आदि नामों से प्रसिद्ध है यह एक जंगली पौधा है, अक्सर सड़क किनारे, जंगलों में उगता है।
पुरानी खांसी के उपचार में कंटकारी अवलेह
सर्वोत्तम ओषधि है। इसका मूल घटक कटेरी बूटी है। गर्म प्रभाव और कसैले स्वाद के कारण कटेरी कफ और वात नाशक होती है। स्वेदजनक, ज्वरघ्न, कफ-वात-नाशक तथा शोथहर आदि गुणों के कारण आयुर्वेदिक चिकित्साके कासश्वास, श्वांस, दमा, कुकर खांसी आदि विकारों को मिटाने में चमत्कारिक है।
कटेरी या कंटकारी कांटेदार पौधा जमीन में फैला रहता है। कटेरी के पत्ते हरे रंग के सफेद धारीदार, फूल नीले और बैंगनी रंग के और फल गोल होते हैं।
आयुर्वेदीय चिकित्सा में कटेरी के मूल, फल तथा पंचाग का व्यवहार होता है। प्रसिद्ध औषधिगण ‘दशमूल’ और उसमें भी ‘लंघुपंचमूल’ का यह एक अंग है।
प्राकृतिक रूप से पाचन में सुधार लाकर मेटाबोलिज्म को मजबूत करती है।
अर्श की शोथयुक्त वेदना यानि दर्द के समय में कंटकारी का धुआँ दिया जाता है।
कंटकारी अथवा भटकटैया का
काढ़ा बनाने की विधि
भटकटैया का पूरा पौधा यानि पंचांग फूल, फल, पत्ती, तना, जड़ लेकर ठीक से धोकर साफ करें। इसको आठ 8 गुना पानी में डालकर तब तक उबाले जब तक कि दोगुना न रह जाये। इससे पुरानी से पुरानी खाँसी तो ठीक होगी ही। इसके साथ ही सारा कफ भी धीरे-धीरे बाहर आ जायेगा।
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कंठकारी के 10 पत्ते को पीसकर लेप बनाकर आंखों पर रखें। इससे नेत्रों को राहत एवं ठण्डक मिलती है और आंखों के दर्द में आराम मिलता है।
अधिक जानकारी के लिए आयुर्वेदिक ग्रन्थ
भावप्रकाश निघण्टु,
द्रव्यगुण विज्ञान का अध्ययन करें।
आंखों में किसी भी प्रकार की परेशानी मुक्ति हेतु
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लेख अमृतम पत्रिका जून2007 से लिया गया।
चित्र गुग्गल से साभार
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