कछु और न सुहात है-

प्राणायाम के परिणामों से

व्यक्ति को दुःख,
दुर्भाव,अभाव,कष्ट,

भय-भ्रम,चिन्ता आदि
का ध्यान नहीं रहता ।
परमहँस योगिराज भोले के भक्त

श्री श्री सुन्दरदास जी ने

महादेव की भक्ति में मद-मस्त
होकर कहा है कि-

“काहू सौ न रोष-तोष,
काहू सौ न राग द्वेष ।
काहू सौ न बैर भाव,
काहू की न घात है ।।
काहू सौ न बकबाद,
काहू सौ न विषाद ।
काहू सौ न सँग न,
तो कोई पक्षपात है ।।
काहू सौ न दुष्ट वैन,
काहू से न लेंन-देंन ।
‘शिव’ को विचार कछु,
और न सुहात है ।।

अमृतम मासिक पत्रिका
अक्टूबर 2014 से साभार

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