सनाय, अमलताश, धनिया, पुनर्नवा, नागरमोथा,
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लिवर सोरायसिस को आयुर्वेदिक ग्रन्थों में गृहिणी, संग्रहणी यकृत विकार बताया है। यह इसी की वजह से होता है। यही रोग पेट और लिवर की खराबी बहुत से रोगों का कारण बन सकता है-
क्या आप कब्ज की शिकायत, पेट की बीमारियों से जूझ रहे हैं? ऐसा न हो कि- गृहिणी रोग से पीड़ित हैं…
यकृत विकार से ही गृहिणी या संग्रहणी रोग
इसे नई खोज एवं वैज्ञानिक भाषा में
इरिटेबल बॉएल सिंड्रोम (आईबीएस ibs)
Irritable Bowel Syndrome रोग बताया
जा रहा है। ibs की इस तकलीफ से दुनिया में
68% से भी ज्यादा लोग पीड़ित हैं-
अनियमित मलत्याग,
एक बार में पेट साफ न होना,
मल का सूख जाना,
आवँ और बार-बार शौच जाने का कारण भी लिवर सोरायसिस हो सकता है।
यह यकृत की कैंसर के बाद सबसे असाध्य एवं गंभीर बीमारी है, इस बीमारी का उपचार यकृत प्रत्यारोपण के अलावा अन्य कोई नहीं है।
निम्नलिखित कारण हैं- यकृत व्याधि लिवर सोरायसिस होने के…
पेट तथा लिवर के इन असाध्य उदर विकारों का स्थाई इलाज केवल घर के मसालों में, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद में ही सम्भव है।
उपरोक्त पेट की बीमारियों का जड़ मूल से मुक्ति
पाने के लिए असरकारी आयुर्वेद योग-घटक से
निर्मित अमॄतम कीलिव माल्ट KEYLIV Malt
कीलिव स्ट्रांग सिरप, कीलिव कैप्सूल यह सभी
100% आयुर्वेदिक ओषधियाँ तीन महीने तक नियमित ले सकते हैं। केवल ऑनलाइन उपलब्ध है।
अंग्रेजी, एलोपैथिक या अन्य रसायनिक दवाओं में
लिवर सोरायसिस का कारगर इलाज नहीं है।
कैसे पनपता है-लिवर सोरायसिस…
यदि आप लम्बे समय से कब्ज की शिकायत,
पेट की बीमारियों से जूझ रहे हैं, तो भविष्य में
लिवर सोरायसिस होने का संकेत है।
डेली न्यूज पेपर टाइम्स ऑफ इंडिया अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित एक आर्टिकल के अनुसार भारतवर्ष में हर साल लगभग 10 से 12 लाख लोग लिवर सोरायसिस रोग से संक्रमित होकर बीमार या शिकार हो जाते हैं।
डब्लूएचओ यानि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने प्रकाशित शोध में बताया कि इंडिया में अधिकांश मरीजों का उपचार ठीक वक्त पर न होने के कारण बहुत से रोगियों की मौत अल्प समय में ही हो जाती है।
रोग के लक्षण….
लीवर सोरायसिस की शुरुआत पित्त दोष, लगातार कब्ज होने पर होती है।
यकृत रोगी कमजोरी, चक्कर आना, भूख न लगना एवं स्वयं को
अस्वस्थ्य थका-थका महसूस करता है।
रोगी को आरम्भ में कोई विशेष तकलीफ
का अनुभव नहीं होता लेकिन जैसे-जैसे
परेशानी या लिवर की बीमारी बढ़ने लगती है लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं।
इनमें से कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार है.
◆पेट की खराबी,
◆अग्निमान्द्य (Anorexia)
◆कामला, पीलिया (Jaundice),
◆अपच, अनिच्छा,
◆पाण्डु रोग यानि नवीन रक्त न बनना,
◆ खून की कमी,
◆अरुचि (खाने की इच्छा न होना),
◆भूख न लगना
◆कभी दस्त लगना, तो कभी कब्ज होना,
◆लिवर का बढ़ना (यकृत वृद्धि)
◆लिवर में सूजन (यकृतशोथ),
◆अजीर्ण (Dyspepsia),
◆छर्दी-वमन-कै- (वोमिटिंग),
◆उल्टी जैसा मन रहना,
◆पित्त सा निकलना
◆मल्लवद्धता,
◆कोष्ठवद्धता
◆एक बार में पेट साफ न होना
◆हमेशा कब्जियत बनी रहना,
◆आनाह–वद्ध कोष्ठ कब्ज (Constipation)
आदि अनभिज्ञ अंदरुनी यकृत रोग संग्रहणी रोग की श्रेणी में आते हैं।
भूख कम लगना औ ऊर्जा का कम होना (थकान), वजन में कमी या फिर अचानक वजन का बढ़ जाना,चोट के निशान की तरह शरीर पर लाल-लाल चकते आना,त्वचा व आंखों का रंग पीलापनयुक्त होना,त्वचा में खुजलाहट,एड़ी के जोड़ पर एडिमा होना, सुजन होना तथा पैर और पेट में भी सुजन के लक्षण दिख सकते है,मूत्र का रग भूरां या संतरे के रंग का होना,मल का रंग बदल जाना भ्रम, अनिर्णय, स्थितिभ्रांति जैसी स्थिति का होना या फिर व्यक्तित्व में अन्य कई तरह के बदलाव आना,मल में रक्त आना, बुखार होना इत्यादी लीवर सिरोसिस की पहचान कैसे होगी? लीवर रोग के विशेषज्ञ चिकित्सक इस बीमारी का बड़ी आसानी से पहचान कर लेते हैं. बस उन्हें कुछ शारीरिक जांच या बहुत हुआ तो कुछ रक्त जांच कराने की जरुरत होती है, इस जांच लीवर फंक्शन टेस्ट औक कंप्यूट टोमोग्राफी ( सीटी स्कैन), अल्ट्रासाउंड या फिर एक विशेष जांच फाइब्रोस्कैन से आसानी से इस बीमारी की डायग्नोसिस किया जा सकता है.
लिवर सोरायसिस का मूल कारण…
शराब का अत्यधिक मात्र में सेवन
हेपेटाइटिस बी और वायरल सी का संक्रमण
रक्तवर्णकता (इसमें रुधिर में लौह तत्व की मात्रा बढ़ जाती है।)
गैर मादक स्टीटोहेपेटाइटिस (लीवर में वसा का जमाव हो जाने से लीवर धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है। मोटापा, डायबिटीज लीवर सिरोसिस का प्रमुख कारण है।)
निदान/इलाज/उपचार/चिकित्सा
जीवन की आपाधापी में अपने पेट की
परेशानियों को भी समझें…
¥ समय पर भूख न लगना और खाना
खाने के बाद भोजन न पचना,
¥ पेट में गुड़गुड़ाहट होते रहना,
¥ पेट में अक्सर दर्द बने रहना,
¥ पेट पर कब्ज का कब्जा होना,
¥ एक बार में पेट साफ न होना
¥ गैस की समस्या, एसिडिटी, अम्लपित्त
आदि तकलीफें पाचनशक्ति (डाइजेशन)
कमजोर होने की वजह से होने लगती है।
पाचन की पीड़ा होने पर…..
पाचनतंत्र की कमजोरी का कारण यह भी है कि जिस देश का वातावरण गर्मिला है या जिसकी जलवायु गरम है। ऐसे स्थानों पर लोगों के शरीर के आंतरिक अंग ठंडे या क्रियाहीन होने लगते हैं और दुष्परिणाम स्वरूप उन मनुष्यों के शरीर की नैसर्गिक ऊष्मा घटने लग जाती है। जिससे पाचन शक्ति दिनोदिन कमजोर पड़ने लगती है।
कैसे उठे उदर रोगों से ऊपर….
अतः ऐसे लोगों को निरन्तर यकृत सुरक्षा हेतु
घर में उपयोगी तथा आयुर्वेदिक दवाओं का नियमित उपयोग करना चाहिए। जैसे-
@ घर का बना जीरा, हींग युक्त मठ्ठा,
@ जीरा, @ मीठा नीम, @ अजवायन,
@ धनिया, @ कालीमिर्च, @ सौंफ,
@ गुलकन्द, @ मुनक्का, @ किसमिस,
@ पिंडखजूर, @ अनारदाना, @ अंजीर,
@ अमरूद, @ मीठा दही, @ हरीतकी
@ गर्म, गुनगुना दूध, @ आँवला मुरब्बा,
@ शुण्ठी एवं @ पंचामृत पर्पटी,
@ रस पर्पटी, @ स्वर्ण पर्पटी,
@ शंख भस्म @ मकोय, @ पुर्ननवा
@ घर में बने त्रिफला का जूस या काढ़ा,
@ सेंधा नमक और कालानमक
आदि लेना अत्यन्त लाभकारी होता है।
इन्हें छोड़कर चलो…
पेट से पीड़ित लोगों को रात्रि में अरहर,
तुअर की दाल, दही, जूस, फल आदि त्यागना हितकारी रहता है।
आयुर्वेद की अधिक जानकारी के लिए
amrutampatrika/अमृतमपत्रिका
गुग्गल पर सर्च करें।
कीलिव के 17 फायदे |
17 Benefits of Keyliv
।।अमृतम।।
कीलिव स्ट्रांग सिरप
कीलिव कैप्सूल
(यकृत रोगों की खास दवा)
Specific for liver troubles
“कीलिव” यकृत एवं प्लीहा
की सम्पूर्ण समस्या निराकरण हेतु
बहुत ही लाभकारी ओषधि है।
चिकित्सा ग्रन्थों में उल्लेख है कि वर्षा ऋतु में लिवर की विशेष सुरक्षा करना चाहिए।
इन दिनों प्रदूषित जल के कारण अनेकों बीमारी
पनपने लगती है। इसके लिये कीलिव माल्ट
तन रक्षक के रूप में अटूट विश्वसनीय ओषधि है।
पुराना खानपान प्राचीन काल में पहले गाँव के
लोग यकृत की रक्षा हेतु “मकोय एवं पुर्ननवा की
भाजी (सब्जी) बनाकर खाने के साथ खाया करते थे यह पुराने समय से लिवर की प्राकृतिक
सर्वोत्तम दवा है।
कीलिव के घटक द्रव्य
धनिया,
नागरमोथा
निशोथ
कुटकी
कालमेघ
करील
गुलकन्द
वायविडंग
शुण्ठी
पिप्पली
अजवायन
हरीतकी मुरब्बा
आंवला मुरब्बा
भृङ्गराज
अर्जुन छाल
आदि जड़ी बूटियाँ हैं
जो सदियों से लिवर को
क्रियाशील व मजबूत
बनाने में उपयोगी हैं। इन सबको एक विशेष विधि से काढ़ा बनाकर कीलिव माल्ट में मिलाया गया है।
जीर्ण, गम्भीर एवं घातक यकृत रोगों में सदपरिणाम की सुनिश्चितता के लिए
जिन्दगी भर इसका सेवन अत्यन्त हितकारी है।
शल्य चिकित्सा संबंधित व्याधियों को छोड़कर
अधिकांश यकृत विकारों के लिये कीलिव माल्ट तुरन्त असरकारक अचूक ओषधि है।
दूषित पाचन तन्त्र को शुध्द करने में यह चमत्कारी है।
कीलिव से 17 फायदे
1-चयापचय विकार
(Metabolic disorders)
2-लिवर में सूजन
3-भोजन का समय पर न पचना
4-उदरी ( Dropsy)
5-यकृत वृद्धि
6-खून का कम बनना
7-भूख की कमी
8-खाने की इच्छा न होना
9-पांडु पीलिया वृद्धि
10-पाचन सम्बन्धी विकार
11-रक्तसंचार की शिथिलता
12-रक्ताल्पता
13-गुल्म
14-संग्रहणी
15-आंतों की निर्बलता
16-अरुचि
17-यकृत की न्यून कार्यक्षमता आदि
बीमारियों को दूरकर ठीक
करने में सहायक है।
यकृत व पेट के रोगों से
परेशान लोगों को एक बार
इसका इस्तेमाल जरूर करना चाहिए।
इसमें डाली गई “मंडूर भस्म“
रक्ताल्पता अर्थात खून की कमी
दूर करने के लिए बहुत ही फायदेमंद है।
अमृतम के और भी हर्बल प्रोडक्ट
की जानकारी हेतु हमारी वेवसाइट देखें।
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