- नियम से चलने वाले व्यक्ति से यम दूर भागते हैं। पित्त का संतुलन बनाये रखने के लिए आयुर्वेदक लिवर टॉनिक Keyliv Strong Syrup सबसे सर्वश्रेष्ठ ओषधि है।
- स्वास्थ्य के लिए साथ ही मन को मजबूत बनाना ही मनुष्य का मुख्य कार्य है। पक्का मानो कि मन की मलिनता मन्त्र जाप से ही मिटती है। ये बात करोड़ों वर्षों से अनुभव की जा रही है।
- भारत के त्रिकालदर्शी मुनि, मनीषी ओर महर्षियों आदिकाल से प्रेरित किया है। अभ्यास द्वारा यह सब सम्भव है। जरा सा प्रयास जीवन के सब तरस मिटा देगा।
- कमजोर मन ठगिया है ओर मजबूत मन राजा है। आपके विचारों में ही निहित है प्रसन्नता ओर रोग क्षय की शक्ति।
अमृतम पत्रिका, ग्वालियर से साभार
- योगियों का कथन है कि प्रत्येक मनुष्य के भीतर एक गोपनीय अलौकिक एवं अनुपम शक्ति का भंडार है। यह सुषुप्तावस्था में विद्यमान है।
- साधारण व्यक्ति इसका समुचित उपयोग कर पाने में पूर्णतः असमर्थ रहता है। फलस्वरूप मन से प्राप्त होने वाली महत्त्वपूर्ण चमत्कारिक उपलब्धियों से सर्वथा वंचित रहता है।
- परंतु यदि उन शक्तियों का सूक्ष्म निरीक्षण किया जाए एवं उन्हें जागृत किया जाए, तो पायेंगे कि हम एक अनूठी ज्योति के स्रोत हैं।
- आयुर्वेद के अनुसार हमारा अंग-प्रत्यंग दिव्य शक्तियों से ओत-प्रोत है। हमारे अंतःकरण में शक्ति का महान सागर लहरा रहा है।
- केवल इसे पहचानने की आवश्यकता है। इस असीम शक्ति के बल पर संसार में असंभव कार्य भी संपन्न किये जा सकते हैं। इसके लिए इच्छा शक्ति के साथ-साथ आत्मचिंतन की भी आवश्यकता है।
- जब हमारी काया को कोई सूक्ष्म रोग सताता है, तो हम तत्काल किसी चिकित्सक की शरण में जाते हैं।
- नाना प्रकार की औषधियों का सेवन करना प्रारंभ करते हैं। ये औषधियां तत्काल राहत तो प्रदान करती हैं, परंतु इनके दूरगामी दुष्प्रभाव होते हैं।
- कुछ समय पश्चात दबा हुआ रोग पुनः किसी अन्य जटिल रोग के रूप में सिर उठाता है जो शरीर को अत्यधिक कष्ट देता है।
- मनुष्य यदि हम अपने पंचतत्त्व से निर्मित शरीर की संरचना को भली-भांति समझ लें, तो प्राकृतिक एवं यौगिक आध्यात्मिक क्रियाओं से उसे सदैव खस्थ रख सकते हैं और यदा-कदा रोगी होने पर अपनी चिकित्सा स्वयं कर सकते हैं।
- केवल इच्छा शक्ति व प्रभु की प्रार्थना की आवश्यकता है। शरीर में निहित असीम अलौकिक शक्तियों को अपनी हथेलियों में प्रविष्ट कराने भर की जरूरत है।
आयुर्वेद के प्राचीन सूत्र आपको शक्ति देगा
- अपनी दोनों भुजाओं को दोनों ओर फैलाकर हथेलियां आकाश की ओर ले जाएं। जैसे प्रभु से कुछ मांग रहे हों।
- मंत्र बोलकर हथेलियों को अपने सिर पर उलट दें। प्रभु से मांगी हुई जीवन शक्ति स्वयं हमारे शरीर में प्रविष्ट हो जाएगी। हम एक नवीन निर्मल दिव्य- स्फूर्ति से भरपूर हो जाएंगे। चेहरा अनुपम – आभा से जगमगा जाएगा।
मंत्र निम्नलिखित हैं-
- आप चाहें, तो इन मंत्रों को बड़े अक्षरों में प्रिंट करवा कर घर के सभी दरवाजों पर चिपका देवेंन ओर आते जाते पढ़ते रहें।
तेजो असि तेजो मयि धेहि
- हे भोलेनाथ! तू तेजोमय है। मुझे भी अपने तेज से भर दे।
वीर्य असि वीर्य मयि धेहि
- हे शम्भू! तू वीर्यमय है। मुझे वीर्य से भर दे।
बलं असि बलं मयि धेहि
हे महाकाल! तू बलवान है। मुझे बल से भर दे।
ओजो असि ओजो मयि धेहि
- हे महादेव! तू ओजमय है! मुझे ओज,ऊर्जा से भर दे।
मन्युं असि मन्युं मयि धेहि सो असि सहो मयि धेहि।
- हे अमृतेश्वर। तू उत्साहमय ओर उत्सव जा स्वरूप है। मुझे भी ऊर्जा, उत्साह से भर दे।
- हे शिव! तू सहनशक्ति युक्त है। मुझे सहनशीलता दे।
- उपरोक्त मंत्रों का पाठ करते हुए हम यदि अपने शरीर के रोगी अंगों का स्पर्श करेंगे, तो वह क्रमशः निरोग होकर आकर्षक व सुष्ठ होना प्रारंभ कर देगा ।
अंय मे हस्तो भगवानयं में भगवत्त्र।
अयं में विश्व भेषजोहयं शिषाभिभर्शन।।
(ऋग्वेद १०.६०.१२ अथर्ववेद ४.१३.६)
- अर्थात मेरा यह हाथ भगवान है। मेरा यह हाथ अतिशय भगवान है। मेरा यह हाथ सर्वऔषधि है। मेरा यह हाथ सर्वत्र शिव स्पर्शवाला है।
- इस मंत्र से हमारे हाथ इतनी अधिक शक्ति प्राप्त कर सकते हैं कि हाथ को जहां-जहां स्पर्श करेंगे, वहां निरोगता स्वास्थ्य एवं सौंदर्य का बढ़ना शुरू हो जाएगा।
- मंत्र बोलते हुए हथेलियों को परस्पर रगड़कर गरम कर लेना चाहिए। सिर से लेकर पैरों तक स्पर्श करते हुए प्रभु से संपूर्ण शरीर हेतु स्वास्थ्य, बल व सौंदर्य मांगना चाहिए।
- मनुष्य की दोनों हथेलियों में रोग निवारक औषधियां निहित हैं। रगड़ कर गरम करने से औषधियों का प्रभाव हथेलियों की त्वचा में आ जाता है।
- सिर को स्पर्श करते हुए यह अनुभव करना चाहिए कि हमारी मेधा, बुद्धि व स्मरण शक्ति किस प्रकार सुविकसित हो रही है।
- पेशानी का स्पर्श करते हुए यह अनुभव करें कि पेशानी किस तरह ज्योतिमय एवं तेजोमय हो रही है।
- आंखों का स्पर्श करेंगे, तो लगेगा कि आंखें किस प्रकार सुंदर एवं आकर्षक होती जा रही हैं। इसी प्रकार शरीर के प्रत्येक अंग को स्वस्थ, निरोगी व आकर्षक और कांतिमय बनाया जा सकता है।
- शरीर के जिस अंग में कोई कष्ट व पीड़ा हो, मंत्र पाठ करके, हथेलियों को परस्पर रगड़कर उन्हें गरम कर लेना चाहिए और रोगी अंग को कम से कम पांच मिनट तक सेंक देना चाहिए। इससे देखेंगे कि रोग शीघ्रता से दूर होगा।
- समस्त उपरोक्त क्रियाओं में मानसिक पवित्रता, श्रद्धा, प्रभु के प्राप्त समर्पण व चित्त की एकाग्रता का होना आवश्यक है।
- आत्मचिंतन, सत्संग व सरल सात्विक जीवन शैली से ही मनुष्य पवित्र रह सकता है।
- पवित्रता के बोध से शोध व शोध से सौंदर्य एवं स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
अपार सफलताओं हेतु
- जीवन में यदि रोटी, कपड़ा, मकान के अतिरिक्त जीवन में अन्य लक्ष्य हैं। असाधारण पद, प्रतिष्ठा, कीर्ति, शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस नीचे मंत्र का जाप आपके उद्देश्य में सहायक होगा |
महामंत्र :
- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ओ ग्लौं हु क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
- जिंदगी को सुखमय जीने के लिए तन, मन, अंतर्मन की गंदगी निकलने के लिए सदैव ये चिंतन करते रहें।
आपका चिंतन में हमेशा ये विचार होना चाहिए
इस संकल्प से सिद्धि सभी समृद्धि सम्भव है।
- मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ।
- मैं शांत है मै स्थिर हूँ।
- मैं सदा खुश राह सकता हूँ।
- मैं निडर हूँ मैं निश्चिन्त हूँ
- मेरा शरीर स्वस्थ निरोगी है और हमेशा रहेगा
- मैं सबको स्वीकार करता हूँ। सब मुझे स्वीकार प्यार करते हैं।
- सफलता, प्रसन्नता, आरोग्यता मेरे लिये निश्चित है।
- भगवान शिव की शक्ति और दुआये सदियों से मेरे साथ हैं।
- महाकाल का सुरक्षा कवच हमेशा मेरे साथ बना रहे।
- उपरोक्त पंक्तियाँ आप अपने घर में जगह जगह लगाकर, फ्रेम में मढ़कर रख सकते हैं। फायदा ये होगा कि खुद को जानने, पहचानने में, तो मदद मिलेगी ही साथ ही सदैव स्वस्थ्य, मस्त रहेंगे।
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