दशहरा के दिन दसों दिशाएं
भय मिटाकर,विजय दिलाएं…
क्या आपको मालूम है दशहरा वर्ष में एक बार पड़ने वाली सबसे शुभ और श्रेष्ठ तिथि है।
जानने के लिए फुर्सत में पढ़े यह ब्लॉग।
प्राचीन व्यवस्था के अनुसार इस दिन प्रकृति की दसों राहें खुल जाती हैं इसलिए इसका एक नाम दस-राह भी है।
दस राह दसों दिशाओं की प्रतीक हैं।
दस दिशाओं के नाम इस प्रकार हैं….
पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण, ईशान,
वायव्य, आग्नेय, नेऋत्य, आकाश
और पाताल।
दशहरा को “विजयादशमी” भी कहा जाता है।
हिन्दू परम्परा, धर्म-शास्त्रों और ज्योतिष ग्रंथों के हिसाब से वर्ष की तीन तिथियां सबसे शुभ-सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
【१】दशहरा यानि विजयादशमी
【२】चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पड़वा
अथवा प्रतिपदा
【३】कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा
यह तीनों तिथियां अत्यंत शुभकारक होती हैं।
मान्यता है कि- दशहरा के दिन से कोई भी कार्य प्रारम्भ करने से सभी कामों में सफलता और विजय प्राप्त होती है।
दशहरा का प्राचीन महत्व….
पुरातन शास्त्रों में इसे
दशहरा = दशहोरा = दसवीं तिथि आदि कहा गया है। दशमी तिथि विजय का प्रतिनिधित्व करती है। “महुर्त चिंतामणी ग्रन्थ” के मुताबिक
दशमी तिथि को अबूझ तथा सबसे
शुभ महूर्त माना गया है।
● इसलिए इस उत्सव को पूर्ण उत्साह के साथ विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है।
● दुनिया में अश्वनी मास यानि क्वार) के
महीने में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को
इस पर्व का आयोजन होता है।
● दशहरा यानि दस-राह के दिन दसों दिशाएं खुलने के कारण ग्रामीण लोग शहरों में
उमड़ पड़ते हैं।
● इस दिन शमी वृक्ष और शस्त्र पूजन का विशेष विधान है।
● नया कार्य प्रारम्भ करने के लिए यह
तिथि बहुत फलप्रद होती है।
जैसे- अक्षर लेखन का आरम्भ, नवीन व्यवसाय या उद्योग आरम्भ करना, वाहन-सम्पत्ति, स्वर्णाभूषण खरीदना, बीज बोना आदि।
● ज्योतिष शास्त्रमतानुसार इस दिन लिया गया सोना-चांदी वृद्धिकारक होता है। खरीददारी के लिए यह तिथि धनतेरस यानि धन्वंतरि दिवस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।
● सदियों से ऐसा भरोसा है कि इस दिन जो भी कार्य का श्रीगणेश किया जाता है उसमें निश्चित ही विजय मिलती है।
हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता.…
दशहरा के बारे में ग्रन्थ-पुराणों का जितना
चिंतन-मंथन किया जाए, वह कम ही रहेगा।
परम शिव भक्त दशानन रावण और
दशहरा के विषय में भ्रांतियां….
लगभग 35 साल पहले उत्तरांचल यात्रा के
दौरान गौमुख होते हुए आकाशगंगा,
तपोवन मार्ग में एक परम शिवसाधक
योगी के दर्शन का सौभाग्य मिला।
एक चर्चा के प्रसंग में अवधूत सन्त ने बताया कि दशहरा का सही नाम दसराह है, क्योंकि सन्सार में प्रचलित नाम दशहरा के दिन तक दसों दिशाओं के मार्ग खुल जाते हैं।
दस-राह खुलने से लाभ-
★ वर्षा ऋतु के बाद सभी तरफ से लोगों का आना-,जाना सरल हो जाता है।
★ आवागमन के मार्ग सुलभ हो जाते हैं।
★ आसमान साफ रहता है।
★ इस प्रकार दसों दिशाओं की राहें खुल जाने के कारण इस तिथि का वैदिक नाम दस-राह है, जो ★ सामाजिक प्रचलन में दसराह का दशहरा हो गया और इसे रावण वध से जोड़ दिया।
★ जबकि बाल्मीकि रामायण और दक्षिण रामायण के अनुसार रावण ने चैत्र पूर्णिमा के दिन अपना शरीर त्याग था। लंकेश्वर नामक
वैज्ञानिक पुस्तक में भी इस विषय पर
विस्तार से बताया गया है।
रावण के बारे में दुर्लभ जानकारी कभी अमृतम रावण विशेषांक में विस्तार से दी जावेगी।
तपोवन के योगीजी ने बताया कि पुराणों की तिथि के हिसाब से दशहरा (दसराह) के दिन से समुद्र
मंथन की प्रक्रिया आरम्भ हुई थी। यद्यपि दैत्य और देवताओं दोनों पक्षों को जहां एक ओर अमृत पाकर अमर होने की अभिलाषा थी, वही दूसरी तरफ किसी भावी आशंका से दोनों ने अपने युद्ध रथ, विमान आदि यन्त्रों तथा अस्त्र-शस्त्रों की साफ-सफाई पूजा की।
क्यों करते हैं दशहरा के दिन
यन्त्र-उपकरकणों की पूजा….
समुद्र मंथन के समय शुरू हुई यही प्राचीन परंपरा आज भी समाज में प्रचलित है। हम लोग भी आज दशहरा के दिन अपने वाहन, मशीन, उपकरण आदि की पूजादि करते चले आ रहे हैं।यह सब शक्ति का प्रतीक हैं।
दशहरा की सच्ची कहानी..
यह संयोग ही है कि दसराह यानि दशहरा अश्वनी कुँवार महीने के शुक्ल पक्ष के दिन दशमी तिथि होती है।
इसी माह की शुक्ल पक्ष की पड़वा से लेकर दसराह के एक दिन पहले नवमी तिथि तक शक्ति प्राप्ति और शुद्धि के लिए शप्तशती का पाठ, माँ नवदुर्गा का पूजन, कलश स्थापना, व्रत-,उपवास
आदि किया जाता है। क्योंकि माँ भगवती की कृपा और शक्ति की उपासना के बिना कोई भी कार्य सफल होना असंभव होता है।
पंचक में ही क्यों बनता है दसराह…
यह भी एक वैदिक और पुरातन बात है कि दसराह के दिन पंचक लग जाते हैं। इस दिन चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण में प्रवेश करता है,
तभी पंचक प्रारम्भ होते हैं।
ज्योतिष ग्रन्थों की मान्यता है कि पंचकों में कोई भी शुभ कार्य शुरू नहीं किया जाता।
पंचक क्या होते हैं-
पंचक 5 दिन के होते हैं इसलिए इसे पंचक कहा जाता है। ¶ धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, ¶ शतभिषा, ¶ पूर्वाभाद्रपद, ¶ उत्तराभाद्रपद तथा रेवती ये पांचों पंचक के नक्षत्र है।
पंचक से सावधान.…
एक बहुत ही दिलचस्प जानकारी
पंचक के समय सम्पत्ति, स्वर्ण आदि की खरीददारी अवश्य करना चाहिए। पंचक में कभी कर्ज नहीं लेना चाहिए।
पंचक के समय जब कोई लाभ होता है, तो वह पुनः 5 बार होता है और जब हानि होती है, तब 5 बार हानि होती है। इसलिए पंचक के समय किसी की मृत्यु हो जाने पर उड़द की दाल एवं आटे के 5 पुतले शव के साथ जलाने की परम्परा है, ताकि
परिवार में अन्य सदस्य का आकस्मिक अनिष्ट न हो।
किस महीने में हुआ था समुद्र मन्थन और दशहरा के 20 दिन बाद ही दीवाली
क्यों आती है। क्या वजह है?.…
दशहरा से दीपावली 20 दिन पश्चात आती है। इसमें यदि पंचक के 5 दिन निकाल दिए जाएं, तो
दीपावली को 14 या 15 दिन शेष रह जाते हैं।
समुद्र मंथन से चौदह रत्न ही निकले थे। इस गणित से दसराह के बाद 5 दिन बीतने पर समुद्र मन्थन की प्रक्रिया शुरू हुई थी।
सर्वप्रथम क्या निकल था-समुद्र-मन्थन से..
और
भगवान शिव से कैसे बने नीलकंठ-
समुद्र मन्थन के फलस्वरूप सबसे पहले हलाहल यानि एक भयानक विष निकला, जिसे ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिये भगवान शिव ने ग्रहण किया,
तभी से इन्हें नीलकण्ठ महादेव कहा जाने लगा।
भगवान शिव के नीलकण्ठ रूप को शांत करने हेतु नन्दीजी ने “नीलकण्ठ स्तोत्रं” की रचना कर उन्हें सुनाया, जो भयंकर खराब समय में शिंवलिंग पर राहुकी तेल का दीपक जलाकर सुनाया जाता है। यह सब जानकारी फिलहाल संक्षिप्त में दी
जा रही है। विस्तार से पढ़ने हेतु
अमृतम पत्रिका ग्रुप से जुड़ें।
क्यों मनाते हैं धनतेरस…
इसी क्रम में त्रयोदशी को धनतेरस के दिन आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धन्वतरि का प्राकट्य हुआ।
समुद्र मंथन से प्रथ्वी पर खतरनाक बीमारियां फैलने लगी। इससे मुक्ति के लिए भगवान वैद्य धन्वतरि समुद्र से अमृतः कलश लेकर निकले।
धन-सम्पदा की मालिक,स्वामिनी
माँ महालक्ष्मी की बड़ी बहिन ज्येष्ठा यानि दरिद्रा का उदभव..
छोटी दीपावली के दिन माँ दरिद्रा समुद्र से प्रकट हुई, जिसे कोई स्वीकारने को तैयार नहीं था। इसलिए भगवान शिव ने अपने पास स्थान दिया।
छोटी दीपावली को प्रातः अपामार्ग बूटी के जल से
स्नान कर, सात बार अपने ऊपर उसारने से घर में कभी गरीबी या भुखमरी नहीं आती।
क्या आपको मालूम है?
शिवभक्त के यहाँ कभी दरिद्रा नहीं रुकती…
ब्रह्मवैवर्त पुराण, शिवतन्त्र, स्कन्द पुराण में लिखा है कि – जो लोग महादेव के उपासक होते हैं, उनके घर कभी दरिद्रा ज्यादा समय तक नहीं रुकती। भगवान शिव ज्येष्ठा यानि गरीबी को हमेशा अपने भक्तों के घर जाने से रोक देते हैं।
इसीलिए लिंगाष्टक में कहा गया है…
कामदहन करुणाकर लिंगम
अष्टदरिद्र विनाशक लिंगम।
एक बात भाग्य-दुर्भाग्य के बारे में बहुत
महत्वपूर्ण है कि-
भाग्य आता है, तो दरवाजा खटखटाकर चला जाता है। जबकि दुर्भाग्य जब तक द्वार खटखटाया करता है, जब तक वह खुल नहीं जाता। अर्थात जब खराब समय आता है, तो 100 जतन-प्रयास करने के बावजूद भी वह घर में घुसकर सब बर्बाद कर देता है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि छोटी दीपावली
के दिन रुद्रावतार श्री हनुमान जी जन्म हुआ था। इस दिन शिवरात्रि भी होती है। इसलिए धन प्राप्ति तथा स्वस्थ्य जीवन के लिए इस रात दूध, दही, घी और मधु पंचामृत से शिंवलिंग पर रुद्राविषेक जरूर करना चाहिए और राहुकी तेल के
27 दीपक 27
नक्षत्रों की प्रसन्नता और कृपा प्राप्ति हेतु जलाना अत्यंत श्रेष्ठकर एवं विशेष उन्नतिदायक होता है।
महालक्ष्मी कब और कैसे,
किस दिन निकली समुद्र से..
दीपावली के दिन धन की देवी महालक्ष्मी प्रकट हुईं।
इस दिन स्वाति नक्षत्र था, जिसके अधिष्ठाता राहु हैं। राहु ही धनदायक ग्रह हैं। ज्योतिष ग्रंथों में ध-सम्पदा में वृद्धि करने वाली अधिकांश तिथि या वार का का कारक राहु दैत्य हैं। यह छ्या ग्रह है।
कैसे मनाएं दीपावली
दीपावली का मतलब या अर्थ क्या है।
राहु के नक्षत्र में ही दीपावली क्यों मनाते हैं।
राजा बलि ने विष्णुजी को कैसे शापग्रस्त किया था। दीपावली के बारे में सम्पूर्ण जानकारी अगले ब्लॉग में पढ़ें।
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