योग और साधक में अंतर क्या है?

  • मनुष्य की जितनी भी अवस्थाएं हैं उनमें योग सर्वोच्च अवस्था है। वह अवस्था अति दुर्लभ हैं। जिसे प्राप्त करने के लिए देवगण भी लालायित रहते हैं।
  • वास्तव में योग ऐसी अवस्था है जिसे प्राप्त कर मनुष्य असम्भव से असम्भव कार्य कर सकने में समर्थ होता हैं। एक परम उच्च अवस्था प्राप्त सिद्ध योगी के लिए कुछ भी सम्भव नहीं हैं। क्योंकि वह ईश्वर से अभिन्न होता है।
  • जैसे ईश्वर की शक्ति माया है, उसी प्रकार एक सिद्ध योगी की भी अपनी शक्ति होती है और वह उसी शक्ति का आश्रय लेकर असम्भव को सम्भव करता है। जो जितना ईश्वर का आदर्श प्राप्त करने में समर्थ है, वह उतना ही बड़ा योगी है।

साधक और योगी में क्या अन्तर है?

  • जब तक वह माया को नियन्त्रित नहीं कर पाता तब तक साधक है। माया को नियन्त्रित कर उस पर अधिकार प्राप्त कर लेने के पश्चात् वह योगी है।
  • तंत्र साधक विश्व कल्याण और सिद्धि पाकर चमत्कार दिखाने पर विश्वास करते हैं। इसके लिए वे तंत्र रूपी शरीर की शुद्धि पर विशेष ध्यान देते है।
  • अध्यात्म और धर्म, सिद्धि के क्षेत्र में सब पहले शरीर को पूरी तरह निरोगी और स्वस्थ्य रखने का निर्देश है।

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