राहु के दुष्प्रभाव- पार्ट-2 पढ़ें
चोरी, जुआ, नशा, बदनामी,
गरीबी, धन व सुख की कमी,
आर्थिक तंगी, मुकदमेंबाजी,
असाध्य, कारागृह, रोग भय,
पेट दर्द, पेट के रोग, अविवाहित जीवन, विवाह न होना, औलाद न होना,
एकांकी जीवन, मानसिक अशान्ति,
वाद-विवाद, झगड़ा, छोटी सोच, चुगलखोरी, आलस्य,
नकारात्मक सोच,
काम (sex) के प्रति अरूचि,
बार-बार रोगों से पीड़ित होना, गृह-क्लेश, तलाक, प्यार में नाकामी, गणित की कमजोरी, किसी काम में मन न लगना,
आगे बढ़ने या कुछ करने की ललक न होना, आत्महत्या के विचार आना, डिप्रेशन, अवसाद, चिड़चिडापन, भय, डर, चिंता, यह सब राहु के दूषित होंने के लक्षण है।
यदि जीवन की ऐसी स्थिति है, तो जन्म कुण्डली में राहु बहुत ही ज्यादा अनिष्टकारक है।
राहु सृष्टि के प्रशासनिक अधिकारी है।
इस पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीव-जगत को पूर्व जन्म या प्रारब्ध के अनुसार कर्मो के अनुसार कष्टकर, क्लेश या सुख-समृद्धि देना इनका ही काम है।
राहु राह दिखाते हैं, लेकिन जब रास्ते से भटकाते है, तो कही का नहीं छोड़ते।
विपरीत या अनिष्ट राहु पूर्वजों की सम्पत्ति आदि सब बर्बाद कर देते है।
शुभ राहु बनाये राजा–
जबकि अनुकुल व शुभ कारक में राहु जातक को इतना सब कुछ देते हैं जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।
अथाह धन-दौलत,
यश-कीर्ति, ऐश्वर्य-सम्पदा,
योग्य सन्तान, उच्च स्तर का रहन-सहन आदि।
जासूस, गुप्तचर, गोताखोर,
समुद्री यात्रा, खोज,
समुद्री जहाज वाहक,
पाताल के रहस्यों की जानकारी,
जमीन के अंदर से निकलने वाली
सोना-चांदी, ताम्बा जैसी धातु से लाभ। रत्नों, खदान, सड़क ठेकेदार,
इन सबका कारक राहु देव ही हैं।
राहु शान्ति के उपाय –
राहु सदा सूर्य अर्थात हमारी आत्मा को ग्रहण लगाते है। इनसे बचने का सबसे सरल उपाय यह है कि प्रतिदिन राहुकाल में 108 बार। । नमः शिवाय च शिवाय नमः। । मन्त्र की एक माला का जाप जरूर करें।
प्रतिदिन प्रातः और शाम को
“राहुकी तैल” के 2 दीपक जलाकर
अपने पूर्वजों, पितरों, कुल देवी-देवताओं का विनम्र भाव से स्मरण या याद करें।
प्रतिदिन स्नान जल में गुलाब इत्र या चन्दन इत्र डालकर नहायें।
राहुदेव के गुरू श्री शुक्राचार्य जो सुख-सम्पन्नता, भौतिक जीवन के प्रदाता है। अतः इनकी प्रसन्नता हेतु प्रत्येक शुक्रवार को घर के सभी सदस्य राहुकी तैल पूरे शरीर में लगाकर स्नान करें।
न्याय कारक शनि देव राहु के अभिन्न मित्र ग्रह हैं। अतः शनि की साढ़ेसाती के कोप से बचने तथा राहु-केतु, शनि कृपा प्राप्ति हेतु हर शनिवार सुबह 9 बजे से 10.30
के बीच राहुकी तेल के 2 दीपक जलाकर पूरे बदन की सिर से तलबों तक अच्छी तरह मालिश कर 45 मिनिट बाद स्नान करें। क्योकि शनिदेव राहु के अभिन्न मित्र है। जो आकस्मिक दुघर्टनाओं से बचाव करते है न्याय रक्षक होने से कभी कोई अन्याय करता है। उसका अनिष्ट कर देते है।
जीवन को ग्रह-दोषों, कष्ट-क्लेश, दुख-दर्द से दूर रखने तथा सुखमयी बनाने के लिये शास्त्रों में भी भगवान शिव की शरण में जाना लाभकारी बताया है।
वेद के भेद-
चारों वेद शिव के भेद से, तथा शिव पुराण, स्कंन्ध पुराण, भविष्य पुराण, हरिवंशपुराण, श्रीमद भागवत, सभी उपनिषद, संस्कृत भाष्यो में महादेव, महाकाल को ही हर विषम काल को काटने वाला बताया है। इसलिये माह में एक बार यदि संभव हो, तो प्रत्येक महिने की मास शिवरात्रि (अमावस्या के दिन पहले की चौदस) को जल में मधुपंचामृत चन्दन या गुलाब इत्र डालकर शिवलिंग का रूद्राभिषेक कराना चाहिये।
कुछ अन्य उपाय रविवार को राहुकाल 4:30 से 6:00 बजे के बीच छुआरे या पिण्ड खजूर करीब 100 ग्राम किसी शिवालय में 2 दीपक राहुकी तैल के जलावें इस छोटे से सभी सातो वार, पूरा महिना, पूरा साल सपरिवार सुखमय बीत सकेगा।
अपना उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए
भगवान शिव की उपासना करें, जैसे भी बने। बस श्रद्धा होनी चाहिए।
परम् शिवरूप, शिवभक्त शिवगिरि जी
महाराज कहतें थे-
भोग लगे या रूखे-सूखे
शिव तो है श्रद्धा के भूखे
पढ़ते रहें अमृतम पत्रिका
अमृतम दवाओं का सेवन कर तन-मन
स्वस्थ्य बनाएं।
अमृतम पत्रिका से साभार
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