अदरक यानी सोंठ के फायदे….
रुचिकारक, आमवातनाशक, पाचक, कटूरस, युक्त, लघुपाको, स्निग्ध, उष्णवीर्य, विपाक में मधुर रसयुक्त, कफ, वात और विबन्ध (विवद्धता) को दूर करने वाली, वृष्य, स्वर के लिये हितकारी।
- वमन, श्वास, शूल, कास, ह्रदय रोग, श्लीपद, शोध, बवासीर, आनाह और उदर की वायु इन सभी रोगों को दूर करती है और जो द्रव्य अधिकतर अग्नि सम्बन्धी गुणों से युक्त होने से जलीय अंश को सूखाने वाला तथा मल का संग्राहक अर्थात् पतले मल के जलीय भाग को सुखाकर गाढ़ा करने वाला होता है वह ‘ग्राही’ कहलाता है,
- जैसे कि—साँठ आदि। अब यहाँ पर प्रश्न उपस्थित होता है कि जो सोंठ विबन्ध (बँधे हुये मल) का भेदन करने वाली होती है वह कैसे ग्राही होगी ? क्योंकि अभी अपने ग्राही द्रव्य का ‘मल को गाढ़ा करना’ लक्षण बतलाया है। इसका उत्तर यह है कि इस द्रव्य का यह प्रभाव है कि यह विबंध (मलबद्धता) को दूर करने में तो समर्थ होती है, किन्तु मल के गिराने में नहीं होती है, क्योंकि आश्रय भेद से द्रव्यों के कर्मों में भी प्रभाववश भिन्नता हो ही जाती है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। [४४-४८]
सूखने के बाद उसे शुंठी कहते हैं। शुंठी के शास्त्रों इन सैंकड़ों संस्कृत श्लोक लिखे हुए हैं।
अथ शुण्ठ्यानामानि गुणांचाह
शुण्ठी विश्वा च विश्वञ्च नागरं विश्वभेषजम्
ऊषणं कदुभद्रश्च शृङ्गवेरं महौषधम् ॥४४॥
शुण्ठी रुच्यामवातघ्नी पाचनी कटुका लघुः
स्निग्धोष्णा मधुरा पाके कफवातविबन्धनुत् ॥४५॥
वृष्या ‘स्वय्यांवमिश्वासशूलकासहदामयान् ।
हन्ति श्श्लीपदशोथार्श आनाहोदरमारुतान् ॥ ४६॥ आग्नेयगुणभूयिष्ठात् तोयांशपरिशोषि यत्।
संगृह्णाति मलं तत्तु ग्राहि शुण्ठ्यादयो यथा ॥४७॥ विवन्धभेदिनी या तु सा कथं ग्राहिणी भवेत्। शक्तिर्विवन्धभेदे स्याद्यतो न मलपातने ॥४८॥
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- सोंठ के नाम तथा गुण-शुण्ठी, विश्वा, विश्व, नागर, विश्वभेषज, ऊषण, कटुभद्र, शृङ्गवेरे और महौषध ये सब संस्कृत नाम सोंठ के हैं।
शुण्ठी- शुण्ठति हन्ति कर्फ वातश्चेति शुठि प्रतिघाते। अथवा, शुण्ठति शोषयति कफमामञ्चेति, शुठि शोषणे अथवा स्वयमेव शुष्कत्वात् शुण्ठीति ।
(यह वात कफ आदि दोषों को कम करती है या कफ आम आदि को सुखा देती है। सूखी अवस्था में प्रयुक्त होने से भी शुण्ठी कहलाती है।)
- सोंठ के विभिन्न नाम…हि०- सोंठ, सौठं, सूंठ, सिंघी ब०-शुंठ, शुण्ठि, सुंट। मा० सूंठ सिंहली वेलिच इङ्गुरु गु०- शुंठ्य, सुंठ सूंठ क०-शुंठि, शोठि, ओणसुठि, वेनंशुठी ते०-शोठी, सोंठी, सोटि। ता० शुक्कु । प०-सुंड। मला० – चुक्कु ब्रह्मी०-गिन्सीखियाव। फा०-जञ्जबील, जजबीलखुश्क। अ०-जञ्जबीले आविस। अॅ०-Dry Zingiber (ड्राइ जिजिबेर), Ginger (जिंजर)। ले०-Zingiber officinale Roscoe (जिजिबेर ऑफिसिनेल) Fam. Zingiberaceae (जिजिबेरॅसी) ।
- सुखाई आदी या अदरक को सोंठ कहते हैं। सुखाने की विधि के अनुसार इसके स्वरूप में अंतर पाया जाता है। आदी को खूब स्वच्छ कर पानी या दूध में उबालकर सुखाते हैं। प्रायः सोंठ दो प्रकार की होती है, एक रक्ताभ भूरी और दूसरी सफेद चूने के साथ शोधन करने से यह सफेद तथा टिकाऊ हो जाती हैं। जिनमें रेशे बहुत कम होते हैं, वह अच्छी समझी जाती है।
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- सोंठ के रासायनिक संगठन– सोंठ में १-३% उड़नशील तैल रहता है। जिजेरोल तथा शोगोल नामक इसमें कटु द्रव्य है। इसके अतिरिक्त इसमें रेजिन तथा स्टार्च रहता है। अच्छी सोंठ में राख ६% से अधिक नहीं रहती जिसमें से जल में घुलनशील राख की मात्रा १.७% से कम न होनी चाहिये। इसमें मद्यसार में घुलनशील सत्त्व ४.५% से कम तथा जल में घुलनशील सत्त्व १०% से कम न होना चाहिये।
गुण और प्रयोग-सोंठ अनेक रोगों में अन्य औषधियों के साथ उपयोग में आती है। सोंठ, मिरिच और पीपल तीनों मिलकर त्रिकटु कहलाती है जिसका बहुत व्यवहार होता है। यह एक उत्तम पाचक, कफघ्न, वातहर एवं उत्तेजक सुगन्धित द्रव्य है। इससे उदरगत वायु के कारण होने वाले उदरशूल, हृत्छूल में लाभ होता है। इसके सेवन से पाचन क्रिया ठीक होकर उदर में वायु का सञ्चय नहीं होता। जीर्ण सन्धिवात में विशेषतः वृद्धों में इसके फांट का नित्य रात में प्रयोग लाभकारी होता है। यह उष्ण एवं वातहर होने से किसी भी प्रकार की पीड़ा में लाभकारी है। गरम जल में सोंठ के चूर्ण का लेप शिरःशूल, वातनाड़ीशूल एवं दन्तशूल में उपयोगी है पसीना अधिक होकर हाथ
और पैरों में शीत आने पर इसके चूर्ण को रगड़ने से रक्ताभिसरण की क्रिया ठीक होकर शीत दूर
होता है। यह कफघ्न होने के कारण इसका प्रयोग श्वास, कास प्रतिश्याय, गले के रोग, स्वरभङ्ग इत्यादि में किया जाता है। इसके लिये इसका फांट बनाकर लेना चाहिये। आमदोष दूर करने के लिये सोंठ के चूर्ण को घी के साथ सुबह लेना चाहिये। इससे आमातिसारजन्य शूल दूर होता है। गुड़ के साथ सोंठ का उपयोग अर्श, अजीर्ण, अतिसार, गुल्म, शोध, प्रमेह, कामला आदि में किया जाता है। बल्य औषधियों के साथ सौंठ का उपयोग क्षतक्षीण एवं दुर्बल रोगियों के लिये उपयोगी
है। विरेचक औषधियों के साथ सोठ लेने से हल्लास, पेट में मरोड़ या ऐंठन नहीं होती।
मात्रा- चूर्ण २५०-१००० मि.ग्रा.
अथार्द्रकस्य नामानि गुणाँचाह
आर्द्रक शृङ्गवेरं स्यात्कटुभद्रतथाऽऽद्रिका
आद्रिका भेदिनी गुर्वी तीक्ष्णोष्णा दीपनी मता ॥४९॥ कटुका मधुरा पाके रूक्षा वातकफापहा ।
ये गुणाः कथिताः शुण्ठ्यास्तेऽपि सन्त्या के खिलाः।५०।भोजनाग्रे सदा पथ्यं लवणाईकभक्षणम्।
अग्निसन्दीपनं रुच्यं जिह्वाकण्ठविशोधनम् ॥५१॥
कुष्ठपाण्ड्वामये कृच्छ्रे रक्तपित्ते व्रणे ज्वरे।
दाहे निदाघशरदोर्नैव पूजितमार्द्रकम् ॥५२॥
- अदरख के नाम तथा गुण-आर्द्रक, शृङ्गवेर, कटुभद्र और आर्टिका ये संस्कृत नाम अदरख के हैं। अदरख मल का भेदन करने वाली, पाक में गुरु, तीक्ष्ण, उष्णवीर्य, अग्निदीपक, कटुरसयुक्त, विपाक में मधुर रसयुक्त, रूक्ष, वात तथा कफ को नष्ट करने वाली होती है और जितने गुण पूर्व में सोंठ के कहे गये हैं, सभी गुण अदरख में भी रहते हैं। भोजन करने के प्रथम सर्वदा सेंधा नमक के साथ अदरख खाना हितकारी होता है क्योंकि यह अग्नि को दीप्त करने वाला, रुचिकारक, जिहा तथा कण्ठ का शोधन करने वाला होता है। कुष्ठ, पाण्डुरोग, मूत्रकृच्छ्र, रक्तपित्त, व्रण, ज्वर, दाह इन रोगों में एवं ग्रीष्म तथा शरद ऋतुओं में अदरख खाना हितकर नहीं है। [४९-५२]
सोंठ-शुठा–(Zingiber officinale) ७
शुडो विश्वा च विश्वं च नागरं विश्वभेषजम्।
ऊषणं कटु भद्रं च श्रृंगवेर महौषधम् ॥४४॥ शुण्ठोरुच्यामवातघ्नो पाचनो कटुका लघुः।
स्निग्धोष्णा मधुरापाके कफवातविबंधनुत्॥४५॥
वध्या स्वर्या वमिश्वासशूलकासहृदामयान्।
हन्ति श्लीपदशोफार्श आनाहोदरभारुतान्॥४६॥ आग्नेयगुणभूयिष्ठं तोयाशं परिशोषयत् ।
संगृहणाति मलं तत्तु ग्राहि शुठचादयो यथा॥४७॥ विबंधभदनी या तु सा कथं ग्राहिणी भवेत् । शक्तिविबंधभेदे स्यान् यतोन मलपातने ॥४८॥
शुंठी के नाम-शुंठी, विश्वा, विश्व, नागर, विश्वभेषज, ऊषण, कटुभद्र, शृंगवेर,
महौषधि ये सोंठ के पर्याय हैं।
भाषाभेद से नामभेद–हिं०–सोंठ । बं०–सूठ। म०—-सुंठ। गु०—शुण्ठ्य । -शुठि । तै०–शोंठी। फा०–जंजबील। इं०–ड्राईजिंजररूट। लै–जिजिबर आफिशिनेल।
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