हरति/मलानइतिहरितकी ।
अर्थात-हरड़ रोगों पेट की गंदगी
का हरण करती है ।
हरस्य भवने जाता
हरिता च स्वभावत:।
हरते सर्वरोगानश्च ततः
प्रोक्ता हरीतकी।।। म.नि.
हर,हर्रे,हरीतकी,अमृतम,अमृत, हरड़, बालहरितकी, हरीतकी गाछ, नर्रा, हरड़े, हिमज, आदि कई नामों से जाने वाली हरड़ तन को बिना जतन ठीक करने की क्षमता रखती है ।
रसायनिक संगठन–
पके हरड़ में 30 प्रतिशत कसैला द्रव्य होता है जो चेब्युलिनीक एसिड के कारण है । इसके अतिरिक्त टैनिक एसिड 20-40 प्रतिशत,गैलिक एसिड, राल, विटामिन सी एवम पोषक द्रव्य आदि है । इसका विरेचक द्रव्य एक ग्लाइकोसाइड ए के समान है ।
बालहरड़ में एक हरे रंग की तेलीय राल
मिलती है । जिसे कभी-कभी मयरॉबलानीन
कहा जाता है ।
हरड़ के गुण और प्रयोग-
यह श्रेष्ठ व विरेचक द्रव्य है ।
यह शरीर को कोई
हानि नहीं पहुचाता । तन की सभी क्रियाएं इसके सेवन से पूरी तरह सुधर जाती है । हरड़ को आयुर्वेद का अमृतम योग कहते है । प्रतिदिन 3 से 5 ग्राम सादे जल से लेने पर सर्वरोग नष्ट होते हैं तथा कभी जीवन भर कोई भी रोग उत्पन्ननही होते ।
अमृतम द्वारा निर्मित सभी दवाओं, माल्ट, चूर्ण में हरड़ का योग अवश्य मिलाया जाता है ।
हरड़ शरीर मे व्याप्त अज्ञात रोग मल विसर्जन द्वारा बाहर निकल देता है ।
पेट साफ रखता है ।
कब्ज नहीं होने देता । हृदय को ताकत देने में सहायक है । नेत्र रोग दूर होते हैं ।
हरड़ का उपयोग जीर्ण ज्वर, अतिसार, रक्तातिसार, अर्श (बवासीर) अजीर्ण, मधुमेह,
प्रमेह, पांडु (खून की कमी) अम्लपित्त (acidity) कामला आदि में प्रचीनकाल से
होता आ रहा है । सदा स्वस्थ और शतायु जीवन के लिए हरड़ या दर्द योग से निर्मित अमृतम उत्पादों का सेवन करते रहना चाहिये ।
आधुनिक प्रयोगों में भी इसकी उपयोगिता
सिद्ध हुई है । त्रिफला चूर्ण, अभयारिष्ट तथा पथ्यादि क्वाथ आदि ओषधियाँ हरड़ से ही निर्मित होती हैं ।
अमृतम द्वारा निर्मित pileskey malt
एवम भयंकर बवासीर नाशक माल्ट जो कि बवासीर (अर्श) बीमारियों की बेहतरीन आयुर्वेदिक दवा हरड़ के योग से ही बनाई जाती है ।
हरड़– अच्छा वरणरोपक भी है ।
मुखवरण,पुराने घाव तथा अर्श में इसका लेप लाभप्रद है ।
दांत मंजन के लिये हरड़ का महीन चूर्ण अति उपयोगी है ।
हरड़ जीर्ण विबंध (पुरानी कब्ज) एवम बार-बार कब्ज बनना आदि व्याधियोंबको जड़ मूल से नाश करता है ।
अमृतम हरड़ के विषय मे अभी और भी शेष है ।
देखे
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