28 जुलाई-विश्व हेपाटाइटिस डे। लिवर प्रॉब्लम से पीड़ितों के लिए…

लिवर प्रॉब्लम 
बारिस के मौसम में सर्वाधिक पनपने वाला एक खतरनाक लिवर रोग। लिवर सोरायसिस, संग्रहणी
 और हेपाटाइटिस जाने-लक्षण, कारण, उपचार एवं WHO की रिपोर्ट:
कैसे पनपता है-यकॄत का संक्रमण यानि हेपेटाइटिस….
6 महीने में पता लगता है- इस बीमारी का 
यह लिवर संक्रमण का सबसे बड़ा कारण है। 
बरसाती सीजन में साल में एक बार हर तीन में से एक को पीलिया होने की सम्भावना बनी रहती है। 
पीलिया का तुरन्त उपचार न करने से यही हेपेटाइटिस के रूप में उत्पन्न होता है। 
भारतवर्ष में हेपेटाइटिस विकार से 3 करोड़ रोगी प्रभावित हैं और इसके कारण अपनी मातृभूमि में 10 लाख लोग 
कम काल में ही काल-कवलित हो जाते हैं। 
 
हैपेटाइटिस ए यह लिवर का  एक विषाणु जनित [Virus borne] रोग है। इस यकॄत में रोगी को काफ़ी चिड़चिड़ापन हो जाता है। इसे विषाणुजनित (वाइरल) यकृतशोथ भी कहते हैं।
 
क्या कारण है-हेपटाइटिस रोग के…
हेपेटाइटिस की यह बीमारी दूषित भोजन ग्रहण करने, दूषित जल और इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलती है। इस

लापरवाही और असावधानियों के साथ भोजन करने अर्थात जल्दी-जल्दी कम चबाये ही भोजन निगलने की वजह से खाना पच नहीं पाता और तब हमार पाचनतंत्र दिनोदिन कमजोर होता  

चला जाता है। ज्यादा आलस्य, सुस्ती, कसरत, अभ्यंग न करना, देर रात में भोजन करना तथा देह की साफ-सफाई न रखना आदि कारणों से यकॄत शोथ/हेपेटाइटिस बीमारी का जन्म होता है। लिवर के इस खतरनाक रोग 
 करीब 6 महीने बाद मालूम चलता है, तब तक लिवर का काम-तमाम हो चुका होता है।
हेपेटाइटिस के लक्षण क्या हैं…
हेपेटाइटिस के लक्षण प्रकट होने से पहले और बीमारी के प्रथम सप्ताह में अंडाणु तैयार होने के पंद्रह से पैंतालीस दिन के बीच रोगी व्यक्ति के मल से यकृतशोथ क विषाणु फैलता है। 
∆~  पेट साफ न होना,
∆~  भूख नहीं लगना
∆~  पेट में दर्द, 
∆~  भोजन से अरुचि
∆~  बार-बार पेट फूलना 
∆~ जी मिचलाना, मितली, उल्टी
∆~ आंखों व त्वचा का पिला हो जाना
∆~ पेशाब गर्म और पीली आना
∆~ शरीर में भारीपन
∆~ सिर, मस्तिष्क में दर्द बने रहना
∆~ हल्का सा बुखार का अहसास
∆~ जोड़ों एवं मांसपेशियों में जबरदस्त दर्द 
∆~ रक्त एवं शरीर के अन्य द्रव्य भी संक्रामक हो सकते हैं। आदि लक्षण प्रकट होने लगते हैं। 
 
 क्या कारण हैं-हेपेटाइटिस के…
 यकॄत की यह संक्रमण जनित बीमारी है, जो लिवर पर हमला कर कमजोर बनाती है। 
 यह वायरस रक्त द्वारा, असुरक्षित यौन सम्बन्ध, सेक्स रिलेशन, उपयोग की गई सुई, वस्त्र, अथवा संक्रमित माता के माध्यम से लिवर को क्षति 
 पहुंचा सकता है। हेपेटाइटिस अनेक तरह के होते हैं लेकिन समस्त वायरस लिवर के लिए हानिप्रद होते हैं।
 
हरेक की हालत खराब और हद कर दी हेपेटाइटिस ने…
हेपाटाइटिस बी वायरस (HBV) के काऱण होने वाली एक संक्रामक बीमारी है जो मनुष्य के यकॄत को भी संक्रमित करती है, जिसके कारण 
यकृतशोथ/लीवर में सूजन और जलन पैदा होती है जिसे हेपाटाइटिस कहते हैं।
विश्व में हेपेटाइटिस करीब 35 करोड़ से अधिक लोग हेपेटाइटिस बी एवं हेपेटाइटिस सी जैसे यकॄत रोग से संक्रमित हैं। पूरे साल में लगभग 10 लाख मरीज मौत के शिकार हो जाते हैं। यह कहना है विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्लूएचओ का।
 
भारत का भार-
देश में कुल कुल 3 करोड़ के आसपास हेपेटाइटिस बी-सी से पीड़ित एवं संक्रमित हैं और वर्ष में मरने वाले 3 लाख हैं।
इस बीमारी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि शुरुआत में पता नहीं चलता। हेपेटाइटिस ए और ई वायरस पीलिया/जॉन्डिस की वजहों में प्रमुख है। यह बरसात के मौसम में ही ज्यादा पनपता है। 
 
 आयुर्वेद में हैं 100 फीसदी उपचार...
 आयुर्वेद के अनेकों महान ग्रन्थ, जो कि 
 50 हजार साल से भी पुराने हैं। 
 काय चिकित्सा, द्रव्यगुण विज्ञान, 
 भावप्रकाश, आयुर्वेद सार संग्रह में 
 यकॄत को शक्तिमान बनाये रखने वाली 
 जड़ीबूटियों का वर्णन है जैसे-
 कालमेघ,मकोय, भुई आंवला, चित्रक, 

 सनाय, अमलताश, धनिया, पुनर्नवा, नागरमोथा,

 गिलोय, मुलेठी, सरफुनखा, करील, गुलाब, गुलकन्द, आँवला मुरब्बा, त्रिफला, त्रिकटु, 
 अजवायन, ताप्यादि लोह, प्रवाल पंचामृत, 
 यकॄत प्लीहारी लोह, स्वर्णमाक्षिक भस्म, 
 आदि 90 से अधिक ओषधियों के बारे में 
 लिखा हुआ है। 
लिवर के स्पर्श दोष यानि इंस्फेक्शन
कहीं आपका लिवर खराब तो नहीं है
कैसे करें – खराब लिवर की पहचान।
कहीं आप यकृत रोग से पीड़ित, तो नहीं हैं?
दिनोदिन आपका लिवर खराब तो नहीं
हो रहा, इन बातों के प्रति आपको सचेत
रहना बेहद जरूरी है, क्योंकि अगर आपका लिवर फंक्सन ठीक से काम नहीं कर रहा है, तो आपको बहुत सी बीमारियों का सामना
करना पड़ सकता है। इनसे बचने के लिए यह जानना जरूरी है कि आपका लिवर ठीक
ढंग से कार्य कर रहा है या नहीं।
भारत में बहुत से लोगों को यकृत रोग हैं अथवा जिन्‍हें लिवर की समस्‍या है किन्‍तु उनकी चिकित्सा सही समय पर, ठीक से नहीं हो पाती।
एक सर्वे में पाया कि भारत में 55% लोग
लिवर की समस्या से परेशान हैं।
यकृत की इस बीमारी से पीड़ित ज्‍यादातर
लोग मोटे होते हैं या फिर, शराब या नशे का सेवन अधिक करते हैं।
 जवानी का नाश
वर्तमान युग में लिवर का रोग अब बुजुर्गों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्‍कि यह अब युवा वर्ग और कम उम्र के लोगों को भी होने लगा है। लिवर की तकलीफ के कारण नवयुवकों
को ज्यादा होने से जवानी में ही बुढ़ापे
के लक्षण प्रतीत होने लगते हैं।
इसका दुष्प्रभाव यह होता है कि वैवाहिक जीवन क्लेश कारक हो जाता है।
जानकारी का अभाव
बहुत ही कम लोगों को यह जानकारी है, कि लिवर जब 70 से 80 फीसदी तक
क्षतिग्रस्त (डैमेज) हो चुका होता है, तब
इसके लक्षण दिखाई देने शुरू होते हैं।
यकृत ठीक तरीके से कार्य नहीं करे,
तो उदर को काफी तकलीफ उठानी
पड़ सकती है।
लीवर में स्पर्श दोष (इंफेक्शन) की वजह कोई पुरानी बीमारी या अनुवांशिक (हेरिडिटी) भी हो सकती है। कोई भी स्थिति जो लिवर को क्षति पहुंचाती है और उसे ठीक से काम करने से रोकती है। ऐसे में लीवर अपना काम सही तरीके से कर पा रहा है या नहीं, ये जानना बेहद ज़रूरी हो जाता है। तो चलिए, आज आपको अमृतम के आर्टिकल में बताते हैं, यकृत विकार होने के कुछ कारण व लक्षण, जिन्हें लीवर खराब होने की स्थिति में जानकर तुरंत आयुर्वेदिक इलाज किया जा सकता है-
पेट में होने वाला दर्द – पेट दर्द की समस्या यूँ तो कई कारणों से हो जाती है लेकिन यदि पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में या पसलियों के नीचे दाहिने भाग में नियमित दर्द रहता है, तो मानिए आपके यकृत (लीवर) में कोई समस्या है।
पेट पर सूजन आना – पेट पर सूजन आने से पेट का बेतुके तरीके से बाहर की ओर निकल जाना “लीवर सिरोसिस रोग” का संकेत है जिसमें पेट में द्रव्य/तरल पदार्थ (फ्लूड) जमा होता जाता है और आँतों (Intestines) से रक्तस्राव होने लगता है और इसकी वृद्धि होने से यकृत में कर्कट रोग यानि लीवर कैंसर भी हो सकता है।
क्या है लीवर सिरोसिस रोग — 
लगातार उदर विकारों के कारण या विभिन्‍न कारणों से लंबे समय में जिगर को होने वाला नुकसान, जिसकी वजह से यकृत में जख्म/घाव हो जाते हैं और जिगर काम करना बंद कर देता है।
त्वचा (स्किन) पर चकत्ते या निशान आना
त्वचा पर लगातार खुजलाहट (इचिंग) होने से पड़ने वाले चकत्ते लीवर की खराबी की ओर संकेत करते हैं। शारीरिक विज्ञान के मुताबिक त्वचा की बाहरी सतह का नम बने रहना ज़रूरी होता है, लेकिन यकृत विकार होने की स्थिति में त्वचा की सतह पर पाए जाने वाले द्रव्य में कमी आने से खाल मोटी, शुष्क हो जाती है और इस पर खुजली वाले चकत्ते पड़ने लगते हैं।
पीलिया (jaundice) होना 
इस रोग में चमडी और श्लेष्मिक झिल्लियों
(Mucous membranes)
के रंग में पीलापन आने लगता है। ऐसा खून में पित्त रस (Bile juice बाइल जूस) की अधिकता के कारण होता है। रक्त में अल्परक्तकणरंजक (बिलरुबिन) हीमोग्लोबिन में पाया जाता है, जो लाल रक्त कोशिका का एक प्रमुख घटक है।
जब पचेगा, तो ही कुछ बचेगा
हमारा लिवर पित्त रस का निर्माण करता है जो भोजन को पचाने और शरीर के पोषण के लिये जरूरी है। यह खाने को आंतों में सडने से रोकता है। इसका काम पाचन प्रणाली (Digestive system) को ठीक रखना है। अगर पित्त ठीक ढंग से आंतों में नहीं पहुंचेगा तो पेट में गैस की शिकायत बढ जाती है और शरीर में जहरीले तत्व एकत्र होने लगते हैं।
पीलिया के लक्षण —
■ आँखों का रंग पीला हो जाए और
■ त्वचा सफ़ेद होने लगे,
■ पेशाब बहुत पीली आने लगे,
■ भूख खत्म हो जाए, तो ये संकेत है खून में पित्त वर्णक बिलीरुबिन का स्तर बढ़ने के, जिसके कारण शरीर से अनावश्यक दूषित पदार्थों का बाहर निकलना संभव नहीं हो पाता और लीवर खराब होने का ये लक्षण पीलिया के रूप में दिखाई देता है।
बेचैनी रहना – अम्लपित्त (एसिडिटी) और अपच जैसी पाचन सम्बन्धी परेशानियों का प्रभाव भी लीवर पर पड़ सकता है, जिससे लीवर क्षतिग्रस्त अर्थात डैमेज हो सकता है। रोग के रूप में जी मिचलाना और उल्टी आने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
वजन कम होते जाना – अपने-आप तेज़ी से वजन कम होतेे जाना अच्छा संकेत नहीं होता है। यकृत विकार के कारण भूख लगती ही नहीं है या फिर, कम लगने लगती है जिसकी वजह से वजन कम होता जाता है। इसका अहसास होने पर तुरंत आयुर्वेदिक इलाज करवाना बेहद ज़रूरी है। इसके लिए
कीलिव माल्ट बहुत ही विलक्षण ओषधि है।
मल में होने वाले परिवर्तन – 5 लक्षण
लीवर खराब होने की स्थिति में
{{१}} समय पर पेट साफ नहीं होता,
{{२}} कब्ज़ की शिकायत रहने लगती है,
{{३}} मल सूखकर कड़ा आता है।
{{४}} मल के साथ खून आने लगता है और
{{५}} मल का रंग मटमैला, काले रंग का हो जाता है। इन लक्षणों को नज़रअंदाज़ न करें।
मूत्र में परिवर्तन – लीवर पित्त का निर्माण करता है लेकिन लीवर खराब होने पर रक्त में पित्त वर्णक बिलीरूबिन का स्तर बढ़ जाता है जिसके कारण मूत्र का रंग गहरा पीला हो जाता है और खराब हो जाने के कारण लीवर इस बढ़े हुए वर्णक को किडनी के ज़रिये बाहर निकाल नहीं पाता है।
शरीर के अन्य भागों में सूजन – पैरों, टखनों और तलुओं में तरल जमा होने लगता है, जिससे इन भागों में सूजन आ जाती है और ये यकृत के गंभीर रूप से खराब होने का लक्षण है। इस स्थिति में जब आप त्वचा/स्किन के सूजन वाले भाग को दबाते हैं, तो दबाने के काफी देर बाद तक भी वो स्थान दबा हुआ रहता है।
थकान महसूस होना
सामान्य रूप से रोज़ाना थोड़ी थकान महसूस होना स्वाभाविक है लेकिन अगर अत्यधिक थकान महसूस होने लगे, चक्कर आने लगे और मांसपेशियों में कमज़ोरी महसूस हो, तो ये लीवर के पूरी तरह खराब होने के संकेत हैं। इसके अलावा
त्वचा का रूखा होना कभी-कभी लिवर की खराबी का नतीजा भी होता है।
जिगर की बीमारी की वजह से कभी समय पर नींद आने का चक्र भी गड़बड़ा जाता है
और भ्रम जैसी स्थिति बनने लगती है जिससे व्यवहार में भी बदलाव आने लगते हैं। याददाश्त भी कमजोर होने लगती है।
लीवर फेल हो जाने की स्थिति में सन्यास (कोमा) में जाने के हालात भी बन सकते हैं।
मितली आना
यदि लिवर को तकलीफ होती है, तो इंसान को बार बार मितली या उबकाई आने जैसा लगता है। कई केसों में उल्‍टी के साथ खून के थक्‍के भी दिखाई देते हैं।
नींद ना आना 
लिवर अगर खराब होने लगता है तो रोगी को नींद कम आती है। दिनभर आलस्य से भरा हुआ, थका हुआ दिखाई देता है और सुस्‍त नजर आता है।
बार-बार बुखार आना
लिवर की खराबी की वजह से रोगी को बुखार आता है और उसके मुंह का स्‍वाद बिगड़ जाता है। यही नहीं, उसके मुंह से बदबू भी आने लगती है।
भूख न लगना 
इस दौरान रोगी को भूख नहीं लगती और उसके पेट में गैसबदहजमी
 और एसिडिटी की समस्‍या बनने लगती है। यही नहीं इससे उसके सीने में जलन और भारीपन की भी शिकायत बढ़ जाती है। इसके साथ ही छाती में जलन और पेट और सिर में भारीपन भी होता है।
फीवर न होने पर भी मुंह का स्वाद खराब हो जाना और लगातार कड़वापन बना रहना, यह भी लीवर की खराबी के कारण हो सकता है। यही नहीं लिवर की खराबी होने पर अमोनिया की अधिकता के कारण मुंह से बदबू आना भी शुरू हो जाता है।
यकृत में विकार होने से पहले शरीर देता है ये संकेत… पहचाने लिवर की खराबी के ये 7 लक्षण 
यकृत की तकलीफ या लिवर की खराबी अब बच्चों व नई उम्र की पीढ़ी में भी देखने को मिलने लगी है। लिवर के खराब होने पर शरीर को कुछ संकेत मिलते हैं। जैसे –
【1】आंखों में पीलापन,
【2】खून की कमी,
【3】बहुत दिनों तक भूख न लगना,
【4】कमजोरी, चक्कर आना
【5】भोजन न पचना,
【6】बार-बार बुखार/फीवर आन
【7】अत्यधिक थकान होने, ये लिवर में परेशानी होने के लक्षण हैं।
【8】उल्‍टी जैसा मन रहता हो,
तो आपको भी यह आलेख/ब्लॉग जरूर पढ़ना चाहिये।
ऐसे में लीवर जैसा शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग यदि खराब होने लगे, तो ये गंभीर बीमारी का रूप ले सकता है। ऐसे में आप अपने शरीर में होने वाले हर छोटे बड़े परिवर्तन के प्रति चेतन्य रहिये, ताकि समय रहते यकृत विकारों की गंभीर बीमारियों से बचा जा सके और आप हमेशा यूँ ही स्वस्थ-तंदरुस्त बने रह सकें
अपने लिवर को स्वस्थ रखने के लिए ज़रूरी है,
कीलिव माल्ट तत्काल लेना शुरू कर दें, ताकि  शरीर का हर एक अंग अपना कार्य सही तरीके से करता रहे।

लिवर सोरायसिस को आयुर्वेदिक ग्रन्थों में गृहिणी, संग्रहणी यकृत विकार बताया है। यह इसी की वजह से होता है। यही रोग पेट और लिवर की खराबी बहुत से रोगों का कारण बन सकता है-

क्या आप कब्ज की शिकायत, पेट की बीमारियों से जूझ रहे हैं? ऐसा न हो कि- गृहिणी रोग से पीड़ित हैं…

यकृत विकार से ही गृहिणी या संग्रहणी रोग

इसे नई खोज एवं वैज्ञानिक भाषा में

इरिटेबल बॉएल सिंड्रोम (आईबीएस ibs)

Irritable Bowel Syndrome रोग बताया

जा रहा है। ibs की इस तकलीफ से दुनिया में

68% से भी ज्यादा लोग पीड़ित हैं-

अनियमित मलत्याग,

एक बार में पेट साफ न होना,

मल का सूख जाना,

आवँ और बार-बार शौच जाने का कारण भी लिवर सोरायसिस हो सकता है।

यह यकृत की कैंसर के बाद सबसे असाध्य एवं गंभीर बीमारी है, इस बीमारी का उपचार यकृत प्रत्यारोपण के अलावा अन्य कोई नहीं है।

निम्नलिखित कारण हैं- यकृत व्याधि लिवर सोरायसिस होने के…

पेट तथा लिवर के इन असाध्य उदर विकारों का स्थाई इलाज केवल घर के मसालों में, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद में ही सम्भव है।

उपरोक्त पेट की बीमारियों का जड़ मूल से मुक्ति

पाने के लिए असरकारी आयुर्वेद योग-घटक से

निर्मित अमॄतम कीलिव माल्ट KEYLIV Malt

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100% आयुर्वेदिक ओषधियाँ तीन महीने तक नियमित ले सकते हैं। केवल ऑनलाइन उपलब्ध है।

अंग्रेजी, एलोपैथिक या अन्य रसायनिक दवाओं में

लिवर सोरायसिस का कारगर इलाज नहीं है।

कैसे पनपता है-लिवर सोरायसिस…

यदि आप लम्बे समय से कब्ज की शिकायत,

पेट की बीमारियों से जूझ रहे हैं, तो भविष्य में

लिवर सोरायसिस होने का संकेत है।

डेली न्यूज पेपर टाइम्स ऑफ इंडिया अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित एक आर्टिकल के अनुसार भारतवर्ष में हर साल लगभग 10 से 12 लाख लोग लिवर सोरायसिस रोग से संक्रमित होकर बीमार या शिकार हो जाते हैं।

डब्लूएचओ यानि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने प्रकाशित शोध में बताया कि इंडिया में अधिकांश मरीजों का उपचार ठीक वक्त पर न होने के कारण बहुत से रोगियों की मौत अल्प समय में ही हो जाती है।

रोग के लक्षण….

लीवर सोरायसिस की शुरुआत पित्त दोष, लगातार कब्ज होने पर होती है।

यकृत रोगी कमजोरी, चक्कर आना, भूख न लगना एवं स्वयं को

अस्वस्थ्य थका-थका महसूस करता है।

रोगी को आरम्भ में कोई विशेष तकलीफ

का अनुभव नहीं होता लेकिन जैसे-जैसे

परेशानी या लिवर की बीमारी बढ़ने लगती है लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं।

इनमें से कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार है.

◆पेट की खराबी,

◆अग्निमान्द्य (Anorexia)

◆कामला, पीलिया (Jaundice),

◆अपच, अनिच्छा,

◆पाण्डु रोग यानि नवीन रक्त न बनना,

◆ खून की कमी,

◆अरुचि (खाने की इच्छा न होना),

◆भूख न लगना

◆कभी दस्त लगना, तो कभी कब्ज होना,

◆लिवर का बढ़ना (यकृत वृद्धि)

◆लिवर में सूजन (यकृतशोथ),

◆अजीर्ण (Dyspepsia),

◆छर्दी-वमन-कै- (वोमिटिंग),

◆उल्टी जैसा मन रहना,

◆पित्त सा निकलना

◆मल्लवद्धता,

◆कोष्ठवद्धता

◆एक बार में पेट साफ न होना

◆हमेशा कब्जियत बनी रहना,

◆आनाह–वद्ध कोष्ठ कब्ज (Constipation)

आदि अनभिज्ञ अंदरुनी यकृत रोग संग्रहणी रोग की श्रेणी में आते हैं।

भूख कम लगना औ ऊर्जा का कम होना (थकान), वजन में कमी या फिर अचानक वजन का बढ़ जाना,चोट के निशान की तरह शरीर पर लाल-लाल चकते आना,त्वचा व आंखों का रंग पीलापनयुक्त होना,त्वचा में खुजलाहट,एड़ी के जोड़ पर एडिमा होना, सुजन होना तथा पैर और पेट में भी सुजन के लक्षण दिख सकते है,मूत्र का रग भूरां या संतरे के रंग का होना,मल का रंग बदल जाना भ्रम, अनिर्णय, स्थितिभ्रांति जैसी स्थिति का होना या फिर व्यक्तित्व में अन्य कई तरह के बदलाव आना,मल में रक्त आना, बुखार होना इत्यादी लीवर सिरोसिस की पहचान कैसे होगी? लीवर रोग के विशेषज्ञ चिकित्सक इस बीमारी का बड़ी आसानी से पहचान कर लेते हैं. बस उन्हें कुछ शारीरिक जांच या बहुत हुआ तो कुछ रक्त जांच कराने की जरुरत होती है, इस जांच लीवर फंक्शन टेस्ट औक कंप्यूट टोमोग्राफी ( सीटी स्कैन), अल्ट्रासाउंड या फिर एक विशेष जांच फाइब्रोस्कैन से आसानी से इस बीमारी की डायग्नोसिस किया जा सकता है.

लिवर सोरायसिस का मूल कारण…

शराब का अत्यधिक मात्र में सेवन

हेपेटाइटिस बी और वायरल सी का संक्रमण

रक्तवर्णकता (इसमें रुधिर में लौह तत्व की मात्रा बढ़ जाती है।)

गैर मादक स्टीटोहेपेटाइटिस (लीवर में वसा का जमाव हो जाने से लीवर धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है। मोटापा, डायबिटीज लीवर सिरोसिस का प्रमुख कारण है।)

निदान/इलाज/उपचार/चिकित्सा

जीवन की आपाधापी में अपने पेट की

परेशानियों को भी समझें…

¥ समय पर भूख न लगना और खाना

खाने के बाद भोजन न पचना,

¥ पेट में गुड़गुड़ाहट होते रहना,

¥ पेट में अक्सर दर्द बने रहना,

¥ पेट पर कब्ज का कब्जा होना,

¥ एक बार में पेट साफ न होना

¥ गैस की समस्या, एसिडिटी, अम्लपित्त

आदि तकलीफें पाचनशक्ति (डाइजेशन)

कमजोर होने की वजह से होने लगती है।

पाचन की पीड़ा होने पर…..

पाचनतंत्र की कमजोरी का कारण यह भी है कि जिस देश का वातावरण गर्मिला है या जिसकी जलवायु गरम है। ऐसे स्थानों पर लोगों के शरीर के आंतरिक अंग ठंडे या क्रियाहीन होने लगते हैं और दुष्परिणाम स्वरूप उन मनुष्यों के शरीर की नैसर्गिक ऊष्मा घटने लग जाती है। जिससे पाचन शक्ति दिनोदिन कमजोर पड़ने लगती है।

कैसे उठे उदर रोगों से ऊपर….

अतः ऐसे लोगों को निरन्तर यकृत सुरक्षा हेतु

घर में उपयोगी तथा आयुर्वेदिक दवाओं का नियमित उपयोग करना चाहिए। जैसे-

@ घर का बना जीरा, हींग युक्त मठ्ठा,

@ जीरा, @ मीठा नीम, @ अजवायन,

@ धनिया, @ कालीमिर्च, @ सौंफ,

@ गुलकन्द, @ मुनक्का, @ किसमिस,

@ पिंडखजूर, @ अनारदाना, @ अंजीर,

@ अमरूद, @ मीठा दही, @ हरीतकी

@ गर्म, गुनगुना दूध, @ आँवला मुरब्बा,

@ शुण्ठी एवं @ पंचामृत पर्पटी,

@ रस पर्पटी, @ स्वर्ण पर्पटी,

@ शंख भस्म @ मकोय, @ पुर्ननवा

@ घर में बने त्रिफला का जूस या काढ़ा,

@ सेंधा नमक और कालानमक

आदि लेना अत्यन्त लाभकारी होता है।

लिवर की लगातार खराबी हो तथा पित्त की वृद्धि रोकने के लिए भोजन के बाद गुलकन्द, लौंग युक्त मीठा पान जरूर खाना चाहिए। पान खाकर इसकी पीक गटकना फायदेमंद होता है।

इन्हें छोड़कर चलो…

पेट से पीड़ित लोगों को रात्रि में अरहर,

तुअर की दाल, दही, जूस, फल आदि त्यागना हितकारी रहता है।

आयुर्वेद की अधिक जानकारी के लिए

amrutampatrika/अमृतमपत्रिका

गुग्गल पर सर्च करें।

कीलिव के 17 फायदे | 

17 Benefits of Keyliv

।।अमृतम।।

कीलिव स्ट्रांग सिरप

कीलिव कैप्सूल

(यकृत रोगों की खास दवा)  

Specific for liver troubles

“कीलिव” यकृत एवं प्लीहा

की सम्पूर्ण समस्या निराकरण हेतु

बहुत ही लाभकारी ओषधि है।

चिकित्सा ग्रन्थों में उल्लेख है कि वर्षा ऋतु में लिवर की विशेष सुरक्षा करना चाहिए।

इन दिनों प्रदूषित जल के कारण अनेकों बीमारी

पनपने लगती है। इसके लिये कीलिव माल्ट

तन रक्षक के रूप में अटूट विश्वसनीय ओषधि है।

पुराना खानपान प्राचीन काल में पहले गाँव के

लोग यकृत की रक्षा हेतु “मकोय एवं पुर्ननवा की

भाजी (सब्जी) बनाकर खाने के साथ खाया करते थे यह पुराने समय से लिवर की प्राकृतिक

सर्वोत्तम दवा है।

कीलिव के घटक द्रव्य

धनिया,

नागरमोथा

निशोथ

कुटकी

कालमेघ

करील

गुलकन्द

वायविडंग

शुण्ठी

पिप्पली

अजवायन

हरीतकी मुरब्बा

आंवला मुरब्बा

भृङ्गराज

अर्जुन छाल

आदि जड़ी बूटियाँ हैं

जो सदियों से लिवर को

क्रियाशील व मजबूत

बनाने में उपयोगी हैं। इन सबको एक विशेष विधि से काढ़ा बनाकर कीलिव माल्ट में मिलाया गया है।

जीर्ण, गम्भीर एवं घातक यकृत रोगों में सदपरिणाम की सुनिश्चितता के लिए

जिन्दगी भर इसका सेवन अत्यन्त हितकारी है।

शल्य चिकित्सा संबंधित व्याधियों को छोड़कर 

अधिकांश यकृत विकारों के लिये कीलिव माल्ट तुरन्त असरकारक अचूक ओषधि है।

दूषित पाचन तन्त्र को शुध्द करने में यह चमत्कारी है।

कीलिव से 17 फायदे

1-चयापचय विकार

(Metabolic disorders)

2-लिवर में सूजन

3-भोजन का समय पर न पचना

4-उदरी ( Dropsy)

5-यकृत वृद्धि

6-खून का कम बनना

7-भूख की कमी

8-खाने की इच्छा न होना

9-पांडु पीलिया वृद्धि

10-पाचन सम्बन्धी विकार

11-रक्तसंचार की शिथिलता

12-रक्ताल्पता

13-गुल्म

14-संग्रहणी

15-आंतों की निर्बलता

16-अरुचि

17-यकृत की न्यून कार्यक्षमता आदि

बीमारियों को दूरकर ठीक

करने में सहायक है।

यकृत व पेट के रोगों से 

परेशान लोगों को एक बार

इसका इस्तेमाल जरूर करना चाहिए।

इसमें डाली गई “मंडूर भस्म“

रक्ताल्पता अर्थात खून की कमी

दूर करने के लिए बहुत ही फायदेमंद है।

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