उत्तराखंड के चारों धाम का रहस्य पार्ट-4

मप्र के मालवा से गहरा नाता है- उत्तराखंड का, क्योंकि भगवान शिव के बाद दूसरे घर-जमाई बने थे, मालवा के राजकुमार-
ये बात तो जगतविख्यात है कि भगवान शिव का दूसरा विवाह हिमालय की पुत्री माता पार्वती के साथ हुआ था और हिमालय उत्तर की तरफ, उत्तराखंड से सटा हुआ है।
दक्षिण भारत के ग्रंथों में उल्लेख आता है कि भोलेनाथ दक्षिण के मूल निवासी थे। इनका विवाह, जब माँ पार्वती से हुआ, तो महादेव अपनी ससुराल उत्तरांचल में आये, तब यह स्थान उन्हें इतना रमणीक लगा कि वे हमेशा के लिए यहीं रम गए। महादेव सृष्टि के सर्वप्रथम घर-जमाई कहे जाते हैं
अपने जमाई-राजा के लिए हिमाचल, उत्तराखंड के लोग तभी, तो गाते हैं कि
शिव केलासों के वासी,
धौरी धारों के राजा।
शंकर संकट हरना, 
सबके संकट हरना।।
मध्यप्रदेश से गहरा नाता है-उत्तराखंड का
टिहरी का इतिहास साक्षी है कि मालवा के राजकुमार कुँवर कनकपाल उत्तराखंड की चारोधाम यात्रा पर गए थे। प्रवास के दौरान टिहरी के राजा भानुप्रताप से मिले,
तो मालवा महाराज कनकपाल ने उन्हें बहुत प्रभावित किया जिस कारण राजा भानुप्रताप ने अपनी इकलौती बेटी का विवाह करके अपना सारा राज्य कनकपाल को सौप दिया औ सन 1803 तक सारा गढ़वाल क्षेत्र इनके कब्जे में आ गया। आगे की पीढ़ी में
एक युद्ध में उनके वंशज राजा प्रद्यमुन शाह
गोरखाओं के नाकाम हमले में मारे गये
लेकिन उनके अबोध राजकुमार सुदर्शन शाह जो उस वक्‍त छोटे थे, वफादारों के हाथों बचा लिये गये। गोरखाओं का प्रभुत्‍व इतना था कि उन्होंने करीब 12 साल तक टिहरी में राज्‍य किया। राज्‍य कांगड़ा तक फैला था।
वर्षों के बहुत संघर्ष के पश्चात महाराजा रणजीत सिंह ने गोरखाओं को कांगड़ा से
 मार भगाया और दूसरी तरफ टिहरी गढ़वाल नरेश सुदर्शन शाह ने ईस्ट इंडिया कम्‍पनी की मदद से गोरखाओं से अपना राज्‍य वापस छीन लिया ।
ईस्ट इंडिया कम्‍पनी ने कुमाऊ , देहरादून और पूर्व (ईस्ट)गढ़वाल को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला दिया और पश्चिम गढ़वाल राजा सुदर्शन शाह को दे दिया, जिसे अब टिहरी गढ़वाल राज्य (रियासत) के नाम से जाना गया |
टिहरी या त्रिहरी
राजा सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी “टिहरी या टेहरी” शहर को बनाया और बाद में उनके उत्तराधिकारी प्रताप शाह ने इस राज्य की राजधानी प्रताप नगर,
कीर्ति शाह कीर्ति नगर
 और नरेन्द्र शाह ने नरेन्द्र नगर
स्थापित किया और तीनो उत्तराधिकारीयों ने सन1815 से  1949 तक राज्य किया। 1947 में आज़ादी के बाद राजा मानवेन्द्र शाह ने भारत के साथ होना कबूल कर सन 1949 में टिहरी राज्य को उत्तरप्रदेश में मिलाकर एक जिला बना दिया गया। बाद में 24 फरवरी 1960 को उत्तरप्रदेश सरकार ने इसकी एक तहसील को अलग कर, उत्तरकाशी नाम का एक और जिला बना दिया, जहां आदिकाल से स्थापित सतयुगी उत्तरकाशी ज्योतिर्लिंग है।
टिहरी और गढ़वाल दो अलग नामों को मिलाकर इस जिले का नाम रखा गया है।
 सन्‌ 888 से पूर्व सारा गढ़वाल क्षेत्र छोटे-छोटे ‘गढ़ों’ में विभाजित था, जिनमें अलग-अलग राजा राज्‍य करते थे जिन्‍हें ‘राणा’, ‘राय’ या ‘ठाकुर’ के नाम से जाना जाता था। प्राचीन ग्रंथों में टिहरी का एक पुराना नाम गणेश प्रयाग भी बताया है।
भोलेनाथ भगवान शिव गढ़वाल के लोगों के विशेष आराध्य देवता हैं। गढ़वाल के विभिन्न भागों में लगभग 350 से अधिक स्वयम्भू शिवालय यानि शिव मन्दिर स्थापित हैं।
नित्यानन्द एवं कुमार 1989 में प्रकाशित एक पुस्तक में लिखा है कि मां दुर्गा एवं इसके विभिन्न स्वरुपों के लगभग 150 मन्दिर गढ़वाल में स्थित है।
पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के सभी लोकप्रिय देवताओं को शैव मत विचारधारा वाला कहा जाता है।
 उत्तराखंड के लोग कहीं-कहीं भोलेनाथ को दामाद के रूप में भी पूजते हैं।
भगवान शिव समस्त बेतालों, दैत्यों, पिशाचों एवं आत्माओं व्यक्तियों से गहरा नाता है।
गढ़वाल में स्थापित प्रमुख शिव मन्दिर केदारनाथ, मद-महेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कलपेश्वर, उत्तरकाशी का शिवमंदिर जहां स्वयम्भू त्रिशूल गढ़ा हुआ है, जो छोटी उंगली से ही हिलता है।
गोपेश्वर, यमुनोत्री, श्रीनगर, पौडी, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, सोनप्रयाग एवं देवप्रयाग नामक स्थलों पर स्थित है।
भगवान शिव के मन्दिरों के द्वारपाल भैरोंनाथ हैं, जो अधिकांश शिव मन्दिरों के रक्षक हैं।
शक्तिरूप यानि शाक्त मतानुसार देवी दुर्गा, काली, सरस्वती एवं उसके विभिन्न स्वरुपों की पूजा मां के रूप में की जाती है। देवी को गढ़वाल की पहाडियों के विभिन्न भागों में बहुत भक्ति भाव से पूजा जाता है।
काली कलकत्ते वाली, 
तू करती उत्तर की रखवाली है
■ मन्दाकिनी घाटी में गुप्तकाशी के नजदीक कालीमठ नामक स्थल पर स्थित महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी एवं हरगौरी मन्दिर
■ धनौल्टी मसूरी के पास स्थित सिद्धपीठ सरकन्डा देवी मन्दिर
■ टिहरी मार्ग पर हिन्डोलाखाल के निकट
 स्थित चन्द्रवदनी देवी मन्दिर
■ कालीफट में फांगू का दुर्गा मन्दिर
■ बिचाला नागौर में स्थित दुर्गा मन्दिर
■ तल्ला उदयपुर में स्थित भवानी मन्दिर
■ कल्बंगवारा दुर्गा मन्दिर जहाँ देवी ने रक्तबीज नामक दैत्य का वध किया था
■ बिरौन, बिचला नागपुर एवं उदयपुर पट्टी (खेरा) में स्थित चामुन्डा देवी मन्दिर बहुत अद्भुत और ऊर्जावान है।
■ श्रीनगर में स्थित ज्वालपा देवी मन्दिर
■ तपोवन में स्थित गौरी मन्दिर
■ जोशीमठ में स्थापित नवदुर्गा मन्दिर
■ देहरादून के श्रीनगर एवं अजबपुर  में स्थित शीतला देवी मन्दिर त्वचारोग, कैंसर आदि आसाध्य रोगों को ठीक करने में चमत्कारी है।
■ पणिनी के पतञ्जलि में बद्रीनाथ एवं केदारनाथ दोनो तीर्थ स्थलों को पूर्ण विकसित तीर्थ स्थलों के रूप में सन्दर्भित किया है।
विश्व के रक्षक-श्रीविष्णु
गढ़वाल के विभिन्न भागों में लगभग 61 मुख्य विष्णु मन्दिर स्थापित हैं। इनमें से कुछ को नीचे सूचीबद्ध किया गया है।
【】बद्रीनाथ का बद्रीविशाल मन्दिर
【】विष्णु प्रयाग में विष्णु मन्दिर
【】नन्दप्रयाग का नारायण मन्दिर
【】चन्द्रपुरी (मन्दाकिनी घाटी) का मुरलीमनोहर मन्दिर
【】तपोवन के निकट सुभेन नामक स्थल पर स्थित भविष्य बद्री मन्दिर
【】पान्डुकेश्वर का ध्यान बद्री या योग बद्री मन्दिर
【】जोशीमठ का नरसिंह मन्दिर
【】ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य तोटक बनाए गए थे। उक्त चार मठों के अलावा तमिलनाडु में स्थित काँची मठ को भी शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया हुआ माना जाता है।
यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी
शिव पुराण, हरिवंश पुराण आदि ग्रंथों में श्रीहरि विष्णु और हर यानि शिव को शाश्वत मित्र बताया है। कहा यह भी जाता है कि जहां श्रीविष्णुजी रहते है, भगवान शिव भी वही निवास करते हैं। चार धाम भी इसके अपवाद नहीं हैं। इसलिए
बद्रीनाथ को केदारनाथ
की जोड़ी के रूप में
द्वारिकापूरी को सोमनाथ
और रंगनाथ स्वामी को रामेश्वरम
की जोड़ी माना जाता है।
सनातन धर्म की
पावन परंपराओं के अनुसार चार धामों में
1- बद्रीनाथ उत्तराखंड,केदारनाथ “की जोड़ी
2- रंगनाथ-स्वामी त्रिचीनपल्ली तमिलनाडु और रामेश्वरम की जोड़ी
3- द्वारिकापुरी गुजरात और सोमनाथ की जोड़ी
4-जगन्नाथ-पुरी एवं लिंगराज मंदिर, भुवनेश्वर या गुप्तेश्वर उड़ीसा हैं।
उत्तराखंड का सबसे पुराण शहर पर्यटन स्थल देवप्रयाग भारत के सर्वाधिक धार्मिक शहरों में से एक बताया जाता है।
यहां अलकनंदा और भागीरथी नदियां आपस में मिलती है।
जटायु की तपोभूमि
इसे गृद्धाचल के नाम से जाना जाता है। यह जगह गिद्ध वंश के जटायु की तपोभूमि के रूप में भी जानी जाती है। माना जाता है कि इस स्थान पर ही भगवान राम ने किन्नर को मुक्त किया था। इसे ब्रह्माजी ने शाप दिया था जिस कारण वह मकड़ी बन गई थी।
कहाँ कैसे जाएं
महासरताल सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जोलीग्रांट हवाई अड्डा है। टिहरी जोलीग्रांट से 93 किलोमीटर की दूरी पर है।
रेल मार्ग ऋषिकेश सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। ऋषिकेश से टिहरी 76 किलोमीटर दूर स्थित है।
सड़क मार्ग नई टिहरी कई महत्वूर्ण मार्गो जैसे देहरादून, मसूरी, हरिद्वार, पौढ़ी, ऋषिकेश और उत्तरकाशी आदि जगहों से जुड़ा हुआ है। आस-पास की जगह घूमने के लिए टैक्सी द्वारा भी जाया जा सकता है।
बद्रीनाथ मन्दिर
भगवान श्रीहरि को समर्पित पांच संबंधित मन्दिरों में से एक है, जिन्हें पंच बद्री के रूप में एक साथ पूजा जाता है।
ये पांच बद्री मन्दिर हैं – 
(1) बद्रीनाथ में स्थित बद्री-विशाल,
(2) पांडुकेश्वर में स्थित योगध्यान-बद्री,
(3) ज्योतिर्मठ से १७ किमी (१०.६ मील) दूर सुबेन में स्थित भविष्य-बद्री,
(4) ज्योतिर्मठ से ७ किमी दूर अणिमठ में स्थित वृद्ध-बद्री और
(5) कर्णप्रयाग से १७ किमी दूर रानीखेत रोड पर स्थित आदि बद्री प्राचीन काल से स्थापित हैं, इन सबके किस्से बताना अभी शेष है।
इन पांच मन्दिरों के अलावा जब दो अन्य प्राचीन विष्णु मन्दिर को भी जोड़ा जाता है, तो इन सात श्रीहरि के मन्दिरों को संयुक्त रूप से सप्त-बद्री कहा जाता है।
सप्त बद्री में उपरोक्त पांच मन्दिरों के अतिरिक्त
(6) कल्पेश्वर के निकट स्थित ध्यान-बद्री तथा (7) ज्योतिर्मठ-तपोवन के समीप स्थित अर्ध-बद्री भी शामिल हैं। ज्योतिर्मठ के नृसिंह बद्री को भी कभी कभी पंच-बद्री (योगध्यान बद्री के स्थान पर) या सप्त-बद्री (अर्ध बद्री के स्थान पर) में स्थान दिया जाता है। उत्तराखण्ड में पंच बद्री, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
चलो मार्ग गोविंद
हेमकुंड साहिब सिखों का सिद्ध तीर्थ
यह कुंड बद्रीनाथ से ४३ किलोमीटर दूर फूलों की घाटी के समीप स्थित है। यह कुंड सिक्‍खों का महत्‍वपूर्ण तीर्थस्‍थल है। यह माना जाता है कि दसवें गुरू गुरू गोबिंद सिंह अपने पिछले जन्‍म में इसी कुंड के तल में बैठकर गहन ध्‍यान में लीन होकर ईश्‍वर में विलीन हुए थे। इस कुंड के पास में ही लक्ष्‍मण मंदिर है जहां इन्‍होंने तपस्‍या की थी।
बद्रीनाथ के पास है, भारत की अंतिम सीमा-माणा गांव
बद्रीनाथ से 4 किलोमीटर दूर
इस गांव में इंडो-मंगोलियन जनजाति निवास करती हैं। माणा गांव तिब्बत के पहले भारत का अन्तिम आखिरी गांव है। यहीं व्‍यास गुफा है। सरस्‍वती नदी के ऊपर बना प्राकृतिक भीम पुल भी स्थित है। इसके समीप ही वसुंधरा झरना है जो 122 मीटर ऊंचाई पर है। इनके दर्शन से आत्मा गद-गद हो जाती है।
माता मूर्ति
बद्रीनाथ से मात्र तीन किलोमीटर दूर यह मंदिर भगवान बद्रीनाथ के मां को समर्पित है।
सतोपंथ में हैं सिद्ध सन्तों अम्बार-
एक तीकोना झील है जिसकी परिधि एक किलोमीटर है। इस झील की खासियत यह है कि यह समुद्रतल से 4,402 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसका नाम हिंदू धर्म के त्रिदेवों- ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश- के नाम पर आधारित है। माना जाता है कि तीनों देवता तीन कोनों पर विराजते हैं। लेकिन यहां जाने का रास्‍ता काफी मुश्किल है। यहीं पर अलकनंदा और लक्ष्‍मण गंगा का संगम स्‍थल भी है जिसको गोबिंदघाट के नाम से जानते हैं। इसके पास गुरू गोबिंद सिंह का गुरूद्वारा भी है।
पंच प्रयाग
पंच प्रयाग देवप्रयाग, नंदप्रयाग, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग और विष्‍णुप्रयाग का संगम स्‍थल है। धर्म शास्त्रों में बद्रीनाथ दर्शन के समय इन
नदियों में स्नान, दर्शन तथा तर्पण का विशेष महत्व बताया है।
विशेष आग्रह
पाठकगण जब भी चारों धाम की यात्रा करें, तो कभी एक साथ न करें। उत्तराखंड में लगभग 900 से अधिक पुण्य तीर्थ हैं, जहां के दर्शन से व्यक्ति निश्चित ही भाग्यशाली बनता है। एक धाम के तीर्थो के दर्शन में कम से के। 15 से 20 दिन का समय लग जाता है। यहां भागा-दौड़ी करने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला। आराम से यात्रा दर्शन करें, तो यहां के तीर्थ कीर्ति बढ़ाने में सहायक हैं।
जब आप धाम के लिए दाम ओर काम का नुकसान कर ही रहे हैं, तो थोड़ा समय शांति पूर्वक व्यतीत जरूर करें। सिद्ध सन्तों का आशीर्वाद से हर वाद-विवाद से छुटकारा पा सकते हैं।
चलना ही जिंदगी है, रुकना है मौत तेरी
विगत 38 में लगभग 35 या 40 बार उत्तरांचल की यात्रा की। यहां की पुरानी लायब्रेरीयों पुराने ग्रंथो, पुस्तकों को टटोला, उनको पढ़ा। करीब 300 से अधिक किताबों का अध्ययन किया, उन-उन स्थानों पर जाकर भ्रमण किया, तब कहीं जाकर उत्तराखंड यात्रा का विस्तृत वर्णन कर सका।
इस ब्लॉग को लिखने में मेरी पूरे जीवन का सतत संघर्ष है। बिना साधन के, भारी कष्ट उठाकर उत्तरांचल की यात्रा करके मेने अदभुत आनंद पाया, आप भी परम सुख प्राप्त करें। अन्तर्मन से यही शुभकामनाएं हैं।
पिछले-पुराने लेख पढ़कर आप बहुत सी रहस्यमयी, दुर्लभ जानकारी पा सकते हैं, जैसे-
【】कालसर्प-पितृदोष कैसे बनता है और इससे मुक्ति के उपाय
【】क्या है अमरनाथ के रहस्य एव अमरकथा का सत्य
【】क्या बद्रीनाथ की यात्रा तथा दर्शन से व्यक्ति धनवान बन सकता है।
【】क्या है श्रीमद्भागवत गीता की सच्चाई
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