- ज्यादा बोलने से शरीर में विष की वृद्धि होती है, जिससे क्रोध बढ़ता है। कुछ दिनों बाद ऐसे लोग विषवमन करने लगते हैं।
- अतः मौन से अधिक शक्ति दुनिया में किसी भी साधना, उपासना पध्दति में नहीं है। मौन से ही सिद्ध नाग, शेषजी हमारे मस्तिष्क पर शिवलिंग की तरह रक्षा करते हैं।
उपरोक्त चित्र कालसर्प विशेषांक से लिया गया है।
- सफल लोग अक्सर कम बोलते हैं ओर ईमानदार होते हैं। ज्यादा बोलने वाले लोग मूर्ख बताए गए है एवं ठगने वाली प्रवृत्ति के होते हैं। जैसे कथावाचक।
- धर्म के नाम लूटने वाले कथित संत अवैज्ञानिक बातें बताकर भृमित करते हैं और डर बैठकर धन ऐंठते हैं।
- अधिक बोलना भी एक नशा है इसे टोकहॉलिक भी कह सकते हैं।
- सफल, कामयाब व्यक्ति बहुत कम बोलते हैं, बहुत बक बक करने वाले सफलता की संभावना में जीते हैं लेकिन फर्श पर पड़े रहते हैं।
सीईओ, नेताओं और वैज्ञानिकों का व्यक्तित्व
- जुबान में बहुत शक्ति होती है। यह आपको अर्श से फर्श है। ‘लैब रैट्स’ के लेखक डैन और फर्श से अर्श तक पहुंचा सकती है।
ल्योन्स कहते हैं-
- कम बोलने वाले लोग ज्यादा सफल होते हैं। उन्होंने • दुनिया की कई सफल कंपनियों के सीईओ, अलग-अलग देशों के नेताओं और वैज्ञानिकों के व्यक्तित्व का विश्लेषण किया है।
- दरअसल हम ऐसे समाज में रह रहे हैं, जहां लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने वालों को सफल समझा जाने लगा है। इस वजह से ज्यादा बोलने वालों को और प्रोत्साहित किया जाता है।
- लेकिन, हकीकत यह है कि कामयाब लोग कम बोलते हैं। वे जब भी बोलते हैं- नाप-तौल कर बोलते हैं। अपनी हर बात पर बहुत ध्यान देते हैं।
- ज्यादा बोलने वालों की निजी और पेशेवर जिंदगी में मुश्किलें बढ़ती हैं बोलने के लिए यह टर्म दिया हैं
टॉकहॉलिज्म –
- संचार के शोधार्थियों ने ज्यादा है। ज्यादा बोलने वाले लोगों को टॉकहॉलिक कहते हैं।
- वेस्ट वर्जिनिया विवि के शोधार्थी विर्जिनिया पी. रिचमॉन्ड और जेम्स सी मैक्रोसकी ने टॉकहॉलिक स्केल विकसित किया।
- वे कहते हैं- टॉकहॉलिक होना एक नशा है। ऐसे लोग चुप नहीं हैं। इससे निजी और पेशेवर जिंदगी में अनचाही मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं।
- एपल के सीईओ टीम कुक बातचीत के दौरान कई बार अचानक देर तक चुप रह जाते हैं। वे सोचते हैं। फिर कुछ कहते हैं।
- अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन 4 दशक तक पर्दे के पीछे रहे। 2020 के कैंपेन में वे अपनी आवाज धीमी रखते थे। छोटे और कई बार बोरिंग जवाब देते थे।
- स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि अधिक बोलना लोहे के समान, कम बोलना चांदी के समान ओर चुप रहना स्वर्ण के बराबर होता है।
- वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन अंतर्मुखी थे। जब तक बहुत जरूरी न हो, वे बोलते ही नहीं थे।
- रूथ बेडर गिन्सबर्ग बोलते वक्त क्लर्क इंतजार करते रह जाते थे। इतनी देर तक रुकते थे।
- शिव उपासक संतश्री महामंडलेश्वर श्री भवानीनन्दन यति अनुसार आप किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो। साधु हो या उद्योगपति।
- भले आप करोड़ों की कंपनी के मालिक न हों, सर्वोच्च पदों पर न बैठे हों- आप जहां भी हैं, कम बोलने से आपकी जिंदगी आसान हो जाएगी।
- ज्यादा बोलने वाले अक्सर दूसरों को बुरी लगने वाली बातें बोल जाते हैं।
- वे क्या सोच रहे हैं, इसे भी अपने मन में नहीं रख पाते, उन्हें जब और जहां बोलने की जरूरत नहीं होती है तब भी वे बोलते रहते हैं।
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