भिण्ड-मुरैना में बन्दूक का अर्थ है- बन्द+ऊक, जो बन्द करदे ऊक अर्थात आवाज

बन्दूक का रहस्य और रखवाले…
इस लेख में भिण्ड-मुरैना के बागियों के बारे में भी पहली बार पढ़ें।
यार-प्यारव्यापार और हथियार, सन्सार में केवल होशियार लोग ही सम्भाल पाते हैं। गवाँर आदमी के लिए ये सब दुश्वार है। हर वार में मार के लिए एक खतरनाक हथियार है बन्दूक, जिसके बारे में बहुत कम व्यक्ति जानते हैं।
आज भी भिंड-मुरेना, ग्वालियर में बन्दूक का जलवा सदियों से कायम है।
मुरैना की महानता….
“मुरेना” के रहवासियों की विशेषता है कि यह कभी झुकता नहीं है यानि जो कभी मुड़े या मुरे – ना …….इसलिए बीहड़ का यह क्षेत्र मुरैना के नाम से जगत प्रसिद्ध है। यहां के लोगों के पास भले ही सायकल न हो, लेकिन बन्दूक जरूरी है।
  भिण्ड-मुरैना में बाग कम, बागी ज्यादा मिलते हैं। यहां मरने-मारने पर उतारू भला इंसान कब बागी बन जाए, अंदाजा लगाना मुश्किल है।
 सन्सार की भाषा में बागी को डाकू भी कहा जाता है। हर कंधे पर बन्दूक भिण्ड-मुरैना की पहचान है।
भिण्ड-मुरैना की कुछ विशेताएँ लेख में सबसे नीचे दी जा रही हैं। उसे जरूर पढ़ें...
बन्दूक क्या है…..
बन्दूक एक ऐसा हथियार यानि आग्नेयास्त्र
है, जिसकी वजह से यहां बहुत खून-खराबा होता आया है।
बन्दूक का दबदबा
विवाद भाई-भाई का हो या लड़ाई – लुगाई के कारण हो, बन्दूक ने अभी तक हजारों लोगों को खून से लथपथ किया है।
सदियों से जंग के मैदान में आमने-सामने के युद्ध में बन्दूक ने अपना दबदबा कायम रखा हुआ है। बंदूक का नाम लेते ही राईफल, एकनाली, दुनाली, बारह बोर जैसे नाम भी याद आ जाते हैं, जो बंदूक के ही अलग-अलग प्रकार हैं।
रिवॉल्वर, पिस्टल की चर्चा किसी अन्य लेख में करेंगे।
विश्व में होती हैं- बन्दूक की बातें...
दुनिया की सभी भाषाओं हिन्दी, उर्दू, अरबी और फारसी में बंदूक समान रूप से प्रचलित है। अंग्रेजी में इसे गन कहते हैं।
हिन्दी में इसकी आमद अरबी से हुई है। बंदूक मूल रूप से अरबी भाषा का शब्द भी नहीं है। हिन्दी का बंदूक शब्द अरबी में बुंदूक है। इसका तुर्की रूप फिन्दिक है जो अरबी बुंदूक का ही परिवर्तित रूप है।
कोई भी उपकरण जिसका प्रयोग आक्रमण अथवा बचाव या वश में करने या डराने-धमकाने, निपटाने तथा अपने शत्रु को चोट पहुँचाने,  हत्या करने के लिये किया जाता है, उसे शस्त्र – आयुध यानि weapon कहा जाता है।
कारतूस के कारनामे….
कारतूस का मतलब भी बंदूक की गोली से ही होता है। मूलतः यह एक खोल या डिब्बी होती है जिसमें बारूद भरी रहती है।
अंग्रेजी में इसे कार्ट्रिज, फ्रैच भाषा में
कार्तोशे कहा जाता है।
1857 के दौर में ब्रिटिश फौज इंग्लैंड की जिस एन्फील्ड कंपनी का कारतूस इस्तेमाल करती थी, उसका भीतरी रूप। सिपाहियों को शक था कि इसका खोल गाय की चमड़ी से बनाय जा रहा है।
क्रान्ति और कारतूस….
किसी ज़माने में बंदूक की गोली या कारतूस का आवरण एक खास किस्म की सुखाई हुई वनस्पति से होता था। बाद में इसकी जगह काग़ज़ का उपयोग होने लगा। काग़ज़ के स्थान पर जानवरों की पतली चमड़ी के इस्तेमाल की तरकीब भी बाद में निकाली गई। अठारह सौ सत्तावन की क्रांति के मूल में चमड़ी से बना कारतूस का खोल ही था।
बंदूकों का इस्तेमाल सबसे पहले प्राचीन भारत में राजा-महाराजा के समय शुरू हुआ
बंदूकों के कई प्रकार होते हैं जैसे
बन्दूक Coach gun बीसवीं सदी तक सैनिकों द्वारा प्रयुक्त एक प्रमुख हथियार रहा है। यह आकार में बड़ा एवं वजनी होता था।
इकनाली बन्दूक में एक बार मे केवल एक ही कारतूस भर कर दागा जाता है।
दुनाली बंदूक किसे कहते हैं-
किसी भी आग्नेयास्त्र का प्रमुख हिस्सा आगे की वह नली होती है जिसमें से होकर गोली गुज़रती है। जिस बंदूक में दो नालियां या बैरल होती है उसे दुनाली या डबल बैरल बंदूक कहते हैं। दुनाली बन्दूक में दो गोलियाँ भरकर दो बार में दागी जा सकती हैं।
बेहतरीन बन्दूक की पहचान
हथियार कभी धोखा न दे जाएं, इसलिए इन्हें परखना जरूरी है इनमें इन गुणों का होना  जरूरी है।
● मजबूती, ● विश्वसनीयता,  ●  सरलता और अनुकूलता, ● प्रोटेक्शन, ●
● प्रहारक क्षमता, ● गतिशीलता
मार की दूरी, ● प्रहारक क्षमता ● फायर क्षमता ● अचूकता ● पोर्टेबिलिटी!
भिण्ड-मुरैना की दास्तान…
भक्त और शक्त यहां दो तरह के लोग
पाये जाते हैं। भक्त ऐसे की जिन्होंने भोलेनाथ का साक्षात्कार कर दर्शन किये हैं और शक्त लोग ऐसे हैं कि – जान लेने या देने में डरते नहीं हैं।
पूर्णतः राग-रोग, बाग रहित क्षेत्र, किन्तु बागियों से भरा यह स्थान देश-दुनिया भर में बहुत प्रसिध्द है  ।

भिण्ड-मुरैना में बाग कम, बागी ज्यादा पाए जाते हैं। सदियों से डकैत और बागी भिंड-मुरैना की पहचान है ।
भिण्ड जिले का हर आदमी  भिड़ने-लड़ने
पर विश्वास करता है । कभी-कभी, तो
आ बैल मोये मार
वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है ।
सम्पूर्ण सृष्टि में यह अपने तरह एक
अद्भुत क्षेत्र है। 

फिर मुरैना ? तो बस फिर मुरैना  है  ।
राष्ट्रीय पक्षी मोरों की भरमार से भरपूर..

भिण्ड-मुरैना में मोर और ढोर यानि कम पढ़ा-लिखा आदमी बहुत पाए जाते हैं।

  बागियों, डकैतों और लठैतों की इस भूमि
में किसी को भी मुड़ना, झुकना नहीं आता,
तभी, तो कहते हैं – मुरे- ना अर्थात जो
कभी “मुड़े- ना । झुके- ना ।
यहाँ के आदमी ने एक बार जो ठान लिया, फिर मुड़ने, झुकने का कोई काम ही नहीं है ।
यह ठाकुर बाहुल क्षेत्र है , जिनकी कभी
“ठाकुरजी” (भगवान)  की तरह सम्मान
होता था । कहीँ-कहीं गहन ग्रामीण
क्षेत्रों में आज भी यही परम्परा  है  ।
बात वाली बात पर यहां के ठाकुर
बड़े से बड़े साम्राज्य को ठोकर मारते आएं हैं ।

मान-सम्मान, स्वाभिमान एवं मूँछ की महिमा इनके लिए मूल पूंजी है ।
दान-पुण्य, दयालुता में इनका कोई मुकाबला
नही है, लेकिन बहुत छोटी बात पर बड़ा
विवाद हो जाता है। कहो, तो हाथी निकल जाए और पूछ पर झगड़ा हो जाये, फिर
कब कितने मान्स (लोग) मरेंगे-मारेंगे…
ईश्वर को भी नहीं मालूम।

भिण्ड-मुरैना के प्रसिद्ध डाकू

★ डोंगर-बटरी, ★ पुतलीबाई, ★ मानसिंह, ★ पानसिंघ, ★ निर्भयसिंह, ★ फूलनदेवी, ★ मोहर सिंह, ★ रमेश सिकरवार

★ गब्बर सिंह तथा ★ मलखान सिंह जैसे बागी बहुत उदार, दयावान, तो कभी इतने
खूँखार हुए, की पृथ्वी भी काँप गई।

पापी बनाता है यहां का पानी….
मुरैना जिले के अन्तर्गत पोरसा कस्बा के पास कोथर कला गाँव में  एक कुआं है जिसका पानी पीने से व्यक्ति डाकू बन जाता है। इस कारण इसको 70 साल पहले सिंधिया शासकों ने इसे ढकवा दिया था।

  अमृतम का अपनापन…

 हर्बल्स दवाओं की मार्केटिंग के सिलसिले
में लगभग 25-,30 वर्षों तक हर महीने
प्रवास के दौरान इस क्षेत्र के सभी
छोटे-बड़े  तथा घने वन-जंगल मे स्थित
ग्रामीण-क्षेत्रों व गांव का दौरा-प्रवास किया। इस दरम्यान बहुत से खतरनाक बागियों से भी कई बार मुलाकात हुई। दवाओं के सेम्पल भी दिए।

मेरी चिकित्सा से ये सब पूरी तरह ठीक हो जाते थे। इस कारण इन बागियों से अपनापन बढ़ता चला गया। ये जब कभी अपनी आप बीती भी सुनाकर मन को भाव-विभोर कर दिया करते थे।

बागियों के बाग यानि ठिकाना….

मेरे हंसी-मजाक के स्वभाव से वे बागी बहुत प्रभावित थे। पहाड़गढ़, रामपुर, जलालगढ़, वीरपुर, विजयपुर, इकलोद, श्यामपुर, रघुनाथपुर, ढोंढर, रामेश्वरम,मानपुर, दांतरदा, हीरापुर, श्योपुर, गोरस, कराहल आदि घने जंगलों में प्रवास के समय इन बागी-डाकुओं से अक्सर मुलाकात हो जाती थी। इनका कोई न कोई मुखबिर हमें निश्चित स्थान पर आने की सूचना देता और हम वहां पहुंचकर उन्हें दवा आदि दिया करते थे।

इनके हाथ का भोजन बहुत ही स्वादिष्ट रहता है। बागियों की एक विशेषता होती है कि ये लोग प्रकृति के बारे में बहुत कुछ जानने की लालसा रखते हैं।

जंगल में मङ्गल….

इन घने जंगलों में बहुत सी जड़ीबूटियों का परिचय कराया। इन जंगलों में निर्गुन्डी जैसी बूटी बहुत उपलब्ध थी, जो जोड़ों के दर्द में लाजबाब होती है। अश्वगंधा, शतावर, त्रिफला, नागरमोथा, करील, अपामार्ग, नागदमन, भांगरा, भूमि आँवला, अर्जुन, मकोय, पुनर्नवा, सरफोनखा, चित्रक आदि दिव्य ओषधियाँ यहां पर धज रूप से मिल जाती हैं। इन जंगल में मङ्गल है।

लेखन का शौक होने के कारण भिण्ड-मुरैना और बागियों की परम्पराओं, जीवन शैली का उन्हीं की भाषा मे संकलन भी करता रहा। भिण्ड-मुरैना के विषय में यह पूरा संकलन लगभग 2000 पेज में लिखा हुआ संग्रहित है।

भिण्ड-मुरैना तथा भारत के कोने-कोने में घूमकर इनके बारे में बताने के लिए तथा बहुत सी रहस्यमय दुर्लभ ज्ञान दान करने के उद्देश्य से, और भी अनेक जानकारियों को प्रकाशित करने तथा अपना शौक पूरा करने व उमड़ रहे ज्ञान को परोसने  हेतु, सन 2006 में “अमृतम मासिक पत्रिका” का प्रकाशन प्रारम्भ किया!

इसे बाकायदा
भारतीय प्रेस परिषद”
अंग्रेजी  में बताएं, तो
PRESS COUNCIL OF INDIA
एवम
जनसम्पर्क संचालनालय
मध्यप्रदेश शासन द्वारा-
अमृतम मासिक पत्रिका
प्रधान संपादक- अशोक गुप्ता
के रूप में कानूनी मान्यता प्राप्त की ।
जिसका निरन्तर प्रकाशन सन
2006 से प्रारंभ कर दिसम्बर
2015 तक होता रहा ।
अमृतम मासिक पत्रिका हर माह करीब
50000 (पचास हजार ) पत्रिकाएं
प्रकाशित होती थी, जिन्हें पूरे भारत
के सभी चिकित्सकों  (Doctors),
वैधों तथा मेडिकल स्टोर्स को मुफ्त
भेजी जाती थी।

बहुत कठिन परिश्रम-प्रयास के पश्चात दिन-रात बेहतरीन लेख देेंने के बाद भी
अमृतम हर्बल्स उत्पादों की बिक्री
में भी आशातीत सफलता नहीं मिल सकी।
जिससे पत्रिका का व्यय (खर्चा)
निकालना मुश्किल हो गया ।
तब कहीं जाकर  इसका
प्रकाशन स्थगित यानि बन्द करना पड़ा ।

     फिलहाल अब,  अमृतम ने
ऑनलाइन (online) मार्केटिंग
चालू की है । इसमे प्रतिदिन नित्य-नई
जानकारी, नवीन लेख,  ब्लॉग के रूप में
दिये जा रहें हैं। अपने जीवन के विगत
35 वर्षों में घूमने, प्रवास (Tour) द्वारा  जो भी अनुभव, ज्ञान एकत्रित कर संकलन किया, वह सब पुनः  हमारी अमृतमपत्रिका की वेबसाइट-

     www.amrutampatrika.com
www.amrutam.co.in

पर बहुत ही सरलता से उपलब्ध है ।
लगातार 25-30 सालों घूमने से
भिण्ड- मुरैना के कल्चर को समझकर
इनके  बारे में लोगों के
भाव-स्वभाव को परखा, जाना
भिण्ड- मुरैना की ठेठ व सीधी- टेडी खड़ी बोलचाल, मेरे मन को सदा लुभाती रही,
बात-बात पर मुहावरों-कहावतों का चलन,
इनका रहन-सहन , यहाँ के खान-पान आदि
सगे -संबंधियों का मान-अपमान बहुत ही कुछ नजदीक से देखकर लगभग 2000
पेजों का रजिस्टरों में संकलन कर बीच-बीच मे  कुछ लेख अमृतम पत्रिका में प्रकाशित भी किये।
इस लेख का मुख्य विषय है, यहां की भाषा-बोलचाल में  गहन ग्रामीण, गांव के लोग
अपने रोगों को किस तरह व्यान करते हैं।
भिण्ड -मुरैना के मरीज की बीमारी
भिण्ड -मुरैना के डाक्टर के अलावा किसी और कि समझ में आ पाना कुछ उलझन भरा हो सकता है  ।
कोई समझ ही नहीं सकता!!!!

जैसे-
ग्रामीण क्षेत्रों में बीमारियों के नाम
मरीज डॉक्टर को इस प्रकार बताता है।
डाकदर साहब,
@  मोये तो पूरे शरीर में 8 रोज से भौत पीरा
हे रही है, मैं तो अब मरत हों।
@  कच्ची गृहस्थी हे, डाकधर साहब,
@  छाती में आंधी सी उठत है ।
@  हाथ-गोर फड़फड़ात  हैं ।
@  आंखें गड़ति है
@  पेट में आगि पत्ति है
@  मूड़ पिरात है
@ भुंसारे पीर होत है
@  पेट भड़भड़ात है
@ पेट 4-6 दिना से गुम सो हे गयो है
@   बैर-बेर डकार आउति है
@  कान में सन्नाटो सो खिंचो है  ।
@  पेट गुड़गुड़ात है

@  माथो भन्नात है !

@  झरना झर रहो है । (दस्त लगना)

@  कम दिसतो है।

@  कबहूँ-कबहूँ ऐसो  मूड बन जात,
के दो- चारन कों गोरी (गोली) माद दयूं ।

@  हाथ-गोड़  झुनझुनात है  ।
@  सिर चटकत है  ।
@  पेट पिरात है  । आदि

ऐसी-ऐसी बीमारियां सुनकर
अच्छे से अच्छे एमबीबीएस डाक्टर्स को भी अपनी पढ़ाई पर शक होने लगता है कि, कहीं ये चैप्टर छूट तो नहीं गया। नए दौर के चिकित्सक , तो पूरी तरह हड़बड़ा जायेंगे।
भिण्ड-मुरैना के विषय मे विस्तार से समझने,
जानने के लिए  एक बार लॉगिन (Login) कर ही लीजिए । आपको ऐसी अद्भुत और दुर्लभ रहस्यमयी जानकारी मिलेगी क़ि  इस ज्ञान से तृप्त हो जाएंगे ।

        अमृतम की हर्बल्स दवाएँ उपरोक्त
रोगों में बहुत शीघ्र ही लाभ दायक हैं ।
हमारी वेबसाइट पर जाएं और पाएं
ज्ञान का अनसुना खजाना  |
amrutam.co.in

बहुत बदनाम बागी…

शोले का गब्बर सिंह डाकू
बेहरमी से काटता था लोगों की नाक।
डाकू गब्बर सिंह का खौफ चंबल के बीहड़ों में बढ़ने के पीछे मुख्य वजह 100 से भी ज्यादा लोगों के नाक काटने की घटना थी। मध्य प्रदेश पुलिस के पूर्व आईपीएस के.एफ. रुस्तम ने अपनी किताब द ब्रिटिश, द बेंडिट्स एंड द बॉर्डर मैन में लिखी है।
तेरा क्या होगा कालिया
फ़िल्म शोले का यह डायलॉग आज भी सबकी जुबान पर है।
चंबल के डाकुओं पर “अभिशप्त जंगल” नामक   किताब में डाकू गब्बर सिंह का जिक्र है। इसी किताब की वजह से चंबल का ये खूंखार डकैत फ़िल्म शोले के चलते फ़िल्मी पर्दे पर जीवंत हो उठा।

अभी बहुत बाकी है- बागियों के बारे में।

 ■ इस क्षेत्र का नाम चम्बल नाम क्यों पड़ा?

■ 100 से अधिक डाकुओं की कहानी

चम्बल के बीहड़ों में अचलेश्वर शिंवलिंग और घण्टे वाली माता, जहां पुतलीबाई ने अपनी जान बचाई थी।

■ पुतलीबाई की पूरी कहानी

■ डाकुओं के घण्टा चढ़ाने की परम्परा।

■ बागी कैसे करते थे लूट

आगे बताएंगे

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3 responses to “भिण्ड-मुरैना में बन्दूक का अर्थ है- बन्द+ऊक, जो बन्द करदे ऊक अर्थात आवाज”

  1. Zafar Aalam hashmi avatar

    मैंरा बचपन गुना मे बीता जहाँ अक्सर ड़ाकुओ के चर्चे सुनने मैं आते थे ।मोहर सिंह माधव सिंह व जिया लाल जैसे बागियो से मुगावली खुली जेल मे मुलाकात करने का अवसर मिला बहुत सहज व खुली बात हुई मैं जब स्कूली छात्र था । गुना ग्वालियर व
    का कल्चर सुगम व प्रपंज रहित हैं जो मालवा मे नहीं मिलता ।लोगों वचन के पक्के व वफादार होते है जब बिगड़ जाऐगी तो फिर छोड़ते नहीं ।गुना की एक विशेषता यह हैं कि यहाँ के छात्र छात्राएँ प्रतियोगिता परीक्षाओं मे सबसे ज्यादा पास होते है ।

  2. neha avatar
    neha

    i’m from Bhind …and i’m very happy to know about past of my birthplace…

  3. Dhananjay avatar
    Dhananjay

    Really sir u have spent ur a superior life for nature and we must know all experience I my self Dhananjay Bhadouriya village Barhad Bhind

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