बीमारियां किन कारणों से फैलती हैं?

चरक संहिता और चिकित्सा चंद्रोदय ग्रंथानुसार शरीर की सारी बीमारी की जड़ हमारा पाचनतंत्र है। लिवर की खराबी से मेटाबॉलिज्म डिसऑर्डर के कारण पाचन संस्थान गड़बड़ होने से पेट में अनेक रोग उत्पन्न होने लगते हैं।

खूबसूरती बढ़ाने के लिए लिवर दुरुस्त रखना जरूरी है

सुंदरता में कमी, चेहरे के निशान, कील मुहांसे, दाग धब्बे, झुर्रियां प्रदूषित भोजन-जल एवं कुपोषण के कारण आजकल सभी का पेट गड़बड़ है। उदर की अनेक समस्या के कारण लिवर खराब हो चुका है।
आयुर्वेद की खोज में जीवन खपा दिया

पिछले 38 सालों से आयुर्वेद के 5000 वर्ष प्राचीन ग्रंथों का गहन अध्ययन कर यकृत (लिवर/Liver) की सुरक्षा, हेतु और सभी तरह के लिवर विकारों और पेट की बीमारियों को जड़ से दूर कर आपको सपरिवार स्वस्थ्य बनाने के लिए यह आर्टिकल, लेख आपकी बहुत मदद करेगा।
पेट और लिवर की बीमारियों में मददगार 54 जड़ी बूटियों के फायदे जानकर हैरान हो जाएंगे।
पाचन क्रिया के दुश्मन नकारात्मक विचार

इस भौतिक और दिखावटी युग में हर कोई चाहकर भी नकारात्मक विचारो या निगेटिव थिंकिंग से मुक्त नहीं रह सकता। सम्पूर्ण वातावरण दूषित होने से घर-घर में नकारात्मक विचारों ने अपनी जड़े जमा ली हैं।इस नकारात्मक दुष्प्रभाव के कारण सम्पूर्ण विश्व में 80 – 90 प्रतिशत लोग स्वस्थ नहीं है।
व्यक्ति चाहकर भी इससे पीछा नहीं छुड़ा पा रहा है। इसी कारण शरीर का मुख्य हिस्सा पाचन तन्त्र बुरी तरह बिगड़ रहा है। बिना अंग्रेजी दवाओं के रह पाना अब असंभव प्रतीत होता है।
वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि जब भी हम नकारात्मक विचार कर तनाव को उत्पन्न करते है, तो हमारे मस्तिस्क में स्थित न्यूरोकेमिकल्स सही काम नहीं कर पाते, नतीजा एसिड का रिसाव बढ़ जाता है और पाचन क्रिया सहित शरीर की पूरी कार्यप्रणाली गड़बड़ा जाती है।
आँतों में संक्रमण होने लगता है। चयापचय क्रियाएं शिथिल होकर खून की आपूर्ति घट जाती है और अम्ल की बढ़ोतरी होने से एसिडिटी, पेट दर्द, अफरा खट्टी डकारें आना, गैस बनना, अपच, पतले दस्त आंव, कब्ज, पेट फूलना, उल्टी की इच्छा होना आदि लिवर की खराबी का संकेत है।
ज्यादा समय तक पेट की और पाचन संस्थान की लगातार खराबी के कारण अक्सर कब बना रहता है। या ज्याद चिता शारीरिक चिन्ता के कारण पेट में अल्सर भी हो सकता है।
समस्त बीमारियों की वजह कमजोर लिवर

कब्ज Constipation रहना, गैस, वायु विकार, अफरा, खटटी डकारे, अम्लपित्त (एसिडिटी), बैचेनी, मरोड़, ऐठन, पेट दर्द, अजीर्ण, जी मिचलाना, अरुचि, खाने की इच्छा नही होना, हिचकी।
यकृत (Liver) मानव हमारे शरीर से विषैले पदार्थों ‌‌‌‌को बाहर निकालने में सहायक है। शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन, पाचक रस, खून, सप्तधातु और वीर्य लिवर ही बनाता है।
तेजी से फैलता संग्रहणी रोग यानि आईबीएस

लिवर की खराबी से आमातिसार, संग्रहणी यानि इरीटेबल बाउल सिंड्रोम iBS तेजी से बढ़ रहा है।यह आँतों का रोग है जिसमें पेट में दर्द, बेचैनी व मल-निकास में परेशानी आदि होते हैं। इसे स्पैस्टिक कोलन, इरिटेबल कोलन, म्यूकस कोइलटिस जैसे नामों से भी जाना जाता है।
यह आंतों को खराब, तो नहीं करता लेकिन उसके संकेत देने लगता है। पुरुषों की तुलना में महिलाएं इस बीमारी से अधिक प्रभावित होती हैं। चित्रक मूल, जीरा और सौंफ, गुड़, हरड़ युक्त आयुर्वेदिक टॉनिक एक बेहतरीन इलाज है।
लीवर जब खराब होना शुरू होता है, तो आरंभिक शारीरिक परेशानी या लक्षणों से पहचाना जा सकता है जो इस प्रकार हैं:-
भूख नहीं लगती। भोजन नहीं पचता। हर समय शारीरिक कमजोरी महसूस होती है और वज़न कम होना शुरू हो जाता है।
नींद कम आती है जिससे शारीरिक थकावट बनी रहती है। मानसिक भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है।
पेट में गैस एसिडिटी बनने लगती है, जिससे सीने में जलन होने से पेट में सूजन रहने लगती है और पेट का आकार बढ़ जाता है। मुंह में बदबू आने लगती है।
आंखों के आसपास काले घेरे, निशान, झुर्रियां, झाइयां, कील, मुंहासे होने लगते हैं। आंखें, नाखुन और पेशाब का रंग पीला हो जाता है।
सिरदर्द भारीपन, भय – भ्रम, चिंता, तनाव, कोध, मानसिक अशान्ति, आलस्य, काम में मन न लगना, जल्दी थकान होना, हॉफना, चक्कर आना, BP हृदय रोग।आदि।
उल्टी, शौच (लेट्रिन) में समय अधिक लगना। आँव , संगृहणी (iBS) आंतों में मल चिपकना, आँतो की कमजोरी, खुश्की, छाले, सूजन के कारण लिवर फैटी होने लगता है।
जिगर के रोग, पेट बढ़ना, तिल्ली, जलोदर, पेट के कीड़े, मन्दाग्नि, विषाग्नि, तीक्ष्णाग्नि, वातपित्त कफ का असंतुलन, खाँसी-जुकाम बने रहना।
अल्पायु में बुढ़ापा आना, चेहरे पर शिथिलता, कम्पन्न, सेक्स समस्या।
र्आखो की गर्मी, तलबों, सीने एवं पेशाब की जलन, पेशाब कम या बारबार आना, बल-वीर्य, की कमी आदि दिक्कतों से नया रस, रक्त, रज और वीर्य नहीं बन पाता जिससे शरीर कमजोर होने लगता है।
स्त्रियों के गुप्त रोग जैसे लिकोरिया, सोमराग, श्वेत प्रदर, माहवारी की अनियमितता, PCOD आदि।
आयुर्वेद की 54 यकृत रोग नाशक जड़ीबूटियां

भाव प्रकाश निघंटू और आयुर्वेद सार संहिता में करीब 54 द्रव्य घटक उपयोगी बताएं हैं। उनमें से मुख्य इस प्रकार हैं।
Kalmegh, Bhui aamla, Purnnrva, Aamla, Harad Murbba, Dhania, Nagar motha, Munkka, Arjun Chhal, Madhuyashthi, Chitrak Mool, Gulkand Ghrit kumari, Nilofar, Sarpankha, Punernava, Gulab,
Bhringraj, Giloy, Amaltas, Sanai, Nisoth, Kutaki, Vaividang, Pudina, Triphla, Elovera, Trikatu, sounf, tulsi, Revandchini, Makoy, kalimirch,
Vividang, Rohitak, Mandur bhasm, Swarnmakshik bhasm, Purnnva Mandur, Taptyadi Louh, Shankh Bhasm, Praval Panchamrit Etc
Keyliv में यकृत व्याधि नाशक विशेष जड़ी बूटियों का रस, अर्क काढा, मंडूर भस्म का अनुपातिक मिश्रण और गुण, फायदे निम्नलिखित हैं।
भाव प्रकाश निघंटू और द्रव्यगुण विज्ञान में उपरोक्त जड़ी बूटियों के गुण, उपयोग और फायदे विस्तार से लिखें हैं। जिसे संक्षिप्त रूप में दे रहे हैं।
लिवर की लाजबाब बूटी कालमेघ के फायदे – यकृत (लीवर) विकारों की सम्पूर्ण औषधि है। इसे यकृत सुरक्षा चक्र भी कहते हैं।
पाण्डु (पीलिया), हेपाटाईटिस आदि रोगों का समूल नाशकर पाचन तन्त्र मजबूत बनाकर भूख बढ़ाता है। पखाना साफ होता है। यकृत की खराबी के कारण उत्पन्न ज्वर, डेंगू आदि जीर्ण ज्वर में अति लाभकारी है।
गिलोय, गुडुची, अमृता के फायदे- अमृता, जीवन्ती, देवनिर्मिता, मधुपर्णी सोमल्ली और रसायनी गिलोय के संस्कृत नाम है नवीन अनुसंधानों से गिलोय का व्याधि प्रतिकारक, सर्वरोगनाशक गुण व्यापक रूप में प्रमाणित हुआ है। कोविड 19 के दौरान अनेक लोगों की रक्षा गिलोय ने ही की थी।
जीर्णपूर्ति केन्द्र (chronic septic Focus) जनित विकार, विकृत की कार्यहीनता से उत्पन्न विषम जीर्णज्वर, पुराना मलेरिया, डेंगू फीवर, कोरोना प्लीहावृद्धि, बस्तिशोध में यह विशेष उपयोगीहै।
गिलोय समस्त उदर रोग, अम्लपित्त, एसिडिटी, मूत्रविकार, शुक्रक्षय, वीर्य की कमी, पतलापन दूर करने में लाभकारी पोषक पदार्थ हैं। आँतो को क्रियाशील बनाता है।
कुटकी- के फायदे इसकी क्रिया आंतों व यकृत् पर होती है। प्रतिदिन निश्चित समयावधिका ज्वर शीतज्वर, कामला, पांडु, यकृत विकार, कुपचन संग्रहणी, आन्त्र की शिथिलता तथा बच्चों के पेट में कीड़े पड़ना, कृमिविकारों में उपयोगी।हृदय हितबारी।
त्रिफला धनसत्व के फायदे- हरड़, बहेड़ाएवं आँवला के मिश्रण से निर्मित त्रिफला शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानि इम्यूनिटी में वृद्धि तथा अस्वस्थ्य कोशिकाओं को क्रियाशील बनाता है।
द्रव्यगुण विज्ञान के अनुसार त्रिफला नवीन स्वस्थ्य कोशिकाओं के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती है, जिससे जीवनीय शक्ति प्रबल होती है और बुढ़ापा जल्दी नहीं आता।
सभी प्रकार के नेत्र रोग, रक्त विकार सूजन कामला, पीलिया (ज्वाइंडिश) पुरानी कब्जियत Chronic ConstiPation) आदि उदररोगों को दूर करता है।
भांभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र के वैज्ञानिक डा. के.पी मिश्र के मुताबिक त्रिफला से घातक परमाणुविकिरण और कैंसर तक का उपचार संभव है। कई प्रकार की एलर्जी, स्किन समस्या एवं मोटापे में भी उपयोगी है।
लिवर पर कासनी के फायद- बार-बार मलेरिया, ज्वर, डेंगू फीवर, कोरोना जैसे संक्रमण से उत्पन्न प्लीहावृद्धि एवं यकृतरोगों में उपयोगी।
पित्तशामक, शोथहर, पैत्तिक विकार, शिरःशूल, कामला, वमन एवं महिलाओं के आर्तव विकारों में लाभकारी।
भृंगराज/भांगरा के फायदे – यकृतरोगो के कारण उत्पन्न त्वचा रोगों का नाशक। बुद्धि को तीव्र, तेज बनाने वाला रसायन (मेध्यो रसायन:) आंत्र वृद्धि शिरोरोग पाण्डुरोग, खून न बनना, हृदय रोग एवं अन्य अंग्रेजी दवाओं के विष प्रभाव का शामक/नाशक।
भृंगराज लिवर पर विशेष क्रिया कर नवीन रस, रक्त, बल, वीर्य की वृद्धि करता है। पाचन की सभी क्रियाएँ ठीक होती है।
यकृत की कमजोरी, यकृत वृद्धि या फेटी लिवर कामला, (पीलिया) अर्श/पाइल्स (बवासीर-काँच निकलना) उदररोग, चक्कर आदि में इससे बहुत लाभ होता है
पित्त दोष, पाचन और लिवर की खराबी से बालों का झड़ना, टूटना, गंजापन रोकने में मददगार है और बालों को लम्बा, कला क्रिया है। नेत्र रोगों में भी कारगर है।
वायविडंग के फायदे – पेट के सभी प्रकार के क्रमियों (कीड़ों) तथा त्वचा रोगों को नष्ट कर खून साफ करता है। पेट के अति सूक्ष्म कृमि, बच्चों के पेट में कीड़े, केंचुआ आदि साफ करता है।
ग्रहणशक्ति एवं धारणा शक्ति में वृद्धि करने वाली विशेष बूटी। यकृत रोग के कारण उत्पन्न सिरदर्द, आधासीसी, माइग्रेन, न्यूमोनिया तथा छाती, गले के दर्द में उपयोगी। बच्चों के रूखा रोग, वायुविकार पेट फूलना, अफरा, पेट दर्द, कुपचन एवं अग्निमांघ में विशेष लाभकारी।
मुनक्का – द्राक्षा के फायदे – लाजवाब कब्ज नाशक। द्राक्षासव एवं दाक्षारिस्ट आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधियाँ मुनक्के से ही निर्मित होती है। मल-मूत्र की प्रवृति कराने वाले ज्वर, श्वास, वातविकार, कामला(Joindice), यकृत में खराबी के कारण रुक रुक कर पेशाब आने की शिकायत को दूर करता है। रस, रक्त, बल, वीर्य, भूख वर्धक।
मुनक्का पांडूरोग, शरीर की कमजोरी, ज्वर, हाथ पैर, तालबों व पेशाब की जलन दूर कर शौच साफ लाता है।
आमला मुरब्बा के फायदे
बढ़ती आयु के दुष्प्रभाव को रोके।
शारीरिक मानसिक विकारों का नाशकर नवीन ऊर्जा प्रदान करे।
बालों के अनेक रोगों को दूर कर सफेद होना एवं गिरना, टूटना, झडना रोके।
रक्तचाप नियन्त्रित करें।
नेत्र ज्योति बढ़ायें।
मधुमेह विकारों में उपयोगी।
रक्त में वृद्धिकारक। लाल रक्त कणों (WBC) का निरन्तर निर्माण कर हिमोग्लोबिन बढ़ाये।
ग्वारपाटा सत्व ALOEVERA के फायदे
क्षत कोशिकाओं को पुन, जीवन प्रदान करें।
रक्त को शुद्ध कर रक्त का संचार सही करे।
चर्मरोग, एलर्जी, व त्वचारोगों में हितकारी।
जीर्ण शीर्ण असाध्य रोगों में विशेष उपयोगी।
पेट व पाचन शक्ति को बेहतर बनाकर मधुमेह, यकृत रोग, फेटी लिवर, सूजन एवं हृदय रोगों की संभावना को कम करता है।
Proven Result in – Diabetes, Acidity, Arthritis, pimples Allergy Eczema, pilep & Emmune System & more
कालीमिर्च – के फायदे – इसके सेवन से आमाशय की शिथिलता, कमजोरी दूर कर नए रस की वृद्धि होती है और पाचन क्रिया सुधरती है। यह चर्बीनाशक है। पेट का बाहर निकलना रोककर आसपास की चर्बी को कम करती है। वायुविकार अपचन प्रवाहिका (wetery Diarrhoea) में उपयोगी
अमलताश – के फायदे – स्वर्णाङ्ग, स्वर्णफल, सुवर्णक, व्याधिधात ओर राजवृक्ष ये अमलताश के अन्य नाम है। सर्वरोग व्याधिनाशक होने के कारण इसे राजा-महाराजा अपने महलों में लगाया करते थे। जिन्हें कब्जियत की हमेशा शिकायत रहती हो या पुराना कब्ज हो उन्हें अति लाभकारी है।
अमलताश सभी नए पुराने मल का विसर्जन कर पेट का भारीपन मिटाता है। मृदु विरेचनों (हल्का दस्तावर) में सर्वश्रेष्ठ है। असाध्य लिवर डिजीज के कारण रक्त (ब्लड) की उष्णता (खून में गर्मी) तथा उच्च रक्तचाप बीपी को नियंत्रित करता है। ज्वर, मलेरिया एवम मधुमेह, कीटनाशक है।
मधुयष्टी (मुलेठी) के फायदे –
सुस्रिग्धा शुक्ला केश्या स्वर्या पित्तानिलास्त्रजित। अर्थात वर्ण को सुन्दर कर खूबसूरती बढ़ाने वाली, बालों को हितकारी। वात-पित्त-कफ (त्रिदोष) नाशक। यकृत की खराबी से उत्पन्न फेफड़ो, क्षय (टीबी) रोग को दूर करती है। आमाशयिक अम्ल यानि एसिडिटी, शूल (दर्द) को हरने वाली।
गुलकन्द (प्रवालयुक्त) के फायदे – सर्व उदर रोग निवारक, गर्मी नाशक, पित्त प्रकृति वालों के लिए सर्वोत्तम। पित्त की अधिकता से ही लिवर में दिक्कत होती है। गुलकंद इसके लिए अमृत है।
गुलकंद मृदु सारक हल्की दस्तावर होने से मल अवरोध को दूर मल प्रवृती साफ करता है।
भूख बढ़ाकर, शरीर को पुष्ट बनाये।
पित्तज एवं खूनी बवासीर में अति उपयोगी। पेट में हल्कापन प्रदान करती है। गर्मी में होने वाले रोगों जैसे तलवों व हाथ-पैरों की जलन, चेचक, छोटी माता आदि से उत्पन्न गर्मी आँखे छाती, सीने, पेट, मल मूत्र एवं आँखो की जलन अम्लपित्त, पाचन सम्बन्धी पेट दर्द, उदरशूल Acid – peptic n Disorder), भ्रम चक्कर आना खाँसी आदि विकारों में लाभकारी है।
अर्जुन- के फायदे- यकृत की शिथिलता से होने वाले हृदय विकार क्षतक्षय, रक्तविकार, रक्तपित्त, प्रमेह, मधुमेह, एवम ज्वर में उपयोगी।
चित्रक मूल – के फायदे – केन्द्रीय वातनाही संस्थान Central NERVOUS System उत्तेजित कर शरीर की शिथिलता आलस्य का नाश करता है। अग्निदीपक गर्भाशय संकोचक, बवासीर, यकृतशोथ, पाण्डुरोग नाशक। मंदाग्नि, भोजन से अरुचि।
अपचन, पेट के वायु विकार, आमातिसार (DYSENTERY) संग्रहणी यानि बार बार दस्त आने की बीमारी, जरा सी गैस निकलने पर वस्त्र गंदा हो जाना।
चित्रक, त्रिफला आदि द्रव्य पाचक स्त्रावों की वृद्धि कर खाया हुआ जल्दी पचाता है। अच्छी भूख लगती हेमरवाया हुआ जल्दी पचाता है। भूख अच्छी लगती है। यकृत एवं प्लीहा वृद्धि में विशेष उपयोगी।
दारुहल्दी के फायदे – दूषित पाचन, मन्दाग्नि नाशक, पित्त विरेचक, अपची, कुपचन, भगंदर, प्रदर, प्लीहा वृद्धि एवं कामला में हितकारी
सौंफ – के फायदे – पेट, पेशाब की जलन, गुड़गुड़ाहट, अफरा और वायुविकार में उपयोगी।
पेट की कड़क नाड़ियों या नसों को ढीलाकर फेट बार-बार धन जाना, पेट उतरना आदि में कारक, समस्त अज्ञात पाचन विकार एवं प्लीहा वृद्धि में हितकारी।
तुलसी – के फायदे – यकृत व पेट की खराबी से पेट में मल सड़ने लगता है, जिससे शौच के समय भयंकर दुर्गन्ध आती है।
दुर्गन्धयुक्त वायु विकार, मल विसर्जन में तुलसी दुर्गन्धनाशक एवं प्रतिदूषक है। बच्चों के यकृत वृद्धि, विष युक्त यकृत की शुद्धि कर पाचन क्रिया सुधारता है। रक्तप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने वाली।
नागरमोथा – के फायदे – चयापचय यानि मेटाबॉलिज्म करेक्ट न होने से यकृत की कमजोरी के कारण खराब जीभ का स्वरूप अच्छा कर पेशाब का पीलापन दूर करता है। प्रसूता के दूध की शुद्धि तथा वृद्धिकारक। स्तन्य को सुडौल बनाता है। अरुचि, अर्थात भोजन के प्रति रुचि बढ़ाता है।
भूमि आमला- के फायदे – यकृत की सूजन को कम करने में सर्वश्रेष्ठ है। पेट के अनेक रोग इसके प्रयोग से ठीक होते हैं। यकृत-प्लीहावृद्धि, दाह मूत्र रोग, रक्त विकार में उपयोगी। पाण्डुरोग (पीलिया) में विशेष उपयोगी।
पुरानी ऑव अपच का नाश कर नवीन आंव (Amueboisis) नहीं बनने देती। यकृत एवं प्लीहा वृद्धि में विशेष लाभकारी।उदररोगों को दूर करने वाली। कफ पित्त नाशक।
आरोग्य वर्धनी वटी के फायदेसूखे हुए माल को ढीला कर, प्रातः उठते ही शौच के लिए प्रेरित कर पकाना एक साथ साफ लाती है। मल की शुद्धि करती है।मोटापा, चर्बोनाशक, अत्यन्त भूख वर्षक। पाण्डु कामला, अजीर्ण (Indigesion) रक्तविकार तथा यकृत रोगों में लाभकारी।
पुनर्नवादि मंडूर – के फायदे – यह आयुर्वेद्‌ की प्रसिद्ध महोषधि है। यह पाण्डुरोग, कामला, जलोदर आदि में उपयोगी है। पीलिया, उदररोग, अर्श तथा गुल्मनाशक एवं रक्तवर्द्धक है।
नावायस लौह- के फायदेखून (हीमोग्लोबिन) की कमी, मंदाग्नि जीर्ण ज्वर व यकृत रोगों में लाभकारी | पाचन ठीक करता है।
सूतशेखर रस – के फायदेआंतों और उदार कोशिकाओं की कमजोरी से कुपचन होता है। जिसमें एसिडिटी, खट्टी डकारें गले व छाती की जलन, चक्कर आना, सिरदर्द हिचकी, ज्वर, मुंह, थूक सुखना आदि रोगों पर लाभकारी।
शंख भस्म – के फायदेअजीर्ण, पेट फूलना, पेट दर्द, कोष्ठ शूल, मल सूखना, संग्रहणी (आईबीएस) उदर विकार आदि में विशेष उपयोगी।
सिता – अति मधुर, रुचिकारक बात पित, रक्तविकार तथा गर्मी शान्त करने वाली शुक्र, वीर्य को उत्पन्न कर मूर्च्छा वमन तथा ज्वर को नष्ट करने वाली होती है।
यकृत/लिवर का आयुर्वेदिक उपचार

उपरोक्त असरदायक फार्मूले से निर्मित KEYLiV Strong Syrup, Capsule और MALT का नियमित प्रयोग अनेक साध्य असाध्य व्याधियों से मुक्ति दिलाता है।
कीलिव स्ट्रॉन्ग सिरप जिसमें विशेष यकृत ओषधि है। यह सभी उम्र के स्त्री पुरुषो वृद्धो व बच्चों के लिए सेवनीय है।
Keyliv लिवर (यकृत) की कमजोरी, शक्ति एवं प्लीहा वृद्धि, लिवर के क्षत-विक्षत कमज़ोर Liver के कारण पेट में दर्द, पुरानी कब्ज, मरोड़, दस्त साफ न होना, भूख न लगना शरीर में भारीपन व बचेनी रहना, स्वाद में कड़वापन, जी मचलाना, बार-बार उबकाई आना आदि अनेक यकृत रोगों से मुक्ति दिलाने में मदद करता है।
Keyliv Strong syrup

मात्र 10 दिन के नियमित उपयोग से होने वाले उदर विकार, कब्ज आदि से बचा रहता है तथा पीलिया होने की आशंका नहीं रहती।
यकृत की खराबी के कारण ही बवासीर, पाइल्स, पथरी, नेत्ररोग, सिरदर्द, गंजापन, बालों की सफेद, बालों का न बढ़ना, नाखूनों में दाग और खराबी आती है।
लिवर के क्रियाशील न होने के कारण ही पुरुषों में धातुक्षीणता, शीघ्रपतन, शुक्रदोष, शुक्राणु न बनना स्वपन दोष जैसे गुप्त रोग होने लगते हैं। इससे शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ और प्रसन्न नहीं रह पाते।
Keyliv विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम व अन्य मिनरल की प्राकृतिक रूप से पूर्ति कर गुदा, गुर्दे व त्वचा रोग से बचाता है। पेट की गंदगी को साफ कर देता है।

आयुर्वेद अमृत है। इससे सब संभव है। आप धैर्य और भरोसा रख सकें, तो 6 से 8 महीने निम्नलिखित दवाएं सेवन करें..
सुबह खाली पेट कीलिव माल्ट एक चम्मच दूध से लेवें।

दुपहर में भोजन पूर्व एक कीलिव कैप्सूल सादे जल से और रात को खाने से एक घण्टे पहले

2 चम्मच कीलिव स्ट्रांग सिरप 200 या 300 मिलीलीटर सादे पानी के साथ पियें।

परहेज- अरहर की दाल, रात को दही न खाएं (लेकिन सुबह मीठा दही ले सकते हैं नमकीन नहीं)
रात में फल, जूस, मठा, सलाद न लेवें।
खाने के तुरंत बाद पिया पानी, तो मिटा देगी जवानी….

खाने के तुरंत बाद पानी न पिएं। इससे पाचनतंत्र की अग्नि (जठराग्नि) शान्त हो जाती है, जिससे खाना पच नही पाता।
द्रव्यगुण विज्ञान ग्रन्थ के मुताबिक खाने के तुरन्त बाद जल लेने से उदर में भोजन सड़ेगा। फिर, सड़ने के बाद उसमें जहर बनेगा।
यही विष यूरिक एसिड बनता है, जो वात विकार का कारण है। ये तन का पतन कर, शरीर को शक्त और शक्तिहीन कर देता है।
स्वस्थ्य लिवर हेतु प्राचीन 32 नियम, आदतें अपनाएं

पेट की अनेक असाध्य बीमारी से बचने के लिए भोजन के एक घण्टे बाद पानी पीने की आदत बनाये, तो बुढ़ापे या जीवनान्त तक पाचनतंत्र की अग्नि मजबूत बनी रहेगी।
पाचन तंत्र की अग्नि को आयुर्वेद में जठराग्नि कहते हैं और जिसकी जठराग्नि यानि पाचनाग्नि मजबूत होती है, उसे कभी कोई रोग नहीं होता।
आयुर्वेद माधव निदान के अनुसार उदर में अग्नि उत्पन्न होगी, तो ही खाना पचेगा इससे पाचक रस बनेगा इसी रस से शरीर में आवश्यक प्रोटीन सहित माँस, मज्जा, रक्त वीर्य, हडिड्याँ, मल-मूत्र और अस्थि और सबसें अन्त में (चर्बी) का निर्माण होता है।
यह तभी सभंव है जब खाना पचेगा। मल-मूत्र का समय पर विसर्जन स्वस्थ शरीर हेतु आवश्यक है।
पाचनतंत्र की अग्नि को मजबूत बनाने के लिए सुबह खाली पेट सादा जल जरूर पियें तथा भोजन के बाद ही गर्म पानी का उपयोग करें।
चरक सहिंता के अनुसार सुबह बिना स्नान के नाश्ता या ब्रेक फ़ास्ट न करें। यहां तक कि बिना नहाए अन्न का दाना, बिस्कुट आदि भी न लेवें।
नहाने के पहले कुछ भी खाने से (पीने से नहीं) मन्दाग्नि रोग उत्पन्न होता है, जिससे भोजन ठीक से पचता नहीं है और यकृत रोग होने लगते हैं।
भोजन के बाद एक चम्मच Keyliv Strong Syrup लेने से अन्न जल्दी पचता है।
रात में खाने के बाद कुछ देर पैदल टहलना लाभकारी होता है।
रात्रि में दही, अरहर की पीली दाल, फल, जूस आदि पदार्थ पाचनतंत्र की अग्नि मंद या ठंडा कर देते हैं।
सप्ताह में एक बार धूप में बैठकर पूरे शरीर में तेल लगाकर मालिश करें।
जाने जठराग्नि के बारे में…परमात्मा ने सारी कायनात, शरीर के साथ दे रखी है। आयुर्वेद में शरीर को स्वस्थ रखने हेतु सैकड़ों सहज सरल समझाइस दी हैं। उदर में एक छोटा सा स्थान होता है, जिसे आमशय कहा जाता है। इसी को संस्कृत में जठर कहा गया है।
जठर यह एक थैली की तरह होता है जो कि मानव शरीर का महत्वपूर्ण अंग है ।क्योकि सारा खाना सर्वप्रथम इसी में आता है। खाना अमाशय में पहुंचते ही शरीर में तुरंत आग (अग्नि) जल जाती है। इसे ही जठर +अग्नि = जठराग्नि कहते है।
अमृतम जीवन प्रसन्न-मन हेतु जल का सदुपयोग कैसे करें | The Amrutam Ayurvedic Way of Drinking Water
खाने के तुरंत बाद पानी पीने से जठराग्नि शान्त हो जाती है, जिससे खाना पच नही पाता। उदर में भोजन सड़ेगा फिर सड़ने के बाद उसमें जहर बनेगा। यही विष यूरिक एसिड बनता है, जो वात विकार का कारण है। ये तन का पतन कर देता है। ये शरीर को शक्तऔर शक्तिहीन कर देता है।
आयुर्वेद में शरीर को स्वस्थ रखने हेतु सैकड़ों सहज सरल समझाइस दी हैं ।
उदर में एक छोटा सा स्थान होता है, जिसे आमशय कहा जाता है। इसी को संस्कृत में जठर कहा गया है। यह एक थैली की तरह होता है जो कि मानव शरीर का महत्वपूर्ण अंग है ।क्योकि सारा खानासबसे पहले इसी में आता है। खाना अमाशय में पहुंचते ही शरीर में तुरंत आग (अग्नि) जल जाती है। इसे ही जठर +अग्नि = जठराग्नि कहते है।
जठराग्नि स्वचलित है पहला निवाला उदर में गया कि जठराग्नि प्रदीप्त हुई। ये अग्नि तब तक जलती है जब तक खाना पचता है। अग्नि खाने को पचाती है। अब आपने खाते ही गटागट खूब पानी पी लिया इससे जो आग (जठराग्नि) जल रही थी वह बुझ गई।
तंदरुस्त जीवन हेतु हमेशा स्मरण रखें कि उदर में भोजन जाते ही दो क्रियाऐं होती है। फर्मेटेषन अर्थात भोजन का सड़ना, कब्ज होना।
उबकाई, या उल्टी, जी मचलाना, बैचेनी आदि इससे मुक्ति हेतु हम अंग्रजी दवाओं का सेवन करते है जो विशेष विषकारक और हानिकारक है जो किडनी, लीवर, आँतो को विकार युक्त बनाकर हृदयघात कर सकती है।
खाना पचने पर ही माँस-मज्जा, रक्त वीर्य हडिड्याँ बनती है। नही पचने पर बनता है यूरिक एसिड और इस जैसा ही दूसरा विष जिसे कहते है लाडेन्सीटी लियो प्रोटिव अर्थात खराब कोलेस्टाल और शरीर में ऐसे 103 विष है। यह सब शरीर को रोगो का घर बनाते है।
पेट में बनने वाला यही जहर जब ज्यादा बढकर खून मे आते है। तो रक्त हृदयनाड़ियों से बाहर नही निकल पाता और थोड़ा-थोड़ा विषरूपी कचरा जो खून में आया है वह इकटठा होकर हृदय की नाड़ियों को ब्लॉक कर देता है जिसे हृदयघात कहते है।
अतः भोजन के एक घण्टे पश्चात पानी पीना विशेष हितकारी है। जल हमारा कल है और कल को यन्त्र भी कहते है। शरीर भी हमारा यन्त्र है।
परमेश्वर ने भी प्राणियों की प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया पूर्ण करने में अनगिनत यत्न किए, तब इस यन्त्र रूपी तन की रचना हो सकी। तन दुरस्त है तो तन्त्र भी कुछ अनिष्ठ नही कर पाता।
जल जीव व जंगल दोनों के लिए जीवन है। जल से ही जीवतंता आती है लेकिन भरी गर्मी में वृक्ष या व्यक्ति को जल दिया कि जवानी खत्म अर्थात दोनो ही सूख जायेगे या मुरझा जायेगें।
जब हम खाना खाते है, जो जठराग्नि (उदर की अग्नि) द्वारा सब एक दूसरे में मिश्रण होकर खाना पेस्ट में बदलता है। इस क्रिया में करीब 60 या 72 मिनिट का समय लगता है। तत्पश्चात जठराग्नि बहुत धीमी होने लगती है।
पेस्ट बनने के बाद शरीर में रस बनने की प्रक्रिया शुरू होती है ,तब ही शरीर को पानी की जरूरत होती है। तब जितना पानी पी सकते है पीयें।
भोजन के एक घंटा पूर्व भी पानी पीना भी लाभकारी है क्योकि मूत्र पिंड तक पानी पहुँचने में करीब 50 – 60 मिनिट का समय लगता है।
अगर व्यक्ति पानी पीने के एक घंटे बाद भोजन ग्रहण करेगा , तो खाने के तुरंत बाद मूत्र विसर्जन की इच्छा तेजी से होगी और खाने के पश्चात पेशाब करने से किडनी सुरक्षित रहती है तथा मधुमेह रोग से बचाव होता है।
पानी से पेट के रोग होते है दूर…आयुर्वेद नियमों के अनुसार दिनभर में 7-8 लीटर जल धारण करना चाहिए।
जल द्वारा ज्वर ,जलन से रक्षा कर चहेरे पर झुरियाँ नही आने देता। खाली पेट जल पीना अमृत है।
बिना स्नान के भी अन्न बिस्किुट आदि न ले यह रोगकारक है।
विशेष आग्रह…

पाचनतंत्र की अग्नि को ताकतबर बनाये रखने के लिए भोजन के निबाले को खूब चबा-चबाकर खाना चहियें। जैसे पी रहें हों और पानी इतना धीरे पीना चाहिये कि जैसे खा रहे हों।
यही स्वस्थ जीवन अमृतम आयु का रहस्य है। हम शीघ्र ही एक अद्भुत जानकारी देंगे कि कैसे उस अदृश्य परम् सत्ता के महावेज्ञानिकों ऋषियों, ने प्राणियों की प्राण-प्रतिष्ठा की। पढ़ने के पश्चात ही हमारे प्रयासों का पता लगेगा।
यह जानकारी हमने आयुर्वेद के अनेकों ग्रंथों, पुस्तकों, एवम शरीर विज्ञान से संग्रहित की है।

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