नागों के रहस्य पुराणों से

नागों के बारे में सात आश्चर्य जनक बातें, जो आज तक पढ़ी या सुनी नहीं होंगी
चारो वेद, स्कंद पुराण, शिवपुराण, शतपथ ब्राह्मण, गरुड़ पुराण, एश्वरोउपनिषद आदि पुराने ग्रंथों में नागों के बारे में विस्तार से वर्णन है।
【1】बह्मांड में जितने भी सिद्ध-असिद्ध नाग हैं, वह सब भगवान शिव के समीप ही शिंवलिंग
पर निवास करते हैं।
【2】सिद्ध नाग ही हमेशा मणिधारी होते हैं,
यानि मणि केवल नाग के पास ही होती है
और नागिन उसकी रक्षा करती है।
जब कि नागिन केवल इच्छा धारी होती है।
पूर्णिमा, पंचमी और चंद्रग्रहण के समय
नाग-नागिन अपना रूप बदलते हैं।
【3】शेषनाग इन्हें इसलिए कहा जाता है,
जब सृष्टि प्रलय के बाद कुछ नहीं शेष रहता, तो केवल नाग ही शेष बचते हैं।
【4】शेषनाग के पांच मुख होते हैं, जो पंचतत्वों यानि आकाश, अग्नि, वायु, पृथ्वी और
जल का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान नाम
पंचमहाभूतों का प्रतीक है।
पंचतत्व में परमेश्वर का वास
भ – भूमि
ग -गगन (आकाश)
 – वायु
T – अग्नि
न – नीर (जल)
इस प्रकार पंचतत्व को शास्त्रों मेंभगवान
कहा गया है।
【5】नाग और सर्पों दोनों अलग-अलग होते हैं। नागों की माँ का नाम विनता था और सर्पों की माँ का नाम कद्रू था। दोनों आपस में सौतन थी एवं दोनों में आपसी मतभेद थे।
【6】नाग बहुत फुर्तीले होते हैं, जबकि
सर्प बहुत सुस्त प्रजाति के होते हैं।
【7】कालसर्प का कारक- सर्प
सर्प और समय दोनों को काल कहा गया है।
काल के कारक महाकाल हैं, जब
समय की गति कमजोर व क्षीण होने से  कालसर्प दोष उत्पन्न होता है, तो महाकाल
एवं महादेव की भक्ति और पूजा से कालसर्प का दोष या दुष्प्रभाव कम हो जाता है, मिटता नहीं है।
त्रिलोक के सभी सिद्ध नागों का पाताल लोक में
हाटकेश्वर शिंवलिंग पर निवास है। यहां मणिधारी नागों के कारण हमेशा प्रकाश रहता है।
जीवन में उन्नति और सफलता के लिए
शिव चरणों से लिपटे रहिये। 
मुख से शिव-शिव जय शिव कहिये॥
आत्मबल की वृद्धि के लिए नियमित
एक या 5 बार नीचे लिखे नाग स्तोत्र
का राहुकी तेल का दीपक जलाकर
पाठ करना चमत्कारी फायदे देता है
सिद्ध नाग स्तोत्र
ब्रह्मलोके च ये सर्पा 
शेषनाग पुरोगमा:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥१॥
विष्णु लोके च ये सर्पा: 
वासुकि: प्रमुखादय:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥२॥
काद्रवेयाश्च ये सर्पा: 
मातृभक्ति परायणा:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥३॥
इन्द्रलोके च ये सर्पा: 
तक्षक: प्रमुखादय:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥४॥
सत्यलोके च ये सर्पा: 
वासुकिना च रक्षिता:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥५॥
मलये चैव ये सर्पा: 
कर्कोट प्रमुखादय:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य:
सुप्रीता: मम सर्वदा॥६॥
समुद्रतीरे ये सर्पा: 
ये सर्पा: जलवासिन:
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥७॥
रसातले च ये सर्पा 
अनन्तादि महाबला:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥८॥
सर्पसत्रे तु ये सर्पा 
आस्तिकेन च रक्षिता:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥९॥
धर्मलोके च ये सर्पा: 
वैतरण्यां समाश्रिता:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥१०॥
पर्वताणां च ये सर्पा 
दरीसन्धिषु संस्थिता:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥११॥
खाण्डवस्य तथा दाहे 
स्वर्गं ये च समाश्रिता:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥१२॥
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: 
ये च साकेतवासिन:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥१३॥
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: 
वसन्ति सर्वे स्वच्छन्दा:।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥१४॥
ग्रामे वा यदि वारण्ये 
ये सर्पा: प्रचरन्ति च।
नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: 
सुप्रीता: मम सर्वदा॥१५॥
हिंदी में अर्थ
अर्थात् :- ब्रह्म लोक के उन नागों को, जिनमें शेषनाग प्रमुख हैं;
विष्णु लोक के उन नागों को, जिनमें वासुकि नाग प्रमुख हैं;
कद्रू के वे नाग पुत्र जो मातृ भक्त हैं;
इन्द्र लोक के उन नागों को , जिनमें तक्षक प्रमुख हैं;
सत्य लोक के उन नागों को, जिनकी वासुकि नाग द्वारा रक्षा की जाती है;
मलयाचल के उन नागों को, जिनमें कर्कोटक प्रमुख हैं;  समुद्र के तट पर तथा जल में रहने वालों, रसातल के उन बलवान नागों को, जिनमें अनन्त प्रमुख है;
आस्तीक के द्वारा जनमेजय के नागयज्ञ से बचाये गये नाग-सर्पों; वैतरणी नदी में रहने वाले धर्म लोक के नागों को; पर्वतों की दरारों में रहने वाले सर्पों; खाण्डव वन की आग में जल कर मरने से स्वर्ग लोक में गये सर्पों; पृथ्वी पर और साकेत में रहने वाले नागों-सर्पों तथा गाँवों और जंगलों में स्वतंत्रता पूर्वक रहने और विचरण करने वाले सभी नाग-सर्पों को नमस्कार है। ये सभी नाग-सर्प सदा हम पर प्रसन्न रहें,
हमारी सभी मनोकामना पूर्ण करें ॥१-१५॥
नवनागों को नमन
अनन्तं वासुकिं शेषं,
पद्मनाभं च कम्बलम्।
शङ्खपालं धार्तराष्ट्रं,
तक्षकं कालियं तथा॥१॥
एतानि नवनामानि,
नागानां च महात्मनाम्।
सायं काले पठेन्नित्यं,
प्रात: काले विशेषत:॥२॥
तस्मै विषभयं नास्ति,
सर्वत्र विजयी भवेत॥३॥
अर्थात् :-अनन्त, वासुकि, शेषनाग, पद्मनाभ, कम्बल, शंखपाल, धृतराष्टï्र, तक्षक और कालिय। ये महान् आत्मा वाले नौ नागों के नाम हैं। जो लोग नित्य ही सायंकाल और विशेष रूप से प्रात:काल इन नामों का उच्चारण करते हैं,उन्हें सर्प और विष से कोई भय नहीं रहता तथा उनकी सब जगह विजय होती है, अर्थात् सफलता मिलती है॥१-३॥
  1. नाग गायत्री –                                     ऊँ नव कुलाय विद्महे, विष-दन्ताय धीमहि। तन्नो सर्प: प्रचोदयात्

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