मंत्र के बिना मन में मजबूती नहीं आ सकती। ध्यान, तप, जप से ही डिप्रेशन मिटेगा। जाने आयुर्वेद के रहस्य !

  • सृष्टि और संसार के सारे चमत्कार हमारे मन की शक्ति, आत्मबल और आत्मविश्वास पर कायम है।

Amrutam पत्रिका, ग्वालियर से साभार

  • अगर स्वयं पर भरोसा नहीं है, तो आपको न अपने ऊपर और ना ही भगवान के चमत्कार दिखेंगे।
  • मन की चंचलता सभी चमत्कारों में बाधक है। मन ही तन की खराबी का कारण है। मन ही हमारी सफलता को रोकता है। मन की वजह से भाग साथ नहीं देता।
  • वेद पुराणों में सारी चिकित्सा का आधार मन और मस्तिष्क ही है। मंत्र जाप से मन मजबूत होता है। ओषधि सेवन से भी मन ही पहले ठीक होता है।
  • जब मन चंगा हो जाता है, तो हमें भी भक्त रैदास की तरह कठोती में भी गंगा के दर्शन होने लगते हैं। मन को साधे, तो सब सधे।
  • यजुर्वेद संहिता ३४वां अध्याय में कहा गया है कि मेरा मन बेगशाली हो। मेरा मन शिव संकल्प वाला बने।

मन की महिमा अद्भुत है

  • जब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया तो अर्जुन किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पाया। वह ‘क्या करे क्या न करे’ ? एक ओर परिवार का विनाश था तो दूसरी ओर कर्तव्य का पालन। ऐसी दुविधा में वह कह उठा था

“चञ्चलं हि मनः कृष्ण ! प्रमाथि बलवद् दृढम् ।”

तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ॥६/३४॥

  • अर्थात हे कृष्ण! यह मन बड़ा ही चञ्चल है, प्रमथन स्वभाव वाला है, तथा बड़ा दृढ़ और बलवान् है, अतः मैं इसको वश में करना वायु की भांति अति दुष्कर मानता हूं।
  • अतः पूजा और उपासना में मन को शिवशङ्कल्प वाला बनाने के लिए महामृत्युंजय का जाप और प्रतिदिन प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए।

आत्मबल-वर्धक ‘अमृत-सूक्त’ के मन्त्र

  • मानव के शरीर में और बाहर अपरिमेय दिव्य शक्ति का अमृतसागर भरा हुआ है।
  • विराट् शक्तियों का निवास हमारे शरीर में है। यह शरीर देवताओं की नगरी काशी है –
  • ‘देवानां पूरयोध्या’ । इसलिए इसे बाधि-व्याधि से सर्वथा मुक्त रखने के लिए, अल्पता, जड़ता और मृत्यु से दूर रहने के लिए इस अमृत सूक्त का पाठ करना चाहिए।

अग्निमें वाचि श्रितः। वाग्घृदये। हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि॥१॥

वायु प्राणे श्रितः। प्राणो हृदये। हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।२।।

  • इन वैदिक मन्त्रों में मानव मात्र के आत्मबल बढ़ाने की प्रेरणा दी गई है। इन मंत्रों के द्वारा व्यक्ति को कहा गया है कि
  • अर्थात मेरी वाणी में अग्नि विराजित है, वाणी हृदय में स्थित है, हृदय मुझ में है, मैं अमृत में स्थित हूं और अमृत ब्रह्म में स्थित है।
  • इसी प्रकार वायु, सूर्य, चन्द्रमा, दिशाएँ, जल, पृथिवी, औषधि, इन्द्र, बादल, ईशान, आत्मा आदि को भी क्रमशः प्राण, नेत्र, मन, श्रोत्र, वीर्य, शरीर, केश, बल, सिर, कोष और आत्मा में स्थित बतलाकर उन्हें हृदय में, हृदय को अपने में तथा स्वयं को अमृत में स्थित माना है और अमृत ब्रह्म में स्थित है।
  • अतः ‘अहं ब्रह्मास्मि’ इस ‘वेदान्त सूत्र’ का प्रतिपादन करके सदा निर्भय, नीरोग तथा अमृतमय मानने और बनने की प्रार्थना की गई है ।
  • इन वैदिक सूक्तों का पाठ करने से ‘आत्मबल’ की वृद्धि होती है।
  • यदि मानव के पास आत्मबल उत्साह न हो, तो वह संसार में अपना कोई भी कार्य नहीं कर सकता।
  • परिवार, घर-बार एवं यह संसार उसके लिए व्यर्थ हो जाते हैं। अतः कहा गया है कि- उत्साह से सम्पन्न और आलस्य से रहित व्यक्ति को लक्ष्मी स्वयं प्राप्त होती है।

उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपति लक्ष्मीः

इसके साथ ही यह भी स्मरण रखना चाहिए कि –

अजरामरवत् प्राज्ञो विद्यामर्थं च चिन्तयेत्।

गृहीत इव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत्॥

  • अर्थात् – बुद्धिमान् मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं को अजर-अमर मानकर विद्या और धन का संग्रह करे।
  • मृत्यु मेरे सामने है, यमराज ने अभी मेरे बाल पकड़ रखे हैं, मैं अब मरने ही वाला हूं – यह सोचकर धर्म का आचरण कभी न करे।
  • ‘काल करे सो आज कर इस उक्ति में भी यही सन्देश दिया गया है। यही सब ध्यान में रखकर सत्कर्म में प्रवृत्त होना चाहिए।

शारीरिक पुष्टि कारक ‘अप्रतिरथ -सूक्त’ मन्त्र

  • शुक्ल यजुर्वेद संहिता में ‘अप्रतिरथ -सूक्त’ के नाम से एक मन्त्र समूह का ग्रथन हुआ है।
  • वैदिक मन्त्रद्रष्टा ऋषियों ने इस सूक्त के द्वारा अभि मन्त्रित भस्म को रात्रि में सूक्तपाठ करके अपने अंगों पर लगाने से हड्डी मजबूत और शरीर निरोगी होता है।

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