रहती है । एक बीज वटवृक्ष बन जाता है ।
*सद्गुरु गण भी अपने परम शिष्य को
प्रसन्न हो एकाक्षर बीजमन्त्र देकर भुक्ति-मुक्ति
का मार्ग सुझाते हैं ।
*महाभारत पर्व में (म.भा.शा. १८४ अध्याय) महर्षि भृगु व ऋषि भारद्वाज
पेड़-पौधों में ज्ञानशक्ति रहने का कई
श्लोकों में वर्णित है ।
पूर्णतः आयुर्वेदिक
औषधियों के निर्माण में रत
*अमृतम फार्मास्युटिकल्स*
शुध्द हर्बल दवाओं का निर्माण
प्राचीन पद्धतियों द्वारा किया जा रहा है ,
अमृतम के उत्पादन ऊर्जा से परिपूर्ण हैं ।
ओर अधिक अद्भुत दुर्लभ जानकारी
पाने हेतु अमृतम के ब्लॉग पढ़ते रहिये-
शेष कल————–
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