5000 साल पहले भारत में ही हुआ था-विमान का अविष्कार. “जानकर हैरान रह जाएंगे”

    • अमृतम पत्रिका, ग्वालियर द्वारा यह लुप्त-सुप्त तथा गुप्त ज्ञान 50 से अधिक पुरानी पुस्तकों से खोजा गया है। इस संजोकर यानी Save करके रखें और भारत की प्राचीन परम्पराओं को प्रणाम करें…
    • अंगिरस ऋषि के वंशज महर्षि भरद्वाज आयुर्वेद के महान ज्ञाता थे।
    • महर्षि भरद्वाज ने किया था विमान/एरोप्लेन का अविष्कार….
  • पुराने जीर्ण-शीर्ण ग्रन्थों के आधार पर आयुर्वेद के प्रवर्तन, अविष्कार के साथ भरद्वाज जड़ी-बूटियों के उपयोग को अग्रसर करने वाले भी प्रथम वैज्ञानिक थे।

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार भरद्वाज ऋषि अपने तपोबल तथा आयुर्वेद के ज्ञान से अपनी आयु को तीन गुना करने में समर्थ हुए थे।

  • भरद्वाज ऋषि ने मनुष्य मात्र को स्वस्थ और निरोग रखने के लिए आयुर्वेद के जिस ज्ञान का प्रवर्तन किया था, उसे उनसे पाकर पुनर्वसु आत्रेय एवं उनके शिष्यों अग्निवेश एवं भेल आदि ने प्रसारित किया और लाखों-करोडों मानवों के भले के लिए लोकप्रियता प्राप्त की।
  • आयुर्वेद की चिकित्सा में जड़ी-बूटियों और बनस्पतियों अर्थात् काष्ठादिक औषधियों से चिकित्सा का प्रमुख स्थान है। इससे यह भी स्पष्ट है कि सैकड़ों जड़ी-बूटियों एवं बनस्पतियों को औषधि रूप में प्रयुक्त करने के पूर्व उनके गुणपूर्व उनके गुण-दोष और उपयोगिता का भली-भांति निरीक्षण एवं परीक्षण अवश्य कर लिया गया होगा।
  • सप्तऋषियों में से एक थे- भरद्वाज….वेद-उपनिषद, पुराणों में ऋषि भरद्वाज के जन्म की रहस्यमय कथाएं कही गयी। उनकी गणना वैवस्वत मन्वन्तर के सप्त ऋषियों में भी की जाती है।
  • मन्त्रदृष्टा ऋषि थे भरद्वाज….अनेक वैदिक मंत्रों का दृष्य भी माना जाता है। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भी उनके आमंत्रित किये जाने का उल्लेख है। मरणशैय्या पर भीष्म से भी वे मिले थे।
  • भरद्वाज ऋषि द्वारा कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा तैत्तिरीय संहिता के श्रौत सूत्र अपने रूप में उपलब्ध नहीं हैं । वर्तमान प्रकाशित रूप में इसमें १५ प्रश्न हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न के उपभाग हैं, जिन्हें कण्डिका या अध्याय कहा जा सकता है। इन अध्यायों में विभिन्न वैदिक यज्ञों की प्रक्रिया का वर्णन है ।
  • श्रौत्र सूत्र कल्प वेदांग का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग माना जाता है। श्रौत का अर्थ है श्रुति पर आधारित, श्रुति का तात्पर्य वेद से है। वेदों में जिन यज्ञों का विधान है श्रौत्र सूत्र मुख्य रूप से इन यज्ञों की विधि निर्धारित करते!
  • भरद्वाज श्रौत्र सूत्रों के रचयिता भरद्वाज थे या भारद्वाज इस विषय में विद्वानों में मतभेद है। भारद्वाज गृह्य सूत्र में कुछ टीकाकारों ने कुछ ने भरद्वाज या भारद्वाज गोत्र परम्परा का द्योतक है।
  • अत: यह हो सकता है कि कुछ अंश भरद्वाज गोत्र से सम्बन्धित भारद्वाज ने लिखे हों और यह भी हो सकता है कि भरद्वाज रचित सूत्रों को भारद्वाज सूत्र के नाम से जाना जाने लगा हो। भरद्वाज और भारद्वाज नाम लिखा है।
  • भरद्वाज ऋषि को वैदिक सूत्रों का मंत्रद्रष्टा भी माना जाता है। कुछ सूक्तों में उनका उल्लेख बार्हसात्य भरद्वाज के नाम से किया गया है। अतः यह कहा जा सकता है कि वे बृहस्पति के पुत्र या वशज रहे होंगे।
  • बाल्मीकि रामायण में भी जिक्र है-भरद्वाज का ….वाल्मीकि रामायण में उन्हें बृहस्पति का पुत्र तथा अगिरा का पौत्र बतलाया गया है।
  • भरद्वाज के नाम से कुछ गृह्य सूत्र भी मिलते हैं। ये पूरे नहीं हैं, सुव्यवस्थित और क्रम से भी नहीं हैं। यह भी संदिग्ध है कि इनके रचयिता भरद्वाज ही हैं ।
  • गृह्य सूत्रों में गृहस्थ के संस्कार , कर्म और उनके द्वारा सम्पादित यज्ञ आदि के विधिविधान बतलाये जाते हैं । सम्भव है उन्होंने धर्मसूत्रों की भी रचना की हो, परन्तु वे अब उपलब्ध नहीं हैं।
  • वाल्मीकि रामायण में उन्हें तप से प्राप्त दिव्य इष्टियुक्त और त्रिकालज्ञ कहा गया है। उन्हें राम के बनवास का कारण, दशरथ की मृत्यु और बनवास के बाद राम के अयोध्या वापस आने तक की घटनाएं पूर्व से ही ज्ञात थीं। उन्होंने राम को चित्रकूट का मार्ग बतलाया था। उन्हें तीक्ष्ण, व्रतधारी और एकाग्रचित्त तपस्वी कहा मया है।
  • यंत्र सर्वस्व – विशाल वैज्ञानिक ग्रंथ….तपोनिष्ठ महर्षि भरद्वाज ने श्रौत्र सूत्र और गृह्य सूत्र की रचना तथा आयुर्वेद के प्रवर्तन एवं जड़ी-बूटियों तथा बनस्पतियों के रोग शमन हेतु प्रचलन के साथ ‘यंत्र सर्वस्व’ नामक एक विशाल वैज्ञानिक ग्रंथ की भी रचना की थी।
  • विमानशास्त्र के रचयिता-भरद्वाज…. वे विमानशास्त्र के भी आचार्य थे। यंत्र सर्वस्व’ ग्रंथ का एक खण्ड ‘विमान प्रकरण’ वायुयानों के निर्माण और संचालन की जो जानकारी देता है।
  • , उससे ज्ञात होता है कि भरद्वाज ऋषि के समय में बहुत अच्छे वायुयान प्रचलित थे। वे अपनी गुणवत्ता और उपयोगिता में आधुनिक वायुयानों से किसी प्रकार कम न थे।
  • कुछ बातों में तो इनसे भी आगे थे। वे केवल आकाश में ही नहीं, एक लोक से दूसरे लोक तक जाने में समर्थ थे।
  • महर्षि भरद्वाज के अनुसार पक्षी की भांति उनकी सी तीव्र गति के समान एक देश से दूसरे देश, एक द्वीप से दूसरे द्वीप, और एक लोक से दूसरे लोक को आकाश में उड़ान लेने में समर्थ यान में को विमान कहते हैं।
  • दैत्य त्रिपुरासुर ने बनाया था एक चमत्कारी विमान…त्रिपुर विमान को पृथ्वी, जल और आकाश तीनों स्थानों में गति करने वाला बतलाया गया है।
    • वैज्ञानिक प्रकरण…महर्षि भरद्वाज प्रणीत ‘यंत्र सर्वस्व’ ग्रंथ के वैमानिक प्रकरण की बोधायन यति कृत वृत्ति सहित एक पाण्डुलिपि उपलब्ध हो चुकी है। इससे प्राचीन विमान प्रविधि संबंधी अति महत्त्वपूर्ण और चमत्कारपूर्ण तथ्य उजागर हुए हैं ।
    • सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली ने इस ‘वैज्ञानिक प्रकरण’ का स्वामी ब्रह्म मुनि परिव्राजक द्वारा सम्पादित हिन्दी टीका सहित संस्करण १९५८ ई में ‘बृहत विमान शास्त्र’ के नाम से प्रकाशित किया था। अब दूसरा संस्करण भी प्रकाशित हो चुका है।
  • सम्पूर्ण वैज्ञानिक प्रकरण की पाण्डुलिपि अलग-अलग दो अंशों में प्राप्त हुई थी। कुछ अंश पहले बड़ौदा के राजकीय पुस्तकालय की पाण्डुलिपियों में प्राप्त हुआ। इस अंश का वैदिक रिसर्च स्कालर श्री प्रियरत्न आर्य ने ‘विमान शास्त्र नाम से लघु पुस्तक के रूप में वेदानुसन्धान सदन, ज्वालापुर रोड, हरिद्वार से प्रकाशित कराया था।
  • बाद में इसी प्रकरण का कुछ और भाग मैसूर राजकीय पुस्तकालय की पाण्डुलिपियों में प्राप्त हुआ । इस ग्रंथ के प्रकाशन से प्राचीन विमान विद्या के विषय में कुछ और आश्चर्यजनक तथा महत्त्वपूर्ण तथ्य ज्ञात हुए।
  • इस ग्रंथ से स्पष्ट हुआ कि उस समय भारत में विमान विज्ञान बहुत उन्नत हो चुका था। विमान निर्माण तथा तत् संबंधी यंत्रों एवं उपकरणों के विषय में और भी अनेक ग्रंथ रचे जा चुके थे।
  • इस प्रकरण में विमान शास्त्र संबंधी जिन पूर्ववर्ती ग्रंथों का उल्लेख है उनकी संख्या १०० के लगभग है । कुछ ग्रंथों के नाम यहाँ दिये जा रहे हैं :-
  • कृपया इन प्राचीन ग्रन्थों के नाम पर दृष्टिपात करें….
  1. ईश्वर कृत “सौदामिनी कला”
  2. महर्षि अगस्त्य कृत “शक्ति सूत्र
  3. ऋषि भरद्वाज कृत “अंशुम् तंत्रम्” एवं आकाश शास्त्र
  4. शाकटायन कृत “लौहशास्त्र” एवं “वायु तत्त्व प्रकरण’
  5. नारद कृत “वैश्वानर तंत्र” और “धूम प्रकरण”
  6. महर्षि व्यास प्रणीत “ब्रह्माण्डसार”
  7. महर्षि अंगिरस प्रणीत “रूप शक्ति प्रकरण”
  8. ऋषि बोधायन कृत “धातु सर्वस्व”
  9. ऋषि नारायण कृत “विमान चन्द्रिका”
  10. महरशिवशौनक कृत “व्योम यान तंत्र”
  11. महर्षि गर्ग का ‘यंत्र कल्प’
  12. वाचस्पतिका कृत – ‘यान विन्दु’
  13. चाक्रायण का “खेट यान प्रदीपिका” और
  14. धुण्डिनाथ का “व्योमयान प्रकाश”
  • आदि ये सब ग्रन्थ मुस्लिम आतातायियों ने नष्ट कर दिए। देश का दुर्भाग्य यह है कि इन मुख्य ज्ञानवर्धक किताबों के बारे कभही पढ़ाया ही नहीं। इसलिए कोई नहीं जानता।
  • आदि-आदि ये सभी ग्रंथ अप्राप्य हैं और सम्भवतः काल कवलित हो चुके हैं। अन्तिम छ: ग्रंथों को भरद्वाज जी ने अपने यंत्र सर्वस्व’ से पूर्ववर्ती बतलाया है और इंगित किया है कि इन ग्रंथों का अध्ययन करके “विमान प्रकरण’ की रचना स्वयं की है।
  • “यंत्र सर्वस्व’ तत्कालीन सूत्र शैली में लिखा गया है। इसकी वृत्ति लिखने वाले बोधायन यति ने अपनी व्याख्या में लिखा है कि:
  • निर्मध्य तद्वेदाम्बुधि भरद्वाजो महामुनिः।
  • नवनीतं समुदधृत्य यंत्र सर्वस्वकम्।।
  • अर्थात् भरद्वाज महामुनि ने वेदरूपी समुद्र का निर्मन्थन करके सब मनुष्यों के अभीष्ट फलप्रद “यंत्रसर्वस्व’ ग्रंथ रूपी नवनीत (मक्खन) निकालकर दिया।
  • इससे यह भी ज्ञात होता है कि “यंत्र सर्वस्व ग्रंथ” और उसके वैज्ञानिक प्रकरण की रचना वैदिक मंत्रों के आधार पर की गयी है।
  • ग्रंथ में विमान निर्माता ऋषियों के नामों का भी उल्लेख है। इनमें विश्वकर्मा, छाया पुरुष, मनु और मय के नाम सम्मिलित हैं।
  • “वैमानिक प्रकरण’ मूल ग्रंथ “यंत्र सर्वस्व” का एक प्रकरण मात्र है। सम्पूर्ण ग्रंथ में ४० प्रकरण होने का उल्लेख है।
  • “वैमानिक प्रकरण” में ८ अध्याय, १०० अधिकरणों में विभाजित ५०० सूत्रों में निबद्ध है।
  • एक अधिकरण में विमान चालक की अर्हताए बतलाकर कहा गया है कि विमान के रहस्यों का जानने वाला व्यक्ति ही विमान चलाने का अधिकारी है। ये रहस्य ३२ बतलाये गये हैं।
  • विमान चलाना, उसे भूतल से आकाश में ले जाना, आगे बढ़ाना, टेढ़ी-मेढ़ी चपल गति से चलाना, चक्कर लगाना, वेग का कम या अधिक करना, लंघन सजर्यागमन रूपाकर्षण, परशब्द ग्रहता, रूपाकर्षण, परशब्द ग्रहता, क्रियारहस्य ग्रहण, शब्द प्रसारण, दिक प्रदर्शन आदि।
  • ये हैं विमानों के सामान्य रहस्य । विमान कई प्रकार के होते हैं और इन विभिन्न प्रकार के विमानों के चालकों को उनके विशिष्ट रहस्यों का ज्ञान प्राप्त करना होता था। रहस्य लहरी’ नामक ग्रंथ में वैज्ञानिक रहस्यों की विस्तार से विवेचना होने का उल्लेख है।
  • अंशुबोधिनी…यंत्र सर्वस्व के अतिरिक्त वैमानिकी प्रविधि सम्बंधी भरद्वाज प्रणीत दो और ग्रंथों के संदर्भ मिले हैं। ‘अंशुबोधिनी’ और ‘आकाश शाख’ इनमें ‘अंशुबोधिनी’ में अनेक विद्याओं का वर्णन है। प्रत्येक विद्या के लिए एक अधिकरण दिया!
  • एक अधिकरण में विमानों के संचालन में प्रयुक्त होने वाली ऊर्जा (शक्ति) के अनुसार उनके आठ प्रकार बतलाये गये हैं।
  • १. बिजली से चलने वाला – शक्युदगमः!
  • २. अग्नि, जल, वायु से चलने वाला-भूतवाह!
  • ३. गैस से चलने वाला – धूमयान
  • ४. तेल से चलने वाला – शिखोदगम।
  • ५. सूर्य किरणों से चलने वाला अंशुवाह।
  • ६. चुम्बक से चलने वाला – तारामुखी।
  • ७. चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त मणियों से चलने वाला – मणिवाह।
  • ८. केवलवायु से चलने वाला- मरुत्सखा।
    • इन विमानों के यंत्र और उपकरण निश्चय ही उत्कृष्ट रहे होंगे।
  • आकाश में पहुंचने पर शीत तथा ताप, वर्षा एवं तूफान आदि से उत्पन्न ऋतु विपर्यय से विमान को एवं उसके यात्रियों को सुरक्षित रुकने की भी व्यवस्था रहती थी। इनमें दूरबीन ऐसे उपकरण, दूसरे विमानों से बात करने, उनकी दिशा जानने आदि के साधनों का भी समुचित प्रबंध रहता था।
  • वास्तव में प्राचीन ऋषि केवल अध्यात्म चिंतन में ही संलग्न नहीं रहते थे। वे अपनी साधना द्वारा प्राकृतिक शक्तियों का सदुपयोग करने में भी बड़ी चमत्कारपूर्ण सफलता प्राप्त करने में समर्थ हुए थे।
  • महर्षि भरद्वाज द्वारा आयुर्वेद का प्रवर्तन, जड़ी-बूटियों एवं बनस्पतियों का रोग शमन में सदुपयोग एवं विमान शास्त्र संबंधी ग्रंथों की रचना इसका ज्वलन्त उदाहरण हैं।
  • यह बात भी बहुत स्पष्ट है कि इस प्रकार के ग्रंथ बिना व्यावहारिक ज्ञान के नहीं लिखे जा सकते।
  • ‘विमान प्रकरण’ से ज्ञात होता है कि इससे -पूर्व ‘विमान चन्द्रिका’, ‘व्योम यान तन्त्र’, ‘यंत्रकल्प’, ‘यान विन्दु’, ‘खेट यान प्रदीपिका’ और ‘व्योमयान प्रकाश’ सरीखे विमान-विद्या संबंधी शास्त्रीय ग्रंथ विद्यमान थे।
  • इनकी रचना क्रमशः नारायणा, शौनक, गर्ग, वाचस्पति, चाक्रामाण और घुण्डिनाथ महर्षियों द्वारा की गयी थी। इनके अतिरिक्त सत्संबंधी अन्य विषयों पर भी प्रचुर साहित्य उपलब्ध था। इससे स्पष्ट होता है कि प्राचीन ऋषि महर्षि ‘निश्रेयस’ के साथ ही ‘अभ्युदय’ की उपेक्षा न करके दोनों ही की- सम्यक साधना में संलग्न रहते थे।
  • विमानों का प्रचलन त्रेतायुग से ही आरम्भ हो गया था । युगशक्ति के अनुसार त्रेता, द्वापर और कलियुग में क्रमश: मांत्रिक, तांत्रिक और कृतक अर्थात यांत्रिक विमानों का उल्लेख है।
  • मांत्रिक विमान योग सिद्धि एवं यंत्रों द्वारा, तांत्रिक औषधियुक्ति एवं पार्थिव साधनों तथा कृतक विमान यांत्रिक उपकरणों द्वारा संचालित होते हैं।
  • त्रेता युग में मंत्र प्रभाव की अधिकता और वरिष्टता से मांत्रिक शक्ति द्वारा संचालित विमान बनाये गये।
  • द्वापर में मांत्रिक शक्ति का ह्रास होने तथा पार्थिव वस्तु योग प्रभाव की अधिकता से विमानों को संचालन हेतु तांत्रिक साधनों से सम्पन्न किया गया।
  • कलियुग में मंत्र और तंत्र दोनों ही की शक्ति क्षीण हो जाने के कारण विमानों के संचालन हेतु यांत्रिक साधनों से व्यवस्था की गई और . उन्हें यांत्रिक कहा गया । इस प्रकार युग भेद से विमानों की संचालन प्रक्रिया बदलती गयी और तदनुसार विमानों की तीन प्रमुख जातियां बतलायी गयीं।
  • त्रेता युग का लोक प्रसिद्ध बाल्मीकि रामायण में वर्णित भगवान राम द्वारा प्रयुक्त “पुष्पक विमान” मांत्रिक जाति का था।
  • शौनिकीय सूत्र में मंत्र शक्ति से आकाश में संचरण करने वाले पुष्पक आदि प्रभेद से २५ विमान बतलाये गये हैं।
  • गौतम ऋषि इस प्रकार के मांत्रिक विमानों की संख्या ३२ बतलाते हैं। द्वापर में प्रचलित तांत्रिक विमानों के ५६ भेदों का उल्लेख है। कलियुग के कृतक अर्थात् यंत्रों से संचालित यांत्रिक विमान २५ प्रकार के कहे गये हैं।
  • विमानों की रचना प्रक्रिया और संचालन संबंधी तकनीकी जानकारी प्रस्तुत जो करते हुए जो सूत्र दिये हैं उनसे यह भी ज्ञात होता है कि उस काल में विमान संचालन के लिए सौर ऊर्जा भी काम में लायी जाती थी।
  • सूर्य की किरणों से शक्ति का आहरण करने वाले उपकरण विमान में रहते थे और यथावसर आवश्यकता के अनुसार उन्हें काम में लाया जाता था।
  • सूर्य की किरणों द्वारा आहरित ऊर्जा-सौर ऊर्जा से चलने वाले विमान “अंशुवाही” कहे जाते थे।
  • आधुनिक युग में सौर ऊर्जा का उपयोग अभी तो केवल घरेलू कार्यों तक ही सीमित है और वह भी प्रायोगिक व्यवस्था ही में कहा जा सकता है।
  • विमान संचालन के लिए सौर ऊर्जा का व्यवहार अभी अनुसंधान और शोध का ही विषय है।
  • लोहाधिकरण -विमान और उसके उपकरण बनाने के लिए लोहे के विभिन्न प्रकारों की चर्चा “लोहाधिकरण” अध्याय में की गयी है।
  • पाश्चात्य विद्वान वैज्ञानिकों का तो कथन है कि प्राचीन भारतीयों को लोहे की जानकारी बहुत गहराई से थी।
  • ग्रंथ के इस अध्याय में १६ प्रकार के भारहीन लोहों का भी वर्णन है । भूगर्भ स्थित किस स्तर की खान का लोहा विमान कार्य के उपयुक्त होगा, इसकी भी चर्चा है।
  • लोहे के गलाने और शुद्ध करने के लिए मूषा और भटिठयों के भी विवरण दिये हैं। समान्य लोहे के संस्कार करके ‘राजलोहा’ और राज लोहे से रूक्म लोहा’ स्वर्ण जैसी आभा और रंग वाला लोहा बनाने की विधि भी बतलायी गयी है।
    • ग्रंथ से यह भी ज्ञात होता है कि लोहे के बारे में शास्त्रीय और तकनीकी जानकारी देने वाले लोहे के विषय पर भी अनेक ग्रंथ रचे जा चुके थे।
  • लोह शास्त्र ग्रंथों की उपरोक्त सूची में लोहे के महत्त्व को सहज ही आंका जा सकता है। साथ ही संस्कृत भाषा की तकनीकी विषयों की अभिव्यक्ति की क्षमता भी उजागर होती है और यह भी स्पष्ट होता है कि लोह व्यवसाय में कार्यरत कुशल कारीगर और व्यवसायी इनका लाभ उठाकर उसे विकसित करने में समर्थ हुए।
  • हस्त कौशल के रूप में यह परम्परा अभी तक विद्यमान रही।
  • आज भले ही संस्कृत की उपेक्षा की जाये और उसे मृत भाषा घोषित किया जाये, परन्तु उसमें अब भी जो संजीवनी शक्ति है, उसका सदुपयोग निश्चय ही राष्ट्र को वास्तविक अभ्युदय का पथ प्रशस्त कर सकता है।
  • भरद्वाज ऋषि के अतिमहत्त्वपूर्ण कार्य कलापों एवं रचनाओं के इस अति संक्षिप्त परिचय से यह स्पष्ट है कि स्वयं भरद्वाज ही नहीं, उनके समकालीन सहयोगी ऋषि-महर्षि तपस्या के साथ ही जन कल्याण एवं देश के भौतिक अभ्युदय के लिए भी पूर्णतया सचेष्ट थे।
  • इसके साथ यह तथ्य भी उल्लेखनीय और विचरणीय है कि हमारी इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में इन ऋषि-महर्षियों की भूलकर भी कहीं चर्चा नहीं की जाती और स्वाधीनता के 75 वर्ष के बाद भी जानबूझ कर भारतीयों को इनके अति महत्त्वपूर्ण योगदान और गौरवशाली परम्पराओं के ज्ञान से वंचित रखा जाता है।

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