उत्तराँचल में केवल कार्तिकेय स्वामी का मन्दिर उत्तरकांड की यात्रा पार्ट -8

कार्तिक स्वामी मंदिर मङ्गल दोष निवारण के लिए बहुत ही चमत्कारी है- पार्ट- 8

प्रकृति ओर हिमालय का अद्भुत नजारे को देखने के शौकीन हो, तो एक बार इस पर्वत पर अवश्य जावें। आपकी आत्मा गद-गद हो जाएगी।
सम्पूर्ण भूमि के स्वामी, प्रथ्वीपुत्र मङ्गल को ही क्यों स्वामी कहा जाता है, जबकि अन्य देवताओं के साथ स्वामी नहीं लगाया जाता।
इस रहस्य को जानने के लिए अमृतमपत्रिका के पिछले ब्लॉग पढ़ें।
भगवान कार्तिकेय के 6 मुख हैं और इन 6 मुखों के अलग अलग मन्दिर भी हैं वह किन-किन स्थानों पर हैं- यह जानना हो, तो
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कैसे करें मङ्गल दोष का उपाय– आगे पढ़ें

कनक चौरी गाँव, जो कि रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है। यहां से मात्र 3 या 4 किलोमीटर पर्वत के ऊपर क्रोध नामक पहाड़ी पर
भगवान कार्तिकेय का मंदिर हैं। भगवान मोरगन स्वामी इस स्थान पर क्रोधित रूप में विराजमान हैं, क्योंकि उन्होंने गुस्से में अपनी हड्डियां दान कर दी थी।
दैविक शक्तियों से भरपूर उत्तराखंड का सिर्फ एकमात्र मंदिर, भगवान् शिव के जयेष्ठ पुत्र
भगवान कार्तिक को समर्पित
मङ्गल तीर्थ स्थलों में से एक है।
यह मंदिर समुद्र की सतह से 3200 मीटर की ऊँचाई पर शक्तिशाली हिमालय की प्राकृतिक
पर्वतश्रेणियों से घिरा हुआ एक बहुत ही खूबसूरत पर्यटक स्थल भी है।
कैसे जाएं-
रूद्र प्रयाग उत्तराखंड का बहुत प्रसिद्ध स्थान है। यहां से किसी गाइड को साथ लेकर जावें। गर्म-ऊनी वस्त्र, कपूर आदि साथ रखें।
मङ्गल दोष के14लक्षण
【१】जिस जातक को मङ्गल दोष होता है, 【२】मङ्गल से पीड़ित व्यक्ति का मनोबल सदैव कमजोर रहता है।
【३】आत्मविश्वास में कमी रहती है।
【४】स्वभाव चिड़चिड़ा और क्रोधी होता है।
【४】शरीर में रक्त दोष होता है।
【६】हमेशा त्वचारोग परेशान करते हैं।
【७】कैंसर जैसे असाध्य बीमारियों से प्राणी पीड़ित हो जाता है।
【८】जीवन कभी स्थिर नहीं हो पाता
【९】हर कार्य में जल्दी रहती है।
【१०】तन में खुजली, फोड़ा-फुंसी होती रहती है एवं वह पूर्णतः स्वस्थ्य नहीं रहता।
【११】विवाह में बिलम्ब होता है या फिर विवाह होता ही नहीं है।
【१२】जीवन झंझटों से घिरा रहता है तथा मन-मस्तिष्क हमेशा अशान्त बना रहता है।
【१३】पुलिस का भय बना रहता है कि कहीं किसी झूठे मामले में न फसा दे।
【१४】किसी से लिया गया कर्जा चुकता नहीं हो पाता।
मंगलदोष नाशक उपाय
【1】जब कभी रूद्र प्रयाग के कार्तिकेय मन्दिर में जावें, तो सोने का एक पतला, छोटा तार किसी धागे में बांधकर भगवान कार्तिकेय स्वामी को पहनाएं। यदि इस दिन मंगलवार हो, तो अत्यंत शुभ रहेगा।
【2】उत्तरांचल की यात्रा के समय घर से काली मिर्च, गुड़ एव खड़ा सफेद नमक अपनी सुविधानुसार साथ ले जाकर कार्तिकेय मन्दिर के समीप किसी जल सरोवर, तालाब, नदी के किनारे अपने ऊपर से सात बार उसारकर जल में फेंक देवें।
फिर, एक पानी वाला नारियल का जल निकालकर अपने ऊपर छिड़ककर, शेषभाग
जल में ही छोड़े। ततपश्चात नदी या तालाब के जल से आचमन या स्नान करके भगवान कार्तिकेय के दर्शन कर अपनी उम्र के अनुसार अमृतम राहुकी तेल के दीपक
जलाकर एक या 5 माला 
!!ॐ शम्भूतेजसे मङ्गल शिवाय नमः!!
मन्त्र का बहुत श्रद्धा के साथ जाप करें।
इस उपाय से मङ्गल का करीब 70 फीसदी दोष दूर होता है। 
राहुकी तेल मंगवाने के लिए
99264-56869 दीपक से बात करें।
【3】प्रत्येक मंगलवार को नारियल जल अपने नजदीक के किसी एजेंट शिंवलिंग पर अर्पित करें, जीवन में सोभाग्यदायी परिणाम मिलने लगते हैं
मङ्गल दोष क्यों लगता है–
स्कन्द पुराण के छठे खण्ड में भगवान शिव ने बताया है कि जो भी प्राणी पूर्व जन्म या इस जन्म में कल्याण एवं सहयोग की भावना नहीं रखता, वही अनेक जन्मों तक मंगलदोष से पीड़ित रहता है।
इससे निवृत्ति के लिए हमेशा भगवान कार्तिकेय स्वामी की उपासना करना हितकारी होता है।
भविष्य पुराण” में लिखा है कि एक बार सूर्य देवता भी मङ्गल दोष से पीड़ित, कुंठित हो गए, तो उनके गुरु ने नीचे लिखे श्लोक का जाप करने का विधान बताया था।
आप भी जपकर पुण्य फल पा सकते हैं-
रोज राहुकी तेल के 5 दीपक पंचमहाभूतों का प्रतीक जलाकर जीवन को सुखमय बना सकते हैं-
कार्तिकेया महातेजा
आदित्यवर दर्पिता
शान्तिं करोतु में नित्यम
बलं सौख्यं च तेजसा ।।
मङ्गल शान्ति का यह विधान बहुत दुर्लभ है। मैं खुद भी मङ्गल दोष से बहुत दुःखी व परेशान रहा हूँ। इनसे मुक्ति के लिए बहुत पापड़ बेले हैं, तब कहीं जाकर आराम मिला।
यदि कोई भी पाठकगण को उपरोक्त लक्षण मिलते हैं, तो तत्काल मङ्गल का यह उपाय एक बार जरूर करें।
कभी मौका लगे, तो कार्तिकेया के 6 मुखों के 6 मंदिरों के दर्शन कर माँ कामाख्या असम जाकर 108 परिक्रमा लगावें।
एक बहुत जरूरी जानकारी
कालसर्प-पितृदोष, 
मंगलदोष, दरिद्र दोष,
केमद्रुम दोष, 
राहु-शनि, केतु से निर्मित दुर्भाग्य दोष 
आदि से अत्यधिक परेशान, पीड़ित लोग ईमेल या फोन द्वारा निशुल्क उपाय जान सकते हैं।

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