अवलेह और माल्ट में क्या अन्तर है?

धर्मार्थकाममोक्षाणां शरीरं साधनं यतः!

सर्वकार्येष्वंतरंगं शरीरस्य हि रक्षणम्!!

  • अर्थात् आयुर्वेद शास्त्राचार्यों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ कहे हैं। इन सबका मुख्य साधन शरीर है। इसलिये हर हाल में शरीर की रक्षा करनी चाहिये।
  • चरक सहिंता के एक श्लोक के अनुसार ईश्वर में सभी को मात्र शरीर को स्वस्थ्य रखने की ज़िम्मेदारी दी है शेष तो सब विधाता ही सम्भालता है।

कुदरती कमाल

  • शरीर में रसादि पोषण देने के लिए आहार में जोड़े जाने वाले सभी प्राकृतिक पोषक तत्व या घटक अवलेह या माल्ट में कुदरती रूप से मिले होते हैं।
  • आयुर्वेद सार संग्रह, रस तन्त्र सर व सिद्ध प्रयोग संग्रह प्रथम खंड के अनुसार लेह/अवलेह या माल्ट या मृदु प्रकृति वाले स्त्री पुरुष, बालक या बुजुर्गों के लिए विशेष लाभकारी होते हैं।
  • आयुर्वेदिक अवलेह को ही माल्ट कहते हैं। ये प्राकृतिक जड़ी बूटी, मेवा मुरब्बा युक्त हर्बल सप्लीमेंट होते हैं।
  • सभी अवलेह , माल्ट और पाक वात पित्त कफ़ को संतुलित करते हुए पाचन तंत्र को मजबूत तथा मेटाबोलिज्म सही कर लिवर को क्रियाशील बनाने में सहायक हैं इससे कमजोर शिथिल रक्त नाड़ियो में सुस्ती, तनाव और विकार दूर होते हैं।
  • अमृतम द्वारा निर्मित क़रीब ३२ तरह के माल्ट निर्मित किए जाते हैं। जैसे NARI Sondary Malt, BFERAL Gold Malt, Keyliv Malt, ZEO Malt, Brainkey Gold Malt, अमृतम गोल्ड माल्ट आदि
  • आयुर्वेद की ५००० वर्ष प्राचीन विधि से तैयार नारी सौंदर्य माल्ट खाने में स्वादिष्ट और सुपाच्य होने से पाचन सुधरता है और PCOD जैसी विकराल समस्या से राहत देकर अनेक ज्ञात अज्ञात नारी रोगों का शमन लेने में मददगार है।
  • amrutam द्वारा मेवा, मुरब्बे, जड़ी बूटी, असरदायक मसाले, रस, भस्म, शिलाजित आदि निर्मित विभिन्न विकारों को जड़ से मिटाकर देह को तंदुरुस्त बनाने में मददगार हैं।

माल्ट या अवलेह क्यों बेहतर और लाभकारी है?

  • प्राचीन काल के वैद्य गण कमजोर मरीज़ों को ख़ासकर जिनका पाचन तन्त्र बिगड़ा रहता था उन्हें रोगानुसार अवलेह या पाक बनाकर खिलाए जाते थे।
  • जैसे सितोपलादि अवलेह, अमृत प्राशा अवलेह, कूष्मांड अवलेह, जिरक़ादी अवलेह, द्राक्षावलेह, लक्ष्मी विलास अवलेह, कूष्माण्ड अवलेह
  • कुट्जावलेह, अष्टांगवलेह, गुलकंन्द अवलेह, च्यवनप्राश अवलेह आदि ४५ प्रकार के अवलेह ३५ से ५५ द्रव्यों से निर्मित किए जाते थे।
  • आयुर्वेद शास्त्रों में अवलेह या माल्ट निर्माण की ये प्रक्रिया ५००० साल से भी अधिक पुरानी है। क्योंकि माल्ट शीघ्र पच जाने से मरीज़ को ५ से ७ दिन में आराम मिलने लगता है।
  • इसीलिए पहले अवलेह या माल्ट का चिकित्सा में उपयोग होता था, ताकि ये तुरन्त आसानी से पच जायें और रोगी को तत्काल लाभ हो सके।
  • और आजकल शारीरिक श्रम की कमी के चलते अधिकांश लोगों नर हो नारी का पाचन तन्त्र ख़राब रहता है। भोजन आदि या दवा जल्दी और ठीक से नहीं पचता।
  • देश में ८२ फ़ीसदी लोगों का पेट ख़राब रहता है। कब्ज बनी रहती है। यकृत ठीक से काम नहीं करने से अनेक बीमारियाँ हो रही हैं।
  • आयुर्वेद में जिसे अवलेह कहते हैं। उसका अंग्रेज़ी नाम माल्ट है। माल्ट यानी एक प्रकार की मिक्स औषधि सप्लीमेंट होता है। यह एक तरह की आयुर्वेदिक लेह या चटनी है।

अवलेह या माल्ट बनाने की विधि

  1. आवला मुरब्बा, गुलकंद, सेव मुरब्बा, हरड़ मुरब्बा, गाजर मुरब्बा और अंजीर, मुनक्का, काजू, बादाम, पिस्ता, छुहारा मेवा आदि को रोगानुसार लेकर पीसने के बाद बहुत ही हल्की आँच यानी आग में तीन से ४ दिन तक सिकाई करते हैं।
  2. माल्ट यानी अवलेह में भाव प्रकाश निघण्टु, अष्टांग हृदय ग्रंथों में लिखे रोग अधिकार के मुताबिक़ १२ से २० जड़ी बूटियों जैसे अशोक छाल, लोध्र, दशमूल, शतावर, सनाय आदि को साफ़ कर जौकूट् करते हैं ।
  3. जौकुट किए गये द्रव्यों को सोलह गुना शुद्ध RO के पानी में २५ से ३० घंटे गलाने के बाद मन्दाग्नि में २४ घण्टे तक इतना उबालते हैं, ताकि एक चौथाई द्रव्य यानी काढ़ा शेष बचे।
  1. उबले हुए काढ़े को सिके हुए मुरब्बा,मावा पेस्ट में मिलाकर पुनः सिकाई करते हैं। पूरी तरह अवलेह पकने के बाद आयुर्वेद सार सहिंता, रस तन्त्र सार आदि शास्त्रों में रोग के हिसाब से बताए अनुसार रस भस्म, pishti का मिश्रण किया जाता है और अवलेह ठंडा होने पर ८ से १० मसाले, गर्म मसाले जैसे इलायची त्रिकटू चतुर्जात, जायफल, कालीमिर्च, मिलाकर २० से ३० दिन तक स्टील ड्रम में रख देते हैं।
  2. क़रीब तीस दिन बाद माल्ट को काँच की शीशी में पैक करने से पहले अच्छी तरह छानकर लेब टेस्ट की रिपोर्ट ओके आने के बाद पैक किया जाता है!

आयुर्वेद सत्य है –सत्य की सदा विजय होती है।

सत्ये नास्ति भयं क्वचित

  • अर्थात् सत्य को कभी कहीं किसी प्रकार का भय भी नहीं रहता।
  • आयुर्वेद सिद्धान्त ध्रुव एवं सत्य है, यूरोप आदि शीत कटिबन्ध निवासियों के आहार-विहार की ओर दृष्टि रखकर अद्यावधि जितनी एलोपैथिक आदि औषधियाँ बनी हैं, वे उनके लिए चाहे हितकारी हों, परन्तु हमारे महर्षियों का यह कथन पूर्ण सत्य है कि :

यस्य देशस्य यो जन्तुस्तज्जं तस्यौषधं हितम्!

  • अर्थात् जो प्राणी जहां जन्मा है, उसके लिए उसी देश के औषधि एवं आहार-विहार हितकारी होते हैं। यानी देशवासियों के लिए भारतीय औषधि अन्न और विहार ही हितकारी हैं।

विश्व कल्याण के लिए

  • वेदों के अनेक सूक्तों में आयुर्वेदोपदेश का विवेचन किया है कि किस प्रकार प्राणिमात्र नाना महौषधियों से आयु और आरोग्य का रक्षणकर दीर्घायु प्राप्त कर सभी असाध्य आधि व्याधि भयंकर रोगों से छुटकारा पा सकता है।
  • वेद या आयुर्वेद के सूत्र रूप से कहे हुए इन गूढ़ सूक्तों तथा मंत्रों के गम्भीर अर्थ को यथावत् जान लेना भावी अल्पज्ञ सन्तानों के लिए टेड़ी खीर है।
  • आयुर्वेद की इस भावना से प्रेरित हो, सम्पूर्ण जगत् के रोग विकार से राहत देने हेतु आत्रेय, भारद्वाज, काश्यप, पाराशर, सुश्रुतादि महर्षियों ने इन वेद सूक्तों के विस्तृत व्याख्यान रूप आयुर्वेदिक संहिता ग्रन्थों की रचना की थी। इनमें से कतिपय कालवशात् लुप्तप्रायः हो गये हैं।
  • वर्तमान काल में केवल अत्रिसंहिता, भेलसंहिता, काश्यप संहिता, चरकसंहिता, सुश्रुत संहितादि थोड़े से संहिता ग्रन्थ विद्यमान हैं।
    • वेदों की तरह इन संहिताओं में भी अर्थगाम्भीर्य एवं मनुष्यों के उत्तरोत्तर बलबुद्धि के हास का अनुभव कर वाग्भट्ट, वृन्द, वंगसेन, चक्रपाणि, गयदास, शार्ङ्गधर, विजयरक्षित, श्री कण्ठदत्त, हेमाद्रि, चन्द्रनन्दन, अरुणदत्त, डल्हण भावमिश्रादि अनेक आचार्यों ने इस आयुर्वेद संहिताओं पर व्याख्यायें व स्वतन्त्र ग्रन्थ रचनाएं की हैं। इन धान्वन्तर आत्रेय साम्प्रदायिक संहिता ग्रन्थों के साथ-साथ भगवान् शंकर के सिद्ध साम्प्रदायिक ग्रन्थों का भी अवतार हुआ।
  • धान्वन्तरात्रेय साम्प्रदायिक ग्रन्थों में केवल वनौषधियों द्वारा जैसे चिकित्सा वर्णन है, वैसे ही सिद्धरसार्णव, काकचण्डीश्वर, रसरत्नाकरादि सिद्धसाम्प्रदायिक ग्रन्थों की चिकित्सा में पारदादि, रसोपरस स्वर्णादि धातुपधातु हीरकादि मणि आदि का महत्त्व है।
  • सारांश यह है कि उपर्युक्त सभी ग्रन्थ संस्कृत में अपने-अपने विषयों का वर्णन करने वाले हैं।
  • आयुर्वेद के सभी घटक बेस्वाद होने से मरीज़ खा नहीं पाते थे। कड़वे चूर्ण खा पाना बहुत बड़ी दिक़्क़त थी।
  • आयुर्वेद के सभी चूर्ण या पाउडर पेट में जाकर आँतों को संक्रमित करते हैं जिससे गुर्दा किडनी लिवर क्षतिग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि आयुर्वेद का कोई भी पाउडर या चूर्ण बिना परिश्रम या मेहनत के पचाना मुश्किल होता है।
  • सारंग्धर सहिंता के एक संस्कृत श्लोक में अवलेह -पाक-रसक्रिया प्रकरण में वर्णन है कि

क्वाथादीनां पुनः पाकात् घनत्वं सा रसक्रिया!

सोऽवलेहश्च लेहःस्यात्तन्मात्रा स्यात् पलोन्मिता!!

  • अर्थात् रस युक्त जड़ी बूटियों का क्वाथ (काढ़ा), रस, मुरब्बा,मेवा, फाण्ट आदि को फिर पकाकर जो गाढ़ा किया जाता है, उसको रसक्रिया, अवलेह और लेह कहते हैं। (इसके पाक दो तरह के होते हैं, जो चटनी जैसा चाटने योग्य वह अवलेह और जो गाढ़ा, सूखा, बर्फ़ी जैसा हो उसे पाक कहते हैं।
  • आयुर्वेद सार संग्रह में अवलेह या माल्ट की मात्रा ४ तोला यानी ५० ग्राम तक निर्धारित है। किन्तु मात्रा का वास्तविक निश्चय रोगी की उम्र, बल तथा रोग स्थिति के अनुसार करना चाहिए।
  • आजकल के अल्प बल और कमजोर पाचन वाले व्यक्तियों के लिए सामान्यतः १ से २ तोला १२ से २५ ग्राम तक की मात्रा पर्याप्त है।
  • अवलेह में पड़ने वाले आवला मुरब्बा, काष्ठौषधियाँ तथा सुगन्धित औषधियाँ अलग-अलग कूट पीसकर डालते हैं और दाख, काजू, अंजीर, नारियल की गिरी और बादाम, पिस्ता आदि के छोटे-छोटे टुकड़े खस के बीज, चिरौंजी आदि मिलाकर बनाने से पुराने से पुराने ज़िद्दी रोग देह त्याग कर भाग जाते हैं

अवलेह/MALT खाना और पचाना दोनों आसान-

  • सीधे तौर पर रस भस्म, चूर्ण, गोली, टेबलेट, कैप्सूल जल्दी पचते नहीं हैं और इनकी खुराक भी पूरी नहीं पहुँचने से रोगी को जल्दी आराम नहीं मिलता।
  • जैसे शतावर चूर्ण या कोई भी पाउडर की मात्रा एक दिन में ३ से ५ ग्राम लेना ज़रूरी है जबकि केप्सूल ५०० MG यानी आधा ग्राम के ही होते हैं।
  • माल्ट में चूर्ण का अर्क आसानी से मिल जाता है स्वर्ण माक्षिक भस्म, वंग, त्रिवंग भस्म, प्रद्रान्तक लौह आदि को माल्ट में इसलिए मिलाया है ताकि तन, मन को कोई हानि न होवे।
  • माल्ट स्वादिष्ट होने से रस रक्त में मिलकर असाध्य जटिल रोगों को दूर कर शरीर को सुदृढ़ बनती है। जिन कमजोर मरीज़ों को भस्म चिकित्सा से फ़ायदा नहीं होता हो उन्हें माल्ट में मिली भस्म का सेवन शीघ्र लाभकारी सिद्ध होता है।
  • वर्तमान जीवन शेली शारीरिक रूप से श्रमहीन और मेहनत रहित होने के कारण आयुर्वेद के माल्ट खाने की सलाह दी जाती है।

सिरप SyRUP में होता है शक्कर का भण्डार

  • कोई भी सिरप लेना अत्यंत अनिष्टकारी हो सकता है क्योंकि कि २०० Ml की शीशी में १० से १५ फ़ीसदी एक्सटेक्ट, ३ फ़ीसदी प्रिजर्वेटिव, १४ फ़ीसदी काढ़ा होता है शेष शक्कर होने से किडनी, लिवर ख़राब कमजोर होने लगते हैं।
  • आयुर्वेद की व्याख्या प्राचीन आचार्यों ने निम्न वचन से की है-

आयुर्हिताहितं व्याधेनिदानं शमनं तथा।

विद्यते यत्र विद्वद्भिः आयुर्वेदः स उच्यते॥

  • जिसमें आयु के हित (पथ्य आहार-विहार) अहित (हानिकर आहार-विहार), रोग का निदान और व्याधियों की चिकित्सा आदि का व है, उसे विद्वान् मनुष्य आयुर्वेद कहते हैं।
  • आयुर्वेद शास्त्र में रोग, उपद्रव, ऋतु, दूष्य, देश, काल, औषधि बल, अनल, प्रकृति आदि का पूर्ण विचार करके ही प्रयोग लिखे हैं।
  • अमृतम ने हज़ारों साल पुरानी इसी परम्परा को निभाते हुए माल्ट का निर्माण किया है।विशुद्ध औषधि परिचय – श्री वाग्भटाचार्य ने लिखा है कि-

प्रयोगः शमयेद्व्याधि योऽयमन्यमुदीरयेत्!

नाऽसौ विशुद्धः शुद्धस्तु शमयेद्यो न कोपयेत्!!

(अ.हृ.सू. स्था अ. १३-१६ )

  • अर्थात् औषधि उसे कहना चाहिए जो व्याधि का शमन करे। एक रोग का शमन करके दूसरा रोग उत्पन्न करे, उसे अशुद्ध (अनुपयोगी) जाननी चाहिये। जो रोग का शमन करे ओर कुछ भी विकृति न करे, उसी को शुद्ध लाभदायक औषधि समझनी चाहिये।

आयुर्वेदिक अवलेह या माल्ट गोलियों से क्यों बेहतर है?

  • आयुर्वेद में केवल उन्हीं पदार्थ या द्रव्यों की गोली बनाने का विधान है जिसमें मादक पदार्थ जैसे अहीफेन यानी अफ़ीम, भांग, गाँजा आदि का मिश्रण हो क्योंकि ये अत्यधिक कम मात्रा में दी जाती हैं।
  • मादक पदार्थों के अलावा भयंकर दस्तावर इच्छाभेदी वटी जो कि जमालघोटा से बनाई जाती है या फिर स्वर्ण, रजत, चाँदी, ताँबे, जरता आदि धातु से निर्मित गोलियाँ ही तुरंत लाभकारी सिद्ध होती हैं।
  • आज के दौर में इन्हें सिद्ध कर पाना ही बहुत जटिल कार्य हैं। दूसरी ख़ास बात ये भी है कि गोली को पचाने के लिए कसरत, अभ्यंग करना भी आवश्यक होता हैं।
  • आयुर्वेद की कोई भी गोली दूध के साथ लेना उचित रहता है। वर्तमान में २५० mg चूर्ण आदि की जो गोलियाँ बनाई जा रही हैं, तो समझ लें कि उनमें २०० मिग्रा चूर्ण होता है।
  • केप्सूल माल्ट की तरह प्रभावी तो नहीं है इसे लंबे समय तक लेना बहुत ज़रूरी है। NARI Sondary केप्सूल में कोई भी गरिष्ठ उत्पाद नहीं मिलाये हैं। ये पूर्णतः हानिरहित होते हैं।
  • केप्सूल उन महिलाओं के लिए विशेष हितकारी हैं जो मीठा खाने से परहेज़ करती हैं या जिन्हें ज़्यादा मधुमेह बना रहता हो।
  • नारी सौन्दर्य कैप्सूल एक बेहतरीन इम्युनिटी बूस्टर उत्पाद है कमजोर महिलाओं को हमेशा रोज़ एक cap लेना उनके बल को बढ़ाएगा। अनेक समस्या से मुक्त करेगा!
  • चालीस साल की आयु पार कर रहीं महिलाओं के लिए नारी सौंदर्य माल्ट 40+ ज़रूर लेना चाहिए। यह मैनोपॉज यानि नष्टार्तव को रोकने में अदभुत है।

कुमारी सौंदर्य माल्ट Kumari Soundarya Malt

  • युवा अवस्था में बच्चियों को पित्त असंतुलित रहने से उनको चिड़चिड़ापन और पेट ख़राब बना रहता है
  • खाया पिया पचता नहीं हैं भूख नहीं लगती पेट साफ़ नहीं होटस आदि समस्या बच्ची के मासिक धर्म को अनियमित तो करता है साथ ही उन दिनों पेडू का डर कमर दर्द भी बहुत होता है
  • युवा अवस्था में कदम रखने वाली युवतियों के लिए कुमारी सौंदर्य माल्ट Kumari Soundarya Malt वरदान है।
  • गुलकंद युक्त होने से मन को शांत रखता हैं पढ़ाई में मन लगता है
  • अनियमितता जैसी समस्या से निजात दिलाता है!
  • Mahawari saf ya Khullar samay par नहीं आने से चेहरे पर कील मुहाँसे, दाग आदि होने लगते हैं उसने ये अत्यंत फ़ायदा करता है।

सौंदर्य में वृद्धि करता है

कामुक विचार आने से रोकता है।

हरड़ मुरब्बा आरसी रसायन औषधि होने से शरीर की गश्त पूरे बनाने में सहायक है।

आवला मुरब्बा एंटीऑक्सिडेंट द्रव्य है जो नाड़ी कोशिकाओं में प्राण वायु का संचार करता है।

माल्ट ख़ूबसूरती बढ़ाने में विशेष कारगर है।

  • विवाह बाद संतान उत्पत्ति में बाधा नहीं आने देता क्योंकि ज़्यादातर मामले में जिन बच्चियों को पीरियड आना आरंभ होता है तो वे बहुत तकलीफ़ उठाती हैं और आरम्भ से बिगड़ा ये क्रम भविष्य में बीमारियों का अंबार लगा देता है।
  • सुन्दरता में किम आती है हीनभावना से ग्रस्त हो जाती है आगे शादी के बाद भी ये समस्या दूर नहीं होती और दोनों में अलगाव की स्थिति बनने लगती है।
  • पीरियड शुरू होते ही यदि केस माल्ट खिलाया जाए तो भविष्य में अनेक नारी विकारों से बचाव होता है। बुढ़ापा जल्दी नहीं आता।
  • शतावर शक्ति प्रदान करता है और वक्ष स्थल को ढीला नहीं होने देता। लटकाने नहीं देता।
  • गोखरू बूटी मूत्र मार्ग की शुद्धि कर पेशाब खुलकर लाता है।
  • गाजर बीज योनि में गन्दगी नहीं पनपने देता। बदबू मिटाता है। माहवारी के दर्द को दूर करता है।
  • दस जड़ी बूटियों के मिश्रण को दशमूल कहते हैं। पेडू या कमर दर्द नाशक हैं। इसमें मिले मसाले कर को बैलेंस कर फेफड़ों को संक्रमण से बचाते हैं।

महिलाओं के तन-मन की मालिन्य और मलीनता मिटाएँ माल्ट

  • अमृतम के तीन नारी उत्पाद सभी आयु वर्ग की नारियों के गुप्त शारीरिक बीमारियों दूर करने में विशेष कारगर हैं।
  1. Nari Sondary Malt
  2. Nari Soundarya Malt ४०+
  1. कुमारी सौंदर्य माल्ट
  • सादा नारी माल्ट औषधि के साथ साथ आयुर्वेदिक सप्लीकेंट भी है जिसे ताउम्र लिया जा सकता है यह रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि कर यौवन को बरकरार रखता है। बुढ़ापा जल्दी नहीं आने देता।

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