- इमली को संस्कृत में अम्लिका कहते हैं।
- इमली तस्या नामानि तत्पक्कफलगुणाबाह भावप्रकाशनिघण्टुः
अम्लिका चुक्रिकाअम्ली च चुक्रा दन्तशठाऽपि च।
अम्ला च चिंचिका चिंचा तिन्तिडीका च तिम्तिडी॥
अम्लिम्ला गुरुर्वातहरी पित्तकफास्त्रकृत्प।
क्का तु दीपनी रूचा सरोष्णा कफवातनुत्॥
- इमली के संस्कृत नाम – अम्लिका, चुक्रिका, अम्ली, चुका, दन्तशठा, अम्ला, चिचिका, चिवा, तिन्तिडीका तथा तिन्तिडी ये सब है।
कच्ची इमली –
- अम्ल रसयुक्त, गुरु, वातनाशक, एवम् पित्त-कफ तथा रुधिरविकार को करने वाली होती है। पकी इमली – अग्निदीपक, रूक्ष, सारक, उष्ण एवम् – कफ तथा बातनाशक होती है।
इमली के अन्य भाषाओं में नाम
- हिंदी में- इमली । बंगला – तॆतुल | मराठी – [चश्व | क० हुणिसे। गुजराती – आंवली | तेलगू – चित। ता०पुलि । फा० – तिमिर हिन्दी | अ० -तमर हिन्दी । अं० – Tamarind Tree (टेमरिंड ट्री) So-Tamarindus indica Linn. (टेमरीण्डस् इण्डिका) | Fan Leguminosae लेग्युमिनोसी
- इमली के वृक्ष प्रायः सब प्रान्तों में उत्पन्न होते हैं। हरा भरा रहता है। शाखायें – बहुत फैली हुई होती हैं!होते हैं। पत्रक पत्ते- संख्या में १० से २० जोड़े, ८- ३०४५ – ८ मि. मी. बड़े, आयताकार कुण्ठिताग्र, चिकने एवं शिगविन्यास जाकीदार होता है।
- फूल-लाली युक्त पीले रंग के आते हैं। फलियां३ से ८ इन्च लंबी, १ इञ्च चौड़ी, ००४ इत्र मोटी कुछ टेढ़ी एवं भूरे रंग की होती हैं। बीज-३ से १२, चिकने, चमकीले, चिपटे तथा भूरे रंग के होते हैं।
- इमली का स्वाद अम्ल एवं मधुर रहता है तथा इसमें सुगंध रहती है । इसका वृक्ष – बहुत बड़ा होता है और सदा पत्ते – २ से ५ इन्च लम्बे, संयुक्त पक्षाकार – इसके फल, बीज, पत्र, पुष्प एवं क्षार का चिकित्सा में उपयोग किया जाता है । खटाई के लिये भी इसका उपयोग करते हैं।
इमली का रासायनिक संगठन – इमली में साइट्रिक अॅसिड (Citric acid ), टार्टरिक्_अॅसिड ( Tartaric acid), पोटॅशियम बाइटार्टरेट (Potassium bitartrate ) एवं शर्करा आदि द्रव्य होते हैं।
इमली के गुण और प्रयोग –
- फल मज्जा तृषा शामक, रोचक, एवं सौम्य विरेचक होती है। ज्वर में विबन्ध एवं दाइ होने पर इसका पन्ना बनाकर देते हैं।
- कब्ज या विबन्ध में सनाय आदि के साथ इसको देते हैं यद्यपि रालीय विरेचक द्रव्यों के कार्य को यह कम करती है।
- इमली की फली की शुष्क त्वचा की राख ( क्षार ) पेट के दई एवं मन्दाग्नि में दी जाती है। इसके छाल की राख क्षारीय एवं मूत्रजनन होती है तथा सोजाक में दी जाती है ।
- इमली पत्तों को पीसकर व्रणशोथ में बांधते हैं। इसके बीज प्रमेह में लाभदायक होते हैं । मात्रा – फल ४ से ३० माशा, बीजचूर्ण १ से ३ माशा, क्षार ५-१५ रत्ती।
- नोट – इमली का पर्याय तिन्तिडीका दिया हुआ है किन्तु तिन्तिडीक एक अन्य द्रव्य है । मसूर जैसे लाल रंग के खट्टळे दाने ( फल ) समाक दानें के नाम से मिलते हैं । यूनानी चिकित्सक इनके छिलकों का उपयोग करते हैं। यह ले० – Rhus parviflora. Roxb. (हृस् पार्विफ्लोर।); Fam. Anacardiaceae ( अॅ- कार्डिएसी) के फल हैं। नमक मिलाकर इमली की तरह इनका भी उपयोग किया जाता है।
- इमली यह ग्राही, हथ, दीपन, शीत एवं रक्तपित्तशामक होते हैं। इनको दैतिक अतिसार, रक्ताति सार, दमन एवं हरकास में देते हैं। उडर में दाह गर्मी एवं तृषा कम करने के लिये इनका उपयोग किया जाता है।
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