उदयपुर जाकर घूमने का आनंद ही अलग है।
यहां से 25 किलोमीटर दूर एकलिंगनाथ
शिवालय की गणना राजस्थान के
ज्योतिर्लिंगों में की जाती है और
ये ही भोलेनाथ मेवाड़ राजघराने
के कुल देवता भी हैं। इन्हे
केलाशनाथ भी कहते हैं।
यहां पर 108 शिवलिंग स्थापित हैं।
एकलिंग नाथ शिवलिंग चार मुखी है, जो कि
चारों दिशाओं का प्रतीक है। जब व्यक्ति चारो
तरफ से परेशान पीड़ित हो जाए, तो इनके
दर्शन से दुःख दूर हो जाते हैं।
मान्यता है कि यहाँ में राजा तो उनके प्रतिनिधि
मात्र रूप से शासन किया करते हैं। इसी कारण उदयपुर के महाराणा को दीवाण जी कहा जाता है।
प्रेरणा पुरुष श्री महाराणा प्रताप महान शिव भक्त थे। उनकी भगवान शिव में सम्पूर्ण आस्था थी। एकलिंग नाथ के लिए लिखा गया एक दोहा राजस्थान वासियों के ह्रदय को गद गद कर देता है।
तुरुक कहासी मुखपतौ, इणतण सूं इकलिंग,
ऊगै जांही ऊगसी प्राची बीच पतंग।
एकलिंगी महात्मय राजस्थान के इतिहास
पर प्रकाश डालने वाला ग्रंथ है, जिसकी
रचना कान्हा व्यास द्वारा की गई थी।
मेवाड़ के सिसोदिया वंश की वंशावलि
बताने वाले इस ग्रंथ का रचयिता ‘कान्हा व्यास’ महाराणा कुम्भा का दरबारी था। कान्हा व्यास
की इस कृति में 15वीं शताब्दी का सामाजिक
तथा सांस्कृतिक वर्णन मिलता है।
श्रीनाथ द्वारा भी यहीं से लगभग 15 किलोमीटर दूर है, खान भगवान श्रीकृष्ण साक्षात रूप में विराजमान हैं।
केसरिया बालम पधारो म्हारो देश…
मेवाड़ के तत्कालीन शासक महाराणा जयसिंह द्वारा निर्मित ३०० वर्ष प्राचीन, ८८ कि.मी. के दायरे में ऊंची प्रथम मानव निर्मित यह ऐतिहासिक झील १४ कि.मी. लंबी, ९ कि.मी. चौड़ी व १०० फीट गहरी है, वहीं एशिया की इस प्रथम ऐतिहासिक झील पर बंधी पाल ३३६ मी. (१२०२ फीट) लंबी तथा ३५ मी. (१६६ फीट) ऊंची है तथा पाल पर बनी छलियां, हाथी व आसपास १०वीं शताब्दी के जगत मंदिर ऋषभदेव जैन मंदिर, हवा महल, रूठी रानी महल, महाराणा प्रताप समाधि स्थल, प्राचीन मेवाड़ की राजधानी चावण्ड के धरोहर,
शिव मंदिर आदि अनेक धार्मिक, ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल प्राचीन स्थापत्य कला का सौंदर्य बोध कराते हैं।
उदयपुर का प्राकृतिक सौंदर्य...
राजस्थान की सुरम्य अरावली श्रृंलाओं की प्राकृतिक गोंद में स्थित, झीलों की अनुपम नगरी उदयपुर से ५५ कि.मी. सुदूर दक्षिण पूर्व में शहर कोलाहल प्रदूषण से विलग, शांत एकांत स्थल, नैसर्गिक ताने-बाने से बुना परिवेश तथा एशिया की प्रथम मानव निर्मित जयसमंद नामक झील एक बार जरूर जाना चाहिए।
यहां की अथाह जलराशि के मध्य तैरते टापुओं में से एक ‘बाबा का मगरा’ नामक टापू पर खड़ी सौंदर्यमयी श्वेतधवल चार मंजिली अट्टालिका आज जन-जन को आकृष्ट कर रही है।
प्राचीन राजाओं का प्रसिद्ध शिकारगाह और उससे जुड़े सघन अभयारण्य में. विचरते पशु-पक्षी विविध वन्य जीव अपनी सजीवता का प्रमाण देते हैं।
लगभग ४० एकड़ क्षेत्र में फैले ‘बाबा का मगरा’ नामक टापू पर निर्मित पानी के बीच जिस फंतासी ने जन्म लिया है उसका नाम है जयसमंद रिसोर्ट’। परंपरागत एवं अत्याधुनिक साज-सज्जा से सुसज्जित इसकी विशेषता यह है कि उनके हर दरवाजे खिड़की खोलते ही प्रकृति के सौंदर्य दर्शन का भरपूर आनंद किया जा सकता है।
रिसोर्ट में उपलब्ध सभी प्रकार के स्वादिष्ट भोजन तैयार करने में निपुण एवं मेवाड़ी पोशाक में सजे-धजे यहां के खिदमतगार वेटर-हैल्परअपनी सेवाएं समर्पित करने में तत्पर रहते हैं एवं भोजन कराते समय उतने ही मनुहार कर भोजन खिलाते हैं ।
जयसमंद पाल से आइलैंड तक ३ कि.मी. ‘की दूरी नौका द्वारा लगभग १५ मिनट में तय की जाती है।
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