जब हो शनि से तनी :-
शनिवार का दिन अक्सर सभी का तना तनी में गुजरता है।
संसार में अधिकाश अकाल मृत्यु, दुघर्टनायें शनिवार को ही घटित होती है। शनि की जनी (पत्नी) के शाप के कारण शनि की कुदृष्टि से सब कुछ पल भर में तबाह हो जाता है। जन्म पत्रिका में यदि शनि प्रथम,छठे, या ग्यारहवें भाव में स्थित हो,तो स्वर्ण पाद, दूसरे, पाँचवे या नौवे स्थान पर (राशि में नही) विराजमान हो, तो रजत (चाँदी के पाये) पाद में, तीसरे, सातवें या दसवें भाव में बैठे हो तो ताम्र पाद में तथा चोथे आठवें अथवा बारहवें भाव में स्थित होने पर शनि ग्रह के अलग-अलग पाद (पायें) में स्थित होने के फल इस प्रकार है कि –
यदि जन्म पत्रिका में शनि स्वर्ण पाद के हो,तो सम्पूर्ण जीवन सुख प्रदान करते है। ताम्र पाद के शनि समता लौह पाद के शनि धन, तन तथा मन का पूरी तरह विनाश कर देते है। रजत चाँदी पाद के शनि सबसे शुभकारी, सौभाग्यशाली हैं।
लौह पाद के शनि जातक को जीवन भर परेशान करते रहते हैं इन्हें समय-समय पर लौहा, तेल तथा बर्तन का दान प्रत्येक शनिवार चंदन जैतून बादाम तैल के मिश्रण अथवा राहुकी तेल से मालि श करना चाहिये। जब कभी शनिवार की अमावश्या हो, उस दिन ग्यारह किलो सरसों या तिल के तेल को किसी लौहे की कढ़ाई में भरकर उसमें अपना मुख तीन बार देखकर किसी मंदिर या कही भण्डारे में कढ़ाई सहित दान कर देवें यदि संभव हो, तो उस तेल में उड़द, मूंग की दाल के मगोड़े पकोड़े आदि सिकवाकर गुड़ सहित खिलावें।
इन प्रयोगो से शनिवार का दिन खराब नही जाता। इन आध्यात्मिक प्रयोगो से सभी दिन, सभी वार पर एतवार किया जा सकता है। हर बेकार समय का हथियार मात्र ईश्वर ही आधार है। प्रार्थना, अर्चना, पूजा आदि के द्वारा सब अनिष्टो से बचा जा सकता है।
अतः नवीन सवतत्सर नया अवसर प्रदान करें
शंका समाधान :-
शास्त्रों के अनुसार जन्म एवं नाम राशि के प्रधानता का निर्णय इस प्रकार करें कि समस्त विवाहदि मंगल कार्यो में, यात्रा एवं ग्र गोचर में जन्मराशि की प्रधानता होती है। बोलते नाम का चिन्तन नही करना चाहिये। देश, ग्राम, ग्रह, युद्ध, सेवाकर्म, व्यापार तथा व्यवहार में बोलते नाम की राशि की प्रधानता होती है।
श्री हनुमान को भगवान के स्थान पर गुरूमान पूजने से ये अपनी कृपा शीघ्र करते है। यदि इनके समक्ष एक दीप जलाकर जय-जय-जय हनुमान गुंसाईं कृपा करो गुरूदेव की नाईं चौबीस बार या तथा ग्यारह बार ऊँ नमः शिवाय मंत्र जाप करें तो जीवन में हर समस्या का समाधान कुछ ही दिनों मे हो जाता है। यह प्रयोग एक बार अवश्य अजमाये।
श्री हनुमान जी एक ऐसे गुरू है जिनका मणिपुर चक्र पूर्णतः जाग्रतावस्था में है। नाभि चक्र के बीज मंत्र ‘र‘ को सिद्ध कर लिया था इनमें अग्नितत्व की अधिकता है। इनके समक्ष ऊँ नमः शिवाय मंत्र के जाप से सब ताप, तपन, रोग, दोष, आदि जलकर खाक हो जाते है। शास्त्रों में इनकी स्तुतियाँ गुरू रूप में ही की गई है। हनुमान मंदिर जितनी ऊँचाई पर होते है। उतने ही सिद्ध होते है। यदि अचानक कोई खतरनाक कष्ट आ जाये या परेशानियों से मुक्ति नही मिल पा रही हो, तो किसी भी शिखर या पहाड़ पर स्थित श्री हनुमान जी के मंदिर में जाकर उन्हें गुरू रूप में प्रणाम करें। एक या चौबीस दीपक पान के पत्ते पर रखकर गुरू जी चौबीस परिक्रमा चौबीस दिन लगातार करने से कैसा भी र्दुभाग्य दोष, आपदा सन्तति, विवाह अवरोध दूर ही हो जाते है। कार्य पूर्ण होने पर उस स्थान पर 108 दिन के दीपक जलाने हेतु घी दान करें। एक घंटा टगवायें तथा 108 इलाचयी, 54 लोंग तथा 28 मखानों की एक ही माला बनाकर अपने गुरू जी (श्री हनुमान जी) को अर्पित करें।
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