अंकुरित किए गए अन्न एवं बीजों में प्रोटीन की प्रचुरता हो जाती है। साथ ही जटिल एवं गरिष्ठ प्रोटीन का रूपांतरण सरल प्रोटीन-अमीनो एसिड्स में हो जाता है। बीजों के अंकुरण के पश्चात श्लेष्माकारक एवं गैस उत्पन्न करने का दोष बहुत ही न्यून रह जाता है।
अंकुरण के तीन-चार दिन बाद गेहूँ में विटामिन ‘सी’ की मात्रा तो 300 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसी प्रकार विटामिन ‘बी’ कांप्लेक्स की मात्रा भी अंकुरण की प्रक्रिया में कई गुना बढ़ जाती है।
अंकुरण का उपयोग शरीर को क्षरण से बचाता है
अंकुरण की सरल विधि से सस्ता व सहज ही पौष्टिक भोजन हर किसी को उपलब्ध हो जाता है। इससे प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन एवं पोषक तत्त्व मिल जाते हैं। कुपोषण की समस्या का सहज समाधान इससे हो सकता है। यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अंकुरित आहार सस्ता, संतुलित व पूर्ण आहार है। आहार के निर्धारण में अब एक और तत्त्व सामने आया है; जिसे खाद्य की जीवनीशक्ति एवं प्राण-ऊर्जा कहा गया है।
यह रासायनिक संरचना से भिन्न है। अब तक प्रोटीन, स्टार्च, लवण, खनिज आदि रसायनों का संतुलन ही खाद्य का स्तर गिना जाता रहा है; अब उन पदार्थों में पाई जाने वाली प्राणचेतना का अन्वेषण वर्गीकरण भी चल पड़ा है और उस सूक्ष्म प्रभाव के आधार पर उपयोगिता एवं समर्थता का प्रतिपादन होने लगा है।
भारतीय अध्यात्म विज्ञान के सूक्ष्मदर्शी सदा से पदार्थों की सात्त्विक, राजस एवं तामस प्रकृति की चर्चा करते रहे हैं। ये सब क्या हैं ? उनकी जानकारी पिछले दिनों तो नहीं हो सकी थी, पर अब इस खोज से यह पता लगता है कि पाए जाने वाले रसायनों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण पदार्थों की प्राण-ऊर्जा होती है।
प्राणशक्ति या सूक्ष्मशक्ति, जिसे विज्ञान की भाषा कण में में ‘बायोप्लाजमा कहते हैं।सृष्टि के कण कण में विद्यमान है, परंतु चेतन तत्त्वों, विशेषतः जीव-जंतु, मनुष्य एवं पेड़-पौधों में अधिक सक्रिय रहती है। सन् 1968 ई० में रूस के कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के एक संगठन ने अपने अनुसंधान कार्य का प्रकाशन कराया; जिसमें उन्होंने लिखा था-
समस्त चेतन प्राणियों, पौधों, मनुष्यों एवं जानवरों में एक स्थूलशरीर होता है और एक सूक्ष्मशरीर सूक्ष्मशरीर में ही प्राणशक्ति रहती है।अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के डॉ० वर्र एवं नायपि ने दो वृक्षों के बीच एक सेंसिटिव वोल्टमीटर जोड़कर निस्सृत होने वाली सूक्ष्म प्राणशक्ति के मापन व अंकन का सफल प्रयोग किया। इस शोधकार्य में उन्हें कई वर्ष तक अथक परिश्रम करना पड़ा।
पौधों में प्राणशक्ति के निरंतर प्रवाह के संबंध में ‘क्रिस्टोफर बड’ एवं ‘पीटर टॉस्किन्स’ ने अपनी ‘दि सीक्रेट लाइफ ऑफ प्लांट’ पुस्तक में लिखा है कि पौधे भी अन्य जीवों एवं मनुष्य की तरह प्राणशक्ति के स्तर से प्रभावित होते हैं। पौधों की प्राणशक्ति मनुष्यों और जीव-जंतुओं को प्रभावित करती है जैव रसायनविशेषज्ञ डॉ० एनल फ्रीड फेफर’ ने पशु, मनुष्य व पौधों की सूक्ष्म प्राणिक शक्ति का परीक्षण किया। उन्होंने अपने प्रयोगों से सिद्ध किया है कि प्राकृतिक भोज्य पदार्थों में प्राणशक्ति का स्पंदन अधिक सशक्त होता है।
शारीरिक आवश्यकताओं के लिए प्राकृतिक भोजन में पाए जाने वाले विटामिन, खनिज लवण उपयुक्त व पर्याप्त हैं। कृत्रिम खाद्य पदार्थों में प्राणशक्ति की मात्रा न्यून होने से उनका जैविक महत्त्व बहुत कम होता है।
प्रकृति मनुष्य के लिए खाद्य सामग्री सूर्य कीअग्नि में पकाकर समग्र रूप में प्रस्तुत किया करती है। टहनी में से आम तभी टपकता है; जब वह पककर खाने योग्य हो जाता है। यही बात प्रायः अन्य सभी फलों पर लागू होती है। अन्न के दाने भी पककर तैयार हो जाने पर ही पौधे से अलग होते हैं।
प्रकृति प्रदत्त उपहारों को उसी रूप में ग्रहण करना स्वास्थ्यप्रद होता है। उनमें शरीर के पोषण के लिए आवश्यक सभी तत्त्व विद्यमान रहते हैं। खाद्य पदार्थों को गरम करने, उबालने अथवा भूनने से वे अप्राकृतिक हो जाते हैं। उसी तरह स्वाद बढ़ाने की दृष्टि से अलग से नमक, मिर्च, मसाले, गुड़, शक्कर आदि वस्तुएँ मिलाकर जायके के लोभ में उन्हें अखाद्य बना दिया जाता है।
मनुष्य के अतिरिक्त अन्य कोई भी जीव अपना भोजन पकाकर नहीं खाता। फल, फूल, घास, अनाज आदि उन्हें जिस रूप में प्रकृति ने प्रदान किए होते हैं; उसी रूप में वे
उन्हें ग्रहण किया करते हैं। जंगलीपशु — जेब्रा, जिराफ, हिरन, जंगली भैंसे, नीलगाय तथा पक्षी – तोता, मैना आदि हमेशा फल-फूल, अन्न, पत्तियाँ आदि खाते हैं।
यही कारण है कि वे कभी बीमार पड़ते भी नहीं देखे जाते। परंतु मनुष्य अपने खाद्य को अप्राकृतिक बनाकर खाने के फलस्वरूप किसी-न-किसी बीमारी से ग्रसित होता रहता है। प्रकृति के अंचल में स्वस्थ रहने वाले जीव भी मनुष्य के संपर्क में आकर बीमार पड़ जाते हैं।स्वास्थ्य की दृष्टि से देखने पर कच्चे खाद्य पदार्थों में अपेक्षाकृत अधिक पोषक तत्त्व विद्यमान होते हैं।
प्रमाणस्वरूप देखा जा सकता है कि उबाले अथवा भूने गए दाने अंकुरित नहीं होते। उनकी उत्पादन शक्ति नष्ट हो जाती है, परंतु कच्चे दाने अंकुरित होकर पौधे के रूप में विकसित होते हैं। हड्डियों की मजबूती के लिए आवश्यक स्टार्चअधिक मात्रा में कच्चे खाद्य पदार्थों से ही मिलते हैं।
दाँतों का व्यायाम और पाचन रस की प्राप्ति भी कच्चे पदार्थों से होती है। मुँह से अधिक अच्छी तरह चबाने के कारण पर्याप्त ‘लार’ निकलकर इनमें मिल जाती है । कच्चे भोजन का स्वरूप क्या हो; यह उस फल, सब्जी या अनाज के प्रकार पर निर्भर करता है। दानेदार अन्नों को अंकुरित कर खाना लाभप्रद होता है। इससे उनमें पोषक तत्त्वों की मात्रा बढ़ जाती है। गेहूँ, चना, मटर, मूँग आदि को अंकुरित करने के लिए 12 से 24 घंटे तक भिगो लें। बाद में पानी अलग कर मोटे कपड़े में पोटली बाँधकर 24 घंटे तक लटका दें। अंकुरित होने पर चबा-चबाकर खाएँ तो बहुत लाभ होगा। दाँतों के व्यायाम के साथ ही पोषक रस भी अधिक मिल जाता है ।
फलों अथवा सब्जियों को सलाद के रूप में लेना चाहिए। गाजर, मूली, ककड़ी, खीरा, लौकी, भिंडी, टिंडे, पालक, धनिया, पुदीना आदि को छोटेछोटे टुकड़ों में काटकर मिला लें। इनमें पोषक तत्त्व सुरक्षित रूप में मिल जाते हैं।
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