- धरती पर होली और दीपावली दोनो ही उत्सव अग्नि पर आधारित हैं। दीपावली की रात ऊर्जा, एनर्जी, धन संपदा और ऐश्वर्य पाने के लिए अग्नि द्वारा दीपदान किया जाता है और होली तन, मन, मस्तिष्क की नकारात्मक सोच, विचार को होलिका दहन में जला दिया जाता है।
अमृतम् पत्रिका, ग्वालियर अंक : मार्च 2009 से साभार होलिकाउत्सव, मदनौत्सव, होली के फाग की शुभकामनाएं
अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्यदेवमृत्विजम्।
होतारं रत्नधातमम्।।
अग्निः पूर्वेभिरुषिभिरोद्यो नूतनैरुत।
सा देवा एक पक्षति।। (ऋग्वेद)
- होली में अग्नि का विशेष महत्व है। हम अग्नि द्वारा प्रकृति के अनेकों अज्ञात ज्ञात प्रदूषित, निगेटिव वातावरण का नाश करते हैं।
- दुनिया की ऐसी कोई संस्कृति नहीं है, जो अग्नि को देवता मानकर न पूजता हो। संसार अग्नि की ऊर्जा से चलायमान है। शरीर को चलाने वाली जठराग्नि, तप की अग्नि, कर्माग्नि और सूर्य की अग्नि से संसार चल रहा है।
- होली इस अलाव इस भाव से जलाते हैं कि सत्कर्म रूपी यज्ञों और प्रतिदिन की प्रार्थना प्रदीप्त रखें, जिससे हम भी अपनी तेजस्विता (अग्नि) को सदा रात-दिन दुर्भाग्य रूपी आघात से अपनी, सबकी रक्षा कर सकें।
- अगर अग्नि अध्यात्म और शिव साधना की जले, तो हर रोज होली जैसा आंनद प्राप्त होता है। होली के उत्सव में इतना उत्साह होता है कि प्रेम के समीकरण से सारे द्वेष दुर्भावनाओं का नाश होने लगता है।
- काम, क्रोध, बलवान और राक्षस प्रवृति वाले लोग अति तीव्र गति से बढ़ते हैं। होली के अवसर पर प्रदीप्त सतोगुणी अग्नि (तेजस्विता ) सभी की साथी है। हमारी मित्र है।
होली के उपले का महत्व
- होली के उपले गाय के गोबर में हवन सामग्री, जटामांसी, गुगल, नागरमोथा, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, पूर्णवा, गुलाब, खस, मुलेठी आदि आयुर्वेदिक घटक द्रव्यों को मिलाकर गोलाई में बनाए जाते हैं
- होलिका दहन की रात्रि में गोबर के उपलों को घर के मन्दिर या शिवालय में भी जलाते हैं। इससे दुर्भाग्य का नाश होकर भाग्य के ताले खुल जाते है।
- मन- मस्तिष्क भारहीन, अवसाद मुक्त, डिप्रेशन और अशांति रहित हो जाता है।
होली जलाने से दुःख दुर्भाग्य का नाश होता है
- होली की रात होलिका दहन के दौरान घर के बाहर रोड,चली, मोहल्ले अथवा घर के खुले स्थान पर 5 अमृतम हर्बल उपले पर कपूर, धूप, सुगंधित द्रव्य रखकर अग्नि प्रज्वलित करने के बाद अग्नि के बाहर चारो तरफ हाथ में पानी लेकर अर्पित करें।
- देवी होलिका को घर का बना हुआ नैवेद्य मंत्र – व्यानाय स्वाहा, अपानाया स्वाहा, उदानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा, प्राणाय स्वाहा, ब्रह्मअणु स्वाहा द्वारा अग्नि में चढ़ाने के बाद जल हाथ में लेकर चारों तरफ घुमाकर जमीन पर गिराने की भी परंपरा है।
- अगर मोहल्ले में होली जेल रही तो, जलते समय परिवार के प्रत्येक सदस्य को एक लकड़ी पाँच जड़ी बूटी युक्त गोबर के उपले या कण्डे अवश्य अर्पित करना चाहिए इससे पूरे वर्ष किसी भी प्रकार के तन्त्र टोटकों का प्रभाव नहीं होता।
- सभी प्रकार के अनिष्टों का नाश होता है। यदि ग्रह-नक्षत्र दोष दुर्भाग्य और कालसर्प, पितृदोष है, तो एक नारियल गोले में मधुपंचामृत भरकर होली की अग्नि में अर्पित करें। इस प्रयोग से अनेक शारीरिक, मानसिक व्याधियों से मुक्ति व आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
- होली की अग्नि पूरे वर्ष के प्रदूषित वातावरण का नाश करती है। इसीलिए पड़वा के दिन सभी का मन प्रफुल्लित रहता है। धार्मिक दृष्टि से होली की याग्नि का विशेष महत्व है।
- मन चंगा तो कठोती में गंगा के कारण सभी लोग एक दूसरे को रंग-गुलाल से सराबोर कर अपनी खुशियों का इजहार करते हैं। तन मन आंनद से लबालब रहता है।
होली की भस्म राख का रहस्य, गुण, उपयोग, फायदे
- प्राचीन काल में होली की गरम-गरम राख को अपने घर में ले जाते थे। इससे पूरे वर्ष घर में समृद्धि का वास रहता था।
- -होली की राख दिमागी मानसिक विकारों के लिए चमत्कारी भभूत- भस्म की तरह कारगर होती है।
- स्त्री या पुरुष को अवसाद की शिकायत या डिप्रेशन से पीड़ित हो। नींद नही आती हो, अनिद्रा रोग हो।
- नकारात्मकता से मस्तिष्क लबालब हो। आधासीसी का दर्द (माइग्रेन) और सिर सम्बंधी ज्ञात-अज्ञात तकलीफ में जली हुई होली की राख या भस्म चमत्कारी रूप से लाभप्रद है।
बच्चों को नजर से बचाए
- यदि किसी बच्चे या अन्य को बार-बार नजर लगती हो। बच्चा दूध पट्टा हो। पसली चलती हो। चिड़चिड़ा हो। शरीर पनप नहीं पा रहा हो। शिशु के सभी विकारों में होली की भस्म का उपयोग अत्यन्त लाभ देता है।
दिमागी रोगों का शर्तिया इलाज होली की राख
- होली जलने के 2 से 3 घंटे बाद अथवासुभ ब्रह्म मुहूर्त में होली की राख को किसी पवित्र पात्र में घर ले आएं।
होली की राख से फायदे
- सिर सम्बंधी एवं अनिद्रा में होली की राख को कपड़छन कर उसमे गंगाजल, कपूर, चंदन लकड़ी या amrutam Chandan अमृतम् चन्दन मिलाकर लेप बनाएं।
- इस लेप को पूरे सिर में २-३ घण्टे या और अधिक समय तक लगाकर सिर को धोना चाहें, तो धो लेवें। इस प्रकार जब भी माष्टिक रोग, अशांति, सिरदर्द सम्बंधी तकलीफ में यह प्रयोग करे, तो समस्त शिरारोगों से मुक्ति मिलती है।
- दिमाग की सूजन मिटती है। मन प्रसन्न तथा शरीर हल्का रहने लगता है।
होली की धार्मिक धारणाएं
- होली से संबंधित ऐसी अनेक धारणाएं हैं, जो आज भी भारत के प्रत्येक प्रांत, गांव, शहर में विभिन्न प्रकार से प्रचलित हैं – इनका प्राचीन महत्व भी है।
- होली जलते समय अग्नि से निकलने वाली लपटों को झल कहा जाता है।
क्यों मनाते हैं होली
- प्राचीन परम्पराओं के अनुसार होलिका मृत संवत्सर की प्रतीक है तथा प्रहलाद नए संवत्सर का।
- पूरे वर्ष सृष्टि और प्रकृति में व्याप्त नकारात्मक ऊर्जा का नाश होली जलाने से हो जाता है। इससे अनेक रोगादि नष्ट हो जाते हैं।
- होलिका दहन से वायु मण्डल शुद्ध होकर पृथ्वी प्रकृति पावन पुनीत हो जाती है।
- होली के पंद्रह दिन पश्चात् भारतीय नए वर्ष नव संवत्सर का आरंभ होता है। इन पंद्रह दिनों के अंतराल में पृथ्वी से नकारात्मक आसुरी शक्तियों का सर्वथा विनाश होकर पुन: नवीन ऊर्जा का संचरण हो जाने लगता है।
गेहूं के बाल- का महत्व
- होलिकादहन के समय उसमें जलायी जाने वाली जौ की बाल को होली की बाल कहते हैं।
- जब होली जल रही होती है, तो जानकार लोग और विशेष कर ग्रामीणवासी उसमें जौ की बाल को भूनते हैं।
- होली की अग्नि में जौ की बाल भूनकर घर की ओर जाते समय जो व्यक्ति सामने आता है, उसे जौ के भुने दाने देकर अभिवादन करते हैं।
- इसे घर में विखेरा जाता है। लोक विश्वास है कि इससे घर में धन-धान्य में वृद्धि होती है।
- होली की बाल कृषि का प्रतीक है। इस तरह समस्त कृषि उपज को होली की अग्नि में पवित्र करते हैं।
- आधे भुने हुए अन्न को संस्कृत में होला, होले या होलक कहते हैं।
होली का आदिकालिन वैदिक स्वरूप
- होली का त्योहार बसन्त पंचमी के 40 दिन बाद फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला हर्षोल्लास का पर्व है।
- पौराणिक मान्यता मुताबिक प्रकृति से प्राप्त किसी भी नई वस्तु को पहले देवताओं को अर्पित किया जाता है और उसके बाद हम स्वयं उसका उपभोग करते हैं।
- फाल्गुन की पूर्णिमा तक खेतों में फसल पकने लगती है। इसलिए उसे देवताओं को अर्पित करना आवश्यक है, ताकि बाद में जन साधारण उसे उपभोग में ले सके । इसी उद्देश्य से यह यज्ञ-पर्व प्रारंभ हुआ।
- नये अनाज से यज्ञ करने के कारण ही इसका नाम ‘नवशस्येष्टि यज्ञपर्व’ पड़ा। जो आगे चलकर होलकोत्सव कहलाया। अब होली बोलते हैं।
- अनाज के अतिरिक्ति यज्ञ में घृत तथा अनेक प्रकार की जड़ी बूटियाँ युक्त गोबर के उपले की आहुतियां भी डाली जाती। यह सब व्यर्थ नहीं था। इसके पीछे ऋषियों की वैज्ञानिक दृष्टि थी।
- अनाज, घृत और जड़ी बूटियों की सुगन्धित धूम, यज्ञाग्नि से ऊपर उठकर वातावरण को शुद्ध करती तथा वायु को दूषित होने से बचाती थी।
- इसी के छोटे कण ऊपर जाकर बादलों से मिलते तथा वर्षा के साथ वापिस नीचे धरती पर आ जाते। इससे वर्षा का जल भी अधिक उपयोगी तथा शक्तिशाली तत्वों से युक्त होता। खाद्यान्न को भी यह अधिक पौष्टिक बनाता।
- भगवान को भेंट करने के उपरान्त, उनके प्रसाद को ग्रहण करने की परंपरा भारत में प्रारंभ से रही है।
होली की प्राचीन कथा और मान्यता
- हिरण्यकश्यप की बहिन होलिका ने महादेव का कठोर तप करके वरदान मांगा था कि में किसी भी तरह की अग्नि से जल न सकूं। होलिका राहु की मां सिंहिका की बहिन थी।
- भक्त प्रह्लाद को जब हिरण्यकश्यप ने अनेक विधि द्वारा मारने का प्रयास किया। लेकिन सफल न होने के कारण उन्होंने होलिका से मदद मांगी और प्रह्लाद की बुआ ने गोद में बैठाकर जलाने का प्रयास किया। अंततः नकारात्मक रूपी होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद जीवित रहे।
अंडुका (वासा) पोधे का महत्व
- होलिका-दहन के स्थान पर एक डंडा गाड़ने की प्राचीन प्रथा है। इसे कही पर प्रह्लाद का प्रतीक और कहीं यज्ञ स्तंभ का प्रतीक माना जाता है।
- विद्वानों की मान्यता है कि यह डंडा वास्तव में प्राचीन यज्ञ-स्तंभ का ही प्रतीक है।
- भारत में प्रायः सर्वत्र होलिका- पूजन की भी परंपरा है। होलिका दहन से पूर्व महिलाएँ अक्षत कुंकुम से उसका पूजन करती हैं।
- यदि होली का संबंध, राक्षसराज हिरण्यकशिपु (अथवा हिरण्यकश्यप) की बहिन होलिका से जोड़े तो उसके पूजन का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
- वास्तव में यह पूजन प्राचीन यज्ञवेदी का ही पूजन है, जिसके स्तंभ के प्रतीक स्वरूप, बीच में डंडा गड़ा रहता है। इस प्रकार होलिका दहन भी वास्तव में प्रचीन यज्ञाग्नि का ही प्रतीक है।
- होली का मूल स्वरूप आपसी प्रेम, मस्ती और हासविलास का है तथा उसका यह स्वरूप प्रारम्भ से लेकर अब तक ज्यों का त्यों रहा है।
- अंतर्कथा के साथ जुड़े पात्रों में हुए हेरफेर ने इस स्वरूप को कभी कोई क्षति नहीं पहुँचाई।
- राजा, रंक, अमीर, गरीब तथा छोटे बड़े के भेदभाव को भी इस त्यौहार ने, भेले ही एक दिन के लिए सही, निर्मूल करने का मंत्र दिया।
- आज ‘नवशस्येष्टि यज्ञ’ वाला स्वरू धीरे-धीरे धूमिल होता चला गया। होली के दूसरे दिन जलक्रीड़ा तथा आमोद प्रमोद वाला स्वरूप, तो आगे चलकर इतना अधिक उभरा कि उत्सव का वही भाग प्रमुख गया तथा पहले वाला भाग गौण रह गया।
- रंग जलक्रीड़ा आमोद प्रमोद का यह उत्सव भी प्रारंभ से ही ‘नवशस्येटि यज्ञ’ के साथ जुड़ा हुआ है।
- बसन्त से ‘संबन्धित होने कारण इस उत्सव को ‘बसन्तोत्सव’ या ‘सुवसन्तक’ और मदनोत्सव’ भी कहा जाने लगा।
- जानकार अघोरी, साधक होली की रात्रि में अनेक सिद्धियां भी प्राप्त करते हैं। इसे महारात्रि बताया है।
नामर्द, नपुंसकता नाशक विशेष सिद्धियां
- यत्र तत्र कामदेव तथा रति के पूजन की मंत्र जाप पूजा द्वारा कामदेव को वश में करने के लिए कुछ लोग रात भर मंत्र जप करते हैं।
- श्री हर्ष ने ‘रत्नावली’ में कामदेव-पूजन का वर्णन इन शब्दों में किया है- ‘वाटिका में रेशमी वितान ताना जाता।
- राजा, महाराजा अपनी सहवास शक्ति बढ़ाने के लिए होली के दिन अशोक वृक्ष के नीचे मिट्टी के शिवलिंग बनाकर कामदेव रूपी प्रतिमा का रुद्राभिषेक करते थे। उसे कुसुम, चंदन आदि से शोभित किया जाता।
- प्राचीन भारत में बसन्तोत्सव या मदन महोत्सव पर जा जलक्रीड़ा होती, उसका वर्णन अनेक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ में पढ़ने को मिलता है। उस समय पिचकारियों को श्रृंग कहा जाता था तथा उनका आकार सांप या कीप की तरह होता था। प्रायः टेसू के फूलों के रंग का पानी इन पिचकारि भरकर सब पर डालते थे।
- भारत में रंग, गुलाल, पानी, पत्थरमार, लट्ठमार होली बहुत प्रसिद्ध है। होली के दिन रंग गुलाल इसलिए भी लगाते हैं कि ठंड के मौसम में मेल हमारे शरीर में चिपका रह जाता है। रंग गुलाल साफ करते समय गंदगी भी मिट जाती है और त्वचा रोगों यानि स्किन प्रोब्लम से बचाव होता है।
भाईदोज और नारियल
- होली खेलने के दूसरे दिन को भाइदोज के रूप में बहाने मानती हैं। भाईदूज को बहिन अपने भाई के हाथ में नारियल रखकर तिलक करें, तो भरता साल भर स्वस्थ्य रहता है। काल उसे नहीं घेरता।
शादी के बाद पहली होली मायके में ही क्यों मनाते हैं?
- एक प्राचीन परम्परा है कि जिस वर्ष विवाह होता है उस वर्ष वधु या नई नवेली दुल्हन होलिका दहन पर अपने मायके में होती है।
- ससुराल में वह अकेली होली न देख ले, इसलिए उसे मायके भेजा जाता है। इसके पीछे लोक विश्वास है कि विवाह के वर्ष वधु का ससुराल की जलती होली देखना भावी जीवन और अपने पति के लिए अनिष्टकारक रहता है।
- आध्यात्मिक साधना के लिए रोज एक दीपक Raahukey oil का जलाकर ॐ शम्भू तेजसे नमः शिवाय का जाप कर विशेष सिद्धि और सफलता पा सकते हैं।
- शिवालय शिवमन्दिर में प्रतिदिन एक दीप द्वारा अग्नि प्रज्जवलित कर हम नकारात्मक ऊर्जा और असुर विचारों का हमेशा के लिए विनाश करके आनन्द व शान्ति प्राप्त कर सकते हैं।
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