5 तरह के ऋण न चुका पाने के कारण लगता है – पितृदोष

पार्ट-1, मातृऋण

क्या आपको मालूम है-

सन्सार में प्रत्येक प्राणी के ऊपर 5 प्रकार के ऋण हमेशा बने रहते हैं!
【१】मातृ ऋण यानि माँ का कर्ज
【२】पितृ यानि पिता का ऋण
【३】मनुष्य ऋण यानि मित्र, मजदूर, सहयोगियों के कर्जा
【४】देव ऋण
【५】ऋषि ऋण।
इस लेख में हम सबसे पहले मातृ ऋण की चर्चा करेंगे।
माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा है। सृष्टि में केवल माँ ही पूर्ण है बाकी सब अपूर्ण है।  भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार हर महीने पूर्णिमा (पूर्ण+माँ) तिथि पड़ती है। इस तिथि को हमेशा अपनी माँ की सेवा, स्मरण तथा देवी माँ दुर्गा, काली या किसी की भी आराधना करने से कभी धन की कमी नहीं होती। देवी भागवत, दुर्गा सप्तशती रहस्य, कालितन्त्र आदि पुस्तकों में इसकी लंबी व्याख्या की गई है।
किन-किन का ऋण रहता है हमारे ऊपर..
मातृऋण में हमारी जन्मदात्री माँ तथा माता पक्ष के लोग जिसमें मामा-मामी, नानी-नाना, मौसी-मौसा और इनके पीछे के तीन पूर्वजों का मातृऋण जन्मों-जन्मों तक हम पर बना रहता है।
ज्योतिष के अनुसार भवन, भूमि, वाहन आदि का सुख और मानसिक शांति 
माँ की कृपा से ही मिलता है……
ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार माता को आत्मा का आधार माना गया है। जन्म पत्रिका में माँ का स्थान चौथा भाव है।
इससे समृद्धि, वाहन-भवन, परोपकार-प्रसिद्धि, आत्मविश्वास, आत्मा की शांति और स्थाई सम्पत्ति तथा ससुर यानि पत्नी के पिता आदि का विचार किया जाता है।
भुवनेश्वरी सहिंता, महाविद्या सूत्र, मन्त्र महार्णव, लक्ष्मी तन्त्र आदि ग्रंथों में बताया है कि जो लोग अपनी माँ को तकलीफ देकर दिल दुखाते हैं, उनके यहां कभी लक्ष्मी, धन-सम्पदा नहीं टिकती। जातक कभी खुद का मकान नहीं बना पाता। स्वसुर से तालमेल नहीं बैठ पाता। भयंकर मानसिक अशांति रहती है।
माँ की मान्यता….
जन्म कुंडली में चौथा स्थान जो-जो चीजों का आधार या कारक है। माँ का मन दुखाने से व्यक्ति को उससे सम्बंधित नुकसान उठाना पड़ता है। याद रखे अथाह धन-सम्पदा सदैव माँ के आशीर्वाद से ही आती है।
एक दुर्लभ ग्रन्थ “वरिवस्या रहस्य” में लिखा है कि…..
धन की रखवाली हमेशा स्त्री ही करती है।
बरक्कत स्त्री के हाथ में ही होती है। वह हमेशा अपने मन को, इच्छाओं को मारकर धन एकत्रित कर घर-मकान का निर्माण करवाती है। भविष्य में बेटे-बेटियों के सुखमय जीवन के लिए स्वर्ण-चांदी आदि के गहने बनबाकर रखती है, ताकि आने वाली पीढ़ी सुखी-सम्पन्न रह सके। माँ हमेशा अपना पेट काटकर बच्चों का पेट भरती है
किसी अज्ञात शायर ने लिखा कि-
स्याही खत्म हो गयी “माँ”-‘माँ’ लिखते!
उसके प्यार की दास्तान इतनी लंबी थी!!
 
प्रसिद्ध शायर मुनव्वर राना लिखते हैं
हालात बुरे थे मगर अमीर बनाकर रखती थी,
हम गरीब थे, ये बस हमारी माँ जानती थी
 
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है।
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है, तो रो देती है।।
 
किसी माँ भक्त अज्ञात ने लिखा है कि
मांगने पर जहाँ पूरी हर मन्नत होती है,
माँ के पैरों में ही तो वो जन्नत होती है।

एक दुनिया है जो समझाने से भी,

नहीं समझती,
एक माँ थी बिन बोले सब 
समझ जाती थी – अज्ञात
 
मोहम्मद अली साहिल लिखते हैं–
दूर रहती हैं सदा उन से बलाएँ ‘साहिल’,
अपने माँ बाप की जो रोज़ दुआ लेते हैं!
असलम कोलसरी ने कहा था…
शहर में आ कर पढ़ने वाले भूल गए!
किस की माँ ने कितना ज़ेवर बेचा था!!

100 की एक बात इतनी सी है कि जिसने माँ का दिल दुखा दिया, उसका संसार में तो क्या, इस अनंत ब्रह्माण्ड के मालिक महाकाल भी भला नहीं कर सकते हैं। माँ कैसी भी हो आखिर वह मां ही होती है। 
शब्दों का मायाजाल….
माँ ही एक ऐसा शब्द है जिसके बोलने पर दोनों ओठों को जोड़ना पड़ता है। हंसोपनिषद में उल्लेख है-नीचे का ओंठ प्रथ्वी या प्रकृति का और ऊपर का होंठ आकाश का प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि
माँ उच्चारण से अर्धनारीश्वर की उपासना हो जाती है। जो लोग मानसिक रूप से व्यथित रहते हैं, उन्हें प्रतिदिन हमेशा चलते फिरते माँ-माँ बोलना चाहिए। इस क्रिया से शरीर में एक विशेष ऊर्जा का संचार होता है।
विशेष आग्रह- शास्त्रों में मातृऋण
को सबसे बड़ा कहा गया है। इसका उपाय बहुत जरूरी है। जब तक माँ का आशीर्वाद नहीं मिलता, तब तक स्थाई सम्पत्ति, सुख-समृद्धि नहीं मिलती।
मातृऋण की चिकित्सा-
किसी योग्य वैदिक ब्राह्मण द्वारा माँ की पुण्य तिथि पर किसी जल क्षेत्र नदी, तालाब किनारे त्रिपिंडी श्राद्ध कराकर उनकी आत्मा की शान्ति हेतु प्रार्थना करना हितकारी होता है। 
माँ के बारे में अभी बहुत बताना बाकी है।
अगले लेख में पितृऋण के विषय में दिलचस्प जानकारी के लिए
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महादेव की महानता
माँ की कृपा प्राप्ति के लिए हमेशा शिवजी की साधना करने से कभी स्थाई सम्पत्ति का नाश नहीं होता। संतान कष्ट या संतान होना आदि तकलीफों से छुटकारा मिलता है।

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