पनीर को संस्कृत में क्षीरपाक, तक्रपिण्ड कहते हैं।

  1. आयुर्वेद ग्रंथों में पनीर को संस्कृत में क्षीरशाक कहा गया है। पनीर के बारे में संस्कृत का यह श्लोक!

अपक्वमेव यन्नष्टं क्षीरशाकं हि तत्पयः।

  • अर्थात क्षीरशाक के लक्षण – जो दूध बिना औंटाये ही (कच्चा ही) फट गया हो उसे क्षीरशाक कहते हैं।

क्षीरशाकं ‘तुषिभरा’ वा ‘खिरिसा’ इति लोके।

  • यहाँ पर ‘क्षीरशाक’ से लोकप्रसिद्ध ‘तुषिभरा – या खिरिसा’ का बोध करना चाहिये।
  • दध्ना तक्रेण वा नष्टं दुग्धं बद्धं सुवाससा।
  • द्रवभावेन रहितं तक्रपिण्डः स उच्यते॥
  1. पनीर कभी अमीर लोगों का पकवान हुआ करता था। समय परवान चढ़ा तो हर इंसान पनीर खाने लगा।
  2. पनीर शरीर में नीर यानि जल की पूर्ति करता है। पनीर पेट को अमीर अर्थात स्वस्थ्य बनाने कारगर होता है। यदि कम खाएं तब।
  3. अगर आपका जमीर पनीर खाने हेतु मना करें, तो न खाएं। ज्यादा पनीर से लीवर में परेशानी हो तो अंजीर का दूध में उबालकर सेवन करें।
  4. पमीर के साथ खमीर से निर्मित चीजें न खाएं।
  5. कबीर ने कहा है कि पनीर खाएं तो समीर यानी हवा-वायु के लिए घूमे जरूर। तभी पनीर पचेगा।
  6. पनीर की तजवीर मतलब खोज दूध से की गई है। पनीर तकदीर तो नहीं बदलता लेकिन चेहरे की तस्वीर बदलने में सहायक होता है।
  7. जर्जर शरीर हो तो पनीर अवश्य उपयोग करें। टीबी मरीजों के लिए ये अत्यन्त लाभदायक है।
  • पनीर की गणना आयुर्वेद के दुग्धवर्गः की गई है। ये पौष्टिक होता है।

नष्टदुग्धभवं नीरं मोरटं जेज्जटोऽब्रवीत्।

पीयूषञ्च किलाटश्च क्षीरशाकं तथैव च।

तक्रपिण्ड इमे वृष्या बृंहणा बलवर्द्धनाः।

गुरवः श्लेष्मला हृद्या वातपित्तविनाशनाः।।

॥३३॥ दीप्ताग्नीनां विनिद्र विद्रधौ चाभिपूजिताः।मुखशोषतृषादाहरक्तपित्तज्वरप्रणुत्॥

लघुर्बलकरो रुच्यो मोरटः स्यात्सितायुतः।।

  • अर्थात तक्रपिण्ड के लक्षण – जो दूध-दही अथवा तक्र (छाछ) के संयोग से फट गया हो अथवा फाड़ा गया हो उसे यदि वस्त्र में बाँधकर लटका दिया जाय तो द्रवपदार्थ हीन होने पर अर्थात् पानी का भाग निकल जाने पर उसे ‘तक्रपिण्ड या पनीर’ कहते हैं।

मोरट यानि पनीर पानी के लक्षण —

  • उक्त प्रकार से दूध के फट जाने के बाद वस्त्र में बाँधने पर जो जल टपक कर गिरता है उसे ‘मोरट’ कहते हैं, ऐसा ‘जेज्जट’ आचार्य का कथन है।
  • मोरट यदि बूरा से युक्त हो तो – लघु, बलकारक, रुचिजनक एवं मुखशोष, प्यास, दाह, रक्तपित्त तथा ज्वर को दूर करने वाला होता है।
  • पनीर अर्थात पीयूष-किलाट क्षीरशाक तथा तक्रपिण्ड के फायदे
  • ये सब – वीर्यवर्धक, बृंहण (रस-रक्तादिवर्धक) बल को बढ़ाने वाले, गुरु, कफकारक, हृदय को हितकारी रहते हैं। कच्चा खाने जल्दी पच जाते हैं।
  • पनीर वात तथा पित्तनाशक, दीप्त अग्निवाले तथा जिन्हें नींद नहीं आती है ऐसे लोगों के लिये एवं विद्रधि रोग वालों के लिये अत्युत्तम होते हैं।

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