1100 से ज्यादा शिवलिंगों की जानकारी
अमृतम मासिक पत्रिका
फरवरी 2008 से साभार….
आदि-अनादि काल से महादेव अनेकों
नामों से और शिंवलिंग रूप में पूजे
जाते हैं। शिवपुराण के दशम अध्याय
में 5/पांच प्रकार के शिवलिंगों का वर्णन है।
शिवलिंगों का क्रम…..
शिवपुराण और लिंग पुराण में सूक्ष्म
और स्थूल दो तरह के शिंवलिंग बताए हैं-
सूक्ष्मं प्रणव-रूपं हि,
सूक्ष्मरूपं तु निष्कलं।
स्थूललिङ्ग हि सकलं,
तत्पंचाक्षर-मुच्यते ।।
(शिवपुराण विध्येश्वर सहिंता दशम ।।२८।।)
अर्थात…प्रणव यानी ॐ सूक्ष्म शिंवलिंग है।
दूसरा पंचाक्षर मन्त्र को कलायुक्त
स्थूल अर्थात मोटा शिंवलिंग बताया गया है।
!!ॐ नमःशिवाय!! मन्त्र का निरन्तर जाप
से सूक्ष्म और स्थूल दोनों शिवलिंगों की
उपासना हो जाती है।
स्वयम्भूलिङ्ग प्रथमं,
बिन्दुलिङ्ग द्वितीयकम्।
प्रतिष्ठितं चरं चैव,
गुरुलिङ्गम तु पञ्चमम।।
भावार्थ…
पहला है-स्वयम्भू शिंवलिंग
दूसरा.. बिन्दु शिंवलिंग
तीसरा..प्रतिष्ठित यानि अचल, स्थिर
चौथा… चर शिंवलिंग अर्थात अस्थिर
पांचवा….गुरुलिङ्ग यानि गुरुधाम या
सदगुरू की समाधि पर स्थापित शिवलिंग अथवा
जो लोग गुरुमन्त्र ले लेते हैं, उनके द्वारा
घर या मन्दिर में पूजित शिंवलिंग गुरुलिङ्ग
कहलाता है।
【1】स्वयम्भू लिंग…
कैसे अपनेआप प्रकट होते हैं
देवर्षि तपसा..पृथिव्यन्तर्गत:..रूपत:.. ३२
अर्थात-जिस भूमि पर परम शिवभक्त
साधु-महात्मा तप करते हैं, उस भूमि
के अंदर नाद रूप में शिंवलिंग का आकार बनने लगता है।
यह नाद ही शिवजी का बीज है।
श्लोक !!33!! में लिखा है कि…
स्थावराँकुर-वद-भूमि.. स्वयम्भूरिति तं विदु:
अर्थात…जिस प्रकार प्रथ्वी में पड़ा हुआ
बीज एक दिन फूटकर भूमि से ऊपर निकल आता है, उसी तरह शिवसन्तों के साधना
रूपी सिंचन से जो शिंवलिंग जमीन को
फोड़कर स्वयं ही प्रकट हो जाता है, उसे
ही स्वयम्भू शिंवलिंग कहा गया है।
कब निकलते हैं स्वयम्भू शिंवलिंग..
भृगु सहिंता के जानकार, परम शिव
साधक और प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य
लखनऊ निवासी पण्डित परमेश्वर द्विवेदी बताया करते थे कि-जब गोचर में राहु
मिथुन, वृषभ और मेष राशि में संचार,
भ्रमण करते हैं या रहते हैं, तब सम्पूर्ण
विश्व की धरती पर स्वयम्भू शिंवलिंग
स्वतः ही प्रकट होते हैं यानि प्रथ्वी में
दबे शिंवलिंग भूमि फोड़कर बाहर
आ जाते हैं।
वर्तमान में राहु की स्थिति-
इस समय 19 जुलाई 2019 को राहु
मिथुन राशि के पुनर्वसु नक्षत्र के प्रथम
चरण में हैं। राहु अपने स्वयं के नक्षत्र
आद्रा के चौथे चरण में 13 सितंबर
2019 को दुपहर में आ जाएंगे।
राहु देव आद्रा में लगभग दो महीने
रहेंगे। यह एक राशि में 18 महीने
और एक नक्षत्र के एक चरण में 2
महीने तक रहते हैं। एक राशि में
सवा दो (२-१/४ )नक्षत्र
होते हैं। आद्रा नक्षत्र के देवता स्वयं
राहु हैं एवं इसके स्वामी या मालिक
स्वयम भगवान शिव हैं।
लगभग पूरी दुनिया में
13 सितंबर 19 से दिसम्बर 2022
तक अनेकों अद्भुत स्वयम्भू शिवलिंगों का निकलना निश्चित है।
इस बार जो स्वयम्भू शिंवलिंग
प्रकट होंगे, उन पर नाग की आकृति
होगी या नाग लिपटे होंगे।
यह सब परम शिवभक्त राहु के
कारण होगा।
साथ ही अनेक अज्ञात रोग-संक्रमण
भी धरती पर पनप सकते हैं, जिससे
अनेक लोग काल के गाल के समा
सकते हैं।
ईश्वर को निस्वार्थ मानने वाले तथा
मजबूत मन, कसरती, योग-ध्यान व
मजबूत रोगप्रतिरोधक क्षमता वाले
लोग इस आपदा में सुरक्षित रह सकेंगे।
राहु शोध पुस्तक कालसर्प विशेषांक
के अनुसार सन्सार में भौतिक सुख-दुःख
राहु के हाथों में है। राहु सृष्टि के प्रशासनिक
अधिकारी हैं। व्यक्ति के कर्मानुसार
दुःख-दरिद्र, गरीबी, सन्तति-सम्पत्ति
कष्ट और अथाह धन-दौलत का मालिक
राहु ही बनाते हैं।
22 मई सन 2020 को राहु मङ्गल
के नक्षत्र मृगशिरा में आएंगे।
मंगल युद्ध, सेना, झगड़ा, सीमा विवाद,
अहंकार, शक्ति, ताकत, रक्त और
खूनी हत्याओं के कारक ग्रह है।
राहुदेव के इस नक्षत्र में आने से दुनिया
में बड़े-,बड़े उत्पात, उधम होंगे।
कोई भयंकर रक्त सम्बंधित बीमारियां
फैलेंगी। केन्सर जैसे घातक असाध्य
रोग पल में जीवन का हरण करेंगे।
मङ्गल भूमि स्वामी ग्रह होने से पृथ्वी
पर अचानक अनेकों रक्त रोग, संक्रमण
उपजेंगे। बहुत सी जानलेवा बीमारियां
व्यक्ति को बर्बाद कर देंगी।
अन्यायियों, बेईमानों, भृष्टाचारियों
पर अंकुश लगेगा।
बहुत बड़े एम्पायर धान सकते हैं।
नामी-गर्मी लोग काल-कवलित होंगे।
पड़ोसी देशों से लड़ाई की संभावना बढ़ेगी।
विश्व युद्ध के आसार बनेंगे।
आदि समस्याएं विकराल रूप लेंगी।
सरकार किसी सी समस्या का हल
नहीं खोज पाएगी विश्व की सत्ताएं
शक्तिहीन हो जाएंगी। इस दरम्यान
अंधी-,तूफान, बाढ़ जैसी अपदायें भी
आफत खड़ी कर देंगी।
जंगल आग के कारण नष्ट हो सकते हैं।
आगे भी राहु रोहिणी और कृतिका
नक्षत्र, जो कि चन्द्र और सूर्य के हैं।
राहु जब इन नक्षत्रों पर गोचर करेंगे,
तब स्थिति बहुत भयानक होगी।
राहु चंद्र-सूर्य के नक्षत्रों पर आता है, तो
ग्रहण लगा देता है।
स्वस्यम्भू शिंवलिंग के दर्शन से
होता है चमत्कारी फायदा..
अज्ञानता मिटाने, बुद्धि-विवेक की वृद्धि
तथा याददाश्त तेज करने के लिए स्वयम्भू
शिंवलिंग पर जल में चन्दन इत्र मिलाकर
11 रुद्राभिषेक करना चाहिए।
शिवमहापुराण की विध्येश्वर सहिंता के
अष्टादश अध्याय !!३३ १/२ में उल्लेख है कि..
तलिङ्ग पूजया ज्ञानं, स्वयमेव प्रवर्धते।
अर्थात- स्वयम्भू शिंवलिंग की पूजा करने
से ज्ञान स्वयं बढ़ता है।
【2】बिन्दुलिंग…
सुवर्ण-रजतादौ.. प्रणव मन्त्रकम
यन्त्रलिङ्गम, समालिख्य,
प्रतिष्ठा वाहनं चरेत
अर्थात… स्वर्ण-रजत (चांदी), ताम्बे
के पात्र पर अपने हाथों से लिखा गया
!!ॐ!! शब्द मन्त्रमय यन्त्र शिंवलिंग
हो जाता है।
महर्षि अगस्त्य ने शिंवलिंग पुराण में
और गुरु ग्रह के पिता महर्षि अङ्गिरा ने
वृहस्पति सहिंता में
बताया है कि यदि घर में शिंवलिंग न हो,
तो सोने या चांदी अथवा तांबे के पत्र पर यानि 2×2 या फिर ४×४ की चौकोर शीट/पत्र पर प्रतिदिन अष्टगंध युक्त
अमृतम चन्दन
से !!ॐ!! लिखकर
शिंवलिंग जैसी पूजा, श्रृंगार करें।
चारों कोने में अमृतम राहुकी तेल जलावें।
यदि हो सके तो १०८ बार
!!नमःशिवाय च शिवाय नमः!!
बोलते हुए सफेद पुष्प या अक्षत
अर्पित करें!
तीसरा..प्रतिष्ठित यानि अचल, स्थिर
चौथा… चर शिंवलिंग अर्थात अस्थिर
पांचवा….गुरुलिङ्ग यानि गुरुधाम या
सदगुरू की समाधि पर स्थापित
शिवलिंग अथवा जो लोग गुरुमन्त्र
ले लेते हैं, उनके द्वारा घर या मन्दिर
में पूजित शिंवलिंग गुरुलिङ्ग
कहलाता है।
बिन्दुनाद-मयं लिङ्गम,
स्थावरं जङ्गम च यत!
भावनामय-मेद दधि,
शिवदृष्टं न संशय:!!
अर्थात…
यही यन्त्र आप सबका अलग-अलग
महत्व, पूजा विधान भी बताया है।
सतयुग से आज तक दुनिया में शिवमंदिरों
की गणना कोई नहीं कर सका।
शिंवलिंग ही हिंदुओं का ऐसा प्रतीक है, जो विश्व के प्रत्येक कोने में, कस्बों-गाँव और शहरों में सरलता से मिल जाता है।
शिंवलिंग पुराण के अनुसार सप्तपुरियों
में 3 वैष्णव स्थल तथा 3 शैव स्थल हैं। दक्षिण भारत का कांचीपुरम तीर्थ, जहां पर मूल पृथ्वीतत्व शिंवलिंग एकाम्बरेश्वर नाम
से प्रसिद्ध है।
चारों दिशाओं में भी शिवजी का ही
बोलबाला है। दक्षिण में रामेश्वरम
शैव तीर्थ है। पश्चिम में सोमनाथ,
पूर्व में काशी विश्वनाथ,
उत्तर में अमरनाथ व केदारनाथ
स्वयम्भू रूप में स्थापित है।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों का ज्ञान लगभग सभी सनातन धर्मियों को हे। नवनाथ तीर्थ,
नवग्रह शिंवलिंग असम एवं तमिलनाडु
के सतयुग समय के हैं।
एकादश रुद्र शिंवलिंग,
अष्टमूर्ति शिंवलिंग,
पशुपतिनाथ, नेपाल,
नो स्वयम्भू महालिंग,
क्षेत्र अष्टादश शैव स्थल आदि शिवालय युगों-,युगों से विराजमान हैं।
कुछ शिवमंदिर तो इतने घने वन जंगल में स्थित हैं कि वहां पहुँच पाना अत्यंत कठिन है। अनेकों शिंवलिंग तांत्रिक पीठ भी हैं।
धूमेश्वर महादेव, गिरगांव का मामा भांजा शिवालय, हजारेश्वर, मंगलेश्वर गड्ढे में है।
अचलेश्वर, कोटेश्वर, भूतेश्वर, शिवखो, चकलेश्वर, गुप्तेश्वर, पिपलेश्वर, शिवकल्यानेश्वर फालकबाज़ार, जहाँ कालसर्प-पितृदोष की शान्ति के लिए
पिछले 16 वर्षों से निशुल्क रुद्राभिषेक कराया जा रहा है। भदोली मुरार के पास शिवालय, तिघरा के पास नलकेश्वर महादेव, चीनोर के पास मकरध्वज शिवालय,
भूतेश्वर शिवालय, वेल्लोर का जलकंठेश्वर, चित्तूर का आदि परशुरामेश्वर,
गोवा के ताम्बेडेश्वर, कुककेसरी,
धर्मस्थला, गोकर्णनाथ,
चन्द्रभागेश्वर उड़ीसा,
शंकर मठ, हुमा मन्दिर,
धमतरी का रुद्री मन्दिर और कर्णेश्वर
गोहद के पास कंचन सिंह का पूरा में
पुराण शिवमंदिर,
मेहगांव में राठौड़ शिवमंदिर,
अजनोदा का शिवमंदिर,
पीपल का पेड़ वाला प्राचीन शिंवलिंग,
भिंड का वनखंडेश्वर मन्दिर।
पृथ्वीराज चौहान द्वारा निर्मित एक
शिवालय है। जो कि गौरी सरोवर
के निकट है।
इटावा का इतिहास...
किसी समय इटावा ‘इष्टिकापुरी’
के नाम से प्रसिद्ध था
महाभारतकालीन इस मंदिर के
बारे में मान्यता है कि मंदिर में
स्थापित शिवलिंग की स्थापना
पांडवों के गुरु महर्षि धौम्य ने की थी। जिस स्थान पर मंदिर बना है यह स्थान धौम्य ऋषि की साधना स्थली थी। धूमेश्वर महादेव मंदिर इटावा के
यमुना नदी के किनारे छिपैटी घाट
पर बना हुआ है।
भरेह का शिवमंदिर
यमुना चंबल संगम पर स्थित
भारेश्वर महादेव मंदिर प्राचीन काल से आध्यात्मिक ज्ञान एवं तपस्या का केंद्र
रहा है।
मान्यता है कि विद्वान नीलकंठ ने कर्मकांड एवं दंड के 12 मयूक (ग्रंथ) एवं आयुर्वेदिक ग्रंथ इसी मंदिर में रहकर लिखा था।
टिकसि शिवालय इटावा वशिष्ठ मुनि द्वारा शिवलिंग स्थापित है।
किवदंतियों के मुताबिक वशिष्ठेश्वर
महादेव शिवलिंग खुले में थे,
जिला का प्रख्यात शिव मन्दिर सरसई
नावर में इस मन्दिर में एक हजार शिवलिंग है। यह इटावा जिला का एक मुख्य पर्यटक स्थल है।
नाग राहु शिंवलिंग….
महाराजपुर थानांतर्गत स्थित कमालपुर गांव
कानपुर में सिद्ध शिवलिंग दर्शनीय हैं।
इस पर नाग लिपटे हुए हैं और सावन के
महीने में अनेकों बार ओरिजनल नाग
शिंवलिंग पर आकर लिपट जाते हैं।
ग्वालियर मुरार में भी एक शिंवलिंग पर
अक्सर एक लम्बा नाग आकर लिपट
जाता है।
कभी भीमाशंकर पूना ज्योतिर्लिंग जाएं, तो
वहां से 3 km दूर घने वन में एक शिंवलिंग
पर सदैव नाग लिपटे रहते हैं। यह नाग राहु का ही रूप हैं।
श्रवण मास का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि श्रवण का अर्थ सुनना है। यह विश्वास अमिट है कि सावन के महीने में कई गई पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती।
नेपाल के ताड़केश्वर, पशुपतिनाथ,
मुक्तिनाथ, नीलकण्ठ
जयपुर के रोजगारेश्वर बीच शहर में है।
उदयपुर एकलिंगनाथ पहाड़ी में बसा है।
दतिया के बड़ोनी ग्राम में गुप्तेश्वर
दिनारा MP दिनारा| क्षेत्र के ग्राम ढांड में स्थित श्री शिव मंदिर
करैरा में किले में स्थित प्राचीन शिवालय
एवं फूटा तालाब का शिवालय भी बहुत प्राचीन है।
करई ग्राम में बाग वाले शंकर जी
खोड़ का टपकेश्वर
नरवर के 14 महादेव शिंवलिंग
बिरसिंहपुर सतना का शिवमंदिर
रीवा का देवतालाब देव शिवालय
शहडोल का विराटेश्वर
जनकपुर 36 गढ़ जलमहादेव
बनारस में लगभग 1100 शिंवलिंग
स्वयम्भू हैं और कुल 11000 शिंवलिंग है। यन्त्रेश्वर, नागेश्वर, श्रीयंत्र शिंवलिंग अन्नपूर्ण मन्दिर के पास है। कर्णघंटा शिंवलिंग बूढ़ा नाले के पर है। महामृत्युंजय शिवालय, पितरेश्वर, जागेश्वर शिंवलिंग हथियाराम मठ के सिद्ध साधुओं की तपःस्थली है। यह शिंवलिंग नित्य प्रतिदिन अपने आप
बढ़ रहा है। गोपीगंज इलाहाबाद से 10 km जंगल में अंदर गंगा किनारे अघोर आश्रम अघोरियों का स्वयम्भू तिलेश्वर शिंवलिंग है, इस शिंवलिंग में करोड़ों छोटे-छोटे शिंवलिंग है। तिलेश्वर लिंग का एक चमत्कार यह भी है कि इन पर दूध-दही अर्पित करने से पत्थर की क्षार य कुछ अंश नीचे गिरते ही पानी हो जाते हैं।
बैंगलोर के पास बंगार पेठ नामक ग्राम में कोटिलिंगेश्वरा में लगभग एक करोड़ शिंवलिंग बहुत बड़े क्षेत्र में स्थापित हैं। भोलेनाथ यहां मंजूनाथ के
नाम से स्वयम्भू शिंवलिंग है।
वास करते हैं।
नागमुक्ति तीर्थ बैंगलौर से मैसूर मार्ग से
मलय नागनाथ मैसूर से 209 km दूर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र पर बसे हैं। यहां महागंगा का उदगम स्थल है। महर्षि अगस्त्य ने यहां शिवजी के दर्शन किये थे।
दिनारा (रोहतास) : बिक्रमगंज प्राचीन मंदिर कस्तर महादेव के मंदिर
वहीं नोखा में महाशिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया गया। तेन्दुआ पहाड़ पर स्थित भगवान शिव के मंदिर पर हजारों श्रद्धालु का जमावड़ा लगा रहा। काराकाट में प्रखंड में हजारों श्रद्धालुओं ने विभिन्न शिवालयों में जलाभिषेक किया। स्थानीय बाजार के शिव मंदिर, बुढ़वा महादेव कछवां, बुढ़वा महादेव मोथा, जमुआ, संसारडीह सहित कई गांवों के शिवालय दोपहर के बाद हर-हर महादेव से गूंजते रहे। कछवां में मेला का आयोजन किया गया। कोचस में महाशिवरात्री का त्योहार प्रखंड क्षेत्र में धूमधाम से मनाया गया। गंगवलिया बन स्थित गंगेश्वर नाथ के मंदिर, सूर्य मंदिर पोखरा के समीप शिवमंदिर सहित ग्रामीण क्षेत्र के विभिन्न शिवालयो में श्रद्धालुओं द्वारा शिवलिंग पर जलाभिषेक किया गया।
35000 से भी अधिक शिवालयों की
जानकारी जानने के लिए
अमृतम पत्रिका पढ़ते रहें।
अमृतम की असरकारक दवाओं के
बारे में जानने के लिए
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