आज आप केसर के 45 फायदे जानकर हैरान हो जाएंगे। दुख, परेशानी और रोग बीमारी को मिटाने के लिए केशर बहुत उपयोगी है। कुमकुम केशर का संस्कृत नाम है।
- केसर से बनने वाला Kumkumadi Oil आयुर्वेद का एक बहुमूल्य ओषधि तेल है। महंगा होने के कारण Kumkumadi Oil का निर्माण कुछ ही जानी मानी आयुर्वेदिक कंपनी करती हैं।
- कुमकुमादि तेल की मांग विदेशों में सर्वाधिक है।
जाने कुंकुमादि के चमत्कारी फायदे-
- केसर अर्थात कुमकुम से बनने वाला कुंकुमादि तेल/ सीरम बहुत ही कीमती है। इसीलिए ये अमीर लोग पसंद करते है। Amrutam कुंकुमादि तेल 12 मिलीलीटर का मूल्य 1599/- रुपये है। लेकिन इस्तेमाल करने के बाद महंगा नहीं लगेगा।
केसर – कुमकुम के बारे में 40 बातें कम ही लोग जानते हैं। इस ब्लॉग को पढ़कर शुद्ध केसर की पहचान करना सीख जाओगे..
- आयुर्वेद सहिंता के अनुसार शुद्ध केसर के 2 या 3 रेशे गुनगुने दूध में मिलाकर सुबह खाली पेट 3 महीने पीने से त्वचा में निखार आने लगता है।
- केसर को Amrutam एलोवेरा जेल, की एक चम्मच जेल में 2 रेशे और हल्दी चुटकी भर मिलाकर नाभि ओर मुखः पर लगायें।
- द्रव्यगुण विज्ञान, भावप्रकाश तथा आयुर्वेदिक निघण्टु आदि पुराने ग्रन्थों में केसर के बारे में बहुत विस्तार से लिखा है।
!!कुङ्कुमम्-कुक्यते, आदीयते, ‘कुक् आदाने’!!
अर्थात- केसर का इस्तेमाल शिरःशूल आदि में लाखों वर्षों से प्रयोग किया जा रहा है।
हिंदी, मराठी, गुजराती -केसर ।
बंगाली में – जाफरान ।
कन्नड़ – कुङ्कुम ।
तेलगु – कुङ्कुमपुव।
तमिल में – कुङ्कुमपु।
फारसी – करकीमास ।
अंग्रेजी – Saffron (सफ्रॉन)।
अरबी – जाफरान ।
लेटिन – Crocus sativus Linn. (क्रोकस् सेटाइवस्) । कहते हैं।
- केसर का नैसर्गिक उत्पत्ति स्थान कश्मीर, दक्षिण यूरोप है। यह स्पेन से बम्बई में बहुत आता है और भारतवर्ष के बाजारों में बिकता है। ईरान, स्पेन, फ्रान्स, इटली, ग्रीस, तुर्की, चीन और फारस आदि का केसर शुद्ध होता है।
- अनेक ठंडे देशों में इसकी खेती की जाती है। हमारे देश के कश्मीर में पम्पूर वर्क केवल १५०० मी के दायरे में तथा जम्मू के किश्तवाड़ में इसकी खेती की जाती है। यहाँ का उत्पन्न हुआ केसर भावप्रकाशकार की दृष्टि से सर्वोत्तम समझा गया है।
- प्याज की तरह होती है केसर की जड़ – केशर का बहुवर्षायु क्षुप ४५ से.मी. तक ऊँचा होता है। जड़ के नीचे प्याज के समान गाँठदार कन्द (Corm) होता है। इसमें कांड नहीं होता।
- केसर के पत्ते-घास के समान लम्बे, पतले, पनालीदार और जड़ ही से निकले हुए मूलपत्र (Radical leaf) रहते हैं। इनके किनारे पीछे की तरफ मुड़े हुए हैं।
- आश्विन कार्तिक यानी सितम्बर-अक्टूबर में इस पर फूल आते हैं। फूल-एकाकी या गुच्छों में, नीललोहित वर्ण के, पत्तों के साथ ही शरदऋतु में आते हैं।
- केसर में नीचे के पत्रकोश (Spathe), पुष्पध्वज (Scape) को घेरे रहते हैं तथा दो हिस्सों में विभक्त रहते हैं।
- केसर परिपुष्प (Perianth) निवापसम (Funnel-shaped), नाल (Tube) पतला, दल ६ खण्डों में विभक्त दो श्रेणियों में एवं नाल का कण्ठ श्मश्रुल (बालों से युक्त) रहता है।
- केसर कण्ठ पर ३ पुंकेशर (Stamen) रहते हैं एवं परागाशय (Anther) पीतवर्ण का रहता है।
- केसर कुक्षिवृन्त (Style) परिपुष्प के बाहर निकले हुए (Exserted), नारंगरक्त रंग के, मुद्राकार, अखण्ड या खण्डित रहते हैं। फल-सामान्य स्फोटी फल (Capsule) आयताकार एवं बीज गोल होते हैं।
- केसर के फूलों में स्त्री केशर के सूखे हुए अग्रभाग जिन्हें कुक्षि (Stigma) कहा जाता है उन्हें ही केसर कहते हैं। कुक्षि (Stigma) ३, कुक्षिवृन्त के ऊपर लगी हुई या अलग, करीब २.५ से.मी. लम्बी गहरे लाल से लेकर हल्के रक्ताभ भूरे रंग की एवं सामान्य दन्तुर या लहरदार होती है।
- कुक्षिवृन्त (Styles) करीब १ से.मी. लम्बे, करीब-करीब रम्भाकार, ठोस, पीताभ भूरे से लेकर पीताभ नारंगी रंग के रहते हैं। इसमें विशिष्ट प्रकार की तीव्र सुगन्ध रहती है तथा इसका स्वाद सुगन्धित तथा कड़वापन लिये हुए होता है।
- केसर के पौधे को बीज या उसके कन्द द्वारा लगाया जा सकता है। साधारणत: १ एकड़ भूमि से करीब ५०-५५ पौंड ताजा केसर प्राप्त होता है जो सूखने पर १०-११ पौंड रह जाता है।
- केसर की खेती तथा माल के तैयार करने में बहुत सावधानी की आवश्यकता रहती है। सूर्योदय के पहले जब फूल लगभग खिलने को होते हैं तब उनको तोड़ लेते हैं। उसमें से केसर को तोड़कर चलनी में डालकर मन्द आंच पर सुखाते हैं। केसर को हमेशा प्रकाशहीन बन्द पात्र में रखना चाहिये ।
- केसर के रासायनिक संगठन—केसर में एक स्नेहीय तैल ८-१३%, करीब १% उड़नशील तैल, एक रंगहीन कड़वा पिक्रोक्रोसिन (Picrocrocin) नामक ग्लाइकोसाइड् एवं क्रोसेटिन (Crocetin) नामक रंजक द्रव्य का क्रोसिन (Crocin) ग्लाइकोसाइड् ये पदार्थ पाये जाते हैं। क्रोसेटिन नामक रवेदार रंजक द्रव्य ३ प्रकार का होता है। अॅल्फा क्रोसेटिन (a-crocetin, C HO) ०.७%, बीटा क्रोसेटिन (B-crocetin, C, H, 0.) ०.७%, एवं गामा क्रोसेटिन (V-crocetin, C_H,, 0.) ०.३% रहता है। क्रोसिन (Crocin) यह लाल रंग का चूर्ण होता है जो जल तथा मद्यसार में आसानी से घुल जाता है।
- संकेन्द्रित गन्धक के तेजाब में इसका गहरे नीले रंग का घोल बनता है जो रखने पर नील लोहित, रक्त तथा अन्त में भूरे रंग का हो जाता है। शोरे के तेजाब से यह हरे रंग का हो जाता है।
- केशर के गुण और प्रयोग-केसर उष्ण, सुगन्धित, दीपन, पाचन, उद्वेष्टन-निरोधि, मनःप्रसादकर, रुचिकर, वर्ण्य, बल्य, कामोत्तेजक, विषघ्न, आर्तवजनक, मूत्रल एवं अल्प वेदनाहर है।
- आमाशयोत्तेजक एवं उद्वेष्टननिरोधि गुणों के लिये यह बहुत प्रसिद्ध है तथा यह श्रेष्ठ उत्तेजक एवं वृष्य औषध मानी जाती है। यह वातनाड़ियों के लिये शामक है।
- केसर का उपयोग अतिसार, शूल, मूत्रकृच्छ्र, अनार्तव, पीडितार्तव, कास, श्वास, कण्ठरोग, यकृतविकार, आमवात, नाड़ीशूल एवं शिरो रोगों में किया जाता है।
- केसर पीडितार्तव यानि दर्द के साथ होने वाली माहवारी में इसको पूर्ण मात्रा में देने से शूल कम होता है तथा आर्तव स्राव (सोमरोग या पीसीओडी) ठीक होने लगता है।
- केसर को गर्भाशय के पीड़ा युक्त विकारों में इसकी गोली योनि में धारण कराई जाती है।
- केसर को स्तनों पर इसके लेप से दूध बढ़ता है।
- केसर मूत्राघात में 25 मिलीग्राम केशर मधुयुक्त जल में रात में भिगोकर सुबह उसे पिलाने से लाभ होता है।
- बच्चों की सरदी में गरम दूध में केशर खिलाते हैं तथा ललाट एवं छाती पर लगाते हैं।
- केसर तथा शर्करा को घृत में भूनकर उसके नस्य से सूर्यावर्त एवं अर्धावभेदक आदि में लाभ होता है। शिरःशूल में इसे मस्तक पर लगाते हैं।
- चेहरे पर प्रकट मसूरिका (कील-मुहांसे, मस्से) तथा रोमान्तिका झाइयां, झुर्रियां, काले निशानआदि में दाने बाहर निकालने के लिये इसे देते हैं।
- केसर को बच्चों के अतिसार, आध्मान तथा उदरशूल में इसे खिलाते हैं तथा पेट पर लगाते हैं।
- प्रमाप तथा परीक्षा-केशर बहुमूल्य होने के कारण इसमें अनेक चीजों की मिलावट रहती है, इसलिये इसको अच्छी तरह परीक्षा कर खरीदना चाहिये ।
- शुद्ध केशर की पहचान ऐसे करें- भावप्रकाश में केशर परखने की कुछ परीक्षाएँ यहाँ दी जा रही हैं। स्पिरिट में केसर डालने पर यद्यपि स्पिरिट रंगीन हो जाता है तथापि केशर के तन्तु अपने प्राकृतिक रंग में ही रहते हैं।
- केसर गन्धक के तेजाब (Sulphuric Acid) में डालने से गहरा नीला रंग उत्पन्न होता है।
- शुद्ध केसर जल में घुलनशील पदार्थ ५८% से कम न हों।
- केसर मद्यसार (९०%) में घुलनशील पदार्थ ६०% से कम न हों। राख ७.५०% से अधिक न हो।
- केसर १००° उष्णता पर सुखाने से १४% से अधिक वजन कम न हो कुक्षिवृन्त (Styles) १०% से अधिक न हों। इतर ऑर्गेनिक् द्रव्य २% से अधिक न हों।
- केसर की रंग की तीव्रता-इसको ०.०२ ग्राम की मात्रा में १०० मि.ली. जल में मिलाने पर पीत वर्ण का घोल बनता है जिसके रंग की तीव्रता ०.१% पोटैशियम् डाइक्रोमेट (Potassium Dichromate) के घोल के समान या उससे कम नहीं होनी चाहिये ।
- व्यामिश्रण-इसमें केशर पुष्प के ही कुक्षिवृन्त, पुंकेशर, आभ्यन्तर कोश एवं गेंदा (कॅलेण्डुला ऑफिसिनेलिस्) के मेथिल् आरेञ्ज के द्वारा रंगे हुये पुष्प, कुसुम पुष्प के केसर तथा एकबीजपत्रीय पुष्प आदि मिलाये रहते हैं।
- बाजार में कभी-कभी सत्त्व निकाला हुआ केसर रंग करके बेचा जाता है।
- नकली केसर का वजन बढ़ाने के लिये जल, तैल, शर्करा, ग्लूकोज, ग्लिसरीन तथा पोटैशियम् या अमोनियम नाइट्रेट के घोल आदि का उपयोग करते हैं।
Amrutam कुंकुमादि तेल/सीरम इसीलिए केशर से निर्मित होता है और केसर युक्त होने से ये बहुत महंगा बनता है। 12 ML का मूल्य 1599/- रुपये है।
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