जाने अघोरी की तिजोरी के रहस्य। जानकर आप भी अवधूत की भभूत लगाने पर मजबूर हो जाएँगे! भाग-चार amrutam.global

दक्षिण में पाई दक्षता

वाचा किनाराम अपने शिष्य बीजाराम के साथ देश के सभी भागों में खासकर दक्षिण भारत के लगभग 35 से 50 हजार स्वयंभू शिवालय और शिव मंदिरों का भ्रमण करते रहे थे।

चिरंजीवी महर्षि मार्केंडेय और महामहर्षी अगस्त्य द्वारा निर्मित शिवालयों के दर्शन किए। 11 अमृतेश्वर शिव मंदिरों में साधना की। केदारनाथ के समीप अगस्त्य मुनि नामक स्थान में स्थित एक स्वंभू शिवलिंग में कुछ महीने रहकर तेल अर्पित कर स्वयं भी अभ्यांग करते थे । ये शिवलिंग दर्शनीय है।उन्होंने अनेक जगहों पर साधनायें की। हिमालय की यात्रा की ओर लौटकर काशी आये।

बनारस में कपालिक अघोरी कालूराम से मुलाकात

यह घटना संवत् 1754 के आसपास की है जब किनाराम काशी में हरिश्चन्द्र घाट श्मशान पर जा पहुंचे।

यहाँ एक अधोरी संत बाबा कालुराम रहते थे जो मृतकों की खोपड़ियों को अपने पास बुलाकर उन्हें चने खिलाया करते थे। वे खोपड़ियों को अपने पास बुला ही रहे थे कि पहली बार ऐसा हुआ कि उनके बुलाने के बावजूद वे उन तक नहीं आई।

ऐसा क्यों हुआ? अघोरी साधु कालूराम ने कारण जानने के लिये तत्काल ध्यान लगाया, तो पाया कि किसी अन्य साधु के आत्मवल के प्रभाव के कारण ऐसा हुआ है।और वास्तविकता भी यहीं थी कि किनाराम ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन प्रतिक्रिया स्वरूप किया था। दो महान शक्ति सम्पन्न साधकों के आपसी परिचय करने बावत् संभवतः यह प्रथा रही हो।

साधु कीनाराम आगे बढ़े और साधु कालूराम से बोले – महाराज! आप यह क्या खेल खेल रहे हैं।आग्रह है कि आप अब अपने स्थान पर चलें। बाबा कालूराम उनकी कुछ और शक्ति भी देखना चाहते थे सो बोले – ‘मुझे बड़ी भूख है।

मछली खिलाओगे? साधु किनाराम ने भी उसी समय गंगा मैया को आदेश दिया। गंगिया ला एक मछली तो दे जा । और उसी क्षण एक बड़ी सी मछली पानी से बाहर आ गई। मछली को भुना गया और तीनों ने भोग स्वरूप पाया।

तीनों चमत्कारी अघोरी कालूराम बीजाराम और साधु कीनाराम अब आगे चले, तो अघोरी कालूराम संभवतः परीक्षा लेने के लिये- शक्ति जानने के लिये साधु किनाराम से वोले- देख मुर्दा बहकर आ रहा है।

किनाराम उनका भावार्य समझ गये, सो बोले- महाराज ! मुर्दा कहाँ ? यह तो जीवित है। साधु कालूराम ने भी चुनौती भरे भाव से कहा जीवित है, तो बुला उसे!

साधु किनाराम ने भी उनकी इच्छा पूर्ति हेतु मुर्दे को ललकारा इधर आ। और यह किनाराम की अधोर शक्ति का परिणाम था कि वह मुर्दा न केवल किनारे आ गया, बल्कि आकर खड़ा हो गया।

संत किनाराम बोले देख क्या रहा है जा घर जा। और वह मुर्दा जीवित होकर अपने घर चला गया। यह घटना क्रम जब मुर्दा के परिजन को उनसे ज्ञात – हुआ, तो परिजनों ने किनाराम के समक्ष अत्यंत विनम्रता पूर्वक प्रार्थना की कि ‘महाराज !

आपने इसे जीवन दान दिया है अत: आज से यह आपका ही. बालक है। कृपाकर इसे स्वीकारें। तब से वह बालक साधु किनाराम के साथ ही रहा। उसका नाम रखा था -राम सियावन राम

अब कुछ भी शेष नहीं था। परीक्षा में खरे उतरे थे संत किनाराय उनसे साधु कालूराम संतुष्ट हुये और प्रसन्न होकर अपनी वास्तविकता को उद्‌घाटित किया।

कालूराम ने उन्हें क्रीं कुण्ड (शिवाला वाराणसी) में ले जाकर बताया यहीं गिरनार है और सभी तीर्थ भी यहीं विद्यमान है।यहीं बाबा कलूराम ने (जो कि इस रूप में दत्तात्रेय ही थे) साधु किनाराम को पुनः क्पालिक अघोर मंत्र से दीक्षित किया।

और ऐसे जानकारी प्राप्त करने के लिए आप amrutam सर्च कर मुझे फॉलो कर सकतें हैं। धन्यवाद्

For Doctor:- https://www.amrutam.global

website:- https://amrutam.co.in/

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *