अश्वगंधा, शतावरी, सफेद मूसली, कोंच बीज आदि चूर्ण लेने की सेवन विधि या लेने का सही तरीका !!

  • अश्वगंधा ऊर्जा शक्ति और बुद्धि बल बढ़ाने में उपयोगी है। द्रव्यगुण विज्ञान आयुर्वेदिक ग्रंथानुसार सुबह खाली पेट 2 gm अश्वगंधा पाउडर मुनक्के के दूध में उबाल कर खाली पेट लेवें और 2 घंटे तक कुछ भी न खाएं पिएं।
  • अश्वगंधा चूर्ण एक दिन में 4 से 5 gm से अधिक न लेवें। अगर पाचन तंत्र मजबूत हो, तो 10 ग्राम तक भी लिया जा सकता है। यह बाजिकारक गरिष्ठ ओषधि है।

अश्वगंधा के फायदे

  • आयुर्वेद विशेषज्ञों का मानना है कि अश्वगंधा का इस्तेमाल कई शारीरिक समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। यह बहुत सी गुप्त रोगों एवं दैहिक, दैविक बीमारियों के लिए अचूक और चमत्कारी ओषधी है।
    अश्वगन्धा (अश्वगन्ध) परिचय Withania somnifera (Linn.) Dunal
    सम्पूर्ण भारतवर्ष में विशेषतः शुष्क प्रदेशों में अश्वगन्धा के स्वयंजात वन्यज या कृषिजन्य पौध मिलते हैं।

असली अश्वगन्धा की पहचान

  • असगंध के पौधों को मसलने पर अश्व यानि घोड़े के मूत्र जैसी गंध आती है, जो इसकी ताजी जड़ में अपेक्षाकृत अधिक होती है।

नकली अश्वगंधा चूर्ण से सावधान

  • बाजार में जो सस्ता अश्वगन्धा बिकती है उसमें काकनज की जड़े मिली हुई होती हैं। कुछ लोग इसे देशी असगंध भी कहते हैं।
  • काकनज की जड़ें अश्वगन्धा से कम गुण वाली होती हैं। जंगली अश्वगन्धा का बाह्य प्रयोग ज्यादा होता है।

अथाश्वगन्धा। तस्या नामगुणानाह भावप्रकाश निघण्टु के अनुसार

गन्माता वाजिनामादिरवगन्धा हयाङ्कया।

वराहकर्णी वरदा बलवा कुकुगन्धिन।।

अवगन्धाऽनिलश्लेष्यश्वित्रशोथक्षयाया।

बल्या रसायनी तिक्ता कषायोग्णातिशुकला।। (निघंटू)

  • अर्थात असगन्ध’ के नाम और गुणहया (हप के पर्यायवाचक समस्त शब्द इसके घोतक है), वराहकर्णी, वरदा, बलद, और बाजी घोड़ा के जितने पर्यायवाचक शब्द है वे आदि में बनाकर अन्त में गन्ध’ शब्द लगाने से जितने शब्द हो, उन सबों को इसका पर्यायवाची शब्द समझना चाहिये, जैसे-वाहित्यादि
  • असगन्ध-तिल तथा कषाय रक्तक कफ, चित्र (श्वेत कुछ), शोध और शुक्रवर्धक, रसायन एवं वात बाल होता है।
  • (१) अश्वस्थ (२) अश्वस्येव जसके सूत्र अश्वगन्ध की हो।) से अश्व की तरह कामवेग होता हो।) हि०असगन्ध, नागोरी असगन्ध तुलकंचुकी। बं०-अधगत्या। गु०-आहन, आसध्य। संचा-घोड़ा इन घोड़ाआकुन हाआकुन क०-अंगावेक । ते०पैकगड, पिल्ली अड्डा, अश्वगन्धी। ता०-चुवदिये। फा०-बेहमनबरी। अॅ०-Winter cherry (विंटरचेरी) | ले०-Withania somnifera Dunal (विथेनिआ सॉनोफेरा) Fam: Solanaceae (सोलेनेसी)।

अश्वगंधा गुण और प्रयोग- भैषज्य रत्नाकर

  • नागोरी (बाजारी) असगन्य उण, मधुर, बृहणीय, बल्य, रसायन, वृष्य, एवं शोहर है। क्षय, बालशोष, सुखण्डी, वार्धक्य आदि में इसके ३-६ ग्रा. चूर्ण को थोड़े घृत में गरम कर दूध एवं शर्करा मिलाकर देते हैं। यह उत्तम पौष्टिक है। बच्चों के लिये यह बहुत ही अच्छा है। इससे बच्चों का सूखना बन्द हो है।
  • स्त्रियों के कटिशूल एवं श्वेत प्रदर में इससे लाभ होता है। आधुनिक खोजों से शास्त्रीय गुण कर्मों की पुष्टि होती है। संधिवात एवं अर्बुदवृद्धि रोकने में भी मददगार होती है।
  • शतावरी को संस्कृत में सहस्त्रवीर्या कहते हैं ओर यह पुरुषों में वीर्य बढ़ाता है और प्रसूता स्त्री के स्तनों में दूध की वृद्धि करता है। महिलाओं के स्तनों को भी कठोर और सुडोल बनाने में बहुत उपयोगी है।
  • आयुर्वेद के 5000 साल पुराने लगभग 16 से अधिक ग्रंथों में अश्वगंधा, शतावरी का उल्लेख मिलता है। इस लेख में अश्वगंधा की विस्तार से जानकारी पढ़ें –
  • अश्वगंधा के फूल को पनीर ढोढ़ा कहते हैं, जो मधुमेह यानि डायबिटीज में विशेष कारगर ओषधि है।

अश्वगंधा के 108 गुण, लाभ, फायदे जाने

  • अश्वगन्धाऽनिलश्लेष्मश्वित्रशोथक्षयापहा। यत
    बलकारका रसायनी तिक्ता कषायोष्णाऽतिशुक्रला।।
    (भाव.प्रकाश निघंटू गुडूच्यादि वर्ग: १९०)
  • अश्वगन्धा कषायोष्णा तिक्तावातकफापहा।
    विषव्रणक्षयान् हन्ति कान्तिवीर्यबलप्रदा॥
    (ध.नि. गुडूच्यादि वर्ग: २७५)
  • अश्वगन्धा कटूष्णा स्यात्तिक्ता च मदगन्धिका।
    बलकारका वातहरा हन्ति कासश्वासक्षयव्रणान्॥
    (रा.नि.शताह्वादि वर्गः ११२)।
  • अश्वगन्धा कषायोष्णा तिक्ता वृष्या रसायनी।
    बलपुष्टिप्रदा हन्ति कफकासानिलव्रणान्॥
    शोफकण्डूविषश्वित्रकृमिश्वासक्षतक्षयान्।
    (कै.नि.औषधि. वर्ग: १०४६)
  • अश्वगंधा ऽनिलश्लेष्मशोफश्वित्रक्षयापहा।
    बलकारका रसायनी तिक्ता कषायोष्णाऽतिशुक्रला।।
    (म.नि.अभयादि वर्ग: १७४)
  • अर्थात तन मन अंतर्मन को हेल्दी बनाकर धन भी बचाता है अश्वगंधा। स्त्री पुरुष के गुप्त रोग मानसिक विकार ठीक करने में उपयोगी है। बीमारियां बाहर कर बुढ़ापा रोकने में मदद करता है।
  • अश्वगंधा के बारे में यह जानकारी लगभग 11 प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपि, ग्रंथों से संस्कृत के श्लोकों सहित ली गई है, ताकि गुगल पर भ्रम फेलाने वाले ज्ञान से सावधान हो सकें। अतः शास्त्रों में लिखी बात को ही सत्य माने।

सन्दर्भ ग्रंथ और प्राचीन पुस्तके

  • भावप्रकाश निघंटू, वैद्यक चिंतामणि, द्रव्यगुण विज्ञान, भेष्यज्य रत्नाकर, आयुर्वेद जड़ीबूटी रहस्य, आयुर्वेदिक निघंटू, वनौषधि चंद्रोदय, आयुर्वेद चिकित्सा सार, निघंटू आदर्श और गांवों की दुर्लभ जड़ीबूटियां।

संस्कृत के श्लोक अनुसार अश्वगंधा के कार्य

  • अश्वगन्धाऽनिलश्लेष्मश्वित्रशोथक्षयापहा।
    बलकारका रसायनी तिक्ता कषायोष्णाऽतिशुक्रला।।
    (भा.प्र.गुडूच्यादि वर्ग: १९०)
  • अश्वगन्धा कषायोष्णा तिक्तावातकफापहा।
    विषव्रणक्षयान् हन्ति कान्तिवीर्यबलप्रदा॥
    (ध.नि. गुडूच्यादि वर्ग: २७५)
  • अश्वगन्धा कटूष्णा स्यात्तिक्ता च मदगन्धिका।
    बलकारका वातहरा हन्ति कासश्वासक्षयव्रणान्॥
    (रा.नि.शताह्वादि वर्गः ११२)।
  • अश्वगन्धा कषायोष्णा तिक्ता वृष्या रसायनी।
    बलपुष्टिप्रदा हन्ति कफकासानिलव्रणान्॥
    शोफकण्डूविषश्वित्रकृमिश्वासक्षतक्षयान्।
    (कै.नि.औषधि. वर्ग: १०४६)
  • अश्वगंधा ऽनिलश्लेष्मशोफश्वित्रक्षयापहा।
    बलकारका रसायनी तिक्ता कषायोष्णाऽतिशुक्रला।।
    (म.नि.अभयादि वर्ग: १७४)

अश्वगंधा दो प्रकार का होता है

  • एक छोटी असगन्ध। इसका क्षुप छोटा होने से यह छोटी असगन्ध कहलाती है। किन्तु इसकी जड़ बड़ी होती है।
  • मप्र की सीमा से सटा नीमच के नजदीक नागौर (राजस्थान) में असगंध बहुत हुआ करती है और वहां की जलवायु के प्रभाव से यह विशेष प्रभावशाली होती है और इसीलिए इसकी नागौरी असगन्ध के नाम से प्रसिद्धि बनी हुई है। यही सर्वश्रेष्ठ सबसे अच्छा होता है। अमृतम अश्वगंधा चूर्ण इसी से निर्मित होता है।
  • दूसरी बड़ी या देशी असगन्ध है। इसका क्षुप बड़ा होता है, किन्तु जड़ें छोटी और पतली होती है। यह बाग-बगीचों, खेतों और पहाड़ी स्थानों में सामान्य रूप में पायी जाती है।

नपुंसकता, नामर्दी नाशक अश्वगंधा

  • असगन्ध में वाजीकरण गुणों की प्रधानता होने से और उसकी गन्ध कुछ अश्व के मूत्र की गन्ध जैसी होने से संस्कृत में इसका बाजी या अश्व से सम्बन्धित नाम रखे गए हैं तथा अश्वगन्धा का ही अपभ्रंश हिन्दी में असगन्ध हुआ है।

108 रोग नाशक अश्वगंधा –(आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव)

  1. अश्वगन्धा कफ वातशामक, बलकारक, बृंहण, रसायन, वाजीकरण, नाड़ी – बलकारक, दीपन, पुष्टिकारक, शुक्रकारक, धातुवर्धक व पाचक होता है।
  2. अश्वगन्धा के फल एवं बीज मूत्रल तथा निद्राकारक होते हैं। अश्वगन्धा के पत्र या पत्ते कटु, ज्वरहर तथा कृमिनाशक होते हैं।
  3. अश्वगन्धा की मूल यानि जड़ का ही सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। अश्वगंधा मूत्रल, स्वेदक है।
    रोगप्रतिरोधक क्षमता यामक (Immunomodulator) गुण होने से अश्वगंधा प्राकृतिक उम्ररोधी अर्थात एंटीएजिंग बूटी है।
  4. बुढापा नहीं आने देता। अश्वगंधा के नियमित सेवन से झुर्रियां, कम्पन्नता मिट जाती हैं।
  5. असगंध मस्तिष्क दौर्बल्य, श्रम, तनावजन्य विकार, तनावरोधी होने से चिंता फिक्र मिटाता है।
  6. मानसिक विकार नाशक ओषधि है। अनिद्रा की शिकायत को दूर करता है।
  7. असगंध प्रशामक, वाजीकारक तीक्ष्ण, तिक्त, आर्तववर्धक; श्वित्र, विबन्ध, जलशोफ, अजीर्ण, हिक्का संधिशूल, फुफ्फुसशोथ तथा उन्माद नाशक होती है।
  8. अश्वगंधा आयुर्वेद में मधुमेह नाशक दवाओं का यह मूल घटक है। डायबिटीज़,ब्लड शुगर को सन्तुलित कर, इंसुलिन सेंसिटिविटी को मसल्स सेल्स में सुधार करता है।
  9. अश्वगंधा पुरुषों में मसल्स मास को बढ़ाकर, बॉडी फैट्स कम करता है और शक्ति देता है।
  10. अश्वगंधा शरीर की जलन, बेचैनी और सूजन में राहतकारी है।
  11. अश्वगंधा जोड़ों के दर्द और कमरदर्द के लिए फ़ायदेमंद है।
  12. अश्वगंधा रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि कर शारीरिक दुर्बलता दूर करता है।
  13. अश्वगंधा अश्व यानि घोड़े जैसी ताकत देकर सेक्स पावर, यौन क्षमता को बढ़ाने में कारगर है।
  14. अश्वगंधा पुरुषों के शुक्राणुओं की गुणवत्ता बढ़ाकर वीर्य को गाढ़ा करता है।
  15. अश्वगंधा मानसिक विकार, तनाव में राहतकारी है और गहरी नींद लाकर थकान मिटाता है।
  16. चिंता, थकावट, नींद की कमी जैसी समस्यायों का कारगर इलाज है।
  17. अस्थिसंधि, हड्डियों के रोग
    गठियावात, थायराइड था वातरोग में – अश्वगन्धा के पञ्चाङ्ग को कूटकर, छानकर, 2-4 ग्राम तक सेवन करने से गठियावात का शमन होता है या गठिया में अश्वगन्धा के 30 ग्राम ताजा पत्तों को, 250 मिली पानी में उबालकर, जब पानी आधा रह जाए तो छानकर पी लें।
  18. एक सप्ताह पीने से ही गठिया रोगी बिल्कल अच्छा हो जाता है तथा इसका लेप भी बहुत लाभदायक है।
  19. मधुमेह नाशक जंगली अश्वगंधा यानि पनीरडोडा या फूल- जंगली अश्वगन्धा के पुष्पों को सुखाकर बाजारों में पनीरडोडा के नाम से बेचा जाता है।
  20. पनीर ढोढ़ा का प्रयोग मधुमेह एवं त्वचाविकारों में अत्यन्त लाभप्रद माना गया है।
  21. पनीरडोडा को रात्रिपर्यंत जल में भिगोकर रखें। प्रातः छानकर पीने से मधुमेह में लाभ होता है।
  22. अश्वगंधा रक्त की कमी को पूरा कर, मांसपेशियों को मजबूत बनाकर आप समय तक जवानी बरकरार रखने मे हितकारी है।
  23. अश्‍वगंधा स्ट्रेस हार्मोन कॉर्टिसोल के लेवल को कम करता है, जिससे स्ट्रेस कम होता है।
  24. गंभीर अवसादग्रस्त यानि डिप्रेशन से पीड़ित का इलाज भी इससे संभव है।
  25. अश्वगंधा एंटीइंफ्लामेट्री गुणों की वजह से ये कोलेस्ट्रॉल और ट्राईग्लिसराइड लेवल को बैलेंस और कम करता है।
  26. अश्वगंधा हृदय को स्वस्थ रखता है।
  27. अश्वगंधा कर्कट अर्थात कैंसर के रोगियों लिए लाभकारी है।
  28. एक शोध के अनुसार अश्‍वगंधा कैंसर के कारण होने वाली कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव को कम करने में सहायक है।
  29. अश्वगंधा नई कैंसर सेल्स को बनने से भी रोकता है।
    जख्म, घाव आदि तकलीफ में अश्वगंधा की जड़ों को पीसकर घाव पर लगाने से जल्दी भरता है।
  30. असगंध के औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
    शिरो रोग : बालों का झड़ना यानि पालित्य 2-4 ग्राम अश्वगंधादि चूर्ण का सेवन करने से वली (बालों का असमय सफेद होना) तथा पलित, झडना, टूटना रोगों में लाभ होता है।
  31. नेत्र रोग : आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए (नेत्र-ज्योतिवर्धनार्थ) दो ग्राम अश्वगंधा चूर्ण, 2 ग्राम धात्री फल (आंवला)चूर्ण तथा एक ग्राम मुलेठी चूर्ण मिलाकर प्रातः सायं जल के साथ सेवन करने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।
  32. कण्ठ रोग या गण्डमाला में समभाग अश्वगंधा पत्र चूर्ण तथा पुराने गुड़ को मिलाकर आधा से 1 ग्राम प्रातःकाल बासी जल के साथ सेवन करने से तथा पत्र (पत्तों) कल्क का गण्डमाला पर लेप
    करने से गण्डमाला में शीघ्र लाभ होता है।
  33. क्षय रोग यानि टीबी : में 2 ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण को अश्वगन्धा के ही 20 मिली क्वाथ के साथ सेवन करने से क्षय रोग में लाभ होता है।
  34. अथवा 2 ग्राम अश्वगन्धा मूल चूर्ण में 1 ग्राम बड़ी पीपल का चूर्ण, 5 ग्राम घी और 5 ग्राम मधु मिलाकर सेवन करने से क्षय रोग में लाभ होता है।
  35. कास (खाँसी) में कारगर –
    अश्वगन्धा की 10 ग्राम जड़ों को कूट लें, इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर 400 मिली जल में पकाएं, जब आठवां हिस्सा रह जाय तो इसे थोड़ा-थोड़ा पिलाने से कुकुर खाँसी या वात जन्य कास पर विशेष लाभ होता है।
  36. असाध्य कफ विकार
    अश्वगन्धा के पत्तों के 40 मिली घन क्वाथ में 20 ग्राम बहेड़े का चूर्ण, 10 ग्राम कत्था चूर्ण, 5 ग्राम काली मिर्च तथा ढाई ग्राम सैंधानमक मिलाकर 500 मिग्रा की गोलियां बना लें। इन गोलियों को चूसने से सब प्रकार की खाँसी दूर होती है। क्षयजकास में भी यह विशेष लाभदायक है।
  37. हृदय रोग : हृदय-शूल में – 2 ग्राम अश्वगंधा मूल चूर्ण को जल के साथ सेवन करने से वातज-शूल में लाभ होता है।
  38. अश्वगन्धा चूर्ण में बहेड़े के चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर 2-4 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ लेने से उदरकृमियों यानि पेट के कीड़े का शमन होता है।
  39. पेट के कीड़े:
    अश्वगन्धा चूर्ण में बहेड़े के चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर 2-4 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ लेने से उदरकृमियों का शमन होता है।
  40. उदर रोग :
    उदर कृमि-अश्वगंधा चूर्ण में समान भाग गिलोय का चूर्ण मिलाकर 2 से 3 ग्राम मधु के साथ नियमित सेवन करने से पेट के कीड़े उदरकृमियों का नाश होता है।
  41. बद्धकोष्ठ – 2 ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण को गर्म जल के साथ सेवन करने से बद्धकोष्ठता मिटती है।
  42. अश्वगंधा महिलाओं के प्रजननसंस्थान रोग, संतानदाता योग हेतु 20 ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण, एक लीटर जल तथा 250 मिली गोदुग्ध, तीनों को मंद अग्नि पर पकाकर, जब दूध मात्र शेष रह जाय, तब इसमें 6 ग्राम मिश्री और 6 ग्राम गाय का घी मिलाकर मासिक धर्म के शुद्धिस्नान के तीन दिन बाद, तीन दिन तक सेवन करने से यह गर्भधारण में सहायक होता है।
  43. गर्भपात का शर्तिया इलाज
    गर्भस्तम्भनार्थ- बच्चा न ठहरने या बार-बार गर्भपात होने पर अश्वगन्धा और सफेद कटेरी की जड़ इन दोनों के 10-10 मिली स्वरस को प्रथम मास से पांच मास तक सेवन करने से अकाल में गर्भपात नहीं होता है।
  44. स्त्रियों के गंभीर और गुप्त रोग जड़ से मिटाए प्रदर रोग, पीसीओडी PCOD, PCOS में
    2 से 3 ग्राम अश्वगन्धा मूल चूर्ण में मिश्री मिलाकर गाय के दूध के साथ सुबह शाम सेवन करने से प्रदर, लिकोरिया, पीसीओएस में लाभ होता है।
  45. लिकोरिया में हितकारी
    अश्वगंधा, तिल, उड़द, गुड़ तथा घृत को समान मात्रा में लेकर लड्डू बनाकर खिलाने से में लाभ होता है।
  46. पुरुषों के इन्द्रिय शैथिल्य – अश्वगन्धा का कपड़छान चूर्ण और खांड बराबर मिलाकर रखें, एक चम्मच की मात्रा में लेकर गाय के ताजे दूध के साथ प्रातः भोजन से तीन घण्टे पूर्व सेवन करें।
  47. रात्रि के समय अश्वगन्धा नागोरी का पंचांग या मूल के बारीक चूर्ण को चमेली के तैल में अच्छी तरह घोंटकर लिंग में लगाने से इन्द्रिय की शिथिलता दूर होती है।
  48. लिंग को कड़क, कठोर बनाने तथा लंबाई बढ़ाने में BFERAL Gold Oil विशेष कारगर है।
  49. लिंग का ढीलापन मिटाए असगंध
    अश्वगन्धा, दालचीनी और कूठ को समभाग मिलाकर कूटकर छान लें और गाय के मक्खन में मिलाकर प्रातः सायं शिश्नाग्र छोड़ शेष लिंग पर लगाएं। लिंग को गुनगुने पानी से धो लें। इससे इन्द्रिय शिथिलता दूर होती है।
  50. वीर्य की वृद्धि
    दो ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण में 125 मिग्रा मिश्री डालकर, गुनगुने दूध के साथ सेवन करने से वीर्य पुष्ट होता है तथा बल बढ़ता है। BFeral Gold Malt कैप्सूल भी ले सकते हैं।
  51. गठिया वाय,कमर, जोड़ों के दर्द और सूजन शिथिलता आदि 88 तरह वातरोगों को जड़ से ठीक करता है।
  52. दो से तीन ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण को, सुबह शाम गर्म दूध के साथ खाने से गठिया रोग जड़मूल से दूर होने लगता है।
  53. अश्वगंधा, शतावरी, दशमूल, बला पंचांग आदि से निर्मित Orthokey Gold Capsule और Malt अत्यन्त लाभकारी है।
  54. कटिशूल- 2-3 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को गोघृत या शक्कर के चाटने से कटिशूल और निद्रानाश में लाभ होता है।
  55. संधिवात- तीन ग्राम अश्वगंधा चूर्ण में तीन ग्राम घी तथा एक शक्कर मिलाकर सुबह शाम खाने से संधिवात का शमन होता है।
  56. अश्वगन्धा के मूल के क्वाथ और कल्क में चौगुना घी मिश्रण कर इसे पकाकर सेवन करने से वात-व्याधि का शमन होता है।
  57. कफ, पुरानी खांसी में अश्वगन्धा पत्तों की 10 ग्राम ताजी कोंपले या कोमल पत्र लेकर 200 मिली में उबालें, जब पत्ते गल जाए या नरम हो जाए, तो छानकर गर्म 15-20 मिली मात्रा में 2-4 दिन तक प्रातः सायं पीने से कफ कास तथा संधिवात का शमन होता है।
  58. शस्त्रक्षत-क्षत होने पर या चोट लगने व सूजन पर अश्वगन्धा के चूर्ण में गुड़ एवं घी मिलाकर दूध के साथ सेवन करना हितकर है।
  59. त्वचा रोग – अश्वगंधा के पत्र कल्क का लेप त्वचागत कृमि मधुमेह-जन्य व्रण, फिरंग जन्य व्रण, शोथ तथा अन्य व्रणों का शत निवारण करता है।
  60. असगंधपत्र – क्वाथ से प्रक्षालन तथा स्वेदन करना लाभप्रद है।
    रक्तविकार-अश्वगंधा चूर्ण में समभाग चोपचीनी चूर्ण अथवा चिरायया चूर्ण मिलाकर 3 से 4 ग्राम की मात्रा में प्रातः सायं सेवन करने में रक्तज विकारों में लाभ होता है। खून की शुद्धि होती है।
  61. त्वचा रोग स्किन प्रोब्लम मिटाए असगंध
    विसर्प – अश्वगंधा मूल को पीसकर, गुनगुना करके लेप करने विसर्प में लाभ होता है। Skinkey Malt आयुर्वेद में बेहतरीन विकल्प है।
  62. सर्वशरीर रोग :
    दौर्बल्य – 2 से 3 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को एक वर्ष तक यथाविधि प्रातः खाली पेट सेवन करने से शरीर रोग रहित हो जाता है।
  63. कमजोरी दूर करे असगंध
    अश्वगंधा चूर्ण, तिल व देशी घी सभी 2 – 2 ग्राम और तीन ग्राम मधु मिलाकर नित्य शरद्-ऋतु में सेवन करने से शरीर पुष्ट हो जाता है।
  64. इम्यूनिटी वृद्धि कारक अश्वगंधा
    3 ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण में समान भाग मिश्री और मधु मिलाकर इसमें 5 ग्राम गाय का भी मिलाएं, इस मिश्रण को 4 मास तक सेवन करने से रोगप्रतिरोधक क्षमता में भारी वृद्धि होती है।
  65. कफ प्रकृति का व्यक्ति गर्म जल के साथ एक वर्ष तक सेवन करे तो निर्बलता दूर होकर सब व्याधियों का नाश होता है।
  66. अश्वगंधा अल्ज़ाइमर के उपचार के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
  67. अश्वगन्धा चूर्ण और चिरायता बराबर बराबर लेकर खरल करके रखें। इस चूर्ण को 2–3 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम दूध के साथ सेवन करने से अंदरूनी ज्वर, मोतीझरा, टायफाइड से उत्पन्न दौर्बल्यता का नाश शमन होता है।
  68. पुराना मलेरिया, ज्वर-
    2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण तथा 1 ग्राम गिलोय सत्, आधा ग्राम चिरायता तोनों को मिलाकर प्रतिदिन शाम को गुनगुने पानी के साथ खाने से जीर्ण वातज्वर का शमन होता है।
  69. सर्वरोग नाशक चिकित्सा और इम्यूनिटी बूस्टर
    – 250 मिग्रा गिलोय सत् को 2 ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण के साथ मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से सब प्रकार के अंदरूनी और असाध्य रोग दूर हो जाते हैं।
    अहितकर : उष्ण प्रकृति वालों के लिए।
  70. निवारण : गोंद, कतीरा एवं देशीघी।
    प्रयोज्याङ्ग असगंध पत्र, मूल, फल एवं बीज।
    अधिकतम मात्रा : मूल चूर्ण 2-4 ग्राम । क्वाथ 10–20 मिली अथवा चिकित्सक के परामर्शानुसार
  71. बुद्धि की शुद्धि और ज्ञान वृद्धि के लिए
    अश्वगंधा को दिमाग के लिए फायदेमंद कहा जाता है। मनुष्य के शरीर की बहुत सारी परेशानियों को दूर करने के लिए अश्वगंधा एक चमत्कारी औषधि के रुप में इसकी जड़ का उपयोग किया जाता है।
  72. अश्वगंधा शरीर को बीमारियों से बचाने के अलावा दिमाग और मन को भी स्वस्थ रखती है। Brainkey Gold Malt भी सर्च कर सकते हैं। इसमें अश्वगंधा, स्मृतिसागार रस, ब्राह्मी आदि का समावेश है।
  73. केवल पुरुषों के लिए उपयोगी पुरुषत्व बढ़ाने में भी एक 2 से 3 ग्राम अमृतम अश्वगंधा चूर्ण बी फेराल गोल्ड माल्ट के साथ मिलाकर गुनगुने दूध से 3/तीन महीने लेने से व्यक्ति सेक्स के माले में फौलादी बन जाता है। परिवार की परवरिश हेतु पार्टनर की प्रसन्नता जरूरी है।
  74. आयुर्वेद का मूलमंत्र है- !!पहला सुख-निरोगी काया!!तन को पतन से बचाने के लिए हजारों जतन करना चाहिए। पुरुषों की स्टेमिना यानि ताकत अनमोल रत्न है।
  75. वैवाहिक जीवन तभी सफल और सुखमय माना जाता है, जब आप परिवार के साथ-साथ पार्टनर को भी शारीरिक सन्तुष्टि देकर प्रसन्न रखेंगे।
  76. आपके शरीर में पुरुषार्थ या स्टैमिना, ताकत, शक्ति एवं की कमी है अथवा कोई भी शारीरिक कमजोरी है, तो सौ फीसदी आयुर्वेदिक इलाज के लिए 3 से 6 महिने तक नियमित बी फेराल गोल्ड माल्ट एवं कैप्सूल का सेवन शादीशुदा जीवन को पूरी तरह खुशहाल बना सकता है। लिंग पर BFeral गोल्ड ऑयल लगाएं।
  77. बी फेराल अश्वगन्धा युक्त एक आयुर्वेदिक औषधि है, जो आंतरिक या गुप्त रोगों को जड़ से ठीक करने में 3 से 6 माह का समय लेती है।
  78. बी फेराल गोल्ड माल्ट & कैप्सूल पूर्णतः केमिकल रहित है। इसे जड़ीबूटियों के काढ़े में आँवला मुरब्बा, शतावर, अश्वगंथ, मधुयष्टि, कोंच बीज, शिलाजीत, सफेद मूसली, सिद्ध मकरध्वज, वंग, त्रिवंग भस्म आदि के योग से निर्मित किया है।
  79. BFeral बी फेराल रोगप्रतिरोधक क्षमता यानि immunity बढ़ाने में सहायक है।
  80. आयुर्वेद की गौरवशाली और विलक्षण असरदार ओषधियों से निर्मित एक बहुत ही बेहतरीन दवा है। यह पुरुषों के अनेक गुप्त विकारों को दूर करने में 100 फीसदी सहायक है।
  81. अश्वगंधा का वानस्पतिक नाम
    Withania somnifera (Linn.) Dunal (विथेनिआ सॉम्नीफेरा) Syn – Physalis somnifera Linn. अश्वगंधा का अंग्रेजी नाम : Winter cherry (विंटर चेरी)
    या पॉयजनस गूजूबेरी (Poisonous gooseberry);
  82. अश्वगंधा का कुल Solanaceae (सोलैनेसी)
  83. अश्वगंधा का संस्कृत नाम – वराहकर्णी, वरदा, बलदा, कुष्ठगन्धिनी, अश्वगंधा;
  84. अश्वगंधा का हिन्दी नाम -असगन्ध, अश्वगन्धा, पुनीर, नागोरी असगन्ध;
  85. अश्वगंधा का उर्दू नाम-असगंधनागोरी (Asgandanagori)
  86. असली अश्वगन्धा की पहचान
    असगंध के पौधों को मसलने पर अश्व यानि घोड़े के मूत्र जैसी गंध आती है, जो इसकी ताजी जड़ में अपेक्षाकृत अधिक होती है।
  87. नकली अश्वगंधा चूर्ण से सावधान
    बाजार में जो सस्ता अश्वगन्धा बिकती है उसमें काकनज की जड़े मिली हुई होती हैं। कुछ लोग इसे देशी असगंध भी कहते हैं। यह पाचन तंत्र बिगाडकर पेट, लिवर, किडनी, आंतों को क्षतिग्रस्त कर देता है।
  88. काकनज की जड़ें अश्वगन्धा से कम गुण वाली होती हैं। जंगली अश्वगन्धा का बाह्य प्रयोग ज्यादा होता है।
  89. अश्वगंधा दो प्रकार का होता है।
    एक छोटी असगन्ध। इसका क्षुप छोटा होने से यह छोटी असगन्ध कहलाती है। किन्तु इसकी जड़ बड़ी होती है।
  90. राजस्थान के नागौर में यह बहुत हुआ करती है और वहां की जलवायु के प्रभाव से यह विशेष प्रभावशाली होती है और इसीलिए इसकी नागौरी असगन्ध के नाम से प्रसिद्धि बनी हुई है। यही सर्वश्रेष्ठ होता है।
  91. नपुंसकता, नामर्दी नाशक अश्वगंधा
    असगन्ध में वाजीकरण गुणों की प्रधानता होने से और उसकी गन्ध कुछ अश्व के मूत्र की गन्ध जैसी होने से संस्कृत में इसका बाजी या अश्व से सम्बन्धित नाम रखे गए हैं तथा अश्वगन्धा का ही अपभ्रंश हिन्दी में असगन्ध हुआ है।
  92. अश्वगन्धा की मूल यानि जड़ का ही सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। अश्वगंधा मूत्रल, स्वेदक है।
    रोगप्रतिरोधक क्षमता यामक (Immunomodulator) गुण होने से अश्वगंधा प्राकृतिक उम्ररोधी अर्थात एंटीएजिंग बूटी है। बुढापा
    नहीं आने देता। अश्वगंधा के नियमित सेवन से झुर्रियां, कम्पन्नता मिट जाती हैं।
  93. असगंध मस्तिष्क दौर्बल्य, श्रम, तनावजन्य विकार, तनावरोधी होने से चिंता फिक्र मिटाता है। मानसिक विकार नाशक ओषधि है। अनिद्रा की शिकायत को दूर करता है।
  94. असगंध प्रशामक, वाजीकारक तीक्ष्ण, तिक्त, आर्तववर्धक; श्वित्र, विबन्ध, जलशोफ, अजीर्ण, हिक्का संधिशूल, फुफ्फुसशोथ तथा उन्माद नाशक होती है।
  95. अश्वगंधा आयुर्वेद में मधुमेह नाशक दवाओं का यह मूल घटक है। डायबिटीज़,ब्लड शुगर को सन्तुलित कर, इंसुलिन सेंसिटिविटी को मसल्स सेल्स में सुधार करता है।
  96. अश्वगंधा पुरुषों में मसल्स मास को बढ़ाकर, बॉडी फैट्स कम करता है और शक्ति देता है।
  97. अश्वगंधा शरीर की जलन, बेचैनी और सूजन में राहतकारी है।
  98. अश्वगंधा रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि कर शारीरिक दुर्बलता दूर करता है।
  99. अश्‍वगंधा स्ट्रेस हार्मोन कॉर्टिसोल के लेवल को कम करता है, जिससे स्ट्रेस कम होता है। गंभीर अवसादग्रस्त यानि डिप्रेशन से पीड़ित का इलाज भी इससे संभव है।
  100. माधव निदान के मुताबिक अश्वगंधा कर्कट अर्थात कैंसर के रोगियों लिए लाभकारी है।
  101. एक शोध के अनुसार अश्‍वगंधा कैंसर के कारण होने वाली कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव को कम करने में सहायक है।
  102. अश्वगंधा नई कैंसर सेल्स को बनने से भी रोकता है।
    जख्म, घाव आदि तकलीफ में अश्वगंधा की जड़ों को पीसकर घाव पर लगाने से जल्दी भरता है।
  103. असगंध के औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
    शिरो रोग : बालों का झड़ना यानि पालित्य 2-4 ग्राम अश्वगंधादि चूर्ण का सेवन करने से वली (बालों का असमय सफेद होना) तथा पलित रोगों में लाभ होता है।
  104. आखों की बीमारियों को ठीक करे अश्वगंधा
    आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए (नेत्र-ज्योतिवर्धनार्थदो ग्राम अश्वगंधा चूर्ण, 2 ग्राम धात्री फल (आंवला) चूर्ण तथा एक ग्राम मुलेठी चूर्ण मिलाकर प्रात: Eyekey Malt के साथ सेवन करे।
  105. अश्वगंधा, शिलाजीत, शतावरी और कौंच बीज ये सभी आयुर्वेदिक जड़ीबूटियां है। इनका उपयोग पुरुषार्थ शक्ति के लिए करते हैं।
  106. आयुर्वेद की कुछ कम्पनियों द्वारा इन चूर्ण की रिपैकेजिंग अलग-अलग की जाती है। उपरोक्त योग धातुपौष्टिक चूर्ण में भी पाया जाता है।
  107. सावधानी एक दिन में इन समस्त चूर्ण का इस्तेमाल 6 से 10 ग्राम से अधिक नहीं करना चाहिए।
  108. यह ओषधियाँ पांचन में समय अधिक लेने के कारण पुराने वैद्य इन्हें सीधे खाने की सलाह नहीं देते थे।
    1. शतावरी या सहस्त्र वीर्या, कोंच बीज, शिलाजीत की 22 ग्रंथों से ली गई सम्पूर्ण शस्त्रमात जानकारी नीचे लेख में पढ़े।

शतावर क्या है जाने फायदे

कोंच बीज के फायदे

  • कोंच के बीज पौष्टिक, उत्तेजना वृद्धिकारक, बाजीकर यानि मर्दाना ताकत बढ़ाने वाले तथा वातशामक होते हैं।

सफेद मूसली के फायदे…

  • मूसली दो तरह की होती हैं-सफेद और काली। यह विशेष वीर्यवर्द्धक बूटी है। शुक्राणुओं की वृद्धि, वीर्य का गाढ़ा करने में इसे सेक्स प्रोडक्ट में मिलना जरूरी है। यह रसायन है।

शिलाजीत का अर्थ…

  • शिला यानि योनि को जीतने वाली प्राकृतिक ओषधि। कैसे होती है शिलाजीत की उत्पत्ति…
  • शुद्ध शिलाजीत ज्यादातर पर्वतों की ऊंचाई पर पाया जाता है। यह पहाड़ों के पसीना है। सबरा नामक चूहे जैसा एक पशु जिसकी पूछ नहीं होती।
  • यह केवल पर्वतों की सबसे ऊंची चोटी पर जाकर शिलाजीत ही खाता है और नीचे आकर मल-मूत्र विसर्जन करता है, पहाड़ की उस मिट्टी को जिसे शिलाजीत पत्थर कहते हैं।
  • जंगली लोग इसे ही आयुर्वेदक कम्पनियों को बेच देते हैं, जिसे बाद में दवा कम्पनियां त्रिफला के काढ़े में उबालकर रबड़ी जैसा गाढ़ा पदार्थ निकल लेती हैं।
  • लद्दाख में शिलाजीत केसे निकलता है ये वीडियो amrutam के यूट्यूब चैनल पर सर्च करें।
  • शिलाजीत के बारे में यह वीडियो लेह-लदाख में बसे भारत के आखिरी गाँव तिरतुक के राजा द्वारा बताया जा रहा है।

घर में भी बना सकते हैं मर्दाना ताकत की देशी दवाई

  • आपको अगर मर्दाना ताकत के लिए कोई दवा घर पर बनानी है, तो अश्वगन्धा, शतावरी, कौंच बीज, सफेद मूसली, शिलाजीत, मुलेठी, पुर्ननवा मूल, बाराही कन्द सभी को समभाग लेकर साफ कर कुछ दिनों छाया में सुखाएं।
  • नागकेशर, जायफल, माजूफल, लौंग, इलायची सभी उपरोक्त औषधियों का 20 फीसदी भाग तथा त्रिवंग भस्म, गिलोय सत्व, केशर, वंग भस्म, अभ्रक भस्म शतपुटी सभी 1 से 2 ग्राम लेकर। सभी को साफकर महीन पॉवडर बनाकर रखें।
  • इस चूर्ण को मिश्रीयुक्त दूध के साथ आधा चम्मच 3 से महीने लेवें।

सुबह नाश्ते में मीठा दही, पिंड खजूर जरूर लेवें।

रात में दही, अरहर की दाल, सलाद, जूस, फल आदि त्यागें।

एक अन्य आयुर्वेदक ग्रन्थ के अनुसार चित्र देखें।

  • अगर आप सभी झंझटों से बचना चाहते हैं, तो 5000 वर्ष प्राचीन काम शक्ति वर्द्धक पुस्तकों में बताए गए विधान-विधि के अनुरूप निर्मित ओषधियाँ-

BFeral Gold Malt बी फेराल गोल्ड माल्ट

B FERAL GOLD Capsule

  • बी फेराल के बारे में विस्तार से पढ़ना हो, तो गूगल पर सर्च कर पढ़ सकते हैं।
  • तीनों की मात्रा 1–1 ग्राम से अधिक न हो यानी 3 ग्राम सभी मिलाकर ले सकते हैं। अधिक लेने से कब्ज की शिकायत हो सकती है। कोशिश करें कि सुबह खाली पेट दूध से लेवें।
  • इसे पचाने के लिए भोजन के बाद अमृतम गुलकंद 1 चम्मच सादे जल से जरूर लेवें, इससे पित्त बैलेंस में रहेगा।
  • आप चाहें, तो अश्वगंधा, शतावर, सफेद मूसली, कोंच बीज, सालम मिश्री, वंग-त्रिवंग भस्म, स्वर्ण भस्म युक्त अमृतम बी फेराल गोल्ड माल्ट 1 माह तक ले सकते हैं।
  • आयुर्वेद सार संग्रह ग्रन्थ के अनुसार इन दोनों चूर्ण की मात्रा 10–10 ग्राम तक दो बार ले सकते हैं, लेकिन इसके लिए रोज कम से कम 8 से 10 किलोमीटर घूमना, चलना भी जरूरी है, तभी यह पचेगा। अन्यथा पेट में ही रखा रहेगा, जो बाद में पाचनतंत्र को खराब कर देगा।
  • आयुर्वेद में अनुपान, मात्रा का विशेष महत्व है।
  • आप दवाएं उतनी खाएं, जिसे पचाना आसान हो, नहीं तो लाभ के स्थान पर हानि होगी।

  • हमारी सलाह है कि आप अश्वगंधा, शतावर, शिलाजीत, सफेद मूसली, शुक्रमातृका वटी, आंवला, हरड़ मुरब्बा मकरध्वज आदि द्रव्य-घटकों से निर्मित बी फेराल गोल्ड माल्ट का एक महिने सेवन करके देखें।

एक महीने में मर्दांग्नि व ताकत बेशुमार बढ़ जाएगी।

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