आजकल बहुत सारे छोटे बच्चों को चश्मा लग जाता है, इसके कारण क्या हो सकते हैं ?

  • सात दिन में एक बार त्रिफला चूर्ण से आंख और बाल धोने का आयाम था। बचपन में लगभग सभी बच्चों को माताएं एक ग्राम त्रिफला चूर्ण दूध या पानी से सेवन करती थी, ताकि कब्ज के कारण काफ की अधिकता न हो।
  • पुराने समय बुजुर्ग लोग बचपन से ही बताशे को देशी घी में गर्म करके उसमें कालीमिर्च और सेंधा नमक का चूर्ण डालकर सुबह खाली पेट खिला कर 2 घंटे पानी नहीं पीने देते थे जिससे त्रिलोचन पित्त संतुलित रहता था।
  • चरक संहिता, भारत भैषज्य रत्नावली आदि प्राचीन ग्रंथों में आंखों को सुरक्षित रखने के अनेक उपाय और दवाओं का विस्तार से वर्णन मिलता है।
  • आंखों के लिए महा त्रिफला घृत एक रोटी में चुपड़ कर खिलाने का विधान था। सुबह सूर्योदय के समय नंगे पैर हरी डूबा में उल्टे और सीधे चलाते थे।
  • सूर्य प्रणाम की परंपरा थी। इन सब उपायों से बच्चों की आंखें बुढ़ापे तक भी तेज रहती थी। 50 के बाद नेत्र ज्योति ठीक होने के कारण चश्मा लगाने की नौबत नहीं आती थी।
  • वर्तमान समय ऐसा आ गया है कि कम उम्र में नज़रें धुंधली हो रही हैं। बच्चा 10 साल भी पर नहीं कर पाता और मोटे ग्लास का ऐनक नाक पर चढ़ जाता है।
  • छुटपन में आंखों पर चश्मा लग जाना अब एक हद तक आम फैशन हो गया है। चश्मे का ये मोटा ग्लास भले बच्चे की धुंधली नज़र को साफ़ कर देता है, लेकिन इससे उसका भविष्य भी धुंधला हो जाता है।
  • बचपन में किसी भी प्रकार का तनाव नहीं होता है। घर में खेलना-कूदना है। न काम की चिंता और न अधिक पढ़ाई का बोझ। इसके बावजूद आजकल छोटे-छोटे बच्चे नंबर का चश्मा लगा रहे हैं। ये वो बच्चे हैं जिन्होंने अभी स्कूल जाना शुरू नहीं किया है या कुछ पर पढ़ाई का ज्यादा बोझ भी नहीं है।
  • आजकल खानपान के चलते और प्राचीन प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद से विमुख होने के कारण बच्चों की नजरें इतनी कमजोर हो गई हैं कि उन्हें ज्यादा नंबर का चश्मा लगाना पड़ रहा है और नजर का यही बच्चे के भविष्य को प्रभावित करता है।
  • नेत्रों में होता है परिवर्तन – चश्मे का नंबर होने पर वास्तविक रूप से किरणें आंखों में तो जाती हैं, पर आंख के परदे (रेटिना) तक नहीं पहुंच पाती हैं।
  • इस नेमेट्रोजी को रिफ्रैक्टिव एरर बोलते हैं। रिफ्रैक्टिव एरर चार प्रकार के होते हैं।
  • मायोपिया. इसमें आंखों में जाने वाली किरणें रेटिना के आगे केंद्रित होती हैं।
  • हाइपरमेट्रोपिया. इसमें आंखों में जाने वाली किरणें रेटिना के पीछे केंद्रित होती हैं।
  • एस्टिम्मेदज. इसमें कुछ ही कोण या एंगल से आने वाली किरणें रेटिना पर केंद्रित होती हैं, बाक़ी आगे या पीछे होती हैं।
  • प्रेस्खायोपिया इसमें पास में देखते समय जो किरणें आंखों में जाती हैं वो रेटिना पर केंद्रित नहीं हो पाती हैं। वैसे, यह 40 साल के बाद देखा जाता है।
  • सुबह जल्दी न उठाना और बाहर न खेलना है वजह – बच्चों में काफ़ी हद तक चश्मा लगने का कारण मायोपिया ही है।
  • आई स्पेशलिस्ट के अध्ययन अनुसार, जो बच्चे अपना ज्यादातर समय बाहर बिताते हैं, उनको मायोपिया होने और चश्मा लगने की आशंका काफ़ी हद तक कम हो जाती है।
  • आजकल बच्चे ज्यादातर समय फोन और टीवी पर बिताते हैं। अभिभावक भी सुरक्षा को ध्यान में रखकर और चोट लगने के डर से बच्चों को घर के बाहर खेलने नहीं देते. जिससे उन्हें प्रकृतिक रोशनी नहीं मिल पाती।
  • कोरोना या कोविड-19 के दौर के बाद मायोपिया काफ़ी ज्यादा बढ़ गया है क्योंकि बच्चों ने अपना अधिकतर समय घर पर ऑनलाइन क्लास या गेम्स पर ही बिताया है।
  • मायोपिया का एक मुख्य कारण आनुवंशिक भी है। अगर मां-बाप दोनों को मायोपिया है तो बच्चे में भी छुटपन से ही हाई माइनस नंबर आ सकता है।
  • कंप्यूटर, मोबाइल स्क्रीन की लत के चलते बच्चों की सल्तनत से खिलवाड़ हो रहा है।
  • माता-पिता बच्चे को व्यस्त रखने के लिए उसे मोबाइल फोन पकड़ा देते हैं या टीवी चला देते हैं।
  • शुरुआत सिर्फ़ उसे व्यस्त रखने से होती है, लेकिन धीरे-धीरे बच्चा इसका आदी होता जाता है।
  • अब स्थिति ये है कि जो बच्चे अभी बोलना तक नहीं सीख पाए हैं, वो मोबाइल मांगते हैं और वापस लेने पर एक-टक स्क्रीन देखती हैं, तो उसका असर नजरों पर पड़ता ही है।
  • मोबाइल न मिलने पर बच्चे रोने लगते हैं। नन्ही-सी आंखें जब एक तक मोबाइल की स्क्रीन देखती हैं, तो उसका असर नजर, नेत्र ज्योति पर पड़ता है।
  • खानपान के कारण खत्म होते खानदान – आजकल खानपान बिगड़ा हुआ है। बड़े जो खाते हैं वही बच्चों को भी खिला देते हैं। यही वजह है कि बच्चे सबसे ज़्यादा नूडल्स, पिज़्ज़ा, कोल्ड्रिंक जैसे फास्टफूड के बिना रह नहीं पाते।
  • भविष्य हो रहा बर्बाद – ज्यादा नंबर का चश्मा पहनने के कारण बचपन से लेकर वयस्क होने तक आत्मविश्वास की कमी रह सकती है।
  • खेल-कूद में शामिल होने में समस्या आती है। उन क्षेत्रों में कॅरियर नहीं बना पाते जहां उत्कृष्ट दृष्टि होना आवश्यक है।

जानिए क्या हैं देशी, प्राकृतिक और आयुर्वेदिक उपाय?

  • बच्चों को घर बाहर खेलने, घूमने और सुबह की हरके लिए प्रेरित करें। कम से कम 1-2 घंटे बाहर खुले वातावरण में रहें, बंद कमरे में न रहें।
  • मोबाइल और टीवी से दूर रखें। माना गया है कि हाई विजुअल कंट्रास्ट से मायोपिया बढ़ता है। पढ़ाई-लिखाई के दौरान इतना फ़र्क नहीं पड़ता।
  • आहार में हरी-पीली सब्जियां और गाजर खिलाएं। बताशे, त्रिफला आदि का उपयोग करें। Eyekey Malt दूध के साथ सुबह शाम नियमित सेवन करना हितकारी होगा

Primary Benefits

  • Treats Eye Concerns like Impaired Vision and Watery or Dry Eyes, Protects the Eye Against Free Radicals, Improves Eye Function and Reduces Redness

Secondary Benefits

  • Contains Photoprotective Properties, Balance Doshas that Affect Eyesight and Vision, Promotes Peaceful Sleep
  • Contains Photoprotective Properties, Balance Doshas that Affect Eyesight and Vision, Promotes Peaceful Sleep

Dosage

Twice a day on an empty stomach

Primary Ingredients

  • Triphala, Gajar, Bel, Brahmi, and Jatamansi
  • Duration : 3-6 months minimum
  • बच्चे अगर आंखों को मलते या खुजलाते हैं तो उन्हें ऐसा न करने दें। इससे भी सिलिंड्रिकल नंबर बढ़ता है। चश्मा लगा है लेकिन बच्चा उसका इस्तेमाल नहीं करता है,!
  • ख़ासकर 12 साल से कम उम्र के बच्चे, तो भविष्य में आंखों की रोशनी में सुधार होना मुश्किल है। इसके लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ से परामर्श जरूर करें।

भय भ्रम भ्रांतियां भगाएं

  • बहुत छोटे बच्चों को चश्मा लगवाना आगे भ्हींविष्य के लिए दुखदाई सिद्ध होगा। माइनस का नंबर उम्र व क़द बढ़ने से बढ़ता ही है। लेकिन प्राकृतिक उपचारों और आयुर्वेदिक दवाइयों द्वारा नम्बर को रोका जा सकता है।
  • चश्मा न पहनने से नंबर बढ़े न बढ़े आंख की दृश्य क्षमता बच्चा छोटा है तो चश्मा नहीं पहन पाएगा। कम होती जाती आंखों में समस्या हो रही है, तो नेत्ररोग विशेषज्ञ से मिलो

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