सुखं च दुःखं च भवाभवौ च
लाभालाभौ मरणं जीवितं च,
पर्यायशः सर्वमेते स्पृशन्ति
तस्माद् धीरो न हृष्येत्र शोचेत्।
- अर्थात सुख-दुःख, लाभ-हानि, जीवन-मृत्यु, उत्पति-विनाश, ये समय-समय पर सबको प्राप्त होते हैं। ज्ञानी को इनके बारे में सोचकर शोक नहीं करना चाहिए। ये सब शाश्वत सत्य है।
- डिप्रेशन केसे मिटेगा, जब परम सत्ता को जानना ही नहीं चाहते? शिव को साधते ही सब सध जायेगा। यही सत्य है। शिव की सबसे सुंदर बात यही है शिव की भक्ति से शक्ति आती है।
- दुनिया में सुख है, समय नहीं। साधन हैं, साधना नहीं। लोग शिव के प्रति समर्पण न कर के संघर्ष कर रहे हैं, तो परम शांति कैसे मिलेगी और केसे रोग, बीमारी, डिप्रेशन दूर होगा। ॐ शम्भू तेजसे नमः शिवाय का जाप करें।
What is, ओम शंभूतेजसे नमः शिवाय में शंभू का क्या अर्थ होता है? के लिए Ashok Gupta का जवाब What is, ओम शंभूतेजसे नमः शिवाय में शंभू का क्या अर्थ होता है? के लिए Ashok Gupta का जवाब
- अवधूत अघोरी संत, संत मलुकदास जी, तेलंग स्वामी, परमहंस विशुद्धनंद, महर्षि रमण, गुरु विद्यारण और आदि शंकराचार्य इन सबके कहने का सार यही था कि
तू शिव को अगर बिसरा देगा, तो दर दर ठोकर खाएगा।
शिव नाम का अमृत पाए बिना, तू मुक्ति केसे पाएगा।।
नम: शिवायास्तु निरामयाय
नम: शिवायास्तु मनोमयाय।
नम: शिवायास्तु सुरार्चिताय
तुभ्यं सदा भक्तकृपापराय।।
- अर्थात जो सब प्रकार के रोग-शोक से रहित हैं, उन कल्याण स्वरूप भगवान् शिव को नमस्कार है।
- भगवान शिव सबके भीतर मनरूप से निवास करते हैं, उन भगवान् शिव को नमस्कार है।
- सम्पूर्ण देवताओं से पूजित भगवान् शंकर को नमस्कार है। भक्तजनों पर निरन्तर कृपा करनेवाले आप भगवान् महेश्वर को नमस्कार है।
- अमृतम पत्रिका के शिव की सत्ता अंक से कुछ अंश हमने लिख दिए हैं आगे इस आर्टिकल को क्योरा के विद्वान बहुत मार्मिक तरीके से आगे बढ़ाएं।बस इतना आग्रह है, ताकि लोग भोलेनाथ की शक्ति, सत्ता को समझें, समझाएं।
- जब तक दुनिया इस बात को नहीं मानेगी, तक तक वो भयंकर दुःखी, द्दरिद्र, गरीब, बीमार और परेशान रहेगी। ध्यान रहे..
शिव ही विधाता, शिव ही विधान।
शिव ही ज्ञानी और शिव ही ज्ञान।।
सुखी जीवन का सूत्र
रुखा सूखा खाइकै, ठंडा पानी पीव।
देख विरानी चूपड़ी, मन ललचावै जीव।।
- अर्थात ईश्वर ने जो कुछ भी दिया है, उसी में संतोष करना चाहिए। यदि ईश्वर ने रूखी सूखी दो रोटी दी है तो उसे ही ख़ुशी खाकर ठंडा पानी पीकर सो जाना चाहिए। दुसरो की घी की चुपड़ी रोटी देखकर मन नहीं ललचाना चाहिए।
- आगे आप अमृतेश्वर की अलख जगाने के लिए सादर आमंत्रित हैं। संपादक अमृतम
- बड़े बुजुर्ग ओर माता पिता का आशीर्वाद लेवें क्योंकि
सर्वार्थसंभवो देहो
जनित: पोषितो यत:
न तयोर्याति निर्वेशं
पित्रोर्मत्र्य: शतायुषा।।
- अर्थात 100/सौ वर्ष की आयु प्राप्त करके भी माता – पिता के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता! वास्तव में जो शरीर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति का प्रमुख साधन है, उसका निर्माण तथा पालन – पोषण जिनके द्वारा हुआ है, उनके ऋण से मुक्त होना कठिन ही नहीं, सर्वथा असम्भव है।
- सभी से प्रेम रखें और श्रद्धा भाव बनाएं
मन्त्रे ,तीर्थे ,द्विजे ,देवे ,दैवज्ञे ,भेषजे गुरौ|
यादृशी भावना यस्य,सिद्धिर्भवति तादृशी।।
- अर्थात, पवित्र नदी का जल ,ब्राह्मण , भगवान , ज्योतिषी औषध और गुरू इनके उपर जिसकी जैसी श्रद्धा होगी वैसा उसको फल मिलेगा। श्रद्धा मन का सामर्थ्य है ,उसके कारण ही मनुष्य को यश की प्राप्ती होती है।
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