गुरु के चमत्कार और रहस्य क्या हैं ? अमृतम

★★★!!ॐ!!★★★

  • गुरुमुख से सुनकर, गुरुवाणी के अनुसार यह लेख बहुत ज्ञानवर्धक और अंधकार नाशक है।
  • अज्ञानता से मुक्ति के लिए मददगार साबित होगा और गुरु के बारे में सभी भ्रम मिटाएगा।

  • सदगुरू क्यों जरूरी है। बिना गुरु के मानव जीवन अधूरा या व्यर्थ क्यों है। इस लेख का 1-1 शब्द गुरु के गुप्त रहस्यों से भरा है।
  • उपनिषदों में गुरु की महिमा का विस्तार से वर्णन है। गुरुमंत्र को ही शक्तिशाली महामंत्र बताया है। गुरु की कोई व्याख्या नहीं की जा सकती।
  • ॐ और गुरु दोनों एक दूसरे के पूरक होने से सदगुरु द्वारा दिया गया मंत्र ज्ञान मुक्तिदाता कहा जाता है। गुरु वाक्य मंत्र मूलं।
  • शिव संहिता में लिखा है कि ॐ का कोई अर्थ नहीं है। यह प्रणव मंत्र जब गुरु द्वारा किसी मंत्र के पहले ॐ लगाकर शिष्य को दीक्षित किया जाता है, तभी वह मंत्र क्रियाशील होकर लाभकारी होता है।
  • वैदिक ग्रंथों के अनुसार सभी शक्तिशाली, लाभकारी, सिद्धिदायक मंत्र कीलीत हैं यानी ताले में बंद हैं। गुरु इन मंत्रों का LOCK खोलकर शिष्य को दीक्षित करता है।
  • आदि शंकराचार्य ने केनोपनिषद में कहा है कि ॐ ही सबका गुरु है और गुरु ही शिष्य के लिए ॐ या शिवलिंग स्वरूप है।
  • परम गुरु भक्त परमहँस सन्त मलूकदास के मुताबिक प्रकटे आपे आप। यह सब सदगुरू के प्रति गहरी निष्ठा, श्रद्धा और गुरुमन्त्र के जाप से ही सम्भव है। इसलिए सदगुरु से दीक्षित होना जरूरी है।

  • शास्त्र मतानुसार गुरु के कई रूप होते हैं और जो सर्वथा सत्य है जैसे धार्मिक गुरु, आध्यात्मिक गुरु, शिक्षक गुरु, माता-पिता गुरु, मित्र गुरु, योग गुरु और धन कमाने, सफलता के गुण सिखाने वाला आदि।
  • आपके प्रश्न का उत्तर मैं नहीं दे सकता कि वास्तविक गुरु क्या है लेकिन यह बता सकता हूँ कि मेरा वास्तविक गुरु क्या है। जी मेरा वास्तविक गुरु गुरु मंत्र, महादेव और समय का सदुपयोग है। मेरे लिए शिव ही गुरु, गुरु ही शिव हैं।

गुरु शिवो गुरुर्देवो गुरुबंधु शरीरिणाम!

गुरुरात्मा गुरूजीर्वो गुरोरनयन्न विद्यते!!

  • सम्पूर्ण सृष्टि में सदगुरू ही शिव-सूर्य-चन्द्र हैं, वही ब्रह्मा-विष्णु महेश हैं। महाकाल और कालीरूप में घट-घट में बसने वाली ज्ञान की मूर्ति है।
  • गुरु लक्ष्य पर पहुंचाता है, इसलिए ये महालक्ष्मी रूप हैं। सदगुरु का महालक्ष्य शिष्य को महामुक्ति दिलाना होता है।
  • सदगुरु की कृपा से ही सिटी का चिंतन शुद्ध होता है। मन की मलिक मिटती है। अहंकार, अंधकार का नाश होकर स्वयं का साकार होता है।
  • निराकार में निर्णकार की गूंज सुनाई पड़ती है। गुरु की कृपा से ही अंतर्जयन का अनुभव होता है। नाद द्वारा ब्रह्मज्ञान भीतर से प्रकट होता है। जो साधक गुरुमन्त्र का जाप करते हुए गुरुध्यान में रमा रहता है। वो एक दिन परमहंस बन जाता है।
  • अध्यात्म एवं धर्मशास्त्रों में इसे चिर-विश्राम कहा है। बस, जिसके आगे कुछ नहीं!
  • गुरुकृपा से गुदा और गुर्दे में स्पंदन होने लगता है। मस्तक में मन्त्र गूंजता है- शिवोsम..शिवोsम और फिर परमहंस अवधूत की तरह एहसास अनुभव कर कह सकोगे….

!!सुमिरन मेरा गुरु (शिव) करे, मैं पाया विश्राम!!

  • गुरु की गहराई में इंसान तर जाता है! गुरु खरा हो और समुद्र खारा हो, तभी गहरे होते हैं। और दोनों की गरिमा बनी रहती है।
  • गुरु और समुद्र दोंनो ही गहरे हैं-पर दोनों की गहराई में एक फर्क है समुद्र की गहराई में इंसान डूब जाता है और गुरुकृपा से पार लग जाता है।
  • माता-पिता और सदगुरू ये तीनों जगत के जीते-जागते देवता हैं। जिनका विश्वरूपी शरीर हमारे लिए बाबा विश्वनाथ की तरह पूज्यनीय है। बस, विश्वास की जरूरत है।
  • शिव रूपी गुरु की शरण में आकर सारी आपदाएं, कामनाएं, तकलीफ, दुष्टता, द्वेष-दुर्भावना दूर हो जाती हैं।
  • गुरुगीता में संस्कृत के एक श्लोकानुसार गुरु अज्ञान तिमिर यानि अंधकार का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है।

अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजनशलाकया!

चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः!!

  • गु अक्षर के अंतर्गत अंधेरे का भास तथा भाव प्रतीत होता है। ‘गु’ यानि जिनकी बुद्धि विकार-अंधकार युक्त है। गुरु ‘रु’ अर्थात आत्मा में प्रकाश का आभास कराता है।
  • तन स्थित अरबों अन्धकार से भरी नाड़ियाँ, ग्रंथियां गुरुदृष्टि से प्रकाशित होकर, जन्म-जन्म की गन्दगी, विकार एवं अन्धकार नष्ट हो जाते हैं।
  • गुरू और शिष्य दोनों का स्वस्थ रहना जरूरी है।
  • तीसरा पहलू भी जानना जरूरी है कि-शिष्य में जिज्ञासा और गुरू में समाधान शक्ति बनी रहे।
  • गुरू-शिष्य में झगड़ा, वैमनस्य दुराव न हो। शिष्य में निरंतर त्याग की भावना बनी रहे।
  • गुरू में लोभ न हो। शिष्य में विराग श्रध्दा हो और गुरू में परम स्नेह हो।
  • शिव पुराण खता है कि जीवन की नैया पार, कार से नहीं, गुरू के ‘ॐकार’ से होगी
  • झूठा आनंद आदमी को कठोर और अहंकारी बना देता है और वह आनंद दूसरों को नहीं दिया जा सकता।
  • सच्चा आनंद आदमी को दयालु और समझदार बनाता है। गुरु पूर्णिमा पर्व पर पूर्ण ब्रह्मांड के प्राणियों को परम प्रकाश, परमात्मा प्राप्त हो।

!!गुरु पूर्णिमा पर विशेष!!

  • यह प्राकृतिक हिम शिवलिंग लेह-लदाख से लामायुरू जाते समय रास्ते से प्रातःकाल लिया गया।

अंधकार का हथियार गुरु..

  • अज्ञान, अविद्या बहुत ताकतवर होता है, किन्तु ब्रम्हाविद्या उससे कई गुना शक्तिशाली है।
  • गुरूकृपा से हमें भी ऐसी ब्रम्हविद्या सुलभ हो, जो हमारी अज्ञानता को नष्ट कर दें। ऐसा प्रकाश हो जाये कि सारा अंधकार दूर हो जाय। वेदों में इसलिए उल्लेख है-

असतो मा सदगमय

तमसो मा ज्योतिर्गमय

मृत्युर्मा अमृतमगमय

  • अर्थात हे सदगुरू! हमें अंधकार यानि असत्य से प्रकाश अर्थात सत्य की ओर ले चलो! हमें मृत्यु झंझट, कष्ट-क्लेश से मुक्ति दिलाकर ईश्वर की तरफ ले चलो! अमृतम पत्रिका का भी उदघोष यही है। सदगुरु हमें यथार्थ में जीना सिखाता है।

सच्चे वाहेगुरू की पहचान क्या है?..

  • सदगुरु कभी बचाता नहीं, मिटाता है, तुम्हारे अंदर स्थित अज्ञान, राग, लोभ, मोह, चिंता सप्त विकारों को मिटाता है।

चमत्कारी और बचाने वाले गुरुओं से रहें सावधान

  • वर्तमान में उनके पीछे लाखों की भीड़ है, कोई गुरू ताबीज बांट रहा है, कोई राख, तो कोई भभूत दे रहा है। कोई कोई झड़ फूंक कर भूत प्रेत उतार रहा है और सब शिष्यों को लगता है कि इन सब टोटकों से लाभ होगए। यह भ्रम है।
  • गुरू की बड़ी कृपा है। गुरू बचा रहा है, वे हमारी रक्षा कर रहे है। इन अनसिखे, अज्ञानियों चेलों को यह पता नहीं है कि सच्चा गुरू तुम्हे मिटाएगा, बचाएगा कैसे? तुम्हें ताबीज से तम यानि अंधकार के बीच रखकर तुम्हे नहीं बचाएगा।
  • सदगुरु जानता है कि… यदि ये अब इस जन्म में बच गए, तो इससे बड़ा दुर्भाग्य कोई नहीं होगा। सदगुरु चमत्कार नहीं दिखाता वरन जन्म-मरण का चक्कर मिटाता है।
  • गुरू चक्कर और चमत्कार से मुक्ति दिलाता है। अतः गुरू में पूर्णतः समर्पण ही शिष्य का चित्र, चरित्र बदलकर जीवन को इत्र से महकता है।
  • गुरु चरण में अर्पण से व्यक्ति स्वयं को दर्पण में देखने योग्य बना लेता है।

सब धरती कारज करूँ, लेखनी सब वनराय!

७ समुद्र की मसी करूँ, गुरुगुण लिखा न जाये!!

  • कबीरदास जी ने सदगुरु की अरदास में कहा है कि.. सारी धरती को कागज, सभी वृक्षों की कलम और सात समुद्रों की स्याही बनाकर भी लिखें, तो भी गुरु का गुणगान नहीं किया जा सकता।
  • गुरु द्वारा दिया गया गुरु मन्त्र स्वतः सिद्ध होता है, क्योंकि गुरु-शिष्य परम्परा के अनुसार वही गुरुमन्त्र हमारे पूर्वज गुरुओं द्वारा हजारों वर्षों से जपा-अजपा होता है।
  • हमारे या शिष्य के द्वारा जो गुरु मंत्र जाप किया जाता है। बस उसी में गुरु की सारी शक्ति, चमत्कार समाहित होते हैं।
  • गुरु हमारे गुरुर यानी अहंकार का नाशकर भाग्य के कपाट खोल देता है।

गुरुमन्त्र जपने से आती है सिद्धियां

  • महानिर्वाणतंत्र: उल्लास-६, पद-६७/१६८ और अंक प्रतीक कोष-७९ आदि ग्रंथों में उल्लेख है-

मंत्राणा देवता प्रोक्ता देवता गुरुरुपिणी।

अभेदेन भजेद्यस्तु तस्यसिद्धिरनुत्तमा।

गुरु शिरसि सन्चिंत्य देवता हॄदयाम्बुजे।

रसनायां मूलविद्या विद्या तेजोरुपा ..आदि

  • इस श्लोक में सदगुरू से प्राप्त दीक्षा मन्त्र के जाप का विधान बताया है। लिखा है कि. सदगुरू और सदाशिव का शरीर के विभिन्न अंगों पर अधिष्ठान है यानि स्थित है, इसलिए गुरु का ध्यान हमेशा मस्तक में, शिव का ध्यान ह्रदय में तथा गुरुमन्त्र या अन्य मन्त्र का ध्यान जिव्हा पर होना चाहिए।
  • इन तीनो का एकीकरण होने पर सिद्धि और सम्पत्ति शीघ्र मिलने लगती है।
  • एक रहस्यमयी गुरु प्रदत्त ज्ञान यह भी है कि…मन्त्र का जाप अपनी नाभि में एकत्रित यानि स्टोर करने चाहिए। मतलब सीधा सा यह है कि..मन्त्र जपते समय ऐसा एहसास करें कि मन्त्र हमारी नाभि में इकट्ठा हो रहा है।
  • बाबा हरिदास कहते थे… गुरु की शरण और चरण में चारों धाम, आठों याम, राम-श्याम तथा सभी काम-दाम है।
  • बिना गुरु कृपा के जीना हराम हो जाता है। अतः किसी ताम-झाम में पड़कर सदगुरू के प्रति, शिव से भी ज्यादा श्रद्धा बनाये रखें।
  1. गुरु में अश्रद्धा महापाप है।
  2. गुरु विश्वास और एहसास है,
  3. सदगुरु को केवल श्रद्धा से साधा जा सकता है।
  4. गुरु में विश्वास होने से हमारे तन-मन के विष-विकार, अहंकार मिटकर…सब सपने साकार होने लगते हैं।
  5. गुरु के सानिध्य में व्यक्ति विषहीन होकर जन्म-जन्म की विषय वासना के बंधन से छूट जाता है।

ऊर्ध्व गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसा:!

जघन्यगुणवृत्तिस्था अधोगच्छन्ति तामसा!!

(१४-२८ श्रीमद्भागवत गीता)

  • भावार्थ- गुरु कृपा से स्वस्थ्य व्यक्ति ऊर्ध्वगति यानी मुक्ति पाते हैं। गुरुकर्णधारणम अर्थात तन रूपी नाव का सदगुरू ही कर्णधार बताया है।
  • श्वेतश्वतर उपनिषद में लिखा है कि – परमात्मा में प्रेम है और गुरु में ज्ञान। अतः सदगुरू का ध्यान कर ईश्वर से जुड़कर प्रेम प्राप्ति का मार्ग सुलभ हो जाता है।
  • गुरु ज्ञान से हमारी अंतरात्मा का आराम मिलता है। ज्ञानदाता गुरु हमारे हृदय, आत्मा और मन-मस्तिष्क को सींचकर बुद्धि पर पड़ा अज्ञान आवरण हटा देते हैं। अंतरंग की पावनता से बहिरंग जीवन सत्य और शांति से भर जाता है।.

सदगुरु देते हैं-मन को अमन

  • मन ऊर्जा का मुख्य संवाहक है, जो भावनाओं के अनुरूप काम, क्रोध, मोह, लोभ एवं अहंकार के रूप में प्रकट होता है। वासना और इच्छाओं का मुख्य कर्ता-धर्ता है मन। मन पर विजय पाना असम्भव कार्य है, पर….. गुरु मंत्र के जाप से एवं गुरुकृपा द्वारा इसकी दिशा बदली जा सकती है।

जब लग नाता जगत का, तब लग भगति न होय।….

  • प्रार्थना से दूर व्यक्ति को परमात्मा दरिद्र-दुखी बना देता है। गुरु के बिना सब प्रार्थनाएं अनसुनी हो जाती हैं। सारे प्रपंच पूजा-पाठ, कर्मकांड, अभिषेक, छप्पन भोग एवं फूलबंगला आदि अर्पित करने का फल पूर्णतः प्राप्त नहीं होता।

गुरुरेकोजगत्सर्वं ब्रह्मा-विष्णु-शिवात्मकम!

गुरो परतरं नास्ति तस्मात् सम्पुज्येत गुरूम!!

  • अर्थात ब्रम्हा-विष्णु-महेश तीनो गुरु में समाहित हैं। ब्रम्हा… माता-पिता है इसलिए ये जगत की रचना करते हैं।
  • जैसे….माता-पिता हमारी रचना करते है अतः ब्रम्हा को संसार (सांसारिक) कहा है इसलिए ब्रह्मा की पूजा निषेध है।
  • विष्णु – भंडारी है जिन्हें भंडार भरने में आनंद आता है। सभी कहते है लक्ष्मी जी का भंडार सदा भरपूर रहे विष्णुजी का नहीं। है ये संसार पालक है। पालने के कारण पूज्यनीय है।
  • विश्व के हर अणु के मालिक हैं, इसलिए विश्व+अणु= विष्णु कहा जाता है। ये कण-कण के रक्षक-पालक हैं। मोह माया लोभ-लालच में ललचाना इनका काम है।
  • महेश अर्थात शिव। शिव का अर्थ है कल्याण जो कल्याण, परोपकार की भावना रखते हैं, वे ही शिव उपासक हो सकते है।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुदेवो महेश्वरा!

गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः!!

  • गुरु को समर्पित यह बहुत प्रसिद्ध श्लोक है..इसके भिन्न-भिन्न अर्थ हैं-
  • पहली बात तो यह है कि गुरु मूर्ति में जगत के तीनों पालनहारों का वास है। सदगुरू के ध्यान, और गुरुमन्त्र के जाप से जीवन में १०० फीसदी परिवर्तन होता है।
  • गुरुवाणी के द्वारा जीव के अंदर ज्ञान की गति का भाव उत्पन्न होता है। ज्ञान का अंकुर फूटने से ही गुरु ब्रह्मा का स्वरूप है।
  • जब शनै-शनै गुरु के उपदेशानुसार जीव, जब निवृत्ति मार्ग की और जाने लगता है, तब अंकुरित स्वरूप उस वृक्ष से ज्ञान रूपी चार स्कन्द एवं चार गोदे चार वेद कहलाते हैं। जब उसी गोदों से शाखाएं फूटती हैं, वह १८ पुराण कहे जाते हैं। ऐसे अनंत ज्ञान की अनुभूति होने पर सदगुरू शिष्य के लिये विष्णु स्वरूप हो जाता है।

सदगुरु की पूजा किये, सबकी पूजा होय

  • गुरुभक्ति से शिष्य के सम्पूर्ण दोषों का नाश, प्रारब्ध के पापों तथा जन्म-मरण की प्रक्रिया का संहार हो जाता है। फिर,
  • गुरु में शिव और शिव में गुरु के दर्शन का सौभाग्य मिलता है, इसीलिये गुरु को ब्रह्मा-विष्णु-महेश पारब्रह्म, परमपिता और परमात्मा स्वरूप बताया गया है।

गुरु की ओर निहारिये, औरन से क्या काम..

  • शिव तत्व एवं गुरु के अभाव में सारा संसार, जीव-जगत शव समान हो जाता है।
  • परमेश्वर रूप गुरु की प्रार्थना- उपासना से तन-मन, प्राण, वाणी, हृदय पवित्र पावन हो जाता है।
  • गुरुज्ञान एवं कृपा से प्राणी अभय पद पाकर परमहंस हो जाता है। ज्ञानी, ग्रन्थ एवं गुप्त साधक कहते हैं..

गुरु बिन भवनिधि तरइ न कोई

  • गुरु के बिना इस भवसागर से कोई भी पार नहीं लगा सकता। ध्यान-समाधि, योगाभ्यास से सदगुरू में शिव की अनुभूति होने लगती है।
  • सदगुरु के स्थूल रूप में कुछ नहीं धरा। गुरुमूर्ति का ध्यान करके वैभव, ऐश्वर्य और उनका चमत्कार देखा जा सकता है।

सदगुरू में ही शिव का वास होता है

  • बड़े-बड़े परम योगियों ने, महायोगियों-अवधूतों ने अंतर्मुखी होकर, अंतरात्मा की साधना करके गुरु को नाद रूप में, ज्योतिर्लिंग एवं ज्योतिर्रूप में मूलाधार चक्र से ऊपर उर्धगामी यात्रा में अपने गुरु का व्यापक रूप का, उनके चमत्कार का अनुभव किया है। गुरु में ही शिव या अपने इष्ट के दर्शन पाए हैं।
  • अपनी आत्मारुपी ज्योति को जलाए रखने हेतु गुरु से भावविभोर होकर प्रार्थना करें कि…गुणों के गणित में वृद्धि करने वाले गुणातीत, भय-भ्रम भगाकर, भाग्योदय करने वाले हे सदगुरू! आप कालातीत हैं।
  • महेश्वर से कहकर मुझे महाएश्वर्य दिलवा दो। मुझ पर दया करो। मेरे मन में सदैव शुभ-शिव संकल्प, शुभकामना का उदय हो। मेरा जीवन मंगलमय हो।

शिव और शव में अन्तर

  • सदगुरु के बिना मानुष शव यानि च्लती, फिरती लाश की तरह होता है।
  • जीवित शरीर में अग्नि यानि शिव का वास होता है। शिव शब्द में से छोटी इ की मात्रा हटाते ही व्यक्ति शिव से शव हो जाता है।
  • प्राणी के शिव से शव होते ही उसे अधिकतम 24 घण्टे के अन्दर उसे मुक्तिधाम ले जाकर उसका दाह संस्कार कर देते हैं।

छोटी इ की मात्रा का रहस्य

  • हमारी अग्नि रूपी इकार शक्ति है। जब यह इकार शक्ति विकारयुक्त होकर दूषित हो जाती है, तब यह आशा, तृष्णा, इच्छा, वासना, कामना, मनोविकार, भय-भ्रम, लोभ-मोह अहंकार, दुःख-दारिद्र, गरीबी, रोग-बीमारी, ग्रह दोष, गृह क्लेश, राग, द्वेष-दुर्भावना, बेईमानी, अशांति आदि तकलीफ, परेशानी उत्पन्न होने लगती हैं।

गुरु गीता ग्रन्थ में उल्लेख है कि…

  • व्यक्ति जैसे-जैसे सदगुरू और सदाशिव से दूर होता चला जाता है, उसके जीवन में कष्टों का अंबार लगने लगता है। गुरुमन्त्र के लगातार जाप से इन सब ताप-तकलीफ से मुक्ति मिल सकती है।
  • धर्म-दर्शन शास्त्रों में बताया है कि…जीवन का दर्शन, गुरुअर्चन में है। चार युगों में कैसे बदला मानव इसे बहुत आराम से पढ़ें….

क्या है-ब्रह्म, धर्म, कर्म और भ्रम…

  • सतयुग में केवल ब्रह्म यानि शिव का दौर था। लोग उस समय केवल शिव को ही गुरुु या सब कुछ मानते थे।
  •  सतयुग में शिव ही ब्रह्म था। शिव ही सबका सदगुरु था। शिव गुरु कृपा से हर कोई ब्रह्मज्ञानी था। शिवपुराण में आया है कि शिंवलिंग गुरु का प्रतीक स्वरूप है।
  • भक्तों-साधकों के विशेष आग्रह पर भगवान शिव ने गुरु के प्रतीक रूप में शिंवलिंग की स्थापना की थी।
  • शिंवलिंग गुरु का ही एक रूप है।
  • आपने देखा होगा कि साधु-सन्यासी की समाधि, देहत्याग या मृत्यु के बाद उस स्थान पर शिंवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करा दी जाती है।

यो गुरु:स शिवः प्रोक्तो य:शिव:स गुरुस्मृत:!

  • अर्थात… जो गुरु हैं, वही शिव हैं और जो शिव हैं, वे ही सदगुरू हैं। दोनों में अंतर मानने वाला घोर गरीबी में जीता है।
  • शिवपुराण आदि उपनिषदों में शिंवलिंग को सदगुरू का स्वरूप बताया है।
  • दुनिया में जहाँ भी सुप्रसिद्ध शिंवलिंग या स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग हैं, वे सब कठोर शिवभक्त साधकों के समाधि स्थल है।
  • भोलेनाथ ने उस जगह दर्शन देकर ज्योतिर्रूप में शिंवलिंग में समाहित हो गए।
  • स्कंध पुराण में ऐसे चौरासी हजार शिवलिंगों का उल्लेख चौथे खण्ड में है।

फिर धर्म आया त्रेतायुग में..

  • इस युग में धर्म का बोलबाला बढ़ा। हर कोई प्राणी धार्मिक था। चारो तरफ केवल धर्म की चर्चा होती थी। गुरूवाक्य सर्वोच्च था।
  • अधिकांश उपनिषदों की रचना त्रेतायुग में हुई। परम शिवभक्त महर्षि अष्टावक्र जो कि राजा दशरथ के गुरु थे, इनके द्वारा रचित ग्रन्थ “अष्टावक्र गीता” इसी युग में लिखा गया था। त्रेतायुग में सदगुरू और शिंवलिंग पूजा का ही विधान था।

महादेव की महानता….

  • बाबा शिव कल्याणेश्वर एक ऐसे देवता हैं, जिन्हें कभी किसी से कोई मतलब नहीं है। यह निष्काम, निस्वार्थ भाव से अपने में तल्लीन हैं। ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण नकारात्मक ऊर्जा, दुःख-दारिद्र के मालिक हैं। सृष्टि की सारी निगेटिव ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करने का अधिकार इनके पास है। इसीलिए कहा गया…

भावन्ही मेट सकें त्रिपुरारी

  • सदाशिव बड़े से बड़े दुःख तकलीफ को पल भर में मिटा सकते हैं।

हानि-लाभ, जीवन-मरण, सुख-दुख विधि हाथ!

  • इन ६ चीजों में बदलाव का अधिकार विधि यानि शिव यानि सदगुरु जी के पास है। ये सुपर महा कम्प्यूटर तथा सॉफ्टवेयर के आविष्कारक एव रचनाकार हैं।
  • महादेव का भी मोबाइल नम्बर, वेबसाइट, ईमेल एड्रेस भी है इसकी जानकारी आगे के लेखों में दी जावेगी।

शिव सबसे बड़ा हत्यारा….

  • यह बात कुछ अटपटी लगेगी, लेकिन शिव की तरह सत्य है। सन्सार में शिव को ही सत्य और सुंदर माना गया है। इसलिए ही इन्हें सत्यं-शिवं-सुंदरम कहा गया।
  • जो व्यक्ति एक या दो लोगों को मारता है, उसे लोग हत्यारा कहते हैं। 100-50 लोगों को मारने वाले को वीर सिपाही कहकर, सेना में सम्मान दिया जाता है और जो सम्पूर्ण जीव-जगत का संहार करता है, उसका नाम महाकाल शिव है।

द्वापर युग में कर्म का महत्व बढ़ने लगा

  • द्वापर युग..में कर्मयोग सब कुछ था…इस युग में कर्म पर जोर दिया गया।
  • गीतासार के माध्यम से कर्मयोगी भगवान कृष्ण ने प्रेरित किया कि केवल कर्म करो- फल की इच्छा मत करो। कर्म के द्वारा सारे मर्म, दुःख-दर्द दूर किये जा सकते हैं।
  • कर्मों के द्वारा नये-नये अविष्कार का चलन इसी युग में अधिक हुआ। हम कर्म के रहस्य को जानने का प्रयास नहीं करते। जीवन की रक्षा, समाज, देश, विश्व और इस जीव-जगत भला करने के लिए कर्म करना अति आवश्यक था।

दुःख की वजह भी कर्म है

  • यह भी सत्य है कि दुखों की उत्पत्ति का कारण भी कर्म ही है। कर्म करते–करते व्यक्ति से कुकर्म और पाप भी हो जाते हैं।
  • श्रीमद्भागवत गीता में शुभ कर्म को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कर्म के द्वारा ही शिव, गुरु और ईश्वर की प्राप्ति संभव है।

कर्मयोग का वैदिक सिद्धान्त…

  • कर्मयोग सिखाता है कि कुछ भी अच्छा पाने के लिए आसक्ति रहित होकर कर्म करो। कर्मयोगी को कर्म करना अच्छा लगता है, इसलिए वह कर्म करता है।
  • वह कभी भी कर्म का त्याग नहीं करता। कर्मयोगी केवल कर्मफल का त्याग करता है। वह कुछ पाने की चाह नहीं रखता।
  • कर्मयोगी दाता के समान होता है, वो किसी से कुछ मांगता नहीं है। कुछ पाने की चेष्टा नहीं करता। सदगुरु ऐसा होना चाहिए।

!ॐ शिव कल्यानेश्वराय नमः! ……

  • कर्म सबके कल्याण के लिए हमेशा करते रहना चाहिए।वेद के अनुसार गुरु और शिव का एक अर्थ कल्याण भी है, जो लोग कल्याण या भला करने का भाव नहीं रखते, उन्हें गुरु के चरण में तथा शिव की शरण में स्थान नहीं मिलता

कलयुग में फैल रहा है भ्रम

  • यह कलयुग है। चारो तरफ केवल भ्रम ही भ्रम फैला हुआ है। चित्रकूट के अवधूत सन्त शंकरानन्द जी कहते थे कि कलयुग में ज्यों-ज्यों व्यक्ति ईश्वर से दूर होता जाएगा, अश्रद्धा, तन्त्र-टोटके, बिना मेहनत, जुगाड़ की कमाई तथा कम कर्म और फल की अधिक इच्छा की वजह से हर प्राणी में भ्रम की भरमार होती चली जायेगी। किसी को भी मानसिक शांति नहीं मिलेगी।
  • लोगों के चित्र-चरित्र बिगड़ जाएंगे। अतः वर्तमान में भ्रम को दूर करने का एक मात्र उपाय है- भगवान शिव या सच्चे गुरु की शरण में जाना।

कलियुग का दुष्प्रभाव

  • अन्य पंथ एवं धर्म व्यवसाय का रूप ले लेंगे।
  • कथा वाचक धर्म की कम, मृत्यु की चर्चा ज्यादा करेंगे।
  • दुनिया में रोगों का रायता फैलता चला जायेगा।
  • शहरी साधु-सन्त ममता आसक्ति, राग, द्वेष-दुर्भावना, दुष्टता को फैलाने में माहिर हो जाएंगे। दुखों को बटोरने वाले नहीं मिलेंगे।

गुरु पूर्णिमा का महत्व क्या है

  • वैसे तो ब्रह्माण्ड में पूर्ण-माँ ही है। यही सृष्टि का सबसे छोटा शब्द है। सनातन धर्म पंचांग के अनुसार पूर्णिमा प्रत्येक माह आती है। लेकिन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष को गुरु पूर्णिमा इसलिए विशेष है क्योंकि इस दिन कलयुग के आदिगुरु श्री वेदव्यास जी का जन्म हुआ था।
  • शिव भक्त ऋषि पराशर के पुत्र महर्षि वेदव्यासजी संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उप्र का कालप्रिय तीर्थ इनकी जन्म भूमि है, जो आज का कालपी है।

  • शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव जी द्वारा रचित आदिकालीन श्रुति वेदों को चार भागों में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का विभाजन, सम्पादन लेखन करके व्यासजी ने गुरु पूर्णिमा के दिन विश्व के वैदिक धर्माचार्यों को समर्पित किया था।

वेदों को श्रुति क्यों कहते हैं-

  • ऐसी मान्यता है कि इसके पहले वेद लिखित में नहीं थे। वेदों को श्रुति कहा गया है, क्योंकि यह करोड़ों वर्ष पुरानी परम्परा के हिसाब से सदगुरु अपने शिष्यों को कण्ठस्थ कराते थे। केवल याद करने और सुनने के कारण वेद श्रुति ग्रन्थ कहे गए। यह भ्रम या झूठी बात है कि ऋषि व्यास ने वेदों की रचना की थी।

क्या है वेदों में…

  • सन्सार या ब्रह्माण्ड का हर रहस्य एवं ज्ञान, वेदों में समाया हुआ है। इसकी अकाट्य वैज्ञानिकता के कारण करोड़ों वर्षों से इसका महत्व कम नहीं हुआ। वेद एक प्रकार से भगवान शिव और सदगुरुओं की वाणी है।
  • आयुर्वेद ऋग्वेद का ही अंश है।
  • यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है, इसमें युद्ध सम्बंधित सभी कला-कौशल, अणु-परमाणु, आदि की जानकारियां और शक्ति समाहित है।
  • सामवेद पूरा संगीत से भरा है। सन्सार का सम्पूर्ण गीत-संगीत, वाद्य यन्त्र तथा साज के राज्य छुपे हुए हैं। सामवेद का उपवेद गन्धर्ववेद है।
  • अथर्ववेद में धर्म-,अर्थ, काम-मोक्ष के रहस्य भरे पड़े हैं।

दक्षता पाने के लिए गए दक्षिण

  • एक बहुत ही दुर्लभ और रहस्यमयी जानकारी यह भी है कि…महर्षि व्यासजी ने इन वेद-पुराणों का लेखन कर श्लोकेश्वर शिंवलिंग पर रुद्राभिषेक करते हुए 54 दिन तक भोलेनाथ एवं राहुदेव को सुनाया था।

कहाँ पर है श्लोकेश्वर शिंवलिंग

  • यह शिंवलिंग दक्षिण भारत के तिरुपति मंदिर से 35 किलोमीटर दूर श्रीकालाहस्ती वायुतत्व शिवालय में स्थित है। मन्दिर में प्रवेश करते समय बाहें हाथ की तरफ यानी लेफ्ट हैंड पर एक छोटा सा शिंवलिंग है।

कालसर्प-पितृदोष से पीड़ित थे- गुरु महर्षि व्यास

  • महर्षि व्यास जैसे गुरु भी राहु ग्रह द्वारा निर्मित कालसर्प-पितृदोष से पीड़ित थे, इसी कारण राहु की शांति के लिए उन्होंने 54 दिन लगातार राहु की उपासना की थी। शेष जानकारी कभी अलग लेख में दी जावेगी।

क्यों बनाया राहुकी तेल

  • जिंदगीभर बहुत भटकने के बाद एक दिन काशी के शमशानेश्वर शिंवलिंग के नीचे, नदी किनारे शिवधुन में तल्लीन था। तभी काले वस्त्र धारण किये हुए एक
  • अवधूत सन्त मेरे बगल में आकर बैठ गए, कुछ समय शांत रहने के पश्चात उन्होंने मुझे झकझोरा। दरअसल मैं उस समय ध्यान मग्न था।
  • बाबा ने पूछा ?… किधर से आया है बेटा! थोड़ा चेतन्य होते हुए मैंने अपना परिचय दिया, वे बहुत समय तक मुझसे बतराते रहे। करीब एक घण्टे पश्चात वहाँ से चलने लगे, तो मैने उन सन्त को चरण स्पर्श किया।
  • कुछ देर मौन रहकर बाबा ने पेन-कागज निकालकर कुछ लिखने का बोला। सब कुछ लिखने के पश्चात बाबा ने बताया कि यह एक चमत्कारी तेल का फार्मूला है।
  • Raahukey oil के बनाने की विधि, जलाने का समय, विधि-विधान से करने पर जीवन में चमत्कार होने लगेंगे। बाद में अमृतम ने आयुष मंत्रालय से लाइसेंस लेकर नाम दिया राहुकी तेल:-

राहुकी तेल बनाने का विधान…

  • अवधूत बाबा के बताए मुताबिक हम प्रत्येक महीने की पंचमी, आद्रा नक्षत्र या मास शिवरात्रि को Raahukey oil शांति के लिए उपयोगी जड़ीबूटियों जैसे-जटामांसी, देवदारु, नागवल्ली, नागकेशर, नागदमन आदि को जौकुट किया जाता है। फिर,
  • 16 गुने पानी में उबालते हैं। फिर इसके काढ़े से शिंवलिंग का रुद्राभिषेक कराकर, उस काढ़े को तिल के तेल में मिलाकर 7 दिनों तक पकाते हैं।
  • काढ़ा ठंडा होने के बाद इसमें राहु-केतु एवं शनि की धातु वंग भस्म, नाग भस्म, यशद भस्म तथा राहु के पसंदीदा इतर गुलाब, चन्दन, आदि 7 तरह की खुशबू मिलाकर पैक करते हैं।
  • इसके अलावा भविष्य-पुराण एवं स्कन्द पुराण के अंतर्गत राहु की शांति हेतु कुछ अदभुत मंत्र और वैदिक उपाय लिखे हैं।

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