बद्रीनाथ के और भी सन्तों के बारे में अगले ब्लॉग पार्ट -2 में बताया जाएगा
सिद्ध सन्तों का सन्सार है- उत्तराखंड
इकहरा शरीर, जर्जर काया,
पास नहीं कोई माया,
केवल शिव की छाया
केवल ईश्वर ही उन्हें भाया
और मुख पर तपस्या का तेज, लंबी जटाएं, भरी दाढ़ी, उनकी जिद्दी शिव भक्ति, उनका हठयोग जुनून की दास्तां समझने के लिए पर्याप्त है।
कड़कड़ाती ठण्ड के मौसम में, जब पारा 20 डिग्री नीचे पहुंच जाता है, तब कोई भी हो, उसका ठिठुरना स्वाभाविक है। ऐसे में ये सन्त, जिनकी सिद्धियों का कोई अंत नहीं पा सका, उत्तरांचल में अपनी साधना की अलख जगाए रखते हैं।
स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहँस द्वारा लिखा छोटा सा लेख बचपन में एक समाचार पत्र में पढ़ा था कि –
जो शांत है, वही सन्त है।
और। —–
सन्त मिलेंगे अन्त
यानि घने जंगलों में या फिर उत्तरांचल की पहाड़ियों पर, गुफा-कंदराओं में शांत तन-मन
वाले सन्त मिलेंगे।
शहरों में, तो मात्र पंथ मिलते हैं, जिनका कोई अंत नहीं हैं। इन सन्तों और पंथों के पास सिवाय भय-भ्रम फैलाने के अलावा कोई कार्य नहीं हैं।
सच्चा सन्त कोन–
सच्चा सन्त, शांत हो जाता है, उसकी पांचों ज्ञानेन्द्रियाँ, पांचों कर्मेन्द्रियां सब शांत हो जाती हैं। न कुछ खाने की लालसा, न कुछ पहनने की। नंग-धड़ंग रहना उनकी प्रवृति हो जाती है।
देवरहा बाबा कहते थे–
सिवाय शिव के कछु और न सुहात है।
सच्चे सन्त सब इच्छाओं का मन से दमन कर डालते हैं। केवल, बस सदैव सदाशिव के ध्यान में मग्न रहते हैं।
आजकल के सन्तों के पास शांति, साधना, आराधना, पूजा आदि के नाम पर शिष्या, तो बहुत हैं पर मन शान्त नहीं हैं।
हम थे “शिव” के सहारे
करीब पिछले 38 वर्षों से मेरा उत्तरांचल प्रवास निरन्तर चल रहा है। उत्तरांचल देवभूमि होने से यहां के चप्पे-चप्पे, गली, पर्वतों पर ईश्वर का वास है।
यहां के गिरते झरने व्यक्ति को मरने नहीं, जीने की प्रेरणा देते है। यहां अनेक साधक सन्त 50 से 100 सालों से तपस्या में लीन हैं। उत्तरांचल के सन्त-सन्यासियों के अंदर सात समुंदरके दर्शन कर सकते हैं। इनका रूप, भाव-स्वभाव शिव स्वरूप है यानी ये साधु शिव का ही प्रतिरूप हैं।
मैंने अपनी 38 वर्षों की उत्तराखंड यात्रा में लगभग 100 से अधिक साधु-संतों का आशीर्वाद लिया।
साधु की साधना
इनमें में से कुछ सन्तों ने मेरा मन मोह लिया। सब सन्त अधिकतर औघड़धानी प्रवृति के ही होते हैं। मुझे आज से 30-32 साल पूर्व बद्रीनाथ के नजदीक वसुन्धरा यानि वसुधारा झरने से कुछ ही दूरी पर अपना आसन लगाए एक शिवरूप सन्त के दर्शन हुए।
उम्र लगभग 82 वर्ष, नाम था चितानन्द।
अपना मूल स्थान, गाँव का नाम बताने से उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया था। उन्होंने बताया कि ‘काया-माया के बंधन को तोड़कर हम यहां आ पहुंचे हैं, अब पुरानी कहानी बताने से क्या फायदा होगा।
परम् शिव भक्त संत ने कहा कि जब मेरी अवस्था 12 वर्ष की होगी, तभी घर-द्वार, माता-पिता और सन्सार से मोह भंग हो गया था। हालांकि घर में कोई कमी न थी। बहुत सम्पन्नता भी थी, किन्तु मन उचट गया।
सिद्धियों का भंडार थे-सन्त
बाबाजी के पास सिद्धियों का भंडार था, वे ज्योतिष, हस्तरेखा, मस्तिष्क रेखा के जानकार थे।
उन्होंने मेरा माथा देखकर कहा, तुझे सांसारिक जीवन के बाद ही जीवन में सफलता मिलेगी। उस समय मैं अविवाहित था। इस क्षेत्र में अर्थात धर्म के मार्ग में ज्यादा न भटक। तेरा समय 60 की उम्र के बाद ही आएगा, जो तू चाहता है वह सब तभी मिलेगा। मन की शान्ति के लिए हमेशा केवल भगवान शिव का ध्यान करना। एक बात हमेशा ध्यान रखना कि-
एकहिं साधे, सब मिले!
सब साधे सब जाएं।
उन्होंने फिर अपने तरीके से पुनः बताया कि
शिव को साधे, सब मिले,
शिव साधे, तो सब पाएं।
मेरी हस्तरेखा देखकर, बाबाजी बोले,
बहुत भयंकर संघर्ष है-तेरे जीवन में।
बस, कभी घबराना नहीं, बहुत लोग धोखा देंगे, तभी तू अनुभवी और ज्ञानी बनेगा। तेरे ऊपर पूर्व जन्म के लोगों का कर्ज है, उसे चुकता करना जरूरी है।
तू, अपने जीवन में हजारों प्राचीन शिवमंदिरों के दर्शन करेगा। बहुत से साधु-सन्त अघोरी तेरा सदैव मार्गदर्शन करेगा।
तू ज्योतिष का ज्ञान रखेगा।
तेरी वाणी सिद्ध होगी।
तू भविष्य में आयुर्वेद दवाओं का व्यापार करेगा।
तेरी कम्पनी की दवाएँ अत्यंत प्रभावकारी होंगी। विशेषकर महिलाओं के लिए
वह ओषधियाँ विशेष कारगर साबित होंगी।
बाबाजी ने जब यह बताया था, तब मैं आयुर्वेद के बारे में कुछ भी नहीं जानता था। जीवन, परिवार एवं सन्सार के बारे में संतश्री द्वारा बताई गईं सभी भविष्यवाणी पूर्णतः सत्य प्रतीत हुईं। कुछ गोपनीय रहस्य बताना उचित नहीं है।
हर प्रश्न का उत्तर है-उत्तरांचल में
मुझे उत्तरांचल में लगभग हर प्रश्न का उत्तर मिला। जब भी कोई भय-भ्रम की स्थिति होती, तो मैं सीधे उत्तराखंड के किसी घने वन की यात्रा पर निकल जाता। मेरे बच्चों ने भी इस यात्रा का बहुत लुफ्त उठाया। बच्चों ने भी करीब-करीब कइयों बार मेरे साथ उत्तराखंड के 100 से अधिक तीर्थों के दर्शन किये हैं।
शिव का वरदान है – ‘स्तुति‘
मेरी बच्ची “स्तुति अशोक गुप्ता” भारत की जानी-मानी ट्रेवेल्स ब्लॉगर है। बहुत कम उम्र में ही स्तुति ने लगभग 70 फीसदी से ज्यादा भारत देश की यात्रा कर डाली है।
वर्तमान में वह “अमृतम फार्मास्युटिकल्स” के हर्बल उत्पादों की ऑनलाइन मार्केटिंग देख रही है। अमृतम को बहुत कम समय में ऑनलाइन कारोबार में विशाल सफलता का श्रेय उसी को जाता है।
दूर दृष्टि-पक्का इरादा
प्रोडक्शन, पैकेजिंग, क्वालिटी कंट्रोल, मार्केटिंग के अलावा ब्लॉग लिखना, फोटोग्राफी और अपने प्रिय ग्राहकों से डीलिंग करना यह सब कार्य दिन-रात मेहनत करके कर रही है। ईश्वर उसके सपनों को साकार करें, भोलेनाथ से यही प्रार्थना है।
स्तुति ने अपनी मेहनत तथा प्रयासों से
अल्प काल में ही “अमृतम” को पूरे देश-दुनिया में विख्यात कर दिया।
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भविष्य में mp तथा 36 गढ़ के स्वयम्भू शिवलिंगों के बारे में भी पढ़ सकते हैं।
■ राहु के 4 सिद्ध शिवालय जानने के लिए पिछले लेख देखें।
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