स्त्री का स्वभाव सरल हो, तो वह शक्ति के रूप में पूज्यनीय हो जाती है! शिव और शक्ति में से छोटी इ की मात्रा हटते ही शिव से शव और स्त्री शक्ति से सख्त हो जाती है! जाने क्या हैं चौकाने वाले रहस्य भाग-दो amrutam.global

कामात् क्रोधोऽभिजायते।

यह भी सच है कि प्रवृति की शक्ति परमात्मा से बड़ी नहीं है, किन्तु भीतर परमात्मा के प्रकाश को ढक अन्तःकरण का आवरण हो जाने से ज्ञान की वृत्ति भी आवृत्त रूप में ही पैदा होगी। वहां ज्ञान का अंश ढका रहता है, काम प्रबल रहता है। वही पाप कराता है।

एक युद्ध स्वयं के विरुद्ध

देखा जाये, तो बिना शिव और शक्ति की उपासना के हर व्यक्ति के मस्तिष्क में एक युद्ध स्वयं के विरुद्ध सदियों से चलता आ रहा है।मन को अशुद्ध करने वाला ये युद्ध कभी शान्त होकर थमता नहीं है। इस युद्ध को रोकने की क्षमता महादेव और महाकाली के अतिरिक्त किसी भी देवी-देवता या उनके अवतारों में नहीं है।

सभी प्राणी ८४ लाख योनियों में भटकते रहते हैं। लेकिन कभी शुद्ध सिद्ध नहीं हो पाते। शिव या शक्ति को ज़िद्द से पाना कठिन है।शिव-शक्ति की साधना, ताल से ताल मिलकर जाप, जब आप करते हैं, तो अनिरुद्ध की कठोर तपस्या के पश्चात ही बाल बढ़ाकर ये ख़्याल आता है कि

मैं तो रमता जोगी-रमता जोगी, रमता जोगी, रमता जोगी राम। मुझे दुनिया से क्या काम!!

परिवर्तन की प्रतीक प्रकृति-स्त्री और युद्ध

भगवान शिव को नीचा दिखाने और बदला लेने के लिए महादेव के ख़ास स्वसुर राजा दक्ष ने अनुष्ठान में आमंत्रित नहीं किया, तो मां ने हवन कुंड में देहाग्नि कर स्वयं को स्वाहा कर दिया।

परिणाम स्वरूप धरती पर ५२ शक्तिपीठों का उदय हुआ या मंदिर स्थापित हुए। तन्त्र, मन्त्र, यन्त्र के साधकों और अघोरियों के लिए ये मुख्य द्वार है। इसी से कुंडलिनी जागरण शीघ्र होता है।

आप जानकर हैरान हो जाएँगे की दृष्टि की सारी घटना, दुर्घटना का कारण शक्ति नारी ही है। देवासुर संग्राम में माँ दुर्गा को हस्तक्षेप करना पड़ा।

राहुकाल के उदय, निर्माण की कहानी, जिसे छुपाया गया

सब जानते हैं कि समुद्र मंथन के बाद निकले अमृत को बाँटने पर राहु के साथ धोखा हुआ और देवताओं ने परम शिव भक्त दैत्य राहु का सिर या गला काट दिया, तो केतु ग्रह की उत्पत्ति हुई।राहु की माँ सिंहीका जो कि हिरण्यकश्यप की बहिन थीं। इन्होंने अपने बेटे राहु के साथ अन्याय के ख़िलाफ़ आंदोलन किया और राहु केतु को नवग्रहों में स्थापित करवाया।

राहु काल और केतुकाल का निर्धारण कैसे हुआ

आज भी सातों ग्रह के ७ वार हैं।लेकिन राहु केतु को इन वारों में कोई स्थान नहीं मिला, तो राहु की माँ सिंहीका ने महादेव की कठोर भक्ति कर दिन में हर रोज़ ९० मिनिट का राहुकाल और रात्रि में केतुकाल का समय निश्चित कराया।

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