Tag: भारतीय
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बाल्मिकी रामायण में लिखी हैं_ घाव भरने था मधुमेह की ओषधियां….
संजीवनी औषधि चार तरह की बताई हैं……. जाने विशेष दुर्लभ बात!!!! वाल्मीकि रामायण में उल्लिखित संजीवनी के अंतर्गत चार वनौषधियों में से एक है। इस संदर्भ में रामायण का निम्नलिखित श्लोक विशेष उल्लेखनीय है : दक्षिणा शिखरे तल्या जातमोषधपानव । विशल्याकरण नाम विशवकरणीम् तथा संजीवनीमपि। रणींनापियवा शीघ्रामिहास्य । (युद्ध कांड बाल्मीकि रामायण) अर्थात_हे हनुमान! आप…
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प्राचीनकाल में ऋषि – महर्षि, वैद्य बिना दवा के यानि स्पर्श या प्राण चिकित्सा से करते थे उपचार। जाने कैसे…
स्पर्श चिकित्सा को झाड़ फूंक की विधि भी कह सकते हैं- हर दर्द की दवा है – गोविंद की गली में…. सिरदर्द, हाथ – पैरों में सूजन, कमर या रीढ़ की हड्डी में गैप या दर्द, मानसिक विकार, तनाव, डिप्रेशन, माइग्रेन, कम्पन आदि का इलाज आज भी उत्तर, हिमालय, तिब्बत, लद्दाख, असम के कामाख्या मंदिर…
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“योगक्षेमो नः कल्पताम्”… इस वाक्य का क्या अर्थ है?
यह ऋचा शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा के अध्याय २२ की २२ वीं कंडिका से ली गई है: यह वैदिक राष्ट्रगान जिसमें संपूर्ण राष्ट्र और उसके नागरिकों, पशुओं, फसलों आदि के कुशल क्षेम की कामना की गई है। “आ ब्रह्मन् ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायतामराष्ट्रेराजन्य: शूर ईषव्योअति व्याधी महारथो।जायतां दोग्ध्री धेनुर्वाढानाड्वानाशु: सप्ति: पुरंध्रिर्योषा जिष्णु रथेष्ठा सभेयो युवास्या यजमानस्य वीरो जायताम निकामे निकामे न: पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधय: पचयंताम् योगक्षेमो न: कल्पताम्“। ‘योगक्षेमो कल्पताम् का अर्थ है जो प्राप्त है उसकी रक्षा करने की एवं जो अप्राप्त है उसको प्राप्त करने की क्षमता बनाए रखने की प्रार्थना की गई है’। योग: अप्राप्त की प्राप्ति क्षेम:प्राप्त की रक्षा कल्पताम्: में समर्थ हो। भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है: अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासिते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।०९/२२ अनन्यदर्शी निष्कामी भक्त अपने योगक्षेम की चिंता नहीं करते हैं,वे निरंतर अनन्य भक्ति भाव से मुझको भजते रहते हैं या निष्काम उपासना करते रहते हैं,…