क्या आप कालसर्प के बारे में जानना चाहते हैं –
शिवपुराण के अनुसार कालसर्प दो शब्दों से मिलकर बना है — यथा काल का अर्थ है समय और मृत्यु एवं सर्प का आशय गति से माना जाता है।
कैसे बनता है कालसर्प-
जन्मपत्रिका में जब राहु और केतु के बीच में शेष सातों ग्रह आ जाएं, तो कालसर्प बनता है, लेकिन खतरनाक कालसर्प दोष जब बनता है, जब राहु या केतु कुंडली में सूर्य से छठे, सातवे, आठवें या नोवे स्थान पर स्थित रहता है, तो ऐसे जातक बार-बार जीवन से हार जाते हैं। कई बार घर-वार छोड़ने का विचार लाते हैं। आत्महत्या या जीवन समाप्त करने की सोचते रहते हैं। यह दोष कुण्डली के सूक्ष्म अध्ययन के बाद पकड़ में आता है। इस तरह के दूषित कालसर्प से कुछ राहत के लिए नियमित शिव उपासना अति आवश्यक है।
ऐसे समझे कालसर्प की क्रूरता को —
यही काल अर्थात समय सर्प की भाँति मन्द गति से चलते हुए इतना शिथिल हो जाता है कि हम मृत समान हो जाते हैं।
हमारे कोई भी काम समय पर नहीं बनते या पूर्ण नहीं होते। जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण हो जाता है। मन में सदैव भय-भ्रम, शंका बनी रहती है। बुद्धि सही काम नहीं करती। सही निर्णय लेने की क्षमता क्षीण हो जाती है। हम जीने से अधिक मरने की सोचने लगते हैं।
समय की मार है–कालसर्प
हमें जीवन ओर मृत्यु में ज्यादा फर्क महसूस नहीं होता। जीवन के प्रति नकारात्मक नजरिया होकर स्वयं को मूल्यहीन समझने लगते हैं। इसी मारक दोष को ही समय यानि काल की मार अर्थात “कालसर्प” दोष कहते हैं।
नाग और सर्प दोनो अलग होते हैं।
सर्प में ऊर्जा एवं गति नहीं होती। सर्प की गति या चाल हमेशा बहुत धीमी और दिशाहीन होती है। सर्प हमेेशा विषहीन होता है। दोमुहें, केचुआ, अजगर, सुस्त और मटमैले ये सब सर्प प्रजाति के होते है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि सर्प का फन नहीं होता। शिंवलिंग पर हमेशा नागों का वास होता है, सर्प का नहीं। सर्प की प्रजाति दोगली एवं दिशाहीन होती है। सर्पों का धर्मशास्त्रों में कोई उल्लेख नहीं मिलता।
नागराज हैं शिव के गले का हार-
दुनिया में जितने भी शिंवलिंग हैं, उन पर हमेशा नाग विराजमान होते हैं। नागकुल बहुत बड़ा है। देश-दुनिया में बहुत से नागवंशी राजा-महाराजा हुए हैं। केरल के पद्मनाभ मन्दिर के खजाने की रक्षा नागराज ही कर रहे हैं। तार्क्ष्य कश्यप इनके पिता हैं। शिवपुराण में 12 सिद्ध नागों का वर्णन है। नाग बहुत ऊर्जावान, फनधारी और जहरीले होते हैं।
कालसर्प के 6 मुख्य लक्षण
【1】जब जीवन दिशाहीन होकर, समय ऊर्जाहीन हो जाये, कोई रास्ता नजर न आवे, 【2】आत्महत्या के विचार आने लगे, रोग-कष्ट बार बार घेरने लगे,
【3】कर्ज, घनघोर आर्थिक संकट हो जाये।
【4】अपने धोखा देने लगे।
【5】वाद-विवाद, कानूनी उलझन, बदनामी और शत्रुता बढ़ने लगे।
【6】 सन्तति, सम्पत्ति का नाश,आदि अनेक आकस्मिक दुर्घटना, समस्याओं से व्यक्ति घिर जाता है।
क्या होता है कालसर्प
काल के 5 कलंक
【1】काल (समय) की गति भाग्य को सर्प (अजगर) जैसा शिथिल,आलसी कर बना देता है।
【2】परमात्मा के प्रति विश्वास कमजोर होकर, आत्मा को छिन्न-भिन्न कर देता है।【3】अचानक मुसीबतें आना औऱ लंबे समय तक बने रहना कालसर्प के लक्षण हैं।
【4】कालसर्प से पीड़ित व्यक्ति को जीवन में बहुत परेशानी आती है।
【5】सफलता, सुख-सम्पत्ति आसानी से नहीं मिलती।
क्या करें कालसर्प से मुक्ति के लिए
कालसर्प, पितृदोष और दुःख-दारिद्र से बचने के लिए व्यक्ति को केवल महाकाल और माँ महाकाली की शरण में तत्काल जाना चाहिए । 54 दिन लगातार रोज में किसी भी शिव मंदिर,काली मंदिर अथवा घर पर प्रतिदिन “राहुकाल” में ‘
अमृतम राहुकी तैल‘ के 5 दीपक पीपल के पत्ते पर रखकर जलायें एवं
ॐ शम्भूतेजसे नमः शिवाय अथवा
!!नमः शिवाय च शिवाय नमः!!
इस मन्त्र की 5 माला जाप करें।
प्रतिदिन राहुकाल में दीपदान करने से निश्चित रूप से भाग्योदय होने लगता है।
राहुकाल के समय रोज शिव मन्त्र का जाप आठ प्रकार की दरिद्रता दूर करता है।
“राहुकी तेल” के दीपक जलाने से होते हैं 10 से ज्यादा चमत्कारी फायदे-
राहुकाल में प्रतिदिन 54 दिन तक लगातार
“राहुकी तेल” के दीपक जलाने से
[[१]] धन की कमी नहीं होती।
[[2]] कर्जा, क्लेश और कष्ट कम होकर शिवकृपा होने लगती हैं।
[[३]] रोग, बीमारी मिटने लगती है।
[[४]] कानूनी उलझने दूर होने लगती है।
[[५]] मुकदमें में जितने की सम्भावना बनने लगती है।
[[६]] डूबी हुई रकम या दिया हुआ कर्जा वापस आने लगता है।
[[७]] परिवारिक क्लेश, पति-पत्नी के झगड़े कम होने लगते हैं।
[[८]] आकस्मिक दुर्घटना का भय नहीं रहता।
[[९]] विवाह के योग बनने लगते हैं।
राहुकाल में दीप जलाने से घर में धन की वृद्धि होने लगती है। गरीबी दूर होती है।
राहुकाल का समय निम्नलिखित है –
प्रतिदिन अलग-अलग वारों में राहूकाल का समय निश्चित रहता है। शिवविधान के अनुसार जब राहु को नवग्रहों में स्थान नहीं मिला, तो भोलेनाथ ने प्रतिदिन 90 मिनिट राहु का समय तय किया, जिसे राहुकाल कहा जाता है। यह राहुकालमहाकाल तथा महाकाली को मनाने का विशेष समय माना गया है।
भोलेनाथ का चमत्कार
तिरुनागेश्वरं मूल ज्योतिर्लिंग में प्रतिदिन राहुकाल के समय ही कालसर्प दोष की शांति विधान किया जाता है। इस समय जब प्रतिमा पर दूध अर्पित करते हैं, तो दूध का रंग नीला यानि जहरीले रंग का हो जाता है।
सात दिन में पड़ने वाला राहुकाल
{1} सोमवार सुबह 7-30 से 9 बजे तक
{2} मङ्गलवार दोपहर 3.00 से 4.30 तक
{3} बुधवार दोपहर 12 बजे से 1.30 तक
{4} गुरुवार दोपहर 1.30 से 3 बजे तक
{5} शुक्रवार सुबह 10.30 से 12 बजे तक
{6} शनिवार सुबह 9 बजे से 10.30 तक
{7} रविवार दुपहर 4.30 से शाम 6 बजे तक
राहुकाल में बताये गए उपाय अपने घर, दुकान,और मन्दिर आदि किसी भी स्थान पर कहीं भी कर सकते हैं।
वैदिक पद्धति से बना राहुकी तैल —
राहु को प्रसन्न, व शांत करने वाली प्राकृतिक जड़ी-बूटियों जैसे- नागवल्ली, नागकेशर, नागदमन, नागरमोथा, जटामांसी, रक्त चन्दन, मलयागिरि चन्दन, नागबुटी, अमृता, नागभस्म, वंग-त्रिवंग आदि
कालसर्प – पितृदोष नाशक ओषधियों के काढ़े से राहुकाल के समय विद्वान वेदाचार्यों द्वारा पंचमी, अष्टमी और चतुर्दशी की रात्रि में भगवान शिव के विशेष नक्षत्र आद्रा में वैदिक मन्त्रो रुद्राष्टाध्यायी से शिवलिंग पर राहुकी काढ़े से रुद्राभिषेक कराया जाता है। इसके बाद इस अभिमंत्रित ओषधि काढ़े में बादाम, जैतून, तिल तेल में 5 से 7 दिन तक मंदीआंच पर जब तक पकाते हैं, तब तक तेल पूरी पक न जाए। फिर, इसमें और चन्दन, गुलाब, ख़श इत्र, एवं नाग भस्म मिलाकर, छानकर पैक किया जाता है
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काल उसका क्या करे,
जो भक्त हो महाकाल का —
काल को चलाने वाला कलाकार केवल महाकाल ही है । यही काल (मृत्यु ओर समय) भाग्य-दुर्भाग्य का कारक औऱ कारण भी है ।
महाविद्यासूत्र 1/7 के अनुसार काल को ही स्त्रीलिंग में काली कहते हैं ।
जिनके गले मे 12 नरमुंडों की माला यानि
समय की अति सूक्ष्म गणना करने वाले कम्प्यूटर हैं।
इसमें 12 राशियों, 27 नक्षत्रों,
नवग्रहों का डाटा संग्रहित व समाहित है ।
इस काल समय के मापक सूर्य और चन्द्र हैं । ये दोनों सृष्टि के सीसीटीवी (CCTV) कैमरे हैं जो हर क्षण,हर पल बिना रुके सृष्टि के प्रत्येक जीव-,जगत के तथा
हमारे अंदर (मन -आत्मा) तक की दिन रात, लव, घटी, पल-पल, हर क्षण, हर पल की रिकॉर्डिंग कर रहे हैं। कर्म के इस वीडियो को बनाकर अपने सुपर कम्प्यूटर को कंट्रोल करने वाले महाकाल व महाकाली को लगातार भेज रहे हैं । यहीं सब
जीव-जगत के कर्मों का डाटा
एकत्रित हो रहा है।
इसी डेटा के अनुसार सबके इस जन्म और पिछले जन्म, भाग्य-दुर्भाग्य योनि, कर्म, जीवन-मृत्यु का निर्धारण निश्चित होता है ।
चन्द्रमा की सोलह कलाएँ होती है जिसकी अधिष्ठात्री माँ महाकाली है ।
1- प्रतिपदा की त्रिपुरसुंदरी कला ,
2- द्वितीया की कामेश्वरी कला
3- तृतीया की भगमालिनी कला
4- चतुर्थी की नित्यक्लिंन्न कला
5- पंचमी को भेरुण्डा कला
6- षष्टी को वहिंवासिनी कला
7- सप्तमी को विश्वेशरी कला
8- अष्टमी को रौद्री कला
9- नवमी को त्वरिता कला
10- दशमी को कुल सुंदरी कला
11- एकादशी को नील पताका कला
12- द्वादशी को विजय कला
13- त्रयोदशी को सर्व मंगला कला
14- चतुर्दशी को ज्वाला कला
15- पंचदशी को मालिनी कला
औऱ
16- सभी पंद्रह तिथियों में वर्तमान चिदरूपा षोडशी कला
विशेष-
आगे के कालसर्प दोष की शांति लेख में
इन कलाओं द्वारा कैसे ध्यान पाठ करना है इसकी जरूरत पड़ेगी इसलिये देना जरूरी था ।
यदि यह लेख अच्छा लगे, तो आगे कालसर्प दोष यानि घोर गरीबी मिटाने के विषय में बहुत सी भ्रांतियां दूर करने के विधान,उपाय बताए जाएंगे ।
बहुत कठिन परिश्रम,दिन रात कड़ी मेहनत के बाद भी भाग्योदय नहीं हो पाता
जानिए अगले लेख में
औऱ विस्तार से जानने हेतु
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अमरनाथ, बद्रीनाथ, पंचतत्व, नवग्रह शिवलिंगों के रहस्य जानकर हैरान हो जाएंगे कि भगवान शिव द्वारा कितनी वैज्ञानिक पध्दति द्वारा सृष्टि का संचालन किया जा रहा है। अच्छा लगे तो लाइक-शेयर करना न भूले।
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