- महर्षि शांडिल्य द्वारा लिखा गया शांडिल्य उपनिषद भगवान के जप, टप, नियम, विधान की चर्चा है। इस श्लोक के द्वारा उनकी महानता को प्रणाम करने की इच्छा जागृत हो जाएगी।
शाण्डिल्योपनिषद् से साभार
मूर्ध्नि संयमाद्ब्रह्मलोकज्ञानम्।
पादाधोभागे संयमादतललोकज्ञानम्।
पादे संयमाद्वितललोक – ज्ञानम्।
पादसन्धौ संयमान्नितललोकज्ञानम्।
जङ्गे संयमात्सुतललोकज्ञानम् जानौ संयमान्यहातललोकज्ञानम्ऊ।
रौ चित्तसंयमासातललोकज्ञानम् कटौ चित्तसंयमात्तलातललोकज्ञानम्।
नाभौ चित्तसंयमादलोकज्ञानम्।
कुक्षौ संयमावलकज्ञानम्।
हृदि चित्तस्य संयमात्स्वर्लोकज्ञानम्।
हृदयोर्ध्वभागे चित्तसंयमान्महलोंकज्ञानम् कण्ठे चित्तसंयमाज्जनोलोकज्ञानम्।
धूमध्ये चित्तसंयमात्तपोलोकज्ञानम्।
मूर्ध्नि चित्तसंयमात्सत्यलोकज्ञानम्। धर्माधर्मसंयमादतीतानागतज्ञानम्
तत्तज्जन्तु ध्वनौ चित्तसंयमात्सर्वजन्तुरुतज्ञा
परचित्ते चित्तसंयमात्परचित्तज्ञानम्।
कायरूपे चित्तसंयमादन्यादृश्यरूपम्।
बले चित्तसंयमाद्धनुमदादिबलम्सू।
र्ये चित्तसंयमाद्भुवनज्ञानम्।
चन्द्रे चित्तसंयमात्ताराव्यूहज्ञानम्।
ध्रुवे तद्गतिदर्शनम्। स्वार्थसंयमात्पुरुषज्ञानम्। नाभिचक्रे कायव्यूहज्ञानम्।
कण्ठकूपे क्षुत्पिपासानिवृत्तिः।
कूर्मनाड्यां स्थैर्यम् तारे सिद्धदर्शनम् ।
कायाकाशसंयमादाकाशगमनम्।
तत्तत्स्थाने संयमात्तत्तत्सिद्धयो भवन्ति॥
अर्थात
- आँख की पुतली पर संयम करने से सभी प्रकार के विषयों जैसे तन्त्र, मन्त्र, यंत्र, सिद्धि आदि का ज्ञान प्राप्त होता है।
- नासिका यानी नाक के अग्रभाग पर चित्त का संयम करने से इन्द्रलोक का ज्ञान प्राप्त होता है।
- नाक के नीचे चित्त का संयम करने से अग्रिलोक का ज्ञान प्राप्त होता है।
- नेत्र में चित्त का संयम करने से सभी लोकों का ज्ञान प्राप्त होता है।
- श्रोत्र यानि कान में संयम करने से यम लोक का ज्ञान प्राप्त होता है।
- उसके बगल में चित्त का संयम करने से राक्षसों के लोक का ज्ञान होता है।
- पीठ के भाग में संयम करने से वरुण लोक का ज्ञान होता है।
- बायें कान में चित्त का संयम करने पर वायु के लोक का ज्ञान होता है।
- कुण्ठ में संयम करने से चन्द्रलोक को ज्ञान होता है।
- बाँयीं आँख में संयम करने से शिवलोक का ज्ञान प्राप्त होता है।
- मस्तक में संयम करने से ब्रह्मलोक का ज्ञान होता है।
- पैर के नीचे (तलवे) में संयम करने से अतल लोक का ज्ञान होता है।
- पैर (पंजे) में संयम करने से वितल लोक का ज्ञान होता है।
- पैर के जोड़ (टखने) में चित्त का संयम करने से नितल लोक का ज्ञान होता है।
- पैर की जंघा (पिंडली) में संयम करने से सुतल लोक का ज्ञान होता है।
- जानु (घुटने) में संयम करने से महातल लोक का ज्ञान प्राप्त होता है।
- ऊरु (जाँघ) में संयम करने से रसातल का ज्ञान होता है।
- कमर में संयम करने से तलातल लोक का ज्ञान होता है।
- नाभि में चित्त का संयम करने से भूलोक का ज्ञान होता है।
- पेट में संयम करने से भुवः लोक का ज्ञान होता है।
- हृदय में चित्त का संयम रखने से स्वः लोक का ज्ञान प्राप्त होता है।
- हृदय के ऊर्ध्व भाग में चित्त का संयम करने से मह: लोक का ज्ञान प्राप्त होता है।
- कुण्ठा में संयम करने से जनः लोक का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
- भौहों के मध्य में संयम करने से तपः लोक का ज्ञान प्राप्त होता है।
- मस्तक में चित्त का संयम करने से सत्यलोक का ज्ञान प्राप्त होता है।
- धर्म तथा अधर्म में संयम करने से भूत-भविष्यत् का ज्ञान हो जाता है।
- विभिन्न प्राणियों की आवाज में संयम करने से उनकी बोली का ज्ञान होता है।
- सञ्चित कर्म में संयम करने से पूर्व जन्म का ज्ञान होता है।
- दूसरे लोगों के चित्त में संयम रखने से दूसरे के चित्त का ज्ञान होता है।
- शरीर के रूप में संयम करने से दूसरे का-सा रूप हो जाता है।
- बल में संयम करने से हनुमान आदि के जैसा बल प्राप्त हो जाता है।
- सूर्य में संयम करने से समस्त भुवनों का ज्ञान हो जाता है।
- चन्द्र में संयम करने से समस्त तारामण्डलों का ज्ञान हो जाता है।
- ध्रुव में संयम करने से उसकी गति का दर्शन होता है।
- स्वार्थ में संयम करने से पुरुष का ज्ञान होता है।
- नाभिचक्र में संयम करने से शरीर व्यूह का ज्ञान होता है।
- कण्ठ कूप में संयम करने से भूख-प्यास समाप्त हो जाता है।
- यहां संयम से अर्थ है। शरीर के इन अंगों पर ध्यान देकर ॐ शम्भूतेजसे नमः शिवाय का जाप करना।
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