मधु यानी शहद अशुद्ध होने के बाद भी पवित्र मन गया है। जाने-क्यों?
“भूतेषु-भूतेषु विचित्य धीरा: ” –
जैसे एक मधुमक्खी फूलों की क्यारी में जाकर प्रत्येक फूल से केवल उसका रस ग्रहण करती है। फूल का ज्यों का त्यों छोड़ देती है। फूल पर बैठी जरूर, लेकिन उससे केवल रस ले लिया।। कड़े परिश्रम पश्चात अनेक फूलों के रस को लेकर फिर। एक रस बनाती है, उसका नाम है ……शहद
शहद को शुध्द व पवित्र कर इसमें चार और स्वास्थ्यवर्द्धक, शक्तिदायिनी जड़ीबूटियों के अर्क-रस को मिलाकर तैयार होता है-मधु पंचामृत
मधु पंचामृत के नियमित उपयोग से शरीर में जीवन दायिनी कुदरती खुबियां ज्यों की त्यों बनी रहती है।
मधु पंचामृत- के 4 बड़े फायदे
पौष्टिक और प्राकृतिक अनमोल अमृत हैं।
【1】 ठंडे दूध के साथ बढ़ते बच्चों के लिए सर्वोत्तम।
【2】सम्पूर्ण संसार में मधु ही एक ऐसी प्राकृतिक अमृत औषधि है, जो शरीर में जाते ही अपना कार्य शुरू कर देती है। 【3】शरीरिक शक्ति दृढ़ करने में मधु पंचामृत रामबाण है।
【4】नास्ते के समय एक छटाक मलाई में एक बड़ा चम्मच मधु पंचामृत मिलाकर खाने से दिमाग और स्नायुओं को असाधारण रूप से शक्ति मिलती है। क्योंकि इसमें स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली आयुर्वेद की चार सुप्रसिध्द जड़ी बूटी जैसे-
【2】सम्पूर्ण संसार में मधु ही एक ऐसी प्राकृतिक अमृत औषधि है, जो शरीर में जाते ही अपना कार्य शुरू कर देती है। 【3】शरीरिक शक्ति दृढ़ करने में मधु पंचामृत रामबाण है।
【4】नास्ते के समय एक छटाक मलाई में एक बड़ा चम्मच मधु पंचामृत मिलाकर खाने से दिमाग और स्नायुओं को असाधारण रूप से शक्ति मिलती है। क्योंकि इसमें स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली आयुर्वेद की चार सुप्रसिध्द जड़ी बूटी जैसे-
{{१}} पान का रस
{{२}} ब्राम्ही रस
{{३}} मधुयष्टि
{{४}} तुलसी का रस
अति शुभकारक ओषधियों का समावेश है।
कालसर्प-पितृदोष का शर्तिया उपाय-
मधु पंचामृत के उपयोग से शरीर ऊर्जावान बनता है।
शक्ति-साहस में वृद्धि होती है।
अघोरी तन्त्र एवं रहस्योपनिषद के अनुसार प्रतिदिन शिंवलिंग पर 56 दिन लगातार मधु पंचामृत अर्पित करने से घनघोर परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
पाँच वस्तु ऐसी हे …जो अशुद्ध होकर भी शुद्ध कहलाती हैं-
पुराणों में प्रवचन है कि:
उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं
वमनं शवकर्पटम् ।
काकविष्टा ते पञ्चैते
पवित्राति मनोहरा॥
[[1]] उच्छिष्ट अर्थात गाय का दूध।
गाय का दूध पहले उसका बछड़ा पीकर उच्छिष्ट करता है।फिर भी वह शुद्ध रहकर शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है।
उच्छिष्ट का अर्थ है- शेष, बचा हुआ, अस्वीकृत, त्यक्त, झूठन।
[[२]] शिव निर्माल्यं
के बारे में अधिकांश हिन्दू जानते हैं। पूजन के पश्चात
शिंवलिंग पर चढ़ा हुआ सामान शिव निर्माल्य कहा जाता है।
एक शब्द गंगा का जल भी है।
गंगा जी का अवतरण स्वर्ग से सीधा शिव जी के मस्तक पर हुआ। नियमानुसार शिव जी पर चढ़ायी हुई हर चीज़ निर्माल्य है पर गंगाजल पवित्र है।
{{३}} वमनम्—
वमनम का अर्थ है उल्टी।— शहद को मधुमक्खी
का वमन कहा गया है।
मधुमख्खी जब पुष्पों का रस लेकर अपने छत्ते पर आती है, तब वह अपने मुहं से उस रस की शहद के रूप में उल्टी करती है ,जो पवित्र कार्यों मे उपयोग किया जाता है। मधुमक्खी के
कड़े परिश्रम के बाद मधु एकत्रित होता है।
{{४}} शव कर्पटम् अर्थात रेशमी वस्त्र
धार्मिक कार्यों को सम्पादित करने के लिये हर वस्तु का
शुद्ध होना जरूरी है। पूजा-अनुष्ठान में रेशमी वस्त्र को बहुत अधिक पवित्र माना गया है। लेकिन रेशम का वेस्ट बनाने के लिए रेशमी कीडे़ को उबलते पानी में डाला जाता है । फिर उ
रेशम के कीड़े मर जाते हैं। उसके बाद रेशम मिलता है,
इसे शव कर्पट कहते हैं, जो कि पूर्णतः पवित्र है।
{{५}} काक विष्टा— यानि कौए का मल
कौवा विशेषकर पीपल वृक्ष के फल खाता है ओर उन पेड़ों के बीज अपनी विष्टा में इधर उधर छोड़ देता है, इसे पशु-पक्षी
द्वारा किया गया वृक्षारोपण कहते हैं। कौए के मल विसर्जन
से पेड़ों की उत्पत्ति होती है। पीपल के पेड़ को उगाने में
काक का बहुत बड़ा योगदान है।
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