।।सुवति कर्मणि लोकं प्रेरयतीति सूर्यः।।
- अर्थात सूर्य को सृष्टि का प्राण कहा गया है।
- सूर्य-के कारण ही धरित्री, धरती पर जीवन है। सूर्य नारायण यदि एक दिन न निकलें तो धरती पर त्राहि-त्राहि मच जाए।
- सूर्य का प्रकाश समस्त जीवधारियों में उल्लास एवं प्राण का संचार करता है, इसीलिए सूर्य की इतनी महत्ता है।
- किन्तु सूर्य मात्र जलता आग का गोला भर नहीं है, जिसमें हाइड्रोजन – हीलियम की पारस्परिक प्रतिक्रिया से आग के शोले तथा ऊर्जा भँवर उठते रहते हैं।
- यह तो सूर्य का दृश्य आधिभौतिक रूप है। आधिदैविक रूप में वह विचारों का नियंत्रक, ग्रहों का अधिपति तथा भावों को सुन्दर प्रेरणा देने वाला है तथा जातक की आत्मा के रूप में विद्यमान है। इससे भी गहरे चलते हैं,तो आध्यात्मिक रूप में वह विराट पुरुष की ज्योति है, अतिमानसिक ज्योति है।
- सूर्य का शाब्दिक सु +इर इस अर्थ से, सुन्दर प्रेरणाएँ जो दे, वह सूर्य है।
- सूर्य की उपासना भारतीय संस्कृति के अध्यात्म पक्ष का मूल मर्म है।
- आदित्य हृदय का जानकर ही भगवान श्रीराम द्वारा रावण वध संभव हो सका।
- युधिष्ठिरादि पाँचों भाई मुनि धौम्य द्वारा सूर्योपासना की दीक्षा द्वारा ही उस शक्ति को प्राप्त कर सके जिसने उन्हें अजेय बनाया।
- सूर्य की स्तुति से हमारा आर्ष-वाङ्मय भरा पड़ा है। ऋग्वेद के पाँचवें मण्डल के ८१ वें रहस्य सूक्त के पहले श्लोक में आता है मही देवस्य सवितुः परिस्तुतिः’ देवता की व्यापक स्तुति अर्थात् “महान है सविता देवता की व्यापक स्तुति।
- सूर्य सविता है अपने सृजनात्मक-प्रकाशक सौर रूपों वाली दिव्यसत्ता के रूप में जो रचयिता है, सत्य के रूप में स्तुत्य है, मानव मात्र का पोषक है।
- मनुष्य को अहंभाव से निकाल कर विश्वव्यापी बना देता है, वही सविता है सविता – सूर्य, स्रष्टा-पापनाशी सत्ता जो गायत्री का देवता है जिससे एकाकार हो हम अपनी सूक्ष्मसत्ता को विश्वव्यापी बनाएं।
ब्राह्मीचेतना का ध्रुव केन्द्र : मानवी अन्तःकरण है सूर्य
- एक परमाणु–सौरमण्डल की सूक्ष्म अनुकृति है। उसका मध्य भाग केन्द्रक-हमारे सौरमण्डल के सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है।
- परमाणु के इस केन्द्रक सूर्य के चारों ओर इलेक्ट्रॉन उसी तरह घूमते रहते हैं जिस तरह कि सौरमण्डल के ग्रह, सूर्य के चारों ओर घूमते हैं।
- सौरमण्डल के घेरे में जिस प्रकार बहुत बड़ा आकाश रहता है, उसी तरह परमाणु मण्डल के बीच भी पोल रहती है।
- विभिन्न सौर-मण्डलों की स्थिति में एक दूसरे से पर्याप्त भिन्नता होती है। इसी प्रकार परमाणुओं के वर्गों के भीतरी भाग में भारी भिन्नता रहती है।
- यद्यपि वे बाहर से एक जैसे दीखते हैं। यूरेनियास्क के एकपरमाणु में ९२ इलेक्ट्रॉन होते हैं।
- कार्बन में उनकी संख्या केवल छः होती है। प्रत्येक मनुष्य एक ब्रह्माण्ड है। उसकी आत्मा सूर्य के समान है, जिसके इर्द-गिर्द ग्रह-परमाणु करते रहते हैं।
- मानवी काया में भ्रमण करने वाल- अणुजीवाणु एक विशेष प्रकार की विद्युत उत्पन्न करते हैं उसी विद्युत से प्रभावित होकर मस्तिष्क से लेकर इन्द्रियाँ तथा अन्य अवयव अपना काम करते हैं।
- जड़ में चेतना उत्पन्न होने का माध्यम यही है। साधारणतया अणुओं में हलचल भर रहती है।
- चिन्तन तथा अनुभूति उनमें नहीं है। पर मानवी विद्युत जिसे ‘प्राण’ कहा जाता है, जड़ अणुओं के समूह में चेतना, विचारणा और अनुभूति उत्पन्न कर देती है और सजीव जीवन आरंभ कर देती है।
- निर्जीव अनुभूति रहित जीवन वो पत्थरचट्टानों में भी रहता है।
- पृथ्वी के ध्रुवों के आस-पास चुम्बकीय आँधियाँ चलती रहती है।
- अस्थिर रंग बिरंगा प्रकाश “आरोरा बोरिएलिस” के रूप में छाया रहता है। यही ध्रुष स्थान अन्य ग्रहों के विकिरण, प्रकाश एवं प्रभाव को पृथ्वी पर लाता है और यहाँ की विशेषताओं को अन्य लोकों तक ले जाता है।
- इस ध्रुवीय क्षेत्र के ब्रह्माण्ड का सम्पर्क सूत्र कह सकते हैं। इन ध्रुव केन्द्रों के माध्यम से चलने वाले अन्तर्ग्रहीय प्रत्यावर्तन के बलबूते ही भरती अपनी वर्तमान परिस्थितियों में बनी हुई है।
- इतना ही नहीं अन्य ग्रहों की वर्तमान परिस्थितियों में भी इन भू-ध्रुवों में चलने वाले अनवरत प्रत्यावर्तन का महान योगदान है।
- यदि किसी कारण यह महान आदान प्रदान बन्द हो जाए तो पृथ्वी की स्थिति में इतना विषम परिवर्तन होगा कि तब यहाँ जीवन का अस्तित्व भी संदिग्ध हो जाएगा। साथ ही ग्रहों की कक्षाओं और स्थितियों में परिवर्तन होने से सौर-मण्डल की प्रस्तुत गतिविधियों में भारी उलटपुलट हो जाएगी।
- भू-ध्रुवों के माध्यम से होने वाला प्रत्यावर्तन ही अपने सौर-मण्डल की वर्तमान परिस्थिति बनाए हुए है, तनिक से क्षेत्र में होने वाला तनिक सा क्रियाकलाप – पृथ्वी सौर-मण्डल और उस सौर मण्डल के महासूर्य के प्रदक्षिणा क्रम में कितना भारी योगदान कर रहा है। इस तथ्य पर जितनी गहराई से विचार किया जाय इतना अधिक मार्मिक रहस्योदघाटन होता चला जाता है।
- मनुष्य का अन्तःकरण भी ऐसा ही चेतना का ध्रुव संस्थान है। इसके भीतर इच्छा शक्ति, भावना शक्ति, आाणित ज्ञात और अविज्ञात क्षमताएँ भरी पड़ी हैं।
- यदि संकल्प शक्ति, आकर्षण शक्ति, विकर्षण शक्ति जैसी उन्हें जाग्रत किया जा सके, उनका उपयोग करना सीखा जा सके तो इस विश्व ब्रह्माण्ड में समस्त शक्तियों का किया जा सकता है।
- मानवीय अन्तःकरण सौरप्रवाह मानवी सत्ता के भीतर उमड़ता प्रकट होता अनुभव के कार्य करने का पथ प्रशस्त करते रहने वाले आकाश की तरह ही असीसे है और उसमें जो कुछ भरा पड़ा है उसे अन्तरिक्ष आकारों से कहीं अधिक शक्तिशाली समझा जाना चाहिए।
- इतना सब होते हुए भी पता नहीं किस कारण हम अपनी करतलगत सम्पदा से अपरिचित बने हुए हैं।यदि किसी प्रकार अपने मूल ऊर्जा स्रोत से सम्पर्क स्थापित किया जा सके तो नीभिकीय महासागर की तरह चैतन्य ऊर्जा से जुड़कर व्यष्टि सत्ता से असंभव से असंभव भी संपन्न कर दिखाया जा सकता है।
- सूर्य सविता मानव का उपास्य व इष्ट है। उपास्य से एकाकार होना ही जीवात्मा का लक्ष्य है। कैसे यह संभव हो, यही सूर्य विज्ञान हमें बताता है।
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