ॐ ही शक्तिशाली बीज मंत्र हैं

 

  1. ॐ’ का यह एकाक्षरी मन्त्र अप्रतिम है। यह जितना लघु रूप प्रतीत होता है, उतना ही अधिक प्रभावशाली है । ॐ ही परमात्मा (ईश्वर) ओर भगवान शिव है
  2. ॐ महादेव का अति सूक्ष्म बीज मंत्र है। यह सुख सम्पदा ओर स्वास्थ्य देने वाला सर्वश्रेष्ठ, सर्वाधिक क्षमता सम्पन्न एक शक्तिशाली नाम है।
  3. ॐ को ‘प्रणव’ भी कहते हैं। यह एक ऐसा बीज मन्त्र है, जो अखिल ब्रह्माण्ड को स्वयं में समाहित किये है।
  4. ॐ प्रणव क्या है?
  5. ‘अवं’ धातु से निर्मित यह शब्द (ॐ) अनेकार्थ वाचक है।
  6. ॐ के अर्थंगत प्रभाव इस प्रकार कहे गये हैं–रक्षण, गति, व्याति प्रीति, तृप्ति, अवगत, प्रवेश, श्रवण, स्वाम्यर्थ, याचन, इच्छा, दीप्ति और अन्त में स्वदर्शन।
  7. आलिङ्गन, हिंसा, दान, भोग, और वृद्धि इन उस विषयों को अपने में सत्रिहित रखने वाला, यह एकमात्र मन्त्र है।
  8. स्पष्ट है कि इसका जप साधक को कितने ऊर्जा क्षमता और दिव्यता प्रदान करता होगा।
  9. अपनी व्यापकता के कारण ‘ॐ’ मन्त्र समस्त मन्त्रों का शिरोमणि है।
  10. ॐ के अभाव में प्रत्येक मन्त्र क्षीण माना जाता है, और किसी भी मन्त्र में इसे जोड़ देने से ( उसका ‘प्रणव’ सहित पाठ करने से ) उसकी प्रभावक्षमता बढ़ जाती है।
  11. मन्त्रशास्त्र की उक्ति मन्त्राणां प्रणव सेतुः का आशय यही है कि प्रणवरूपी सेतु के द्वारा मन्त्र ‘महासागर’ को सरलता से पार किया जा सकता है।
  12. छान्दोग्य उपनिषद् में लिखा है – समस्त स्थावर जङ्गम प्राणियों ओर पदार्थों का रस ( कारण ) पृथ्वी है।
  13. पृथ्वी का रस जल है, जल का रस औषधियाँ और औषधियों का रस (कारण) मानवदेह है।
  14. मानव-देह का रस वाणी, वाणी का सार ऋऋचा, ऋचा का सार सोम और सोम का सार उद्गीथ अर्थात ॐ/ओंकार है!
  15. वैदिक-वाङ्मय में समस्त कर्मकाण्डों का प्रारम्भ और उनकी व्याख्या – व्यवस्था ॐ से प्रभावित है!
  16. ॐ ब्रह्मलीनता का बोधक, समाधि एवं मुक्ति की अवस्था में पहुँचाने में समर्थ और अनेक वैज्ञानिक चमत्कारों का जनक है।
  17. ‘ॐ’ की साधना, उपासना, चिन्तन, मनन और जप सब कुछ बयाणकारी है।
  18. ॐ’ का जप करने से देव-दर्शन, आध्यात्मिक चेतना और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है!
  19. संसारी-जनों की लौकिक इच्छा पूति में भी यह मन्त्र परम सहायक होता है।
  20. ॐ का साधना विधान बहुत ही सरल है। केवल अडिग – आस्था चाहिए, बस!
  21. अपने इष्ट देवता का चित्र कहीं पवित्र स्थान में लगाकर, उसकी धूप-दीप से पूजा करने के उपरान्त स्थिर मन से पूर्ण तन्मयता के साथ माला पर ‘ॐ’ का जप करना चाहिए।
  22. दैनिक-चर्या के रूप में यदि पूजा के समय, इस मन्त्र का 11 या 21 माला नित्य फेर ली जायँ, तो थोड़े ही दिनों बाद साधक को इसके प्रभाव का अनुभव हो जाता है।

श्री ॐकार मन्त्र : ॐ की 22 बातें  amrutam अमृतम पत्रिका के शिव विशेषांक लिया जा रहा है।

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