शिवपुराण से पार्ट 3 पाप के बारे में

क्या पाप पूरी तरह नष्ट हो सकते हैं?
क्या हमारे द्वारा किये गए कुकर्म, झूठ, छलावा,
धोखाधड़ी, कपट, बेईमानी, हत्या, बलात्कार
जैसे पापों को मिटाया जा सकता है?
पाप के विषय में बहुत ही अदभुत और
दुर्लभ जानकारी 27 से अधिक सभी धर्मों के ग्रंथों से ली गई है।
पापक्षय क्या होता है –
 पाप या किसी भी प्रकार के अपराध की प्रवृत्ति का नष्ट होना पुराणों में पापक्षय कहा जाता है। मन्त्र की सफलता का यह सबसे बड़ा लक्ष्य है।
पुराणों में बारम्बार आने वाले ‘‘पाप क्षय’’
की विस्तार से जानकारी प्रश्नोउपनिषद,
मुण्डकोउपनिषद एवं इशावास्योपनिषद,
गरुड़ पुराणस्कन्द पुराण आदि
प्राचीन ग्रंथों में मिलती है।
विशेष जानकारी
सम्भवतः इशावास्योपनिषद
सबसे पुराना और दुर्लभ उपनिषद है। इसका कुछ भाग कलकत्ता की नेशनल लाइब्रेरी
में उपलब्ध है। यह यजुर्वेद का ही अंतिम
अध्याय है।
पाप कभी मिटता नहीं कम हो जाता है
 ऐसा भ्रम फैलाया गया है कि-
भागवत कथा, 56 भोग, आदि इस अमुक पूजा-पाठ, दान या मन्त्र से हमारे पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐसा कभी नहीं होता। यदि यह सत्य है, तो भगवान् श्री कृष्ण का गीता का कहा महावचन कट जाता है कि-
 ‘‘अवश्यमेव भोक्तव्यं 
कृतं कर्म-शुभाशुभम्।’’
अर्थात् प्रत्येक प्राणी को किये गये शुभ-अशुभ कर्मो का फल अवश्य भोगना पड़ता है।
केवल स्वयं के द्वारा पूजा-पाठ मन्त्रादि
के करने से कुकर्म तथा पाप कर्मो के दुष्परिणामों को भोगने की क्षमता आ जाती है। भारत भूमि में अनेक ऐसे सन्त-महात्मा,
अघोरी-अवधूत हुए हैं, जो अपने कष्टों को दूर कर सकते थे, परन्तु भोग को भोगना ईश्वरीय नियम मानकर जीवन भर कष्ट भोग भोगते रहे
पंचाक्षर मन्त्र ॐ नमः शिवाय का चमत्कार
इस मन्त्र जप की सफलता का एक मुख्य लक्षण यह है कि यह मन्त्र
साधक या जापक के हृदय में
सद्-विचार उत्पन्न होकर,  सत्कर्म करने
की और प्रेरित होने लगता है।
असत् यानी झूठ-फरेब, असत्य से घृणा
होने लगती है।
 प्राणियों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो जाती है। ऐसा साधक देश, समाज और विश्व की
भलाई के बारे में सोचना शुरू कर देता है। आदि।
कैसे करें पापों को शान्त
 
नमः शिवाय यह एक
ऐसा शक्तिशाली मन्त्र है, जिसके एक पुनश्चरण
यानि ५ लाख पंचाक्षर मन्त्र जप से मन्त्र पुरूष पाप-पुण्य के बारे में समझने लगता है।
पुन: ५ लाख अर्थात् दूसरे  पुरश्चरण के पश्चात उसके मन, वचन और कर्म से सब प्रकार का पाप (अपराध) नष्ट हो जाता है।
ध्यान रहे यह मन्त्र किसी शैव यानि शिव
सन्यासी से लेना जल्दी असरकारक होता है।
कैसे करें चेक 
मन्त्र जप से यदि यह परिणाम नहीं मिलता, तो अपने मन्त्र जप की प्रक्रिया तथा मन्त्र जपते समय अपने मन की गतिविधियों का निरीक्षण करें व अपने मन्त्र दाता गुरू की शरण में जावें।
पुराणों की परंपरा
भविष्य पुराण, शिवपुराण में आगे पंचाक्षर मन्त्र नम: शिवायकी शाक्ति का वर्णन इस प्रकार किया गया है-
अतलादि समारभ्य, 
सत्यलोकावधि क्रमात्।
पञ्चलक्ष-जपात्तत्त-, 
ल्लोकैश्वय्र-मवाप्नुयात्।।
अतल लोक से लेकर सत्य लोक तक का ऐश्वर्य क्रमश: पाँच-पाँच लाख पंचाक्षर मन्त्र के जप से प्राप्त होता है।
अतल लोक से सत्य लोक तक के लोकों का पौराणिक विवरण निम्नलिखित से है-
अतलं वितलं चैव, 
सुतलं च तलातलम्। 
महातलं च पातालं, 
रसातलमधस्तत:।। 
ब्रह्मवैवर्त पुराण के
खण्ड अध्याय ७ पद १३ एवं श्री मद्भागवत में यही सातों लोक बताकर कहा गया है-
एषेतु हि बिलस्थलेषु स्वर्गादप्यधिक
।।स्कन्ध पुराण ५अ. २४.८।।
ये सातों पाताल बिल भूमियाँ हैं, जिनमें स्वर्ग से भी अधिक ऐश्वर्य भोग है।
मध्ये मृतश्चेद्भोगान्ते, 
भूमौतज्जापको भवेत्।
पुनश्च पञ्चलक्षेण, 
ब्राह्म-सामीप्य-माप्नुयात्।। 
अर्थात
मन्त्र जप से मन, वचन व कर्म की पवित्रता के कारण जापक की आयु बढ़ जाती है, चौदहों लोकों को प्राप्त करने के बाद यदि पुन: ५ (पाँच) लाख पंचाक्षर मन्त्र जपता है, तो उसे ब्रह्म सायुज्य प्राप्त हो जाता है।
पुराणों के अनुसार पाप क्षय
पुराण के इस प्रसंग से यह सिद्ध होता है कि कर्म-बन्धन जन्म-जन्मान्तर तो क्या महाप्रलय में भी जीव के सूक्ष्म तत्त्व के साथ लगे रहते हैं और पुन: सृष्टि-रचना के पश्चात् उस जीव का उसके कर्मानुसार जन्म और तदनुरूप अवसर प्राप्त होता रहता है।
पापों का पिटारा
असत्य, अशुचि (अपवित्रता), हिंसा (किसी की हत्या करना या किसी को किसी प्रकार का कष्ट देना) और निर्दयता-भगवान् शिव के चरणांश हैं।
सारा संसार असत्य रूपी अन्धकार, अज्ञान में जी रहा है इसलिए अज्ञानी प्राणी अपवित्र है और जो अपवित्र है वहीं हिंसक है। हिंसा से भरे प्राणी में उदारता असंभव है। इसलिए वह निर्दयी है।
इन चारों दुष्प्रवृत्तियों को भगवान शिव ने अपने चरणों में जगह दे रखी है। शिव औघड़दानी इसलिए भी कहे जाते हैं क्योंकि सृष्टि की समस्त उटपटांग वस्तुओं का स्थान उनके चरणों में है।
अजपा जाप का महत्व
जो साधक पंचाक्षर मन्त्र को उठते-बैठते, सोते-जागते, नहाते-खाते मन ही मन जपते रहते हैं उनके जीवन से अज्ञान, अपवित्रता, हिंसा और क्रूरता दूर होती जाती है। ऐसे साधकों को शिव सदा साधे रखते हैं।
कभी-कभी दु:खी लोग ऐसा भी कहते हैं कि सर्वाधिकार ईश्वर का ही है, तो उसने पापमय और दु:खमय संसार बनाया ही क्यों?
प्राणियों का प्रेमी परमात्मा
स्वर्ग से लेकर पृथ्वी लोक तक मनुष्य के अतिरिक्त अन्य सभी भोग योनियाँ हैं, केवल मनुष्य ही भोग योनि और कर्म योनि दोनों ही है। अर्थात् मनुष्य अपने विगत कर्मो को भोगते हुए नये कर्म करके अपना नया भाग्य निर्माण करता है और  पुराणों में कई बार आया है कि ईश्वर को सभी योनियों में मनुष्य सबसे अधिक प्रिय है। अत: मनुष्यों को अपना अच्छा भविष्य बनाने के लिए ईश्वर एक अन्तिम मौका देते हैं
 इसलिए वह सृष्टि रचना किया करते हैं।
तदर्वाक् कर्म भोगो हि, 
तदूध्र्व ज्ञान-भोगकम्।
तदर्वाक् कर्म-माया हि, 
ज्ञानमायादूध्र्वकम्।।
यदि हम वर्तमान जीवन में दुर्गुणों से दूर रहते हैं, तो भी हमें पिछले कमों का भोग भोगना है, इसके आगे वर्तमान जीवन में हमने जो ज्ञान प्राप्त किया है, वह भी भोगना होता है, उसके आगे कर्म माया का अद्भुत जाल है और इसके भी आगे ज्ञान-माया का क्षेत्र है।
पंचाक्षर साधना
जो साधक ध्यान, धर्म और सदाचार पूर्वक जीवन यापन करता हुआ पंचाक्षर- साधना करता है, उन पर समाधिस्थ आत्मानन्द स्वरूप भगवान् शिव अनुग्रह करते हैं, उनका यह नित्य ध्यान ही नित्य कर्म-यज्ञ है, निश्चित ही भगवान् शिव में उनका प्रेम हो जाता है।
क्रियादि शिवकर्मेभ्य:, 
शिवज्ञानं प्रसाधयेत्।
तद्दर्शन-गता: सर्वे, 
मुक्ता एव न संशय:।। 
ऊपर बताया गया ध्यान, पंचाक्षर जप, धर्म और सदाचारी जीवन ये सभी कर्म
भगवान शिव के कर्म हैं। इन्हीं कर्मो से शिव का ज्ञान प्राप्त होता है। उनका (शिव जी का) ध्यान-दर्शन (ध्यान में दर्शन करना) करके सभी लोग मुक्त होते ही हैं, इसमें कोई संशय नहीं है।
जब ध्यान लगे शिव की लगन में
अधिकांश साधकों की एक समस्या रहती है कि ध्यान में उनका मन इधर-उधर भटक जाता है। मन के भटकने में चिन्तित नहीें होना चाहिए अपितु प्रयासपूर्वक अपनी बुद्धि को या ध्यान को मन के पीछे लगा दो और देखते रहो कि मन कैसे-कैसे स्थानों में जाता है, क्या सोचता है और क्या करता है? जैसे कोई अभिनेता दो विरोधी पात्रों का अभिनय (डबल रोल) करता है, उसी प्रकार साधक को ध्यान में दोहरा अभिनय करना होता है।
 बदल जाओ वक्त के साथ

या र वक्तबदल जाओ वक्त के साथ

या फिर वक्त बदलना सीखो
मजबूरियों को मत कोसो
हर हाल मेंचलना सीखो

बदलनाखो
मजबूरियों को मत कोसो
हर हाल में चलना सीखरूप में देखता है, तो चंचल मन की भटकन थम जाती है, तब वह पुन: ध्यान में लग जाता है।ध्यान में यह क्रिया बारम्बार हुआ करती है और अभ्यास करते-करते मन स्थिर होने लगता है। एक बात और है कि चंचल मन को ध्यान में उतना आनन्द (मजा) नहीं आता, जितना सांसारिक माया में। इसी सेराणकारों ने ध्यान के विविध रूप या श्रेणियाँ निर्धारित की हैं।

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