- एक बार कच्ची जमीन पर सीमेंट कंक्रीट बिछा दी जाए या सड़क बना दें, तो फिर, वहां पेड़ नहीं उग सकते और न खेती हो पाएगी।
- अगर गंजेपन का आरंभ है। बाल झड़ रहे हैं, तो उन्हे रोका जा सकता है। लेकिन गंजापन आ गया या खोपड़ी पूरी तरह चिकनी, सपाट हो चुकी हो, तो दुनिया कोई भी दवाई द्वारा बाल नहीं उगा सकती।
- अदभुत बात ये भी है कि बीबी यानि बाई ओर दवाई दोनों ही लाभदायक हैं, किंतु समय पर करती है।
- आप चाहें, तो प्यास का रस न लगाकर Onion Oil एक महीने लगाकर देख सकते हैं और प्याज के रस से निर्मित शैम्पू भी कारगर सिद्ध होगा। यदि इसके वश में होगा, तो प्याज के रस की जरूरत नहीं पड़ेगी।
- कभी कभी प्याज के स्वरस से खोपड़ी में पस यानि मवाद भी पड़ने लगता है। फिर, कोई आप पर तरस नहीं खायेगा।
- वैसे भी भारत एक अनोखा देश देश है, जहां प्याज, खून खाना पाप है। किसी की संपत्ति हड़पना, बेइमानी, छल कपट, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार आदि कुकर्म पाप नहीं माने जाते।
- प्याज या onion हरीतक्यादिवर्गः की औषधि है। इसकी गन्ध तीखी होने के कारण कुछ लोग इसे नहीं खाते।
जाने प्याज की शास्त्रों में लिखे 31 रहस्य
- किंचित गुलाबी और सफेद रंगों के भेद से प्याज दो जाति का होता है। दोनों के पौधे एक समान होते हैं ।
- औषधि में लाल जाति का प्याज उपयोग में लाना चाहिये।
- प्याज का कच्चा रस लगाने से बालों में खुजली की समस्या हो जाती है।
- आयुर्वेद सार सहिंता के अनुसार बालों में प्याज का तेल लगाना अच्छा रहता है।
- प्याज में कतई तेल और गन्धक के सेन्द्रिय योग पाए जाते हैं। और कन्द में शर्करा होने से प्याज का कच्चा रस खांसी के लिए गुड़ के साथ लेना गुणकारी है।
- प्याज के बारे में एक हस्तलिखित प्राचीन पांडुलिपि में लिखा है कि
- पियाज, पलाण्डु–पलति रक्षति, पल रक्षणे । अर्थात यह बलवीर्य आदि बढ़ाकर रोगों से रक्षा करता है।
- भावप्रकाशनिघण्टुः में प्याज के बारे में संस्कृत के कुछ श्लोक वर्णित हैं
अथ पलाण्डुः (पियाज) । तस्य नामगुणानाह
पलाण्डुर्यवनेष्टश्च दुर्गन्धो मुखदूषकः।
पलाण्डुस्तु बुधैर्ज्ञेयो रसोनसदृशो गुणैः॥
स्वादुः पाके रसेऽनुष्णः कफकृन्नातिपित्तला।
हरते केवलं वातं बलवीर्यकरो गुरुः॥
- अर्थात पियाज के नाम तथा गुण – पलाण्डु, यवनेष्ट, दुर्गन्ध और मुखदूषक ये सब पियाज के नाम हैं।
- भारत में कुछ आयुर्वेदिक कम्पनी शुद्ध प्याज का तेल बनाकर ऑनलाइन बेच रही हैं। उनमें से एक के बारे में जानकारी पढ़ें।
फार्मूला Product Details Material
- Onion, Kadi Patta, Guldahal Phool, Shikakai, Amla, Bhringraj, Methi Dana, Sesame Oil.
How To Use
- Massage the scalp with Amrutam’s Onion Oil gently in circular motions. Let it sit for 1-2 hours or overnight before washing your hair.
- प्याज, प्लाण्डु या पियाज को गुणों में लहसुन के समान समझना चाहिये।
- पियाज – रस तथा पाक में मधुर रस युक्त, अनुष्ण (ईषत् उष्णवीर्य) एवं कफकारक होता है और यह अत्यन्त पित्तकारक नहीं होता है।
- ग्रन्थों में प्याज की रियाज या अध्ययन करें, तो प्याज के अनेकों नाम मालूम चलते हैं-
- हिंदी में-पियाज, प्याज। बंगाली – पेयाज। पं० – गण्डा | मराठी – कांदा | तेलगु- , कन्नड़ – नीरूल्लि । गुजराती – डुङ्गली, कांदो। मा०-कांदो, कांदा | ता० – वेंगयम । फारसी – प्याज। सिन्ध० – लुनु, बसर । मला० – बवंग । अ०-Onion (ओनियन्) । ले०-Allium cepa Linn. (एलियम् सिपा) । Fam. Liliaceae (लिलिएसी)।
प्याज का रासायनिक संगठन
- इसमें एक उग्रगन्धि एवं कटु तैल तथा गन्धक के सेन्द्रीय योग पाये जाते । इसके बाह्य छिलके में एक क्वेसेंटीन (Quercetin) नामक पीत रञ्जक पदार्थ होता है तथा कंद में शर्करा भी होती है ।
प्याज के गुण और प्रयोग
- पियाज का उपयोग प्राचीनकाल से आहार द्रव्य के रूप में किया जा रहा है।
- गरुड़ पुराण में पलांडुगुटिका का पाठ है। इसे नजर, टोन टोटके में उपयोगी बताया है।
- प्याज किंचित् उष्ण, कफनि:सारक, उत्तेजक, वृष्य, बल्य, मूत्रजनन, आर्तवजनन, अग्निवर्धक, आनुलोमिक एवं उत्तम वातहर है।
- प्याज के सेवन से कफ ढीला होकर निकलने लगता है एवं दूषित पित्त भी निकल जाता है।
- यह केवल वातहर होता है।
- थायराइड, सूजन मिटाता है।
- लौंग के तेल के साथ प्याज का रस लगाकर मालिश करने से शरीर की जकड़न, कम्पन्न, हाथ पैरों का हिलना बंद होता है।
- प्याज बल और वीर्य को करने वाला एवं गुरु होता है।
- अध्यात्म के अनेक गुरु और ब्राह्मण प्याज को बहुत दूषित मानने के कारण इसे खाने की मना करते हैं।
- भारत की एक अद्भुत बात ये भी है कि यहां किसी का धन, सम्पत्ति, पैसा खाने से पाप नहीं लगता। लेकिन प्याज लहसुन जैसा अमृत खाने से पाप के भागी हो सकते हैं।
- प्याज बच्चों एवं वृद्धों के कफविकारों में विशेषकर जब ज्वर न हो तब यह लाभदायक है।
- कच्चे प्याज के रस को मिश्री मिलाकर बच्चों को चटाया जाता है तथा वृद्धों में इसको पकाकर देते हैं।
- क्षयजकास में प्याज से कष्ट कम हो जाता है। श्वसनीयों के जीर्ण शोथ के लिये लाभदायक औषधियों में यह श्रेष्ठ औषधि है ।
- वाजीकरण के लिये इसके रस को मधु एवं घृत के साथ दिया जाता है ।
- बवासीर, पाइल्स या अर्श में इसके रस को १० – २० मि.ली. मिश्री के साथ पिलाते हैं या प्याज को पकाकर उसमें मिश्री, घी तथा जीरा मिलाकर खिलाते हैं एवं गरम-गरम मस्सों पर बाँधते हैं।
- मसूढ़ों की सूजन तथा शूल में प्याज को नमक के साथ खिलाते हैं ।
- प्याज का क्वाथ आन्त्रावरोध, अर्श, कामला एवं गुदभ्रंश आदि में लाभदायक है।
- विसूचिका में इसके रस के साथ चूने का पानी मिलाकर पिलाते हैं।
- अग्नि वृद्धि के लिये सिरके के साथ इसका प्रयोग किया जाता है।
- प्लेग आदि मरक के समय कच्चे प्याज या सिरके के साथ इसका उपयोग किया जाता है।
- अपतंत्रक तथा नासिका से रक्तस्राव होने पर इसका नस्य कराया जाता है।
- चक्कर आता हो तो प्याज को सुंघाते हैं ।
- कर्णपिटिका में इसका पुटपाक करके साधारण गरम रस कान में डालने से शूल कम हो जाता है।
- प्याज के बीच के टुकड़े को भी कान में रखने से लाभ होता है।
- नेत्र रोगों में उपयोगी प्याज अंधता तथा धुन्ध आदि विकारों में इसका रस मधु में मिलाकर नेत्र में लगाते हैं तथा रात्र्यं में नमक के साथ इसका रस डालते हैं।
- प्याज को घी में भूनकर उसका पुल्टिस गाँठ, फोड़े, बद एवं व्रण आदि पर लगाया जाता है।
- आमवातादि संधिविकार एवं अन्य दाह, कण्डू आदि चर्म रोगों में इसके रस को सरसों के तेल में मिलाकर मलते हैं।
- बिच्छू तथा अन्य कीड़ों के काटने पर इसके रस को लगाने से दाह एवं वेदना की शांति होती है।
- प्याज के बीज वाजीकर होते हैं।
- प्याज को पीसकर मधु के साथ खालित्य, व्यंग एवं झाँई आदि पर लगाते हैं।
- प्याज का कच्चा रस सिर में सूजन, फुंसी पैदा करता है।
- दाद में सिरका में पीसकर इन्हें लगाते हैं।
- चेहरे के कील एवं मस्सों पर नमक के साथ इनका उपयोग किया जाता है।
जंगली प्याज के फायदे
- उपर्युक्त प्याज के अतिरिक्त इसी वर्ग का एक जंगली प्याज होता है जिसकी दो-तीन किस्में भारतवर्ष में पाई जाती हैं।
- यह डाक्टरी स्किल (Squill) नामक औषधि अर्जिनीया मॅरिटिमा (Urginea maritima (Linn.) Baker) की श्वेत उपजाति जो भूमध्यसागरीय तट पर होती है उसका अच्छा प्रतिनिधि है।
- जंगली प्याज अत्यन्त उपयोगी होने के कारण यहाँ इसका वर्णन दिया जा रहा है। लोग इसे रा. नि. एवं नि. र. का कोलकंद मानते हैं।
- दोनों निघण्टुकार उसे ‘वान्तिशमनकृत्’ लिखते हैं लेकिन जंगली प्याज ‘वान्तिजनन’ होता है ।
- (क) ले० – Urginea indica Kunth. (अर्जिनिया इण्डिका ) | Fam. Liliaceae (लिलिएसी)। सं० – कोलकन्द, वनपलांडु । हि०- , बं० – कांदा, जंगली प्याज | गु० – जंगली कांदो, पाण कंदो । म०नानकांदा, कोलकांदा, कोचिंदा | ता० – नेरि वंगायम् । ते०-अडवितेलु गड्ड । पं० – कफोर, कचवरसल । अ० – उन्मुले हिंदी | फा० – पियाज सहराई । अ० – Indian Squill ( इण्डियन स्क्विल)।
- यह पश्चिमी हिमालय में २५०० मी. तक, गढ़वाल, कुमाऊँ, बिहार एवं कारोमंडल तट तथा कोंकण के रेतीले किनारों एवं पश्चिमी घाट पर पाया जाता है।
- यह वनस्पति सुदर्शन सदृश होती है। पत्र – मूलीय, १५ – ४५ से.मी. लम्बे, प्याज से बड़े और चौड़े, चिपटे, रेखाकार एवं नोंकदार होते हैं। पत्रों के निकलने से पूर्व बीच से सदण्डिक पुष्पध्वज (Scape-स्केप) निकलता है जिस पर हरिताभ श्वेत पुष्प निकलते हैं। फल – सामान्यस्फोटी फल (Capsule-कॅपसूल) अण्डाकार, १२ १८ मि.मी. लम्बे, दोनों ओर क्रमशः पतले होते हुये एवं ६९ बीजों से युक्त होते हैं। बीज – छोटे, दीर्घवृत्ताकार, चिपटे तथा काले होते हैं । –
- इसका कन्द प्याज की तरह ५-१० से.मी. लम्बा, लट्वाकार एवं परिच्छदपत्रक (Tunicated Bulb–ट्यूनिकेटेड बल्ब) स्वरूप का होता है। इसके कटे हुये टुकड़े मुड़े हुए, चिपटे, विभिन्न आकार
- प्याज की खेती प्राय: सभी प्रान्तों में की जाती है । इसका पौधा – १ – १.५ मी. ऊँचा होता है। पत्र—दो कतारों में तथा पुष्पदंड से छोटे होते हैं। इनके बीच से दंड निकलता है। इसके ऊपर लट्टू के समान गोल गुम्मजदार गुच्छों में सुहावना हरापन लिये सफेद फूल लगते हैं। इनमें से तिकोने काले बीज निकलते हैं। इसके नीचे जो कन्द बैठता है उसी को प्याज कहते हैं ।
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