दम निकाल देता है-दमा
श्वांस की दिक्कत और दम घुटने के कारण इसे दमा रोग कहा गया है।
दमा (अस्थमा) श्वसन स्थान का एक सूजन वाला रोग है।
दमा-श्वांस-अस्थमा के लक्षण…
@ आम लक्षणों में गले में घरघराहट, लगातार खांसी, गले की सूजन, जुखाम तथा सीने में जकड़न और श्वसन क्रिया में अवरोध।
@ दमा पीड़ित को श्वांस लेने छोड़ते समय बहुत कष्ट रहता है।
@ दमा रोग फेफड़ों में जमी गन्दगी और बलगम की वजह से होता है।
@ दमा एक खतरनाक बीमारी है इसमें रोगी के फेफडों एवं गले की नली में कफ या सुजन पैदा हो जाती है।
@ खांसी के कारण सीने में बहुत बलगम जमा रहता है।
@ फेफड़े से कफ उत्पन्न हो सकता है लेकिन इसको बाहर लाना काफी कठिन होता है।
@ किसी दौरे से उबरने के समय यह गन्दा मवाद जैसा लग सकता है जो कि श्वेत रक्त कणिकाओं (डब्लूबीसी WBC) की वृद्धि के कारण होता है।
सन्सार श्वांस की दम पर ही कह पाता है-
दमादम मस्त क़लन्दर…
जिन्हें दमा है वह दमभर सांस भी नहीं ले पाते। इस जीव-जगत में सभी जीव-जंतु, पशु-पक्षी,पेड़-पोधे और कीट-पतंग, आदि
ऐसे प्राणी हैं, जिन्हें जीवित रहने हेतु
प्राणवायु की जरूरत है।
चलती है लहर के पवन कि- सांस सभी की चलती रहे…
“किशोर कुमार”
का यह पुराना गाना सबने सुना होगा।
यदि सन्सार में एक पल के लिए भी वायु रुक जाए या किसी को श्वांस नहीं मिले, तो ये सब काल के गाल में समा जाएंगे। सृष्टि में सबके जीवन का
आधार ही साँस है।
सांस की फांस-
जिन लोगों को बचपन में बहुत लम्बे समय तक सर्दी-जुखाम, निमोनिया बना रहता है, उनके फेफड़ों में कमजोरी आने लगती है। ऐसे रोगियों की प्राणवायु – फेफड़ों तक पूरी तरह नहीं पहुंच पाती। फेफड़ों के संक्रमण की वजह से 40 वर्ष की उम्र के बाद व्यक्ति आसानी से श्वांस नहीं ले पाता। उसे को साँस लेने में दिक्कत होती है। ये ही सांस चलना, दमक-श्वांस है।
आयुर्वेद ग्रन्थ ‘द्रव्य-गुण विज्ञान’ के मुताबिक श्वांस का सही तरीके से आवागमन न होना या रुक-रुककर सांस लेना आदि इस स्थिति को ही दमा रोग कहते है।
आयुर्वेद में है–
दमा को जड़ से खत्म करने के उपाय,
दमे के लक्षण और बचने के तरीके..
दमा-अस्थमा रोग में कभी-कभी साँस अचानक से रुक जाती है और फिर दम घुटने लगता है, जब तक हमें पता नहीं होता।
श्वास और दमा दोनों ही फेफड़ों की कमजोरी के रोग हैं।
फर्क बस, इतना है कि-
श्वांस रोग के होने से साँस लेने में दिक्कत होती है तथा अस्थमा रोगी को साँस बहार निकालते समय जोर लगाना पड़ता है।
क्यों होता है-दमा और श्वांस …
{{१}} जब फेफड़ो की छोटी छोटी नालियों में रुकावट,अकडन होने से संकोचन उत्पन्न होने लगता है, तो फिर हमारे फेफड़े जो साँस लेते है उन्हें अन्दर ले जाकर पूरी तरह से रोक या पचा नहीं पाते। ऐसी स्थिति में रोगी पूरी साँस को खींचे बिना ही स्वांस को छोड़ देता है तब ये स्थिति दमा कहलाती है।
{{२}} घर के भीतर के आम एलर्जी कारकों में धूल-धुंआ, दीमक, काकरोच, घुन, जानवरों के बालों की रूसी तथा फफूंद सामिल हैं।
{{३}} घर में ध्रूमपान करना भी दमा का एक कारण हो सकता है।
{{४}} आरंभिक जीवन यानि बचपन में ही अधिक एंटीबायोटिक टॉक्सिन दवाओं का उपयोग दमा- अस्थमा की तकलीफ को और बढ़ाता है।
{{५}} बरसात के दिनों में वातावरण में अधिक नमी होने के कारण दमा रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है। जिन्हें पहले से ही दमा होता है, उन्हें भी इस मौसम में दमा के दोरा पड़ने का डर और बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है।
{{६}} दमा के मरीजों को श्वांस लेने में सुबह से शाम के समय अधिक होती है।
{{७}} कफ प्रकृति वाले तथा ठंडी तासीर वाले लोगों को दमा की शिकायत निश्चित रहती ही है।
{{८}} दमा को केवल आयुर्वेदिक चिकित्सा अमृतम लोजेन्ज माल्ट से पूरी तरह ठीक किया जा सकता है।
{{९}} जिन बच्चों को हमेशा सर्दी-खांसी, जुकाम, निमोनिया, पसली चलना आदि फेफड़ों सम्बंधित समस्या रहती हो,
उन्हें बचपन से ही अमृतम कम्पनी का लोजेन्ज माल्ट सेवन करवाना चाहिए अन्यथा बचपन की ये परेशानी बड़ी उम्र में जी का जंजाल बन जाती है।
दुनिया की दम निकाल दी-दमे ने…
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन में पाया है कि दुनिया में दमा रोग का शिकार लगभग 35 फीसदी लोग हैं। बचपन में की गई लापरवाही के चलते आज सर्वाधिक बच्चे ज्यादा तकलीफ झेल रहे हैं और स्त्री-पुरुष भी दमा-अस्थमा, श्वांस की बीमारी से भयंकर पीड़ित हैं।
अस्थमा की आमद…
दमा (अस्थमा) को दुनिया में सर्वप्रथम कायरों/इजिप्ट या प्राचीन मिस्र में पहचाना गया था और इसे कायफी अर्थात वर्तमान में कॉफी नाम के एक गर्म-गर्म काढ़ा या पेय को पिलाकर ठीक किया जाता था।
दमा रोग होने की वजह…
वर्तमान में हो रहे खतरनाक वायु प्रदूषण के कारण सांस लेने में दिक्कत हो रही है।
प्रकृति की मार है। यह भी दमा रोग की एक मुख्य वजह है।
दमा-अस्थमा रोग
धूल-धुंआ, जहरीली हवा और दवा,धुआ, दूषित गैस, प्रदूषित वायु आदि के शरीर में जाने से आज हर कोई सांस लेने में परेशानी महसूस कर रहा है।
यह सब दुषित वातावरण की वजह से प्रत्येक प्राणी को प्राणवायु शरीर के अन्दर जाकर फेफड़ो को नुकसान पहुचा रही है।
दमा रोग होने के कुछ अन्य कारण..
■ जलनयुक्त,अधिक दिनों तक रखे दूषित भोजन या बासी खाद्य पदार्थो के खाने से
भी दमा होता है।
■ किसी-किसी को कोई वस्तु जल्दी हजम नहीं होती, उसके सेवन से भी श्वांस लेने में दिक्कत आ जाती है।
■ रात में अरहर की दाल, जूस, दही, फल, आइसक्रीम या अन्य ठंडी चीजें आदि के उपयोग से भी दमा हो सकता है।
■ दमा रोग एक संक्रमण यानि एलर्जी डिसीज है। एक को होने पर दूसरे को भी हो सकता है। जैसे यदि माता या पिता में किसी भी को भी है, तो बच्चे को भी हो जाता है।
■ इस रोग में जब लोगो को दौरे पड़ते है तब उन्हें घुटन होती है और कभी-कभी तो बेहोश होकर गिर भी जाते है।
■ अस्थमा ( दमा) एक गंभीर बीमारी है, जो श्वास नलिकाओं को प्रभावित करती है। श्वास नलिकाएं फेफड़ों से प्राणवायु यानि सांस को अंदर-बाहर करती हैं। दमा होने पर इन नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन हो जाता है। यह सूजन नलिकाओं को बेहद संवेदनशील बना देता है।
■ दमे का दौरा पड़ने से श्वास नलिकाएं पूरी तरह बंद हो सकती हैं, जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को आक्सीजन की आपूर्ति बंद हो सकती है। यह चिकित्सकीय रूप से आपात स्थिति है। दमे के दौरे से मरीज की मौत भी हो सकती है।
आयुर्वेदिक की पुरानी किताबों में श्वांस रोग अनेक प्रकार के बताये गए हैं।
उनके नाम निम्नलिखित हैं-
दमा एक एलर्जिक, जटिल और गम्भीर बीमारी है। श्वांस नलिका में धूल के कण जम जाने या श्वांस नली में ठण्डक होने के कारण होती है। इस बीमारी का मुख्य कारण यही है।
【1】तमक श्वांस
इसमें भय, भ्रम, कष्ट और बोलने में परेशानी, नींद न आना, सिर दर्द होना, बार-बार मुहँ सुखना और चेतना का कम होना इस रोग के लक्षण है।
【2】क्षुद्र श्वांस–
श्वांस ऊपर की और अटकी महसूस होती है ऐसा लगता है, जैसे ऊपर से हवा ही नहीं मिल पा रही हो इसमें खांसी भी हो जाती है। जिससे साँस लेने में अधिक तकलीफ होती है।
क्षुद्र श्वांस – ये रोग रूखे पदार्थो का अधिक सेवन करने से होता है, और अधिक परिश्रम करने से भी होता है। जब वायु ऊपर की ओर उठती है तब ये बीमारी उत्पन्न होती है इसमें वायु कुपित होती है, लेकिन इसमें अधिक कष्ट नहीं होता है और कभी कभी ये खुद ही ठीक हो जाती है।
स्मरण शक्ति कम हो जाती है और बोलने में भी परेशानी होने लगती है। जोर जोर से सांसे लेना और आँखों का फट सा जाना और जीभ का तुतलाना ये सब लक्षण है।
【3】ऊर्ध्व श्वांस…
ऊपर साँस को लेने में कोई तकलीफ न होना और नीचे की और साँस को भेजने में तकलीफ का होना, साँस नली में कफ का जम जाना और ऊपर की और दृष्टि अधिक रहना। घबराहट होना। हमेशा ही इधर उधर देखना और नीचे की और साँस को भेजने में बेहोशी महसूस होना ये सब लक्षण है।
【4】छिन्न श्वांस …
इस रोग में रोगी ठीक से साँस नहीं ले पाता। रुक रुक के साँस लेता है। पेट फूल जाता है। पसीना अधिक मात्रा में आता है। आँखों में पानी बहने लगता है इस रोग में आम तोर पर आँखे व मुख लाल हो जाता है। चेहरा सूखने लगता है।
परमानेंट और हानिरहित
अमृतम आयुर्वेदिक चिकित्सा
19 विकारों को दूर करें –
फेफड़ों के संक्रमण से छूटकारा पाने के लिए
“अमृतम”
का सेवन करें।
इसमें डाले गए घटक द्रव्य
फेफड़ों व छाती के अनेक
अज्ञात अहित करने वाले
19 (उन्नीस) प्रकार
विकारों को दूर करता है।
पूर्णतः शुद्ध हर्बल ओषधियों
से बनाया गया है। इसका कोई
हानिकारक दुष्प्रभाव
या साइड इफ़ेक्ट नहीं है।
^-त्रिकटु,
^-सौंठ
^-तुलसी
^-कालिमर्च
^-काकड़ासिंगी
^-वनफ़सा
^-पुष्कर मूल
^-हंसराज
^-मुलैठी
^-वासा
^-कटेरी
^-नवसार सत्व
^-पुदीना सत्व
^-हरीतकी मुरब्बा
^-आँवला मुरब्बा
से निर्मित
“अमृतम”
का सेवन करना चाहिए
यह सर्दी-खाँसी की
विकृतियों का नाश कर
फेफड़ों व श्वांस नली
की गन्दगी को साफ कर
देता है।
छाती में जमा बलगम,
कफ निकालने में सहायक है।
टफ-कफ की हर्बल मेडिसिन-
“अमृतम”
1- सुखी खाँसी
2- कफदार खांसी
3- कुकर खाँसी
4- दमा
5- जुकाम
6- गले की खराश
7- गला रुंध जाना
8- कंठ में सूजन
9- नजला
10- नाक से पानी बहना
11- सर्दी से सिरदर्द
12- आंखों में भारीपन
13- टॉन्सिल की तकलीफ
14- बार-बार छींक आना
15- कफ के कारण सुस्ती रहना
16- श्वांस संस्थान की दुर्बलता
17- फेफड़ों की खराबी
18- छाती में भारीपन
19- श्वांस संबंधी समस्याओं
का समूल नाश करने
में उपयोगी है ।
बच्चों,स्त्री-पुरुषों
बड़े-बड़ों सभी
उम्र वालों के लिए लाभकारी है।
यह घर का डॉक्टर भी है।
दादी मां का खजाना है।
उपयोग कैसे करें
एक कप गर्म पानी में
2 से 3 चम्मच लोजेन्ज माल्ट (Lozenge Malt)
मिलाकर सुबह खाली पेट
चाय की तरह पिये।
यदि सर्दी व कफ को
लेट्रिन द्वारा निकलना
चाहते हों,तो एक गिलास
गर्म दूध के साथ लेवें ।
इसके नियमित सेवन
से पेट साफ रहता है।
कफ का बनना भी स्वतः
ही बन्द हो जाता है।
पुराने रोगियों को
कब तक लेना चाहिए-
जो लोग हमेशा सर्दी-खाँसी,
जुकाम,गले की खराश
से परेशान रहते हों
उन्हें कम से कम तीन माह
तक दिन में 3 से 4 बार तक लेना
चाहिए।
सुस्ती-आलस्य से मुक्ती हेतु-
रात में खाने से एक घण्टे पहले
2 से 3 चम्मच
“लोजेन्ज माल्ट” ( Lozenge Malt )
गर्म दूध के साथ उपयोग करें।
गले की खराब व टॉन्सिल्स में-
सुबह नाश्ते के साथ 2 से 3
चम्मच ब्रेड या पराँठे में
लगाकर खाएं।
केवल ऑनलाइन उपलब्ध
10 प्रतिशत छूट पाने के लिए
नीचे लिखे कूपन कोड का उपयोग करें-
AMRUTAMPATRIKASHIVA
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