विषकन्या दोष के 8 उपाय लडकी के दुर्भाग्य को मिटाकर सौभाग्यशाली बनाएंगे।
ज्योतिष महोदधि
- एक प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपि रूप में उपलब्ध ग्रंथ में बताया है कि विषकन्या योग में जन्मी बच्चियां जीवन भर दुःखी, पीड़ित, रोगी बनी रहती है।
- कन्या संतति के जन्म के तुरंत बाद विषकन्या दोष का निवारण करना जरूरी रहता है।
वैदिक ज्योतिष ग्रंथों और चंद्रकांता संतति नामक उपन्यास में विषकन्या का उल्लेख मिलता है।
- प्राचीन काल में बड़े बड़े राजा महाराजा, धनी लोग अपने राज्य की सुरक्षा और दुश्मनों को हाराने या नीचा दिखाने के लिए विषकन्यायों का प्रयोग राजा अपने शत्रु का छलपूर्वक अन्त करने के लिए किया करते थे।
कुछ युवा खूबसूरत सेक्सी महिलाओं को अपने महल में बचपन से लालन, पालन, पोषण कर उसे विषकन्या बनाते थे।
- आचार्य चाणक्य ने भी अपने ग्रंथों में विषकन्या को बनाने की चर्चा की है। विशेष तिथि, वार, नक्षत्र में जन्मी कन्या का जन्म होते ही उसे गोद लेकर महल की दासियां नियमित विष चटाना शुरू कर देती थी।
- जैसे जैसे कन्या की आयु बढ़ती, उसी अनुसार जहर की मात्रा में वृद्धि कर दी जाती थी।
इस प्रक्रिया में किसी रूपवती बालिका को बचपन से ही विष की अल्प मात्रा देकर पाला जाता था और विषैले वृक्ष तथा विषैले प्राणियों के सम्पर्क से उसको अभ्यस्त किया जाता था।
- जब कन्या 18 वर्ष की हो जाती, तो उसके साथ किंग कोबरा जैसे खतरनाक नाग साथ छोड़ देते थे। और नाग विषकन्या को डसकर जहरीला बना देते थे।
ज्योतिष और जन्मपत्रिका में विषकन्या योग– कुछ नक्षत्र ऐसे हैं जो किसी विशेष तिथि एवं वार पर हों और ऐसे योग में कोई बालिका जन्मे तो वह विषकन्या कहलाती है। जैसे
रविवार के दिन द्वितीया तिथि हो और उस दिन गोचर में
(i) आश्लेषा या शतभिषा नक्षत्र हो, तो इस दिन जन्मी कन्या विष योग में जन्म लेती है।
(ii) रविवार के दिन द्वादशी तिथि और कृतिका, विशाखा या शतभिषा नक्षत्र हो, तो इस मार में जन्मी कन्या संतति विष कन्या कहलाएगी।
(iii) मंगलवार को सप्तमी तिथि हो एवम आश्लेषा, विशाखा या शतभिषा नक्षत्र होने पर विषकन्या जन्म लेती है।
(iv) जिस दिन गोचर में आश्लेषा नक्षत्र, शनिवार का दिन, द्वितीया तिथि हो और कोई बच्ची का जन्म हो, तो इसकी जन्मपत्रिका में विषकन्या दोष या योग बनता है।
(v) द्वादशी तिथि को मंगलवार का दिन, शतभिषा नक्षत्र में बालिका विषकन्या योग में जन्म लेती है।
(vi) कृतिका + शनिवार + सप्तमी या द्वादशी होने पर जातक का जन्म विषकन्या योग में होता है।
विषकन्या दोष का शांति विधान
विषकन्या दोष काल में उत्पन्न हुई बालिका के शुभ जीवन के लिए शान्ति करानी चाहिए। अन्यथा पूरा खानदान गरीबी, रोग, कष्ट, दुःख, अग्नि, आगजनी, धोखाधड़ी आदि के कारण बर्बाद एवम खाने को मोहताज हो जाता है।
१. विषकन्या के जन्म लेते ही 54 दिन तक रोज दो दीपक अमृतम राहु की तेल के सूर्यास्त के बाद जलावें।
२. विषकन्या योग में जन्मी कन्या का वजन बराबर 3 साल तक अन्न दान कर पशु पक्षियों को खिलाएं।
३. जब कन्या 5 साल की हो जाए, तो 12 बार हर महीने उसकी जन्म तिथि के दिन कन्या के वजन के बराबर मांस हिंसक पढ़ें को चिड़ियाघर में खिलाकर आएं।
४. कन्या की आयु जब 7 वर्ष की हो, तो उसे नए पलंग पर 41 दिन सुलाकर, उस पलंग को दान कर दें।
५. बच्ची जब 9 वर्ष की हो जाए, तो उसके वजन का गेहूं, चना, केला आदि घोड़ा, गधा, सांड और गाय को खिलाएं।
६. कन्या जब 11 साल की हो, तो घर पर सरसों के तेल का 11 दिन तक अखंड ज्योत जलाएं।
७. कन्या 13 साल की होने पर प्रत्येक मास शिवरात्रि पर 11 बार तक जल में चंदन इत्र मिलाकर शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करवाएं।
८. ऐसी बालिका का विवाह ऐसे बालक से किया जाना चाहिए जिसकी जन्म कुण्डली में दीर्घायु योग के साथ-साथ मंगल दोष अधिक हो यानि वर ज्यादा मांगलिक हो। इससे विषकन्या दोष का परिहार हो जाता है ।
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