आयुर्वेद में काम शक्ति एवं ऊर्जा को बढ़ाने के लिए विभिन्न उपाय बताए गए हैं।

जिनका नियमित इस्तेमाल किया जाना चाहिए कम ऊर्जा बहुत शक्तिशाली होती है।

अतः इसे दबाना नहीं चाहिए सावधानीपूर्वक इसका रचनात्मक कार्यों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

काम ऊर्जा को दबाना अथवा उचित माध्यम से इसे अभिव्यक्ति ना देने से अनेक प्रकार के मानसिक अथवा शारीरिक रोग उत्पन्न हो सकते हैं

सचेतन व्यक्ति को काम शक्ति वर्धक उपायों का नियमित प्रयोग करना चाहिए क्योंकि गुण संपत्ति सुख तथा ख्याति इन्हीं पर निर्भर करती है

आयुर्वेदिक साहित्य में विभिन्न प्रकार के पदार्थों का वर्णन है जिनका प्रयोग करने से काम क्षमता प्रजनन क्षमता काम इच्छा स्तंभन शक्ति तथा शुक्र धातु की वृद्धि होती है

यह पुस्तक सामान्य पाठकों के लिए नहीं है अतः यह तकनीकी स्तर में नहीं जाएंगे परंतु यहां समझना बहुत आवश्यक है कि आयुर्वेद में कामोद्दीपक का क्या अर्थ है ?

कामोद्दीपक वाह पदार्थ चिड़िया अथवा कारक है जो इन में से किसी एक में वृद्धि करता है काम क्षमता, प्रजनन क्षमता, काम इच्छा, स्तंभन ,रति स्त्राव ,

तथा यौन आकर्षण इसके ठीक विपरीत कामनिग्रही वह पदार्थ, क्रिया अथवा कारक है जो उपयुक्त विशेष गुणों में कमी लाता है

वर्तमान संदर्भ में हमारा मुख्य उद्देश्य कामोद्दीपको का अध्ययन करना है कामनिग्रहियो का ज्ञान होना भी दो कारणों से बहुत आवश्यक है

1. कामनिग्रही प्रभाव डालने वाले कारकों को दूर करने के लिए जिससे वह काम अभिव्यक्ति में बाधक ना बने

2. कभी-कभी स्त्री और पुरुष की कान अभिव्यक्ति में एक बड़ा अंतराल आ जाता है किसी एक की अत्यधिक क्षमता दूसरे की क्षमता के लिए बाधक बन जाती है

ऐसी स्थिति में दोनों के बीच संतुलन बिंदु लाने के लिए कामनिग्रही उपायों को प्रयोग में लाना पड़ता है

अतः कामनिग्रही पदार्थों तथा कारकों का वर्णन करना आवश्यक है क्योंकि इनकी उपेक्षा करने से काम ऊर्जा के निर्बाध प्रवाह को नियंत्रण करना कठिन हो जाएगा

कामनिग्रही कारक तथा पदार्थ :– हमारी आधुनिक मशीनें जीवन पद्धति ही अपने आप में अत्यधिक कामनिग्रही है

अत्यधिक उद्योगपरक तथा तकनीकी रूप से विकसित देशों तथा विश्व भर के महानगरों में लोगों का जीवन मशीन की तरह हो गया है

आज जीवन में अत्यधिक कार्य शीलता है तनाव दबाव और बहुत दौड़ भाग है सब कुछ पूर्व निर्धारित तथा सुनिश्चित है

जीवन में उन्मुक्त प्रवाह के लिए स्थान नहीं रह गया है झूमते पेड़ों, खिलते फूलों, चहचहाते पक्षियों जल के कलरव तथा वायु की साए साए उठते चांद

और छुपते सूर्य का आनंद लेने के लिए अब ना किसी के पास समय बचा है ना मानसिकता महानगरों में रहने वालों को चंद्रमा की कलाएं

तथा तिथियां ज्ञात नहीं होती वे प्रायः बंद स्थानों में कृत्रिम प्रकाश तथा कृत्रिम जलवायु में काम करते हैं यद्यपि उनके पास खाली समय होता है

परंतु जीवन शैली ही ऐसी है कि वह भी किसी ना किसी काम की भेंट चढ़ जाता है जब लोगों के दिमाग पर हर समय कुछ ना कुछ करने का भूत सवार रहता है

तो फुर्सत का समय जैसी कोई चीज को ही कैसे सकती है ऐसी व्यस्तता के वातावरण में काम की अभिव्यक्ति भी मशीनी होने लगी है

दो साथियों के फुल कर मिलने जैसी प्राकृतिक सुंदरता और भावुकता कि अब इसमें गुंजाइश ही कहां बची है जैसे प्रायः हर शनिवार को खरीदारी के लिए निकलते हैं

उसी प्रकार यौन सुख प्राप्ति के लिए भी एक निश्चित और पूर्व निर्धारित क्रम बांधना पड़ता है क्योंकि लोग फुर्सत में नहीं है और उनकी जीवनशैली व्यस्तताओं से भरी है

लोगों में एकाग्रता नयापन और कल्पना का एकदम आभाव है रतिक्रिया को वे अब एक मशीनी क्रिया मानने लगे हैं जो उनके अनुसार संपन्न हो ही जाएगी

स्विच ऑन या स्विच ऑफ का दृष्टिकोण घर कर गया है परंतु प्राकृतिक नियमों क्रियाओं तथा चीजों को ऐसे आदेश नहीं दिया जा सकता

जैसे कि हम सूर्य को कहें कि वह आधी रात को निकले तथा बसंत को कहे कि वहां शीत ऋतु में आ जाए इसी तरह काम इच्छाओं तथा भावनाओं को हम आदेश दें कि वे एक निश्चित समय पर

और विशेष परिस्थिति में आए तो संभव नहीं पर्यावरण प्रदूषित होने का दुष्परिणाम यह हुआ कि ओजोन परत मैं छेद हो गया और सूर्य की किरणें अब त्वचा कैंसर पैदा कर सकती हैं

इसी प्रकार मशीनी जीवन पद्धति अपनाकर हमने यौन संबंधों की क्रिया को जो धरती पर प्रजनन द्वारा मानव जाति का आधार है समस्याओं से भर दिया है

जब काम ऊर्जा अवरुद्ध हो जाती है तो यह शरीर की अन्य ऊर्जा वाहिनीयों को भी अवरुद्ध कर देती है जैसे रति स्त्रावो मैं कमी काम इच्छा होते हुए भी उत्तेजना ना होना

क्षमता में कमी स्तंभन काल का घटना यदि यह समस्याएं लंबे समय तक चलती रहे तो वे धीरे-धीरे इकट्ठा हो जाती हैं और परिणाम स्वरूप अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं

अतः यह मानकर मत चलिए कि काम संबंधी समस्याओं से केवल यौन सुख ही बाधित होता है यह समस्याएं रोगों की भी जननी है अतः इनके प्रति सावधान रहिए और यह समस्या आने ही ना दीजिए

ऊपर जिन समस्याओं का वर्णन किया गया है उन को ध्यान में रखते हुए आपको अपनी जीवनशैली को इस प्रकार बनाना चाहिए कि काम ऊर्जा के प्रवाह में कोई बाधा ना आए

आयुर्वेदिक जीवन पद्धति का विस्तार से वर्णन पहले ही कर चुकी हूं आयुर्वेदिक जीवन पद्धति हमें मशीनीकरण से मुक्त करके हमारा परिचय अपने आप से कराती है

और हमें आत्मसाक्षात्कार की ओर ले जाती है रतिक्रिया में स्त्री-पुरुष दोनों का पूर्ण समर्थन तथा उनकी काम उर्जाओं का एकाकार होना अनिवार्य है।

दोनों के बीच ऊर्जा का प्रवाह अति तीव्र होता है। दोनों ही यह चाहते है कि अपने-आपको अपने साथी में पूरी तरह समाविष्ट कर दें।

इसीलिए यह आवश्यक है कि उनके बीच होने वाले काम-ऊर्जा प्रवाह में कोई व्यवधान न पड़े, अन्यथा वे एकाकार नहीं हो पायेंगे

और पूरी तरह एक हुए बिना ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ एकाकार होने का अनुभव नहीं कर पायेंगे।

हमारे युग में कामनिग्रही का काम करने वाला एक और कारक है, और वह है अश्लीलता का विस्तार, व्यवसायीकरण तथा स्त्री-शरीर के प्रति असम्मान भाव ।

यह बात शायद कुछ लोगों के गले न उतरे, क्योंकि प्राय: अश्लीलता को कामोद्दीपन का पर्याय माना जाता है ।

वास्तविकता यह है कि मास-मीडिया में स्त्रियों के कामोद्दीपक चित्र, नंगा स्त्री-शरीर या सहवास-क्रिया जैसे चित्र देखने से मंद गति से काम-ऊर्जा स्खलित होती है

और उसका परिणाम होता है काम-क्षमता को कमी । स्त्री-पुरुष के रिश्ते में जो सूक्ष्मता, रहस्यमयता और आदर-भाव है वह समाप्त हो जाता है।

लोग यौन संबंधों के प्रति उपभोक्ता वाला दृष्टिकोण अपनाने लगे हैं । गुण के स्थान पर मात्रा को महत्त्व दिया जाने लगा है।

सावधानी, धैर्य, प्यार, सुरक्षा तथा सम्मान जो यौन-संतुष्टि के अनिवार्य अंग है, अब लोगों के दिमाग से निकल चुके हैं ।

लगता है इस मामले में हम सबको (आधुनिकतावादी भारतीयों को भी) प्राचीन भारतीयों से बहुत कुछ सीखना होगा जो काम-भावना और आध्यात्मिकता को समान रूप से पवित्र मानते थे

प्राचीन काल में मंदिरों की दीवारों पर काम-वासना पर आधारित चित्र बनाये जाते थे । जो जीवन में इन्द्रिय-सुख के महत्त्व को दर्शाते थे।

प्राचीन भारतीयों की यह मान्यता थी कि जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि उससे पहले हम समस्त इन्द्रिय-सुखों को पूरी तरह अनुभव कर लें ।

इन्द्रियों को माँग और काम-वासना को दबाने की बात कभी नहीं सोची गई । इन्हें भोगने और संतुष्टि प्राप्त करने पर बल दिया गया।

भारत में प्राचीन काल में प्राय: लोग जीवन के समस्त सुखों का भोग करने के बाद संसार को त्यागकर मुक्त पाने के लिए तपस्या करने हिमालय की गुफाओं में चले जाते थे।

वे योगी या सन्त कहलाते थे । वहाँ वे विभिन योग-क्रियाओं द्वारा अपनी इन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण कर मुक्ति प्राप्त करने में लग जाते थे।

यह जीवन का अंतिम लक्ष्य माना जाता था । तपस्या काल में काम-ऊर्जा को आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्ति में लगाकर उसका रचनात्मक उपयोग किया जाता था ।

ऐसी कहानियाँ भी पाई जाती है जब कोई योगी अपनी काम-ऊर्जा को आध्यात्मिक साधना में लगा पाने में असमर्थ रहता था तो वह इन्द्रिय-सुखों के संसार में वापस आ जाता था,

ताकि वह इन्द्रिय-सुखों में तुष्टि प्राप्त कर अपनी इन्द्रियों पर विजय पा सके । मंदिरों की दीवारों पर काम-भावनाओं के चित्रों के माध्यम से ऐसी अनेक कहानियाँ चित्रित हैं

जो इस गंभीर दार्शनिक विचार को प्रकट करती हैं । इसी प्रकार स्त्री-पुरुष के संबंधों की पवित्रता को महत्त्व दिया जाता था । इसे बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था ।

स्त्री-पुरुष के बीच यौन-संबंध स्थापित कराने से पहले सामाजिक, स्तर पर अनेक उत्सव किए जाते थे ताकि इस कार्य को सचेतन एवं आध्यात्मिक रूप मिल सके।

हाल के कुछ वर्षों में जिस स्थिति ने काम-संबंधों को हानि पहुँचाई है, वह है संयुक्त परिवार प्रथा से निजी परिवार की ओर जाना तथा रीति-रिवाजों-परम्पराओं का लुप्त हो जाना ।

हो सकता है कि आधुनिक युग में प्राचीन अनुष्ठानों व रीति-रिवाजों का पूरी तरह पालन न किया जा सके, परन्तु स्थान और काल के अनुसार हम उनमें समुचित संशोधन कर उनका पालन कर सकते है।

धार्मिक अनुष्ठान अथवा कर्मकाण्ड हमें आत्म-जागृति तथा आत्म-परिचय का अवसर देते हैं, वे हमें जीवन के प्रति सचेतन बनाते हैं जो वर्तमान संदर्भ में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं |

पति-पत्नी वाले परिवार में दम्पति एक-दूसरे के इतना अधिक साथ रहते हैं कि ऊब उत्पन हो जाती है। कभी-कभी इससे सामाजिक और काम-संबंधों का संतुलन बिगड़ जाता है ।

जब हम जीवन के विभिन्न कार्यों को करते समय परिवार के अन्य सदस्यों जैसे माता-पिता, भाई बहन आदि के बीच होते हैं तो हमारा पूरा ध्यान पूरी तरह एक ही व्यक्ति पर केन्द्रित रहता है और वह है

हमारा जीवन साथी । इस प्रकार का जीवन जीने से जीवन-साथी हमारे समूचे भाव-जगत के केन्द्र में रहता है। जब एकान्त में मिलने का अवसर हाथ आता है

तो पूरी भावुकता उमड़ पड़ती है और गहन यौन-सुख प्राप्त होता है । अकेले रहने में एक दोष यह भी है कि कई दम्पति यौन-संबंधों में अति कर जाते हैं

और इस संबंध की पवित्रता और गरिमा समाप्त हो जाती है। जीवन का यह पवित्र और

मधुर संबंध उपभोक्तावादी सोच का शिकार हो जाता है । यह मानव- स्वभाव है कि जब दो व्यक्ति सदैव साथ रहते हैं

तो वे एक-दूसरे के साथ से इतने ऊब जाते है कि वे एक-दूसरे के दोष देखने लगते हैं और एक दूसरे की आलोचना करने लगते हैं, यहाँ तक कि बुरी तरह चिढ़ने लगते हैं।

यदि परिवार के अन्य लोग भी साथ रहते हों तो उन्हें धैर्य रखना आ जाता है, एक-दूसरे के केवल गुण देखते हैं तथा एक-दूसरे की प्रशंसा भी करते हैं ।

एकान्त का समय सीमित होने के कारण काम-ऊर्जा का संचय होता रहता है । संचित काम-ऊर्जा यौन- समागम के समय तीव्र गति से बहती है

और सारे व्यवधानों को धकेलती हुई बंद ऊर्जा-वाहिनियों को खोल देती है और उच्चकोटि के यौन-सुख की प्राप्ति होती है ।

चाहे जब यौन-संबंध स्थापित करने में सतही यौन-सुख मिल पाता है काम-वासना तथा आत्म-अभिव्यक्ति में व्यवधान का एक और बड़ा कारण होता है बच्चे का जन्म ।

बच्चे का दम्पति के जीवन में आना एक बड़ा परिवर्तन होता है। यद्यपि इससे माता- पिता के यौन-संबंध स्थापित करने में कोई बाधा नहीं पड़ती ।

यौन-संबध सामान्य रहते हुए भी दो कारणों से भावना में भारी अंतर आ जाता है-वह स्त्री जो पत्नी के रूप में केवल पति के लिए ही समर्पित थी,

बच्चा होते ही अपना पूरा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित कर लेती है तथा जीवन के अन्य पक्षों की उपेक्षा करने लगती है। आगे चलकर इस प्रवृत्ति की उसे भारी कीमत चुकानी पड़ती है।

पुरुष उसकी इस उपेक्षा को सह नहीं पाता । यह ठीक है कि बच्चा मा की कोख में नौ महीने रहता है, वह उसके शरीर का ही हिस्सा होता है,

परन्तु फिर भी उसे बच्चे के साथ इतना व्यस्त नहीं हो जाना चाहिए कि पुरुष साथी की भावनाओं का ध्यान ही न रहे ।

बच्चे के जन्म के बाद उसे बच्चे के साथ उसी प्रकार के संबंध रखने चाहिए जैसे कि अन्य संबंधियों के साथ होते है। उसे अपने व्यक्तित्व और समय को पूरी तरह बच्चे में ही नहीं लगा देना चाहिए।

उसे अपने आप पर पूरा ध्यान देना चाहिए । अपना पूरा प्यार और ऊर्जा उसे बच्चे पर ही खर्च नहीं करनी चाहिए। अपने साथी के लिए भी उसे बीच-बीच में समय निकालना चाहिए।

उस समय बच्चे से ध्यान हटाकर यौन-सुख में डूब जाना चाहिए। इसी प्रकार पुरुष को भी अपने बीच तीसरे व्यक्ति के आगमन का पूरा अहसास होना चाहिए।

उसे बच्चे के कामों में अपनी संगिनी का हाथ बंटाना चाहिए। उसे बच्चे को प्यार करता चाहिए तथा स्त्री को पूरा सहयोग देना चाहिए ।

इस समय दम्पति को कुछ काम-शक्तिवर्दक पदार्थों का सेवन करना चाहिए ।

स्त्री के लिए तो यह बहुत ही आवश्यक है जिसमें बच्चे के जन्म के कारण अनेक प्रकार के शारीरिक तथा मानसिक परिवर्तन आ जाते हैं।

काम-भावना और बच्चे के जन्म के बारे में विस्तार से दूसरे स्थान पर बताया गया है।” दूसरा कामनिग्रही कारक है नींद की गोलियाँ लेना ।

आधुनिक युग में अनेक लोग इतने व्यस्त है कि वे रात को नींद की गोलियां लिए बिना सो भी नहीं सकते । लगातार नींद की

गोलियां लेने से शरीर पर ऐसा दुष्प्रभाव पड़ता है कि धीरे-धीरे व्यक्ति की काम-इच्छा, उत्तेजना, स्तम्भन तथा शुक्र में कमी आ जाती है ।

अत: नींद की गोलियाँ कभी न लें। यदि नींद नहीं आती तो पहले खण्ड में बताये गये दूसरे उपाय कीजिए।

उपरवर्णित कारक हमारे युग में कामनिग्रही (काम सादक) का कार्य करते हैं तथा काम-ऊर्जा के प्रवाह में बाधक हैं ।

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इस बाधाओं को दूर करने का हमें पूरा प्रयास करना चाहिए । इन बाधाओं को दूर किए बिना काम-शक्तिवर्द्धक पदार्थों का इस्तेमाल करने से भी कोई लाभ नहीं होगा ।

कल्पना कीजिए कि आप जल के एक स्रोत से अपने खेत तक जल पहुंचाना चाहते हैं । पानी पहुंचाने वाले मार्ग का

तल ढलवा करने के साथ-ही-साथ आपको इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि बहाव के मार्ग में ईंट-पत्थर आदि तो नहीं है ।

यदि मार्ग में ईंट-पत्थर आदि पड़े रह गये तो आपका मार्ग बनाने में किया गया पूरा श्रम बेकार जायेगा । बाधाओं के कारण पानी खेत तक पहुंचने से पहले ही इधर-उधर बिखर जायेगा ।

(देखिए चित्र)

आइए, अब आपको कुछ कामनिग्रही पदार्थों से परिचित करा दें । कुछ मामलों में आवश्यकता पड़ने पर ये काम-शक्ति को कम करने में सहयोगी होते हैं ।

सबसे सरल और आसानी से उपलब्ध होने वाले पदार्थ हैं- धनिया । धनिये के बीजों का इस्तेमाल किया जाता है ।

कुछ दिनों तक नियमित एक चम्मच धनिये के बीज पीसकर पानी के साथ लीजिए । इसे अगला किसी अन्य मसाले के साथ मिलाकर न खाएँ

क्योंकि धनिये के अतिरिक्त अन्य सभी मसाले काम-शक्तिवर्द्धक है। कड़वे स्वाद वाली कुछ जड़ी-बूटियों का प्रभाव भी कामनिग्रही होता है ।

जो लोग मांस का शोरबा , अदरक, लहसुन तथा तेज मसालों से युक्त अन्य भोजन करते हैं, पुरानी शराब पीते हैं, मीठे स्वाद वाले खाद्य एवं पेय पदार्थ लेते हैं,

उनकी काम-शक्ति प्रबल होती है । अत: काम- शक्तिवर्द्धक भोजन में कुछ कमी लाकर भी बढ़ी हुई काम-उत्तेजना तथा कामेच्छा को कम किया जा सकता है ।

आयुर्वेद में और भी अनेक प्रकार के कामनिग्रही पदार्थों का वर्णन है, परन्तु उनके तीव्र प्रभाव तथा अनुपलब्धता के कारण उनका यहाँ वर्णन करना अनुचित है ।

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