भाग्य दुर्भाग्य के कारक हैं राहु केतु !!

  • वैदिक और सनातन मान्यता है कि मृत्यु के बाद आत्माएँ यमराज के पास जाती है। वहाँ चित्रगुप्त उनके कर्मों का लेखा-जोखा बताते हैं।
  • कर्मों के अनुसार ही राहु-केतु को निर्देश दिया जाता है कि किस जातक को अगले जन्म में कौन-सी योनि, किस परिवार में, जन्म, सुख-दुःख आदि का निर्धारण करें। अमृतम् मासिक पत्रिका फरवरी 2010

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भाग्य और दुर्भाग्य भय, मृत्यु, के कारक हैं – राहु-केतु

  • हर प्राणी मृत्यु से डरता है। इस डर का मुख्य कारण है जिजीविषा अर्थात् जीवित रहने की अभिलाषा।
  • मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मृत्यु का भय उन्हें ही सताता है जो सांसारिक भोगों तथा इन्द्रियसुखों की इच्छा रखते हैं। ऐसे लोगों की विचारधारा नकारात्मक (निगेटिव) होती है। आस्था और विश्वास की कमी होती है।
  • ये लोग यदि ईश्वर के प्रति ध्यान लगाये, नियमित योग व प्राणायाम करें, तो निश्चय ही मृत्यु तथा अनावश्यक भय से मुक्ति पा जायेंगे।
  • आत्महत्या वही लोग करते हैं जिन्हें जीवन के प्रति लगाव एवं सुख की चाहत होती है, जो दुःख को ज्यादा समय तक झेल नहीं पाते अथवा राहु-केतु से पीड़ित होते हैं।

आखिर मृत्यु है क्या?

  • चिकित्सकों की दृष्टि से मृत्यु दिल-दिमाग को निष्क्रिय हो जाना है। लेकिन भौतिक शास्त्री मानते हैं कि पदार्थ का सर्वनाश नहीं होता, केवल रूपांतरण होता है।
  • इसलिए जीवन का सर्वथानाश न होकर दृश्य से अदृश्य हो जाता है।
  • भगवान कृष्ण ने कहा कि आत्मज्ञान से मृत्यु के रहस्य को समझा जा सकता है।
  • मरणोपरांत जीवन अब केवल धार्मिक विश्वास ही नहीं रह गया है, बल्कि इसे आधुनिक विज्ञान भी स्वीकारने लगा है।
  • पाषाण युग में मान्यता थी कि मरने के बाद व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर रहता है।
  • संत सुकरात का विश्वास था कि मृत्यु पुर्नजन्म का द्वार है। हिन्दुओं में मृत्यु के समय गीता का उपदेश और मृत्यु उपरान्त गरुण पुराण आत्मा की सद्गति के लिए पढ़कर सुनाये जाने का प्राचीन महत्त्व है।
  • यदि जातक द्वारा मृत्यु से पूर्व अच्छे कर्म, दानपुण्य, पूजा-पाठ, ध्यान, साधना, भक्ति की गई है तो केतु ग्रह के खाते में बेलेन्स जमा कर लिया जाता है।
  • शुभ कर्मों के प्रभाव से केतु ग्रह जातक को अगले जन्म में किसी अच्छे अमीर परिवार में जन्म दिलवाता है अथवा ऐसे जातक गरीब परिवार में जन्म लेकर भी परिवार को धन-धान्य यश कीर्ति से परिपूर्ण कर देते हैं।
  • कभी-कभी लोग कहते भी हैं कि हमारे पुत्र या पुत्री के जन्म के पश्चात् हमें सफलता मिली है, हमारे कष्ट-दुःख दूर हो गए।
  • जातक रत्नाकर के मुताबिक अश्विनी, मघा और मूल नक्षत्र केतु के नक्षत्र हैं तथा केतु नक्षत्रों में जन्में जातक मूल में उत्पन्न माने जाते हैं।
  • इनके जन्म के पश्चात् मूल की शान्ति का विधान है। मूल में जन्में जातक से तात्पर्य यह भी हो सकता है कि वे पुन: मानव योनि में अपना मूल (उधार) लेने या देने आये हैं।
  • केतु के अधिदेवता श्री चित्रगुप्त जी महाराज है और चित्रगुप्त की हमारे कर्मों-कुकर्मों का हिसाब रखते हैं।
  • सम्भवत: गुप्त रूप से प्रत्येक प्राणियों के कर्मानुसार चित्रों को लेते रहने के कारण इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा हो।
  • मूल के तीनों नक्षत्रों अश्विनी, मघा, तथा मूल के नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्में जातक जिस परिवार में भी जन्म लेते हैं उस दरिद्र परिवार को समृद्धशाली बना देते हैं।
  • विशेषकर धनु राशि के मूल नक्षत्र के चतुर्थ, द्वितीय चरण में जन्मा जातक बहुत बड़ा शिव साधक, महामण्डलेश्वर, शंकराचार्य की पदवी पाता है।
  • इसी प्रकार राहु की व्यवस्था यह है कि जातक ने पिछले जन्म में जो भी पाप, दुष्काम, छल-कपट से सम्पत्ति जोड़ना, उधार लेकर वापस न करना, मुफ्त की वस्तुओं को ग्रहण करने आदि
  • राहु एक-एक चीज का हिसाब रखते हैं और उसी के अनुसार जातक के खाते में बेलेन्स नामे, कर अर्थात् ऋण वसूली की जिम्मेदारी लेकर जातक की योनि, जन्म स्थान, परिवार, सुख-दुःख आदि का निर्धारण करते हैं।
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  • राहु की विशेषता यह है कि जब तक पुरानी ऋण वसूली या पुराना हिसाब चुकता नहीं कर लेते, तब तक व्यक्ति को सफल नहीं होने देते।
  • अतः हम यह कह सकते हैं कि हमारे पिछले कुकर्म और पाप ही इस जन्म का कालसर्प या पितृदोष है।
  • इसलिए राहु को प्रसन्न रखने हेतु मुफ्त की वस्तुएँ लेने से बचें। छल-कपट न करें, किसी के प्रति दुर्भावना न रखें, ईर्ष्या न करे, सबके कल्याण की कामना करें।
  • भगवान शिव की आत्मा से सेवा करें। दिखावे से बचें, अन्तर्मन पवित्र रखें। अच्छे कर्मों से मृत्यु भय का नाश होता है।
  • हमारे धर्म शास्त्र कहते हैं – जैसे कर्म वैसे ही अगला जन्म! यह सिद्धान्त अटल है। जीवन के बाद जीवन की सतत् प्रक्रिया इस सिद्धान्त को पूरा करती हैं।
  • वैज्ञानिकों ने मृत्यु के समय और मृत्यु के बाद जीवन पुनर्जन्म, मरे हुए व्यक्तियों का पुनः जीवित हो जाना, मृत्यु के समय के अनुभव, आकस्मिक दुर्घटना में मृत व्यक्तियों में द्वारा पुनः जीवित होने के बाद दिए गए विवरणों पर गहन अध्ययन किया।
  • अन्तिम श्वाँस ले रहे रोगियों के अनुभवों का अनुसंधान किया। जो लोग अन्त समय तक चेतन रहते हैं, उन्होंने बताया कि उन्हें विचित्र आवाज सुनाई दी। फिर अंधेरी सकरी गली से पार करते हुए ऊपर गए। उन्होंने मृत शरीर को ऊपर देखा।
  • कई बार उन्हें मृत सम्बन्धियों की आकृतियाँ, ज्योति पुंज के रूप में दिखाई दी। कई बार उनको वापस अपने शरीर में जाने की आज्ञा मिली और वे पुनः अपने मृत शरीर में प्रवेश कर जीवित हो उठे।
  • अंतिम सांस ले रहे शुभकर्मों से परिपूर्ण लोगों ने बताया कि परलोक में परम प्रकाश एवं दिव्य वातावरण था
  • वहाँ किसी को कृष्ण, किसी को ईसा के दर्शन तो किसी को परमयोगियों के दर्शन हुए। इससे यह सिद्ध होता है कि मृत्यु के बाद भी जीवन है।
  • मृत्यु से कभी डरना नहीं चाहिए। एक दिन मरना सभी को है लेकिन हम अच्छी मौत मरे, हमारे मरने के बाद लोग हमें अच्छे कार्यों के लिए याद रखें, यही सच्ची मृत्यु है। यही तो अमरता है।
  • जन्म, कर्म के अनुकूल हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। अगला के अनुसार मिलता है। यही सत्य है।
  • मनुष्यों का अत्यधिक लगाव भौतिकता पर है और यह सारी की सारी भौतिकता उपग्रहों का खेल है जो कि केतु की देन है।
  • यह उपग्रह मनुष्य द्वारा निर्मित है। महादेव ने नौ ग्रहों के साथ साथ राहु-केतु गृहों का निर्माण कर अपने न्याय एवं विधान के अनुसार सृष्टि पर अपनी पकड़ बनाई हुई है।
  • जब मानव द्वारा बनाए गए इन उपग्रहों के कारण हम भौतिक जीवन व्यतीत कर रहे हैं, इनसे लाभ और हानि दोनों संभव हैं। इसी प्रकार ग्रहों के भी शुभ व अशुभ फल निश्चित है।
  • आप जैसा जिसका उपयोग करेंगे फल उसी प्रकार प्राप्त होंगे। उपग्रह का दुरुपयोग प्रथ्वी को मिनिट भर में नाश कर सकते हैं, तो ग्रह के अनुसार शुभ कर्म न करने पर पल भर में सृष्टि तथा मनुष्य का सर्वनाश कर दुर्भाग्यशाली बना देते हैं।

जीवन का निर्धारण राहु के हाथ

  • परमात्मा जब धरती पर किसी शरीर में आत्मा देता है उस समय राहु-केतु मुख्य निर्णायक होते हैं तथा इनके द्वारा ही पाँच चीजों का निर्धारण हो जाता है जैसे –
  • १. इस शरीर का कहाँ जन्म होना है (जन्म स्थान),
  • २. किसी परिवार का समय अच्छा था बुरा आना है जातक के अनुसार कर्मों के निर्धारण से होता है (परिवार का),
  • ३. शिक्षा कर्मों के आधार पर शिक्षा का निर्धारण सुनिश्चित होता है ।
  • ४. जीवन को जीने का वास्तविक समय जो प्राणी को संसार में ख्यातियाँ या अमरता प्रदान करता है।
  • ५. मृत्यु का समय एवं स्थान एवं प्रकार सुनिश्चित होता है, इस प्रक्रिया को संसार का कोई भी विज्ञान नहीं पता लगा सकता एवं न ही झुठला सकता है, इसीलिए तो परमात्मा जो शिव (ज्योति) के रूप में हमारे साथ-साथ रहता है उसको पल प्रतिपल तुम्हारी भावनाओं का आकलन करने का मौका मिलता है एवं अगले जीवन का निर्धारण होता है।

हमारे कर्म कुकर्म ही शुभ अशुभता का के कारण हैं।

  • जातक स्वयं ही अपने ग्रहों को नष्ट या खराब करता है, प्रत्येक ग्रह की जातक पर गुप्त दृष्टि रहती है।
  • कर्म-कुकर्म के अनुसार ग्रह जातक के पीछेपीछे घूमते ग्रहों से संबंधित वस्तुएँ व्यापार या रिश्तेदार शुभ-अशुभ फल देते हैं।
  • ईश्वर ने सभी प्राणियों का समय, भाग्य और कर्म के अनुसार हर चीज का कोटा (भाग्य) निर्धारित कर रखा है।
  • कोटा या भाग्य के अनुसार सभी को समय-समय पर शुभ या अशुभ फल अवश्य ही प्राप्त होते हैं ।
  • उदाहरण के लिए- यदि आपके भाग्य और कर्म अनुसार वाहन या मकान लेने का योग बन रहा है, तो ले लीजिए टालिये नहीं ऐसे समय में दिमाग पर भरोसा न कर ईश्वर पर भरोसा कीजिए। –
  • – व्यक्ति के कर्म – कुकर्म द्वारा विभिन्न ग्रह किस तरह अपना शुभ-अशुभ असर द्वादश भावों में कर सकते हैं। प्रस्तुत है ग्रहों के अशुभ या खराब फल देने का सारांश –
  1. सूर्य – आत्मा की बात न मानने, आत्मा को कष्ट देने, राजा की आज्ञा न मानने, कर (टेक्स) की चौरी करने और किसी का दिल दुखाने से सूर्य ग्रह अशुभ फल देता है।
  2. चन्द्र – माता या माता समान स्त्रियों, सास, दादी एवं नानी को कष्ट देने, दूध-पानी का दान लेने और दान में ली हुई वस्तु का दान करने से चन्द्रमा खराब असर देता है।
  3. मंगल- भाई से झगड़ा करने, भाई का अधिकार मारने से, साले के साथ झगड़ा करने और तीखी (वाणी) से अपमानित करने पर मंगल शुभ -होकर भी अशुभ फल देता है।
  4. बुध- हिजड़े, बहन, बेटी, साली, मौसी, बुआ को कष्ट देने, इन्हें अपमानित करने और इनका धन लेने के कारण बुध ग्रह अशुभ फल देता है।
  5. गुरु ( वृहस्पति) – गुरु, पिता, दादा को कष्ट देने, पीपल वृक्ष कटवाने तथा बुजुर्ग साधु महात्मा को कष्ट देने और छल कपट करने से गुरु ग्रह खराब असर देता है।
  6. शुक्र – पत्नी को कष्ट देने, धोखा करने, मैले व गंदे वस्त्र पहनने, घर में गंदे-पुराने और फटे वस्त्र रखने से भगवान शंकर का अपमान होता है। इससे शुक्रग्रह अशुभ फल दाता हो जाता है । –
  7. शनि – चाचा, ताऊ से झगड़ा करने, मजदूर को मजदूरी न देने, नौकरों की बुराई करने ओर अपशब्द बोलने, शराब पीने, मांस मछली का उपयोग करने, मकान मालिक से दुकान मकान खाली करने हेतु धन लेने व अन्याय करने, सहयोगी की बात टालने और बदनियती करने से शनि ग्रह अशुभ फल देता है।
  8. राहु – ननिहाल, ससुराल परिवार से झगड़ा करने, बड़े भाई का दिल दुखाने, झूठी गवाही देने, सपेरे का अपमान व बेईमानी करने से राहु अशुभ फल देता है।
  9. केतु – भतीजे, भांजे को दुःख पहुँचाने, कुत्ते को मारने या मरवाने, शिव मन्दिर या अन्य मन्दिर की ध्वजा को नष्ट करने, चोरी करने तथा भारी कंजूस होने से केतु ग्रह अनिष्ट फल देते हैं।
  • इस प्रकार व्यक्ति अपने कर्म अनुसार ग्रह को पीड़ित करने या ग्रहों के विपरीत कार्य करने से दुःख या सुख का भागीदार होता है।
  • संसार को सहजता, सरलता, साधुता और सहयोग से साधा जा सकता है जिसने साध लिया वही सच्चा साधक है।
  • इष्ट साधन संकल्प से ही होता है और दुसाध्य साधन को बुद्धि ही सरल करती है।
  • निवृत्ति संसार से भगाने वाली कायरता है तथा प्रवृत्ति जगत् में लिप्त होकर उसका भोग कराने वाली वीरता- रावण

 

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