बार-बार भूलने की आदत, याददाश्त की कमी आदि मस्तिष्क विकारों को अंग्रेज़ी चिकित्सा में अल्जाइमर रोग Alzheimer’s Disease कहलाता है।
इसका नाम एक मस्तिष्क वैज्ञानिक अलोइस अल्जाइमर पर रखा गया है, जिन्होंने सबसे पहले इस रोग का शोध करके विवरण दिया।
आयुर्वेद की और देख रही दुनिया….
पूरे विश्व के लोग अब एलोपेथिक चिकित्सा
से ऊब चुके हैं। अंग्रेजी दवाओं के दुष्प्रभावों ने अनेक नई बीमारियों को जन्म दिया है ।
भविष्य की चिकित्सा एलोपेथी से नहीं,
अमृतम आयुर्वेद पर निर्भर होगी ।
5000 वर्ष प्राचीन चरक सहिंता के मानसिक चिकित्सा अध्याय ९:८६, ८४ में कुछ श्लोकों का वर्णन है-
कामशोक भय क्रोधहर्षेष्:र्था लोभसन्मवान!
परस्पर प्रतिद्वंद्दैरेभिरेव शमं नयेत् !!
चरक चिकित्सा: ९-८६
देह दु:खभयेभ्योहिप र प्राणभयं स्मृतम्।
तेन याति शमं तस्य सर्वतो विप्लुतं मन:।।
चरक चिकित्सा:-८४
अपस्मार रोग चिन्तया, शोक, काम-क्रोध, द्वेष-दुर्भावना, जलन-कुढ़न, बुराई, अधिक बोलने-बक बक करने तथा उद्वेग आदि भावों की उपस्थिति तथा मनुष्य द्वारा..
अपवित्र भोजन से, स्नान के पहले अन्न ग्रहण करने के कारण धमनी यानि मनोवाही स्त्रोत में प्रसृत दोष ह्रदय को पीड़ित करते हैं, जिससे ज्ञानशून्यता उत्पन्न हो जाती है।
इन विपरीत पस्थितियों के दुष्परिणाम स्वरूप दिमाग क्रियाशील नहीं रह पाता तथा बार- बार भूलने की बीमारी यानि अल्जाइमर रोग उत्पन्न हो जाता है।
इसके दुष्प्रभाव के चलते अनुपस्थित रूपों को देखना, बुरा सोचना, नकारात्मक विचार, चलते समय गिर जाना, जिव्हा-नेत्र-भ्रू में स्फुरण, मुख से लालास्त्राव तथा हाथ-,पैर इधर-उधर फेंकना आदि पागलपन के लक्षण पैदा हो जाते है।
इस रोग का साम्य इपिलेप्सी से कहते हैं। यह ऐसी स्थिति है, जिसमें मस्तिष्क के उच्च केंद्रों के कार्य में सहसा विकृति उत्पन्न हो जाती है, जिसका प्रदर्शन वेगों या पागलपन के दौरों के स्वरूप में हुआ करता है।
कभी-कभी मस्तिष्क तन्त्र एवं शरीर के अन्य अंगों में अपक्रान्ति भी हो जाती है।
अल्जाइमर समस्या के लक्षणों में याददाश्त की कमी होना, सही समय पर सही निर्णय न ले पाना, बोलने में दिक्कत या हकलाहट आना आदि शामिल हैं।
रक्तचाप, मधुमेह, आधुनिक जीवनशैली और कभी-कभी सिर में कई बार चोट लग जाने से इस बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाती है।
अलजसिंर की तकलीफ 60 वर्ष की उम्र के बाद कोई काम न करने के कारण भी होने लगती है। दिन भर फालतू, नकारात्मक सोच इस रोग को बढ़ाता है।
आयुर्वेद के अलावा इस बीमारी का फिलहाल कोई स्थायी इलाज नहीं है।
हालाँकि बीमारी के शुरूआती दौर में नियमित जाँच और इलाज से इस पर काबू पाया जा सकता है। मस्तिष्क के स्नायुओं के क्षरण से रोगियों की बौद्धिक क्षमता और व्यावहारिक लक्षणों पर भी असर पड़ता है।
हम जैसे-जैसे बूढ़े होते जाते हैं, हमारी सोचने और याद करने की क्षमता भी कमजोर होती जाती है।
लेकिन इसका गंभीर होना और हमारे दिमाग के काम करने की क्षमता में गंभीर बदलाव उम्र बढ़ने का सामान्य लक्षण नहीं है।
यह इस बात का संकेत है कि हमारे दिमाग की कोशिकाएं मर रही हैं। दिमाग में एक सौ अरब कोशिकाएं (न्यूरॉन) होती हैं।
हरेक कोशिका बहुत सारी अन्य कोशिकाओं से संवाद कर एक नेटवर्क बनाती हैं।
इस नेटवर्क का काम विशेष होता है। कुछ सोचती हैं, सीखती हैं और याद रखती हैं। अन्य कोशिकाएं हमें देखने, सुनने, सूंघने आदि में मदद करती हैं। इसके अलावा अन्य कोशिकाएं हमारी मांसपेशियों को चलने का निर्देश देती हैं।
अपना काम करने के लिए दिमाग की कोशिकाएं लघु उद्योग की तरह काम करती हैं। वे सप्लाई लेती हैं, ऊर्जा पैदा करती हैं, अंगों का निर्माण करती हैं और बेकार चीजों को बाहर निकालती हैं।
कोशिकाएं सूचनाओं को जमा करती हैं और फिर उनका प्रसंस्करण भी करती हैं। शरीर को चलते रहने के लिए समन्वय के साथ बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन और ईंधन की जरूरत होती है।
अल्जाइमर रोग में कोशिकाओं की उद्योग का हिस्सा काम करना बंद कर देता है, जिससे दूसरे कामों पर भी असर पड़ता है। जैसे-जैसे नुक्सान बढ़ता है, कोशिकाओं में काम करने की ताकत कम होती जाती है और अंततः वे मर जाती हैं।
यह बढ़ने वाला और खतरनाक दिमागी रोग है।
अल्जाइमर से दिमाग की कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं, जिसके कारण याददाश्त, सोचने की शक्ति और अन्य व्यवहार बदलने लगते हैं। इसका असर सामाजिक जीवन पर पड़ता है।
समय बीतने के साथ यह बीमारी बढ़ती है और खतरनाक हो जाती है।
चरक चिकित्सा सूत्र के अनुसार वमन, नस्य, विरेचन आदि प्राकृतिक व आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा अल्जाइमर का उपचार सर्वश्रेष्ठ रहता है।
आयुर्वेद में इसकी चिकित्सा हेतु पंचगव्य घृत, वचादि घृत, amrutam
ब्रेन की गोल्ड माल्ट, ब्रेन की गोल्ड टेबलेट,
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अमृतम टेबलेट, ब्राह्मी रसायन, सारस्वतारिष्ट, डिटॉक्स एवं कुन्तल केयर हर्बल हेयर स्पा (हेम्पयुक्त) की क्वाथ आदि हर्बल मेडिसिन विशेष उपयोगी और लाभकारी हैं।
मात्र दवाओं के भरोसे न बैठें!!!!
कुछ खुद भी प्रयास करें…
■ प्रतिदिन धूप में बैठकर अभ्यङ्ग अवश्य करें।
■ ध्यान, कसरत, परिश्रम की आदत डालें।
कुछ विचित्र बातें…आपको प्रेरणा देकर मनोबल व भूलने की आदत से मुक्ति दिलाएंगी…
¶ दुनिया बुरे वक्त में लोग ज्ञान तो देते हैं, पर ध्यान नहीं देते।
¶ चित्त को चित्त यानी मात देना हमारी सबसे बड़ी जबाबदारी है।
¶ एकाग्रचित्त होकर हम सब कुछ पा सकते हैं।
¶ किसी भी कम से गहराई से पूरे मनोयोग से ध्यान लगाएंगे, तो उन्नति निश्चित मिलती है।
¶ पढ़ते समय कुछ भी रोचक नहीं लगता।
नियमित अध्ययन का अभ्यास करें
¶ यह वक्त भी गुजर जाएगा। यह शक्तिशाली शब्द है।
¶ जहाँ धैर्य है वही जीवन की धार है।
¶ शिरडी के साईंबाबा का मूल सूत्र है श्रद्धा और सबूरी बस इतना विचरते ही मन हल्का होने लगेगा।
¶ हमें मन पर अंकुश नहीं लगाना है, उसे खुला भी नहीं छोड़ना हैं।
¶ कई बार परिस्थितियां इसलिए भी विपरीत बनती हैं, ताकि आप कुछ जमाने को करके दिखाओ।
¶ कहते हैं-जिद्द करो, जोखिम उठाओ एवं धैर्य रखो और दुनिया बदलो।
¶ आपमें झुझारूपन, संघर्ष करने की बस ललक होनी चाहिए। आप हिले की सन्सार के गिले-शिकवे शुरू हो जाएंगे।
¶ सुबह को स्वास्थ्यवर्धक बनाएं
¶ साफ-सफाई पर ध्यान दें।
¶ नए-नए वस्त्र धारण करें।
¶ खाना स्वादिष्ट और हेल्दी हो।
¶ पखाना भी साफ हो।
इस हेतु amrutam tablet रोज रात को साढ़े जल से लेवें।
¶ मन को प्रसन्न रखने के लिए पहले अच्छा स्वस्थ्य शरीर जरूरी है। शरीर से ही सब सध जाएगा।
¶ मन कि बन्दिशें खीज पैदा करती हैं। ¶ अनिश्चितता से चिड़चिड़ापन आता है।
¶ जीवन में जोखिम उठाने से न डरें।
¶ अपने मन को में थोड़ा अमन देकर आगे बढ़ने की कोशिश करो। शायद सफलता आपका इंतजार कर रही हो।
¶ लोग आपको नमन तभी करेंगे, जब आप कुछ नया करोगे।
¶ खाली बैठने से बचें।
¶ थाली से मोह भंग करें।
¶ नाली यानी निगेटिव भरी भरी सोच को साफ करें।
¶ लड़कियों के गाल ओर लोगों की गाली पर ध्यान न दें।
¶ कुछ भी नया करें। रचनात्मक पर जोर दें।
¶ अपनी जरूरतों पर भी ध्यान दें।
¶ शरीर को रोज 20 मिनिट दीजिए।
¶ भूख से आधा खाइए।
¶ जब रक्त शरीर में तेजी से बहेगा, तो बीमारियों को भी भगा देगा।
¶ जो विचार-सोच ही हमारे अंदर का कच्चा माल अर्थात रॉ मटेरियल है।
¶ दिमाग में कुछ पाने की चाह है, तो राह निकल आती है।
¶ स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि व्यक्ति का ज्ञानी होना इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना उसकी परिकल्पना।
¶ बस, सपने ही अपने होते हैं। सपने देखने से विचारों में कुछ करने की ललक होने लगती है।
¶ देश के राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम साहब ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा है कि-सपने वे नहीं होते, जो सोने के बाद आते हैं। सपने इंसान को सोने नहीं देते।
¶ सन्सार के कुछ सिद्धान्त हैं। गीली लकड़ी को जलाना मुशिकल है। पहले उसे सुखाओ। ऐसे ही अपने अंदर के कच्चे माल को तरोताजा रखें। कोई न कोई आपकी मदद के लिए आगे आ ही जायेगा।
¶ जिद्दी आदमी ही दुनिया बदलने की क्षमता रखते हैं। समझौता वाला आज नहीं, तो कल रोता है और पता कुछ नहीं बस, खोता ही खोता है।
¶ आसान रास्ते हमें आगे नहीं बढने देते।
¶ दिमाग को तेज करने के लिए कुछ ऐसा करें, जो असहज हो, कठिन हो। मुश्किल हो।
¶ सरल मार्ग पर चलने से केवल अपस्मार, मानसिक कष्ट या डिप्रेशन उपजता है।
¶ जिद्दी लड़कियों ने कुश्ती, फुटबॉल, क्रिकेट आदि में बहुत नाम कमाया है। लेकिन इसके पीछे की दर्द भरी कहानी कम लोगों को पता है।
¶ सफलता मिलने तक रुको नहीं। केवल चलते रहो। एक दिन जब जीत मिलेगी, तो दुनिया आपसे प्रीत करने लगेगी। विजय पाने वाला ही बड़ा कहलाता है।
¶ 91 वर्ष के तेज धावक रहे मिल्खा सिंह के अनुसार फिटनेस से बड़ा इजिनेस कुछ नहीं!
अमृतम बुद्धि की क्वाथ….
Amrutam budhhikey kwath
कि-यह औषधि अपस्मार आदि अनेक मस्तिष्क विकारों को दूर कर डिप्रेशन को जड़ से मिटा देती है।
यह औषधि अवसाद आदि मानसिक रोगों के लिए एक सर्वोत्तम रसायन है, जो स्मृति भ्रम, याददाश्त और दिमाग की कमजोरी, मानसिक तनाव एवं बच्चों की आवाज को सुधारने के लिए कारगर है।
मन में अमन लेन के लिए भक्त रैदास का सूत्र अपनाओ….
!!मन चंगा तो कठौती में गंगा!!
अर्थात- जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती (चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरे पात्र) में भी आ जाती हैं।
आयुर्वेद और औषधि विज्ञान में कहा जाता है कि खोपड़ी के प्रत्येक ऑपरेशन के बाद मस्तिष्क पाया गया। वास्तव में यह सही है क्या? यह सोचने की बात है।
वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क पा लिया होता, तो ह्रदय की तरह मस्तिष्क भी भी आरोपित या प्रत्यारोपण किया जाता। मस्तिष्क आरोपित नहीं हो सकता, यह हमें इस बात काअहसास कराता है ..
कि – मस्तिष्क नाम की आज तक कोई इकाई विज्ञानवासियों को मिली ही नहीं।
फिर सत्य का आधार क्या है?
आधार की खोज सहज नहीं है। हम जो स्वीकारते हैं, वही सत्य बन जाता है।
हमारी याद्दाश्त को मजबूत और नींद को आसान बना दे-एक आयुर्वेदिक औषधि…
हार्वर्ड मेडिकल स्कुल की एक शोध के अनुसार कोरोना/कोविड-19 के दौरान 37 फीसदी युवाओं को नींद न आने की समस्या यानी अनिद्रा के कारण भरी परेशानी हो रही है।
इनमें 33 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिन्हें कोरोना संक्रमण का भय बना रहा।
वहीं 29% युवाओं को नोकरी जाने का डर, पैसे की तंगी की चिंता होने से भरपूर नींद नहीं आई।
मानसिक शांति हेतु अमृतम मधु पंचामृत भी सहायक है।
कुछ युवा भविष्य को लेकर तथा अकेलेपन के कारण भी परेशान रहे। यह सब अपस्मार
सभी चिंता, तनाव मिटाकर भरपूर नींद लाने के लिए आयुर्वेद में पुख्ता ओर शर्तिया कारगर इलाज है।
ब्राह्मी, शंखपुष्पी आदि।
आहार एवं विचारों की शुद्धता आपको जीने की शक्ति प्रदान करेगी। सबको माफ करके अपने आपको हल्का बनाओ। भूलने की आदत ठीक होगी। दिमाग तेज होने लगेगा। मन प्रसन्न रहेगा।
प्रकृति की गतिविधि में असंख्य कर्णप्रिय ध्वनियां हैं। हमारे महर्षियों ने मेंढक ध्वनि में वेदों के सामगान सुने थे। प्राचीन गयं भी सुना हुआ आहार की तरह है।
यह भी अनेकों बीमारियों से बचाता है।
आंखे शुद्ध सौंदर्य की आकांक्षा रखती हैं। नेत्रों से देखे गए विषय या चित्र हमारे भीतर जाकर संवेदना जगाते हैं। अच्छे दृश्य हमारे लिए आयुर्वेदिक आहार हैं और गन्दे दृश्य एलोपैथिक मेडिसिन। यह शरीर में दूषित रसायनिक परिवर्तन लाते हैं।
कान से सुने शब्द सालों तक हमारे ह्रदय में वास करते हैं। कर्णप्रिय ध्वनियां हमारे लिए आहार का काम करते हैं। संगीत कानों को आनंदित करता है।
नाक से सुगन्ध या दुर्गंध भीतर जाकर हमें प्रसन्न-अप्रसन्नता देती है। इसी से हमारा मन बदलता है।
गन्ध, स्पर्श भी आहार है। हम जब कभी अपने पशु को प्यार से सहलाते हैं, तो हमें और बिना झोली के फकीर यानी पशुओं को भी स्पर्श से परम् सुख मिलता है।
आहार शुद्धदौ सत्वशुद्धि स्त्वशुद्दौ ध्रुवा स्मृति:!
स्मृति: लाभै सर्व ग्रन्थिनां विप्रमोक्ष।।
अर्थात- आहार की शुद्धि से हमारे शरीर व जीवन की सत्वशुद्धि होती है। सत्वशुद्धि से स्मृति मिलती या बढ़ती है। स्मृति अतीत का स्मरण है।
अतीत की घटनाएं दिमाग में रहती हैं। इसमें पूर्वजन्म से लेकर गर्भ तक भी स्मृतियाँ होती हैं।
श्रीमदभागवत तथा आयुर्वेदाचार्यों के कथन अनुसार
मानव जीवन के याददाश्त की हलचल गर्भधारण के कुछ समय बाद शुरू हो जाती हैं। गर्भ के समय सब कुछ मां पर निर्भर करता है।
मां प्रसन्न रहेगी, तो बच्चा भी जीवन भर खुश रहेगा।
चरक सहिंता के मुताबिक- आहार को जीवों का प्राण बताया है। वह अन्न प्राण मन को शक्ति देता है।
बल, वर्ण और इंद्रियों को प्रसन्नता देता है।
जिंदगी में सुख-दुःख की छोटी सी परिभाषा बस इतनी है कि- आरोग्य अवस्था यानि कोई भी रोग न होना सुख है तथा रोग अवस्था अर्थात विकार, आधि-व्याधि का होना दुःख है।
आयुर्वेदिक शास्त्र कहते हैं कि भोजन उतना ही करें, जिससे उदर पर दबाब न पड़े। ह्रदय की गति पर अवरोध न हो। इंद्रियां भी तृप्त रहें।
महर्षि चरक के मतानुसार सत्व-रज-टीम के प्रभाव से मन तीन तरह का दिखाई पड़ता है। परंतु वह एक ही है।
मन-बुद्धि के सम या समान योग से व्यक्ति स्वस्थ्य रहता है। इनके अतियोग से रोग होने लगते हैं।
वर्तमान में फास्टफूड, मांसाहार के नवीन तरीके, शराब की बढ़ती खपत से सबक खोपड़ा यानि बुद्धि पथभृष्ट होतिबज रही है। इस कारण नित्य नए-नए रोग बढ़ रहे हैं।
आप सोचो… ,जिनका लोग मांस खा रहे हैं उनकी माँ पर क्या गुजरती होगी। मीडिया या सोशल मीडिया ने भारत की संस्कृति को मटियामेट कर दिया।
कहा गया है कि –
!!अन्न न निंन्द्यात!! अर्थात अन्न की निंदा कभी न करें। अन्न ही सबका प्राण है। प्राण ही अन्न ओर शरीर भी न है। न ही अन्न में प्रतिष्ठित है। यह जो जान लेता है वह महान हो जाता है।
अतः अन्न का अपमान न करें।
!!अन्न न परिचक्षीत तद्र व्रतम!!
मतलब- जल भी न है, जल में तेज है, तेज जल में प्रतिष्ठित है।
अन्न भुकुर्वीत … यानि पृथ्वी अन्न है, आकाश अन्नाद् है। आकाश में पृथ्वी है और पृथ्वी में आकाश है।
Ayurveda Life Style है, जो कि ओनली ऑनलाईन ही उपलब्ध है।
असन्तुलित वात-पित्त-कफ अर्थात त्रिदोषों की जांच स्वयं अपने से करने के लिए यह अंग्रेजी की किताब आयुर्वेदा लाइफ स्टाइल
केवल ऑनलाइन उपलब्ध है-
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अपनी तासीर के मुताबिक निम्नलिखित क्वाथ आपको स्वस्थ्य और सुखी बनाने में मदद करेंगे।
【1】कफ की क्वाथ 【कफविनाश】
【2】वात की क्वाथ 【वातरोग नाशक】
【3】पित्त की क्वाथ 【पित्तदोष सन्तुलित करे】
【4】डिटॉक्स की क्वाथ 【शरीर के सभी दुष्प्रभाव, साइड इफ़ेक्ट मिटाता है】
यह क्वाथ सभी तरह की डाइबिटीज पीड़ितों के लिए बहुत मुफीद है।
【5】बुद्धि की क्वाथ 【मानसिक शांति हेतु】
उपरोक्त ये पांचों क्वाथ तासीर अनुसार सर्वरोग नाशक और देह को तन्दरुस्त बनाने में सहायक हैं।
यह जड़मूल से रोगों का नाशकर रोगप्रतिरोधक क्षमता यानि इम्युनिटी को तेजी से बढ़ाते हैं।
■ आयुर्वेद ‘मां’ की तरह है और एलोपैथी ‘पत्नी’ के समान। मां के आशीर्वाद से कोई भी सौ साल से अधिक जी सकता है
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