विभिन्न वात-विकार के अन्य प्रकार | Different types of diseases associated with vata dosha-part 3

वात की घात सबसे पहले लात (पैरों) पर ही होती है । पैर कमजोर होकर चलने में भय लगता है ।
हम पिछले ब्लॉग (लेख) में 10 तरह  की वातवायु के बारे में बता चुके हैं ।अब आगे पढ़िये

विभिन्न वात-विकार के अन्य प्रकार –
*(11) गुदागत वात वायु*–  खुले में शौच, मल्ल त्याग और अधिक मानसिक तनाव  के कारण
यह वातरोग गुदा
(मलद्वार) की वायु के कुपित होने से होते हैं ।
मल्ल-मूत्र और अधोवायु रुक जाते हैं ।
24 घंटे उदर में शूल, दर्द रहना । पेट अफ़र जाता है ।
पथरी व शर्करा (मधुमेह) रोग हो जाते हैं ।
पिंडली, साथल, कमर,पसली, कंधे
और पीठ में लगातार दर्द  रहता है ।
कम्पन्न, अकड़न,जकड़न, स्लिपडिस्क,
बवासीर, भगन्दर, हमेशा कब्जियत
बनी रहने, भूख न लगना, खून की कमी,
भय-भ्रम, चिंता, आलस्य, टूटन,
आत्मविश्वास में कमी, चक्कर आना,
अनेक रोग उतपन्न होते हैं ।
महिलाओं का मासिक धर्म बिगड़कर
समय से पूर्व बन्द हो जाता है ।
सुबह-सुबह थकान, चिड़चिड़ापन,
क्रोध आता है । भोजन के प्रति अरुचि होने
से कमजोरी आने लगती है  ।

गुदागत वातवायु नामक रोगशरीर को
जीर्ण-शीर्ण कर देता है ।

मन की शांति के लिए कहते हैं-
*क्यों आके रो रहा है गोविंद की गली में*
*हर दर्द की दवा है गोविंद की गली में*
लेकिन तन के रग-रग, रोम-रोम के रोगों
को मिटाने की दवा अमृतम आयुर्वेद  में है ।
अमृतम दवाएँ विकारों को दबाती नहीं हैं,
जड़ से  ठीक करती हैं ।
गुदागत वातवायु हेतु *अमृतम उपाय*
2 अंजीर 5 मुनक्के 200 ml दूध में 100 ml
पानी मिलाकर इतना उबले की दूध 150 ml
रह जाए तब गुनगुना दूध खाली पेट पी
डाले ।

अश्वगंधा, सोंठ, शतावरी, मुलेठी, अजवाइन,
मेथीदाना,जीरा कला नमक, एलुआ,हरड़,ओर सौंफ़ सभी 50-50 ग्राम मिलाकर पाउडर बनाये
इस पाउडर की 200 खुराक बनाकर सुबह-
शाम 1-1 पुड़िया 2 चम्मच ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट 
में अच्छी तरह मिलाकर गुनगुने दूध के
साथ 100 दिन लेवें । इस खतरनाक रोग
का जड़-मूल से नाश हो जाता है  ।
निर्वेदना टेबलेट और अमृतम टेबलेट
दोनों की 2-2 गोली दो बार जल से
लेवें ।

अमृतम मसाज ऑयल की मालिश कर स्नान करें   
अगले ब्लॉग (लेख) में पढ़ें-
*इन्द्रियगत वातवायु के बारे में*
amrutam.co.in पर विस्तार से जानिये—

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